यह हादसों का देश है (The Tragedy in Amritsar)

एक बार फिर यह साबित हो गया है कि यह हादसों का देश है। यहां इंसानी जिंदगी की कोई कीमत नहीं यहां तक कि इंसानों को भी अपनी जिंदगी की कीमत नहीं। नहीं तो कोई कारण नहीं कि अमृतसर में इतनी बड़ी संख्या में लोग पटरी पर खड़े होकर रावण दहन देख रहे थे यह जानते हुए कि यह व्यस्त रेल-पथ है। अब सरकार ने मैजिस्ट्रेट की जांच का आदेश दिया है पर घोर लापरवाही के कारण जो 61 जिंदगियां लील गई उनकी जिम्मेवारी किस पर है? एक कुछ महीने की बच्ची है जो बच गई पर उसके मां-बाप मारे गए। उसका और कोई नहीं कौन करेगा इसका पालन?

देश, विशेष तौर पर पंजाब, गहरे सदमें में है। एक ही सवाल है कि प्रशासन इतना गला-सड़ा क्यों है कि ऐसे हादसे होते रहते हैं? जिन्होंने आयोजन किया उन्हें क्या पता नहीं था कि उधर से ट्रेनें गुज़रती हैं? अब तो साफ हो गया है कि जिस पार्षद के बेटे ने यह आयोजन किया था उसने पूरी अनुमति नहीं ली थी। न ही रेलवे को सूचित किया। यह शख्स जो मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू तथा उनकी पत्नी नवजोत कौर का नजदीकी है भूमिगत हो गया है। स्थानीय प्रशासन ने भी नहीं देखा कि आयोजन की अनुमति है या नहीं, अगर नहीं है तो फिर इतना बड़ा आयोजन कैसे हो गया? पुलिस विभाग भी क्या करता रहा? मौके का सही मुआयना किए बिना रावण दहन की इज़ाजत दे दी।

यह घटना एक बार फिर स्पष्ट करती है कि हमारी व्यवस्था कितनी उदासीन और संवदेनहीन है। सब चुपचाप तमाशा देखते रहे क्योंकि बंदा रसूख वाला है। यह अति दर्दनाक घटना नागरिक और पुलिस की घोर लापरवाही और बेरुखी का परिणाम है। अमृतसर नगर नगम की कमिश्नर के अनुसार वहां आयोजित 29 में से 25 दशहरा बिना अनुमति के थे। फिर कैसे आयोजित हो गए? जब कोई हादसा हो जाता है तब अधिकारी इधर-उधर भागते हैं लेकिन उनकी जिम्मेवारी तो है कि ऐसी ही घटनाओं का पूर्वानुमान लगाएं और इन्हें रोकने का प्रबंध करें। केवल अमृतसर ही नहीं, देश के कई शहरों में रेल पटरियों के नजदीक दशहरा मनाया जाता है। पंजाब में ही लुधियाना में मिलरगंज-धुरी रेल लाईन के बिलकुल नजदीक दशहरा मनाया जाता है। दोनों तरफ घनी आबादी है। किस हादसे का इंतजार है?

जांच से पहले ही मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने इस हादसे के लिए रेल विभाग को जिम्मेवार ठहरा दिया है। खुद मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह को वहां पहुंचने में 18 घंटे लगे। अपनी पाकिस्तान यात्रा के बाद एक बार सिद्धू फिर गैर जिम्मेवारी दिखा रहे हैं। कोशिश है कि दशहरा आयोजित करने वाले उनके परिवार के चमचे तथा उस आयोजन की मुख्य अतिथि उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू की भूमिका से ध्यान हटाया जा सके। लोग शिकायत कर रहे हैं कि नवजोत कौर जो उस वक्त मौजूद थी जब हादसा हुआ वहां से एकदम निकल गई और फिर लौट कर नहीं आई। वह वीडियो वायरल हो चुका है जब नवजोत कौर सिद्धू की उपस्थिति में मंच से कोई शख्स कह रहा था कि  “मैडम जी उधर देखो। कोई फिक्र नहीं इन्हें भले ही 500 गाडिय़ां गुजर जाएं, 5000 से अधिक लोग ट्रैक पर खड़े हैं।“

उल्लेखनीय है कि यह शेखी मारने वाले ने इन ’5000 लोगों’ ट्रैक से हटने के लिए नहीं कहा। न ही नवजोत कौर सिद्धू ने ही अपील की। अब जनाक्रोश से बचने के लिए आयोजक भूमिगत है और जिम्मेवारी रेलवे पर डाली जा रही है। रेल ट्रैक के पास आबादी बढ़ती जा रही है। कई जगह इसे गली का रास्ता समझा जाता है। नैशनल हाईवे से तो आबादी को दूर रखा जा रहा है पर रेल ट्रैक के पास जमवाड़ा बढ़ता जा रहा है। आमतौर पर लोगों यहां तक कि स्कूली बच्चों, को ट्रैक पार करते देखा जाता है। अगर कोई रेल के नीचे आ जाए तो फिर रेलों पर पथराव शुरू हो जाता है। हमारा अपना कोई कर्त्तव्य नहीं? रेलवे एकट के अनुसार रेल के रास्ते में कोई रुकावट नहीं हो सकती। लोग और वाहन ट्रैक पार कर  सकते हैं लेकिन केवल लैवल क्रासिंग से। पर यहां तो फाटक बंद होगा फिर भी लोग निकलते जाएंगे। इस तरह कई जानें ऐसे जा चुकी हैं।

वर्तमान हादसे के लिए कुछ लोग ड्राईवर को जिम्मेवार ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। ड्राईवर का काम गाड़ी चलाना है। चलाने के लिए उसे निर्धारित स्पीड दी जाती है। एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन के बीच रास्ते में कोई गार्ड नहीं होता। अगर ड्राईवर को बताया जाता है कि आगे दशहरा का इकट्ठ है तो वह सावधानी से चलाता। अमृतसर-दिल्ली सैक्शन पर रेल 110 किलोमीटर प्रति घंटे से दौड़ती है ऐसे में एकदम रोकना संभव नहीं था। ड्राईवर को ग्रीन सिग्नल था। जिसे मिड-सैक्शन कहा जाता है वहां ट्रेन अपनी स्पीड पर चलती है। ड्राईवर यह अंदाजा नहीं लगा सकता था कि आगे इतना बड़ा हजूम है।

लेकिन यह तो अब जांच की बातें है। जो परिवार उजड़ गए उनकी तो भरपाई नहीं हो सकती। अब देखना है कि ऐसे हादसे दोहराए न जाएं जिसके लिए जहां जरूरी है कि स्थानीय प्रशासन तथा पुलिस अपनी जिम्मेवारी निभाएं, वहां हम नागरिकों को भी अपनी जिम्मेवारी समझनी चाहिए। यह कड़वा सत्य है कि हम किसी नियम का पालन नहीं करते। अनुशासन हमसे बर्दाश्त नहीं होता। खुद पर नियंत्रण हम पसंद नहीं करते। ट्रैफिक लाईट पर लालबत्ती होगी फिर भी वाहन निकालने की कोशिश करेंगे। मानव रहित क्रासिंग पर अकसर दुर्घटनाएं होती रहती हैं जिनके लिए रेलवे विभाग को जिम्मेवार ठहराया जाता है लेकिन इसमें रेलवे का क्या कसूर? रेल कोई चिडिय़ा नहीं जो नज़र नहीं आती फिर इतनी जल्दी क्यों और इतनी लापरवाही क्यों? अमृतसर के जिस ट्रैक पर यह हादसा हुआ वहां से रोजाना 30 ट्रेनें अप-डाऊन करती हैं इसके बावजूद लोग ट्रैक पर थे। इस लापरवाही की कितनी बड़ी कीमत चुकाई गई। कई बार मौत को खुद दावत दी जाती है।

यहां इंसानी जिंदगी बहुत सस्ती है। सुरक्षा की हमें बिलकुल चिंता नहीं। रोजाना हम खतरे से खेलते हैं क्योंकि हम बेपरवाह हैं। खुद पर हम कोई बंदिश नहीं लगाना चाहते। बेधडक़ हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की पत्नी का वीडियो बाहर आया है जहां वह सैल्फी लेने के लिए क्रूज में उस जगह पहुंच गई जो खतरनाक हो सकती थी जबकि सुरक्षाकर्मी उन्हें रोक रहे थे। ऐसा लापरवाह रवैये बहुत हादसों के लिए जिम्मेवार है। यह भी कड़वा सत्य है कि अधिकतर हादसे हिन्दुओं से संबंधित हैं चाहे वह नयना देवी मंदिर का हादसा हो या चामुंडा देवी मंदिर जोधपुर का हादसा हो या सबरीमाला मंदिर केरल का हादसा हो या प्रयागराज में कुंभ मेले का हादसा हो। ऐसे हादसे मुस्लिम या सिख या ईसाई इकट्ठ में नहीं होते। अमृतसर में श्री हरिमंदिर साहिब में रोजाना लाखों लोग माथा टेकने पहुंचते हैं लेकिन सब अनुशासित रहते हैं। कोई लाईन नहीं तोड़ता। कोई भगदड़ नहीं जबकि हम हिन्दुओं में अनुशासनहीनता भरी हुई है। स्थिति झट अराजक हो जाती है। भगवान के दर पहुंचने के लिए हम एक-दूसरे को धक्के मारते हैं और कई बार कुचल देते हैं।

ऐसे धार्मिक आयोजनों के लिए दिशा-निर्देश जारी होते हैं पर इन्हें मानता कौन है? भीड़ के आगे सब बेबस है। हर साल उत्सवों के दौरान या तीर्थयात्रा के दौरान, चुनावों के दौरान या बड़े समारोहों के दौरान लोग कुचले जाते हैं। मुंबई में रेलवे ओवरब्रिज पर ऐसा हो चुका है। भीड़ को अनुशासित करना हमें नहीं आता। वॉल स्ट्रीट जरनल में जोयना सुगडा लिखती हैं,  “भारत में भीड़ तथा भीड़ भरे इलाकों के प्रति भारी उदारता का मतलब है कि बड़े आयोजनों के दौरान भगदड़ मच सकती है।“

अमृतसर का हादसा ‘कुदरत का प्रकोप’ नहीं जैसे नवजोत सिंह सिद्धू ने पहले कहा था। यह घोर तथा आपराधिक लापरवाही का परिणाम है। भविष्य में ऐसी घटना दोहराई न जाए ऐसा निश्चित करने के लिए यह भी जरूरी है कि जिन लोगों ने रेलवे पटरी पर जन समूह को इकट्ठा होने दिया उनके खिलाफ कड़ी और उचित कार्रवाई की जाए।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.