दिल्ली अभी दूर है (Dilli Abhi Door He)

‘संघ मुक्त भारत’ का आह्वान देकर नीतीश कुमार ने अभी से 2019 के लिए अपनी महत्वकांक्षा की ऊंची घोषणा कर दी है। वह चाहते हैं कि संघ, अभिप्राय नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा से है, को हराने के लिए एक महागठबंधन बनाया जाए जिसका नेतृत्व (और कौन?) वह खुद करें। ‘संघ मुक्त भारत’ कैसा होगा? यह कोई राजनीतिक दल नहीं। और जिस संघ की देश भर में 57,000 शाखाएं हैं उससे मुक्ति नीतीशजी को कैसे मिलेगी? 1967 में राम मनोहर लोहिया ने कांग्रेस के खिलाफ ऐसा महागठबंधन बनाने का प्रयास किया था। लोहिया का कांग्रेस विरोधी गठबंधन स्थायी नहीं रहा था। मोरारजी देसाई, वीपी सिंह, चन्द्रशेखर, देवेगौड़ा और इन्द्र कुमार गुजराल की सरकारें लड़खड़ातीं और अंतरविरोध से भरी हुई थीं इसलिए अस्थिर और अस्थायी रहीं।
आज भाजपा नई कांग्रेस है और नीतीश कुमार ने खुद को विश्वास दिला लिया है कि देश को इस नई कांग्रेस से मुक्त कराने की जिम्मेवारी उनकी है। लेकिन यहां समस्या शुरू होती है। केवल एक पार्टी खुले तौर पर उनका समर्थन करती नज़र आ रही है। यह है लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल। लालू यादव के पुत्र तेजस्वी प्रसाद यादव का कहना था, ‘अगर चाचा दिल्ली जाएंगे तभी तो भतीजा बिहार की कमान संभालेगा।’ अर्थात् अभी से भावी मुख्यमंत्री का सपना देखते हुए तेजस्वी नीतीश कुमार को ऊपर धक्का देने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन जरूरी तो नहीं कि चाचा भतीजा की यह प्रेम कहानी दूसरों को पसंद हो। देश की जनता को विश्वास दिलवाने की जरूरत है कि विपक्ष का गठबंधन उस तरह अस्थिर नहीं रहेगा जिस तरह पहले ऐसे प्रयास रहे थे। जनता पार्टी तथा जनता दल के अनुभव को देखते हुए तो कहा जा सकता है,
नई बहार का नगमा न छेड़ ए मुंतज़िर
अभी पुराने जख्मों का दर्द ताज़ा है!
नीतीश कुमार का कहना है कि ‘लोकतंत्र खतरे में है, सभी गैर भाजपा पार्टियों को एक साथ आना होगा। उन्हें हराने के लिए अलग अलग लड़ने से बात नहीं बनेगी।’ लेकिन उनका दुर्भाग्य है कि उनके नए भतीजे तेजस्वी के सिवाय विपक्ष में और कोई उनकी बात पर गौर नहीं कर रहा। अखिलेश यादव का तो कहना ही है कि ‘नेताजी (मुलायम सिंह यादव) के नेतृत्व में ही तीसरा विकल्प बन सकता है। वह ही नरेन्द्र मोदी को चुनौती देने के काबिल हैं। नीतीश का नेतृत्व नामंजूर है।’ अर्थात् सिर मुंडाते ही ओले पड़ गए। पिछले साल भी दिल्ली में एक सम्मेलन में अखिलेश यादव ने ऐसी घोषणा की थी और उन्होंने लगे हाथ राहुल गांधी, जो वहां मौजूद थे, को उप प्रधानमंत्री बनने का न्यौता भी दे दिया। अर्थात् राहुल गांधी सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें नेतृत्व देने वाले दो-दो नेता हैं जिस पर अरुण जेतली का कटाक्ष याद आता है कि कांग्रेस किसी भी ऐसे गठबंधन की पूंछ होगी।
लेकिन 2019 की महत्वकांक्षा केवल नीतीश कुमार ही नहीं कुछ और नेता भी पाल रहे हैं। अरविंद केजरीवाल भी उनमें से एक हैं। इस वक्त उनकी नज़रें पंजाब पर लगी हुई हैं। अगर ‘आप’ को यहां अच्छी जीत मिलती है और बाद में वह अच्छी सरकार दे सके तो अरविंद केजरीवाल भी ‘पंजाब मॉडल’ के नाम पर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनना चाहेंगे। अभी से वह पाकिस्तान जैसे मसलों को लेकर मोदी सरकार पर हमला कर रहे हैं जिससे उनकी राष्ट्रीय मंच पर कदम रखने की महत्वकांक्षा स्पष्ट होती है। यह भी उल्लेखनीय है कि चाहे नीतीश कुमार तथा अरविंद केजरीवाल के बीच बहुत दोस्ती है पर केजरीवाल ने अभी तक नीतीश के दावे का समर्थन नहीं किया। राजनीति में कोई किसी पर मेहरबानी नहीं करता।
नीतीश कुमार की महत्वकांक्षा के आगे सबसे बड़ी रुकावट कांग्रेस पार्टी है जिसके लिए प्रधानमंत्री पद के एकमात्र उम्मीदवार राहुल गांधी हैं, और न कोई है न कोई हो सकता है। कांग्रेस प्रादेशिक स्तर पर तो बिहार जैसे गठबंधन में शामिल होने को तैयार है जहां वह ‘गठबंधन की पूंछ’ है, पर राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी ऐसे गठबंधन के लिए तैयार नहीं होगी जो उसके तथा राहुल गांधी के इर्दगिर्द नहीं होगा। अगर संघ मुक्त भारत भी लक्ष्य है तो उसके नेता भी राहुल गांधी ही हो सकते हैं।
अर्थात् नीतीश कुमार की केन्द्रीय सत्ता की व्याकुलता को दूसरी विपक्षी पार्टियों का समर्थन मिलने की संभावना नहीं। छोटी प्रादेशिक पार्टियों की राष्ट्रीय महत्वकांक्षा कभी सफल नहीं होती। नीतीश भी आखिर आधी बिहार सरकार के ही मालिक हैं। आधी तो लालूजी के पास है। इसके बल पर वह दिल्ली पर शासन नहीं कर सकते। बिहार चुनाव में महागठबंधन सफल रहा पर असममें यह बन नहीं पाया जबकि वहां भाजपा सबसे आगे नज़र आती है। पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस तथा तृणमूल कांग्रेस अलग अलग खेमे में हैं। ‘आप’ की अलग अनोखी राजनीति है। मुलायम सिंह और मायावती की राजनीति अविश्वसनीय है और अधिकतर दोनों उसी तरफ झुक जाते हैं जिसके हाथ में सीबीआई हो। आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, तेलंगाना, तमिलनाडु को जो प्रादेशिक पार्टियां चला रही हैं उन्हें भाजपा से कोई परहेज नहीं होगा। अर्थात् 2019 में विपक्ष का केवल भाजपा या मोदी विरोध का नारा पर्याप्त नहीं होगा।
सबसे महत्वपूर्ण बात जो विपक्ष के नेता भूलते हैं वह यह है कि मोदी सरकार से लोगों का मोहभंग नहीं हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता को कोई भी विपक्षी नेता छू नहीं सकता। ठीक है कुछ गलतियां हुई हैं। कुछ असफलताएं भी हैं। कई वायदे पूरे नहीं हुए। लेकिन लोग इस सरकार को पूरा मौका देना चाहते हैं। अब बड़ी योजना है कि 2032 तक गरीबी खत्म करनी है। 10 प्रतिशत विकास दर का प्रयास है। 17 करोड़ रोजगार तैयार करने हैं। लेकिन क्या यह हो सकेगा? इस वक्त तो विकास की दर 7.6 प्रतिशत ही है। इसके बावजूद साफ है कि नई सोच है। जबरदस्त प्रयास है। देश आगे बढ़ रहा है। तरक्की हो रही है,
कुछ नहीं तो कम से कम ख्वाब-ए-सहर देखा तो है
जिस तरफ देखा न था, उस तरफ देखा तो है!
नरेन्द्र मोदी की सरकार से लोगों को आशा बहुत है। यह उनकी सबसे बड़ी समस्या है। एक वर्ग है जिसमें मीडिया, कुछ बुद्धिजीवी, वामपंथी प्रोफैसर आदि हैं जो कांग्रेस के पिट्ठू रहे हैं जिन्हें हर वक्त उलटा ही नज़र आता है। टीवी चैनलों का एक हिस्सा मोदी सरकार के खिलाफ निराशा फैलाने का बहुत प्रयास कर रहा है जबकि अभी तो दो साल ही हुए हैं तीन साल बाकी हैं। जब तक हम 2019 में पहुंचेंगे सरकार के प्रयासों के फल स्पष्ट हो जाएंगे। इसलिए जिन नेताओं के मुंह में अभी से पानी आ रहा है उन्हें मुझे कहना है कि दिल्ली दूर है! शिखर पर कोई ‘वैकेंसी’ नज़र नहीं आती।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.