पंजाब के लिए ‘वेक अप कॉल’
यह राहत की बात है कि लै. जनरल (सेवानिवृत्त) कुलदीप सिंह बराड़ लंदन में हुए कातिलाना हमले में बच गए हैं। विदेशमंत्री एस.एम. कृष्णा का कहना है कि जनरल बराड़ ने भारतीय हाईकमिशन को सूचित नहीं किया था और किसी को मालूम नहीं था कि वे लंदन में हैं। यह बात सही नहीं कि ‘किसी को मालूम नहीं था’, क्योंकि खालिस्तानियों को तो मालूम था, और वह जनरल साहिब की गतिविधियों पर नजर रखे हुए थे। अब अवश्य समाचार है कि लंदन पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। आशा है कि वह इस साजिश की गहराई तक जाएंगे क्योंकि हमारी शिकायत है कि कई देश ऐसे लोगों के प्रति उदार रहते हैं जो वहां गड़बड़ नहीं करते पर भारत के विरुद्घ साजिशे रचते रहते हैं। ऐसे लगभग 300 मिलिटैंट्स हैं जो विदेशों में हैं। हम उन्हें यहां लाने में सफल नहीं रहे। अब ब्रिटेन में इन लोगों ने अपनी लक्ष्मण रेखा पार कर ली है इसलिए आशा है कि वहां रह रहे खालिस्तानियों के प्रति वही सख्त रवैया अपनाया जाएगा जैसा जेहादियों के प्रति अपनाया जाता है। यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि खालिस्तान के आंदोलन को विदेशों से मदद मिलती रही है। हथियार भी मिलते हैं और पैसा भी मिलता है। कैनेडा, इंग्लैंड, जर्मनी, बैल्जियम और सबसे अधिक पाकिस्तान से यहां खालिस्तान की विचारधारा को जीवित रखने का प्रयास किया जा रहा है। सबसे खतरनाक आतंकवादी पाकिस्तान में पनाह लिए हुए हैं। आईएसआई बार-बार इस अभियान को जीवित करने का प्रयास करती है पर सफलता नहीं मिलती क्योंकि पंजाब में समर्थन नहीं हैं पर अब जनरल बराड़ की हत्या के असफल प्रयास ने इस चुनौती को नया आयाम दे दिया है।
जनरल बराड़ पर हमला इसलिए किया गया क्योंकि उन्होंने 1984 में आप्रेशन ब्लूस्टार के दौरान अमृतसर में स्वर्ण मंदिर में सेना के प्रवेश का नेतृत्व किया था। यह अत्यंत दु:खदाई घटना थी जिसने सिख समुदाय को बुरी तरह से घायल किया था। उसके बाद इंदिरा गांधी की उनके घर में उनके सुरक्षा कर्मियों द्वारा हत्या कर दी गई और फिर देश भर में सिख विरोधी दंगे हुए। अर्थात् बहुत कुछ ऐसा हुआ जो बिल्कुल नहीं होना चाहिए था। जब भिंडरावाला लोगों की हत्या का आदेश दे रहा था तब केंद्रीय सरकार ने समझा था कि वह उसे नियंत्रण में कर लेंगे। केंद्र तब हरकत में आया जब बहुत देर हो चुकी थी और आखिर में स्थिति को नियंत्रण करने के लिए देश के अति पवित्र स्थान के अंदर टैंक भेजने पड़े। लेकिन इसके लिए जनरल बराड़ जैसे सैनिकों को जिम्मेवार नहीं ठहराया जा सकता। उन्होंने वही किया जो उनकी ड्यूटी थी। एक सिख जनरल के लिए दरबार साहिब के अंदर कार्रवाई करना कितना कठिन हुआ होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। अपनी व्यक्तिगत भावना को एक तरफ रखते हुए उन्होंने उच्चतम सैनिक परंपरा का परिचय दिया था।
यह लोग ब्लूस्टार के लिए जिम्मेवार नहीं थे। ब्लूस्टार के लिए या तो दिल्ली और पंजाब में तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व जिम्मेवार था या भिंडरावाला के नेतृत्व में मिलिटैंट्स। अगर उन्होंने दरबार साहिब की किलेबंदी न की होती और वहां से देश विरोधी अभियान न चलाया होता तो घटनाक्रम इतनी दुखद करवट न लेता। पर अब हम 28 वर्ष आगे आ गए है। देश का प्रधानमंत्री पिछले दस वर्षों से एक सिख है। पर अभी भी कुछ तत्व हैं जो उस असुखद घटना को भूलने नहीं देना चाहते। हाल ही में पंजाब पुलिस ने कुलबीर सिंह बड़ापिंड और दलजीत सिंह बिट्टू को गिरफ्तार किया है। उनकी गिरफ्तारी के बाद जालन्धर से ब्रिटिश नागरिक जसवंत सिंह आजाद को गिरफ्तार किया गया जो खालिस्तानी गुटों की आर्थिक सहायता करता रहा है। उसके 14 बैंक खाते बताए जाते हैं जिनमें करोड़ों रुपए हैं।
यह घटना फिर स्पष्ट करती है कि देश के बाहर कुछ क्षेत्रों में खालिस्तान की लहर अभी भी जीवित है और देश विरोधी तत्व नफरत की आग को बुझने नहीं देना चाहते जबकि यहां लोग चैन और शांति से रहना चाहते हैं। इसलिए जरूरी है कि यहां ऐसा कुछ न किया जाए जिससे मिलिटैंसी फिर जीवित हो, या उसे बल मिले।
बादल साहिब की यह बात तो सही है कि यहां पूर्ण शांति है पर जनरल बराड़ पर हमला ‘सामान्य आतंकी कार्रवाई’ नहीं है। आप्रेशन ब्लू स्टार के 28 वर्ष के बाद जनरल बराड़ पर कातिलाना सामान्य कार्रवाई नहीं कही जा सकती। यह भी उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री बादल ने इस घटना की निंदा नहीं की। पर वह माने या न माने यह पंजाब के लिए ‘वेक अप कॉल’ है। यह हमला उस समय हुआ है जब कई तत्व पंजाब में फिर से खालिस्तानी आंदोलन को खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। पैसे भेज कर यहां युवाओं को फिर गुमराह करने की कोशिश की जा रही है। जसवंत सिंह आजाद की गिरफ्तारी यही संकेत देती है। कई आतंकवादी जिन्हें सजा दी गई और जो यहां से भाग गए थे उनका पंजाब में पुनर्वास किया जा रहा है। उग्रवादियों के दबाव में मुख्यमंत्री ने खुद पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआणा के लिए माफी याचिका दाखिल की जबकि राजोआणा ने इसकी कोई मांग नहीं की थी। एक आतंकी जो एक पूर्व मुख्यमंत्री जिन्होंने बहुत बहादुरी से आतंकवाद का मुकाबला किया था की हत्या में संलिप्त था, का पक्ष लेकर बादल साहिब पंजाब और उसके बाहर क्या संदेश दे रहे हैं कि एक निर्वाचित मुख्यमंत्री की हत्या करने में कोई बुराई नहीं? फिर उन्होंने ब्लूस्टार में मारे गए उग्रवादियों की याद में स्वर्ण मंदिर में यादगार बनाने की इजाजत दे दी। जो यादगार 28 वर्ष नहीं बनी उसे अब क्यों बनाया जा रहा है जबकि यहां मामला बिल्कुल ठंडा है और उग्रवादियों के सिवाए किसी और की यह मांग नहीं थी? ऐसी कोई यादगार केवल आतंकवादियों को गौरवान्वित करेगी और उन सभी के संबंधियों के जख्मों पर नमक छिड़केगी जो उस काले दौर में आतंकवाद का शिकार हुए थे। पंजाब सरकार को आत्म मंथन करना चाहिए कि वह पुराने जख्मों पर मरहम लगाना चाहते हैं या इन जख्मों को हरा रखना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री बादल को जनरल बराड़ की यह चेतावनी याद रखनी चाहिए कि अगर आप खालिस्तानी तत्वों तथा उनसे सहानुभूति रखने वालों के प्रति नरम रहोगे तो आप पंजाब को 1980 के दशक में ले जाओगे। इसका एक और नुकसान होगा। कही भी खालिस्तान से संबंधित कोई घटना होगी तो इसके लिए पंजाब सरकार की नरम नीतियों को जिम्मेवार ठहराया जाएगा। अतीत में उग्रवादियों के प्रति नरम रवैया अपनाने तथा धर्म तथा राजनीति के घालमेल की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। केवल पुलिस की कार्रवाई ही पर्याप्त नहीं है। ऐसा माहौल नहीं बनने देना चाहिए जिसमें मिलिटैंसी को ताकत मिले। यादगार बनाने जैसे प्रयास पुरानी नफरत को ताजा कर सकते हैं। इसका एक और भी नुकसान है। पंजाब का फिर भावनात्मक बंटवारा हो जाएगा। मुख्यमंत्री बादल यह प्रभाव दे रहे हैं कि जो मिलिटैंसी का शिकार हुए थे उनके परिवारों की भावना की उन्हें बिल्कुल चिंता नहीं। लोगों ने चुनाव में विकास के नाम पर समर्थन दिया था, इसलिए नहीं दिया कि आप ऐसे काम करो जिससे माहौल खराब हो, मिलिटैंसी को बल मिले और आपसी मतभेद पैदा हो। राजोआणा के लिए माफीनामा तथा यादगार बनवाने जैसी कार्रवाई से प्रकाश सिंह बादल पुराने जख्मों को भरने नहीं दे रहे। इस संदर्भ में केंद्रीय सरकार तथा पंजाब सरकार में सांझीदार भाजपा को भी सावधान हो जाना चाहिए। भाजपा के मंत्री इस मामले में चुप बैठे हैं। केंद्रीय सरकार को भी हरकत में आना चाहिए और अकाली दल की विनाशक दिशा को रोकने के लिए दबाव डालना चाहिए। एक बार पहले एक केंद्रीय सरकार की कमजोरी की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी। इतिहास दोहराया नहीं जाना चाहिए।
-चन्द्रमोहन