पैर के नीचे बटेर!
संविधान में संशोधन कर नितिन गडकरी को दूसरी बार भाजपा का अध्यक्ष बनाने का रास्ता साफ कर दिया गया है। जहां इसका मतलब है कि चुनाव के समय वे ही भाजपा के अध्यक्ष होंगे वहां इसका यह भी मतलब है कि उन्हें वह सम्मान दिया गया जो अटल बिहारी वाजपेयी तथा लाल कृष्ण आडवाणी जैसे बड़े नेताओं को भी नहीं दिया गया था। लेकिन अभी तक गडकरी अपनी पार्टी को भावी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार या चुस्त दुरुस्त नहीं कर सके। अर्थात् उन्हें दोबारा अध्यक्ष बनाने का औचित्य क्या है, यह अभी तक समझ नहीं आया। उनका राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जरूर कहना था कि ‘सत्ता हाथ में आने वाली है,’ पर अगर ऐसी स्थिति है भी तो उन्हें भी अहसास होगा कि इसे अर्जित करने के लिए भाजपा ने अधिक कुछ नहीं किया, जो हालत बने है वह कांग्रेस के अपने कारनामों के कारण बने हैं। भाजपा के तो पैर के नीचे बटेर आ गया लगता है। यूपीए लगातार अपनी कब्र खुद खोदता जा रहा है। 2जी घोटाला, राष्ट्रमंडल खेलों का घोटाला और अब कोलगेट सब सीएजी ने खोले हैं। भाजपा ने गेंद दबोच लिया है। वे समझ कर बैठ गए हैं कि लहर खुद उनकी किश्ती पार लगा देगी पर जरूरी नहीं कि ऐसा होगा। कार्यकारिणी में लाल कृष्ण आडवाणी ने जो कहा है उसे गंभीरता से लेना चाहिए। चाहे आडवाणीजी खुद अपने ब्लाग में अलग सुर दिखाते रहे हैं पर अब उनका कहना था कि सबको एक सुर में बोलना चाहिए। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण उनकी यह टिप्पणी है कि, ‘यदि हम ठीक रह कर विश्वसनीय विकल्प पेश कर दें… तो हमें 1999 से बड़ी जीत मिलेगी।’ यहां ‘यदि’ शब्द बहुत महत्वपूर्ण है। अर्थात् भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेता खुद स्वीकार कर रहे हैं कि पार्टी अभी विकल्प नहीं बनी। अगर यूपीए सरकार की घोर बदनामी और काले कारनामों के बाद भी भाजपा विकल्प नहीं बन सकी तो फिर कब बनेगीॽ
? अपनी पहली अवधि में गडकरी बहुत सफल नहीं रहे, देखना है कि वे दूसरी अवधि में सफल रहते हैं या नहीं; या कांग्रेस को दुत्कारती जनता कथित तीसरे विकल्प की तरफ झुक जाती है। कांग्रेस का विकल्प केवल भाजपा ही हो सकती है, जैसा मैं बार-बार लिखता आ रहा हूं, लेकिन मुझे भी अहसास है कि भाजपा विकल्प बनने के लिए खुद कुछ नहीं कर रही। नेता आराम से बैठे हैं, लहर की इंतजार में! अगर सत्ता में आना है, जिसकी आशा गडकरी को है, तो अकेले अपने बल पर वे नहीं आ सकते। एनडीए का विस्तार होना चाहिए। इसके भी कोई संकेत नजर नहीं आते उलटा नीतिश कुमार का गेम प्लान क्या है इसे लेकर भी संशंय हैं।
अगर भाजपा ने कांग्रेस का विकल्प बनना है तो उसे (1) नेतृत्व का मसला हल करना चाहिए तथा (2) जनता के आगे विकास का वैकल्पिक मॉडल पेश करना चाहिए। दोनों मामलों में अस्पष्टता है। अगर कांग्रेस तथा यूपीए द्वारा पेश विकास का मॉडल सही नहीं है तो आप क्या पेश करना चाहते हैं। अर्थव्यवस्था को इस गड्ढे से कैसे निकालेंगेॽ? भाजपा सौभाग्यशाली है कि सरकार उसे विरोध के मौके बहुत दे रही है, लेकिन केवल विरोध ही काफी नहीं। संसद के अंदर भी विरोध, संसद के बाहर भी विरोध। सकारात्मक विकल्प क्या हैॽ अगर आपकी सरकार बनती है तो विकास कैसे होगाॽ सुशासन कैसे मिलेगाॽ भ्रष्टाचार पर लगाम कैसे लगेगाॽ? घाटा कम कैसे होगाॽ? महंगाई पर नियंत्रण कैसे लगेगा? और उत्तर प्रदेश में पार्टी बेहतर प्रदर्शन कैसे करेगीॽ
च? भाजपा अन्ना हजारे के आंदोलन तथा बाबा रामदेव के प्रयासों का फायदा उठाती रही है। शहरी मिडल क्लास जिसने पिछले चुनाव में मनमोहन सिंह को समर्थन दिया था, अब उनसे बेहद खफा हैं। उसे आकर्षित करने के लिए भाजपा को भी अपनी योजना सामने रखनी चाहिए। केवल टीवी चैनलों पर कांग्रेस के साथ तू-तू, मैं-मैं से सत्ता नहीं मिलेगी। विपक्ष का अधिकार है कि वह सत्ता पक्ष को कटघरे में खड़ा करे लेकिन अपने बारे भी तो कुछ बताना चाहिए। घबराहट यह है कि दोनों कांग्रेस तथा भाजपा से निराश मतदाता एक बार फिर विनाशक तीसरे-चौथे मोर्चे को समर्थन न दे दे। अच्छी बात है कि इस बार नेतृत्व को लेकर वे मतभेद नजर नहीं आए जो मुंबई में देखने को मिले थे पर लोगों को मालूम होना चाहिए कि अगर वे कांग्रेस को हराते हैं तो बागडोर किसके हाथ में होगी।? भाजपा के नेता कहते हैं कि नेता का फैसला चुनाव के समय होगा और साथ ही कहते हैं कि चुनाव कभी भी हो सकते हैं। अगर चुनाव कभी भी हो सकते हैं तो क्या आप इसके लिए तैयार भी होॽ?
मैं पहले भी कई बार लिख चुका हूं कि यूपीए का विकल्प एनडीए है, कांग्रेस का विकल्प भाजपा है। देश संभालने के लिए बड़ी पार्टी का केंद्र में होना जरूर है। भाजपा के पास पर्याप्त प्रतिभा भी है। हम देवेगौडा या इंद्र कुमार गुजराल जैसे परीक्षण नहीं चाहते। हमें मुलायम सिंह यादव जैसा अविश्वसनीय प्रधानमंत्री भी नहीं चाहिए। लेकिन सब कुछ पक्ष में होने के बावजूद भाजपा इस राष्ट्रीय दायित्व के लिए तैयार भी हैॽ? इस वक्त तो ‘बिल्ली के भागे छींका फूटा’ वाली स्थिति है। लेकिन सत्ता में आने के लिए यह ही पर्याप्त नहीं। अंग्रेजी के मुहावरे के अनुसार घोड़े को पानी तक तो ले जाया जा सकता है, लेकिन पानी पीने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। लोग तो शायद भाजपा को पानी तक पहुंचा दे पर इसे पीने की तैयारी तो इन सज्जनों ने ही करनी है!
यह दु:ख की बात है कि अन्ना हजारे का आंदोलन दो हिस्सों में बंट गया है। उनके प्रमुख साथी अरविंद केजरीवाल राजनीतिक दल खड़ा करना चाहते हैं, जबकि राजनीति को कीचड़ कहते हुए अन्ना इस ‘कीचड़’ से अलग रहना चाहते हैं। अरविंद का मानना है कि अगर व्यवस्था को बदलना है तो उसमें घुसना होगा। लेकिन अन्ना हजारे का मानना है कि राजनीति की राह पवित्र नहीं है और बड़े आंदोलन से ही देश को भविष्य मिलेगा। दोनों में से कौन सही है? शायद दोनों ही। अन्ना की बात सही है कि राजनीति कीचड़ है। अमिताभ बच्चन ने भी इसे ‘मलकूप’ कहते हुए इसे अलविदा कह दिया था। वही भावना अन्ना की लगती है। भ्रष्टाचार देश में एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। यह अन्ना के आंदोलन का ही योगदान है, लेकिन भविष्य को लेकर अब अनिश्चितता है। अगर अरविंद केजरीवाल अलग हो जाते हैं तो इस आंदोलन का नुकसान होगा और इससे देश का नुकसान होगा। क्योंकि अभी अन्ना के आंदोलन का मकसद पूरा नहीं हुआ। अरविंद केजरीवाल को भी समझना चाहिए कि राजनीतिक दल खड़ा करना इतना आसान नहीं होगा। बहुत से समझौते करने पड़ते हैं।
अन्ना हजारे महात्मा गांधी नहीं है। अरविंद केजरीवाल उनका जवाहर लाल नहीं है। देश भी बहुत बदल चुका है पर हमें गांधीजी जैसी बुलंद नैतिक आवाज की बहुत जरूरत है जो लाठी लेकर कहते रहें कि ‘जागते रहो’! जरूरत है कि ऐसा आंदोलन चलाया जाए कि राजनीतिक दल अच्छे लोग आगे लाने के लिए मजबूर हो जाएं। जो भ्रष्ट है, जिन्होंने देश को लूटा है उनके खिलाफ डटने की जरूरत है। अब यूपीए को राहत मिलेगी क्योंकि उनके खिलाफ नैतिक आंदोलन की धार कुण्ठ हो गई है।
अन्ना के आंदोलन का जो हश्र हो रहा है उससे निराशा हो रही है। इन लोगों ने मिल कर विशेष तौर पर शहरों में भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगा दिया था। युवाओं को रोमांचित कर दिया था। एक बार तो सरकार भी लड़खड़ा गई लगती थी। इसलिए आज जो गृहयुद्ध शुरू हो गया है उसके बारे अफसोस से यही कहना है,
हजारों मुश्किलो से इक नई तस्वीर उभरी थी,
मगर बादे मुखालिफ ने नक्शा बदल डाला!
-चन्द्रमोहन