स्मारक कहां बनेॽ
1984 में अमृतसर में स्वर्ण मंदिर परिसर के अंदर ब्लू स्टार कार्रवाई में मारे गए लोगों के लिए वहां जरनैल सिंह भिंडरावाला से संबंधित दमदमी टकसाल को ‘शहीदी स्मारक’ बनाने की जिम्मेवारी सौंपने का निर्णय पंजाब में एक गंभीर मसला बन गया है। अगर इसे पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह तथा 16 अन्य की हत्या के दोषी बलवंत सिंह राजोआणा को ‘जिंदा शहीद’ घोषित किए जाने के अकाल तख्त के निर्णय से जोड़ कर देखा जाए तो पंजाब की अकाली-भाजपा सरकार की दिशा को लेकर लोगों में बेचैनी है असंतोष है। लोगों ने विकास के नाम पर वोट दिए थे पर यहां कट्टरवाद को फिर जिंदा किया जा रहा है जिसके आगे चल कर गंभीर दुष्परिणाम निकल सकते है। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का यह कहना कि फैसला शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी का है, किसी के गले नहीं उतरता क्योंकि सब जानते हैं कि एसजीपीसी के प्रधान अवतार सिंह मक्कड़ में यह दम नहीं है कि वह इतना बड़ा फैसला ले सके। इसलिए समझ नहीं आता कि जब पंजाब शांत था, विकास की तरफ बढ़ रहा था तो ऐसा फैसला क्यों लिया गया जो लोगों को भड़काता है, अविश्वास बढ़ाता है। इस निर्णय की कीमत इस गठबंधन को चुकानी पड़ेगी लेकिन यह मामूली बात है, चिंता है कि ऐसे फैसलों की कीमत पंजाब के लोगों को न चुकानी पड़े।
इस बीच स्मारक को लेकर कई सुझाव दिए जा रहे हैं। पूर्व मंत्री मनोरंजन कालिया ने विधानसभा में सुझाव दिया है कि पंजाब में अमन शांति के लिए जिन लोगों ने कुर्बानी दी थी उन शहीदों के लिए यादगार बनाई जाए। उनके अनुसार यह यादगार जलियांवाला बाग जैसी ऐतिहासिक होनी चाहिए। कालिया के अनुसार पंजाब में दो दशक तक चले आतंकवाद के दौर में हर धर्म के लोग शहीद हुए थे जिनके लिए शहीदों की यादगार स्थापित करना एक बड़ी श्रद्घांजलि होगी। वह यह भी चाहते हैं कि दिल्ली में सिखों के नरसंहार के शिकार लोगों की याद में भी दिल्ली सरकार को जमीन देनी चाहिए जहां पर स्मारक खड़ा किया जाए जिसके लिए सभी पंजाबी सहयोग देंगे। कालिया के दोनों सुझाव बढ़िया हैं। पंजाब में आतंकवाद के दौर में मारे गए सभी धर्मों के लोगों की याद में एक ‘शांति स्मारक’ बनाया जाना चाहिए। याद रखना चाहिए कि इस दौरान दूसरों के अलावा 1784 तो पुलिस कर्मी भी यहां मारे गए जिनमें दो डीआईजी, सात एसपी तथा 12 डीएसपी शामिल हैं। इनके अतिरिक्त कई बुद्धिजीवी, सामाजिक तथा राजनीतिक कार्यकर्ता मारे गए थे। कई जगह आम लोग भी हिंसा के शिकार हुए। कुल मिला कर 30,000 के करीब लोग आतंकवाद के दौरान यहां मारे गए थे जिनमें बहुमत सिखों का था। इसी प्रकार 1984 में दिल्ली तथा दूसरे शहरों में हुए सिख विरोधी दंगे सदैव देश के माथे पर एक शर्मनाक कलंक रहेगा। उनकी याद में भी दिल्ली में स्मारक बनना चाहिए।
अफसोस है कि पंजाब में शांति स्मारक बनाने के मामले में मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल बिल्कुल खामोश है। आमतौर पर हर बार मुखर रहने वाले बादल साहिब इस मामले में खामोश क्यों हैं? क्या जो निरपराध लोग यहां मारे गए, या जो अपना कर्तव्य निभाते मारे गए उनके प्रति बादल साहिब के दिल में कोई सहानुभूति नहीं हैॽ
इस बीच पूर्व मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह ने भी सुझाव दिया है कि पंजाब में आतंकवाद के काले दौर में जो लोग मारे गए उनकी याद में एक शांति स्मारक बनाया जाए, लेकिन इस स्मारक का आप्रेशन ब्लूस्टार से कोई संबंध नहीं होना चाहिए और यह स्वर्ण मंदिर परिसर से बाहर बनना चाहिए। अर्थात् प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अमरेंद्र सिंह तथा भाजपा विधायक मनोरंजन कालिया एक ही बात कह रहें हैं पर मुख्यमंत्री बादल खामोश है। यह खामोशी बहुत भावपूर्ण है। अमरेंद्र सिंह का यह भी कहना है कि अहमद शाह अब्दाली ने अकाल तख्त पर हमला किया, मसा रंगड़ ने बेअदबी की और खून बहाया पर अकाल तख्त साहिब पर कभी इस बाबत यादगार नहीं बनी, फिर ब्लू स्टार की यादगार की जरूरत कैसे बन गई? और सवाल है कि क्या श्री हरमंदिर साहिब तथा श्री अकाल तख्त साहिब के बराबर गुरूद्वारा खड़ा किया जा सकता है? बादल साहिब का कहना था कि दरबार साहिब के अंदर शांति स्मारक बनाया जाएगा पर यह कैसा शांति स्मारक होगा जो आतंकवाद के दौरान हजारों लोगों की शहादत की अनदेखी करता हो? कुछ बुद्घिजीवियों ने भी ‘शांति स्मारक’ की स्थापना की वकालत की है। ऐसे किसी स्मारक को पंजाबियों का भरपूर समर्थन मिलेगा। ऐसा स्मारक बनना चाहिए पर हां, कट्टरवादी इसे नहीं चाहेंगे इसलिए पंजाब की गठबंधन सरकार में शामिल अकाली दल तथा भाजपा को चुनना है कि वे कट्टरवादियों के साथ जाना चाहते हैं या समूह पंजाबियों के साथॽ
उन्हें मालूम होना चाहिए कि पंजाब में लोग अभी से महसूस करने लगे हैं कि कांग्रेस को हरा कर उन्होंने गलती की है। उन्होंने विकास के नाम पर अकाली-भाजपा को वोट दिया था, पर इस सरकार ने पंजाब का अमन चैन दमदमी टकसाल के हवाले कर दिया।
-चन्द्रमोहन