एक ही सिक्के के दो पहलू?
यह वह देश है जहां कभी एक रेल दुर्घटना के बाद रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफा दिया था पर आज दबंग सब कहते हैं, ‘मैं क्यों इस्तीफा दूं?’ ऐसे -ऐसे घोटाले हुए हैं कि सर चकरा जाता है पर किसी की अंतरात्मा नहीं जागती कि वे भी नैतिक जिम्मेवारी लेकर इस्तीफा दे दें। उलटा केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा का कहना है कि एक केंद्रीय मंत्री के लिए 71 लाख रुपए तो मामूली रकम है, 71 करोड़ रुपए होते तो गंभीर मसला होता। इससे उत्तर प्रदेश के मंत्री शिवपाल सिंह यादव का कथन याद आ गया कि सरकारी कर्मचारी अगर छोटा पैसा हजम करते हैं तो कोई बात नहीं, उन्हें मोटी रकम नहीं खानी चाहिए। प्रधानमंत्री खामोश हैं और सोनिया गांधी को परवाह नहीं इसलिए चिंता करने की कोई जरूरत नहीं। एक प्रकार से ऐसा रवैया है कि ‘सैंया भए कोतवाल डर काहे का!’ आखिर सोनिया गांधी की सास इंदिरा गांधी ने भी तो कहा था कि भ्रष्टाचार अंतर्राष्ट्रीय क्रिया है। पर अब उंगली उनके परिवार की तरफ उठ रही हैं। प्रतिष्ठा पर वैसी चोट लगी है जैसी बोफोर्स घोटाले से लगी थी। बहुत सोच के साथ तैयार की गई सादेपन तथा राजनीतिक कुर्बानी की छवि फट गई है। दामादजी ने प्रभाव का इस्तेमाल कर अल्प समय में इतना पैसा कमाया है कि इसकी मुरम्मत भी नहीं हो सकती। सलमान खुर्शीद और नितिन गडकरी अपने पर लगे आरोपों का जवाब देने के लिए मीडिया का सामना कर रहे है पर राबर्ट वाड्रा कहां हैं? वह खामोश क्यों हैं? उलटा हरियाणा के ईमानदार अफसर जिसने भूमि घोटाले पर सवाल खड़े किए थे उसका ही तबादला कर दिया गया। प्रधानमंत्री नकरात्मक माहौल की बात कर रहे हैं, पर यह पैदा किसने किया है?
कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने तर्क यह दिया था कि क्योंकि सोनिया गांधी के कारण वे इस पद पर हैं इसलिए एक प्रकार से उनका धर्म बनता है कि वे इस परिवार की मदद करें और वे सोनिया गांधी के लिए जान देने के लिए भी तैयार रहें। अर्थात् देश के कानून मंत्री के तौर पर सोनिया गांधी तथा उनके परिवार की खिदमत करने के सिवाय उनका और कोई फर्ज नहीं है और अब खुद कानून मंत्री फंस गए हैं। उनके द्वारा चलाए गए ट्रस्ट में फर्जी दस्तावेज तथा घोर अनियमितताएं पाई गई हैं। जो सबसे कमजोर और असहाय वर्ग है, विकलांग, उन्हीं से छलावा किया गया। हो सकता है कि एक व्यस्त केंद्रीय मंत्री को इस बाबत जानकारी न हो लेकिन नैतिक जिम्मेवारी तो उनकी बनती है। देश में ऐसे कितने एनजीओ हैं? आलोचकों को धमकाने की जगह सलमान लाल बहादुर शास्त्री वाला रास्ता क्यों नहीं चुनते? अगर जांच में पाक साफ साबित होते हैं तो वापिस इज्ज़त के साथ कुर्सी पर बैठ सकते हैं।
अर्थात् हम अत्यंत अंधकारमय राजनीतिक परिदृश्य देख रहे हैं जहां बड़े लोगों का हाथ गोलक में पाया गया है और वह एक दूसरे को बचाने में लगे हुए हैं। उत्तराखंड में टिहरी से मुख्यमंत्री के पुत्र और कांग्रेस के उम्मीदवार को हरवा कर तथा पश्चिम बंगाल में जंगीपुर से राष्ट्रपति के पुत्र को केवल 2500 वोटो से विजयी बना कर लोगों ने कांग्रेस के प्रति अपनी नाराजगी व्यक्त कर दी है। यहां से प्रणब मुखर्जी एक लाख से अधिक वोट से जीते थे। लोगों के पास अब केवल वोट ही हथियार रह गया है लोकतंत्र के बाकी सभी हथियार कुंद पड़ गए हैं। कि नेतृत्व इस तरह लोकलाज को तिलांजलि दे देगा, यह कभी सोचा ही नहीं था। गांधी के इस देश की नैतिकता जर्जर हो गई है। चिथड़े उड़ रहे हैं। हम शून्य में देख रहे हैं।
अब केजरीवाल का आरोप है कि महाराष्ट्र सरकार ने बांध निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहीत की थी पर बांध निर्माण के बाद जो 100 एकड़ जमीन बच गई वह भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी को दे दी गई। किसान यह भूमि वापिस लेना चाहते थे पर दो साल उनके आवेदन का जवाब ही नहीं दिया गया लेकिन गडकरी के आवेदन के चार दिन में तत्कालीन सिंचाई मंत्री अजीत पवार ने यह जमीन उन्हें 11 साल की लीज पर दे दी। जबकि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि जो जमीन किसी सार्वजनिक कार्य के लिए अधिगृहीत की गई हो उसे निजी हाथों में नहीं दिया जा सकता। निश्चित तौर यह वैसा घपला नहीं जैसा राबर्ट वाड्रा या सलमान खुर्शीद के ट्रस्ट का है पर यह भी निश्चित तौर पर उच्च स्तरीय संवेदनहीनता और सांठगांठ का परिचय देता है। भ्रष्टाचार का मामला नहीं है, अनैतिक है। महाराष्ट्र के सभी नेता, कांग्रेस, भाजपा या एनसीपी, अपने व्यापारिक हितों के लिए इकट्ठे नजर आते हैं। जिस विदर्भ में किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं वहां किसानों से अधिगृहीत की गई बची हुई जमीन गडकरी को क्यों दी गई? और उन्होंने भी यह क्यों स्वीकार की? अजीत पवार ने गडकरी पर यह मेहरबानी क्यों की? अजीत पवार हाल ही में 72,000 करोड़ रुपए के सिंचाई घोटाले के कारण इस्तीफा देकर हटे हैं। इतना पैसा खर्च करने के बाद एक प्रतिशत जमीन को भी अतिरिक्त पानी नहीं मिला। क्या कारण है कि भाजपा ने यह घोटाला इतने जोर-शोर से नहीं उठाया जैसे भाजपा राष्ट्रमंडल खेलों, 2जी तथा कोलगेट को उठा कर हटी है? क्या इसका कारण उच्चस्तरीय सांठगांठ थी कि ‘चार काम वह हमारे करते हैं, चार काम हम उनके करते हैं?’ भाजपा माने या न माने उनके अध्यक्ष की विश्वसनीयता पर चोट पहुंची है। शरद पवार ने गडकरी को क्लीन चिट देते हुए कहा है कि ‘महाराष्ट्र में राजनीतिक नेताओं की यह संस्कृति है वह विकास के लिए इकट्ठे हो जाते हैं।’ इसी ‘संस्कृति’ का परिणाम है कि ल्वासा में 348 एकड़ भूमि लगभग मुफ्त दे दी है। महाराष्ट्र से संबंधित गडकरी भी इस मामले को नहीं उठा रहे। आखिर महाराष्ट्र के नेताओं की विशेष ‘संस्कृति’ का मामला है। बड़े क्लब के ये सदस्य क्या सब मिले हुए हैं? सत्तारूढ़ पार्टी- विपक्षी पार्टी- अफसर- उद्योगपति? एक नापाक और शैतान गठबंधन नजर आता है। कांग्रेस भाजपा के ‘प्रथम दामाद’ के बारे खामोश रही तो भाजपा कांग्रेस के ‘प्रथम दामाद’ के बारे चुप रहेगी? जिन्हें ‘निजी मामले’ कहा जाता है चाहे वे करोड़ों रुपए के हों, उनके बारे यह मौन सहमति क्यों है कि इन्हें उठाया नहीं जाएगा? सत्ता पक्ष और विपक्ष एक ही सिक्के के दो पहलू हैं?
भाजपा के निस्तेज प्रदर्शन के कारण प्रमुख विपक्ष की भूमिका केजरीवाल हथिया रहे हैं। भाजपा में घबराहट लगती है कि अगर उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व के खिलाफ मामले जोर-शोर से उछाले तो उनके कुछ नेताओं के कारनामें भी बाहर आ जाएंगे इसीलिए प्रमुख विपक्षी पार्टी अपना धर्म निभाती नजर नहीं आ रही। अपने ‘भाईचारे’ पर आंच नहीं आने दी जाएगी। यह देश के लिए अत्यंत खतरनाक स्थिति है कि दोनों सत्तापक्ष और विपक्ष एक ही हमाम में नंगे नजर आते हैं। विपक्षी नेताओं की अपनी कमजोरियां वास्तव में सरकार का कवच हैं नहीं तो यह सरकार तो कभी कि तमाम हो जाती। केवल मुलायम सिंह यादव या मायावती या जयललिता या लालू प्रसाद यादव ही कांग्रेस के मददगार नहीं रहे, आभास मिलता है कि भाजपा के नेतृत्व में कुछ लोग भी इस नैटवर्क से ‘कनैकटेड’ हैं। इस बीच केंद्रीय विधि मंत्री लगातार विधिहीन होते जा रहे हैं। सलमान खुर्शीद का कहना था कि ‘मुझे लॉ मिनिस्टर बना दिया और कहा कलम से काम करो। करूंगा, कलम से काम करूंगा, लेकिन लहू से भी काम करूंगा…।’
क्या देश के कानूनमंत्री ‘शोले-II’ के लिए गब्बर सिंह की भूमिका की तैयारी कर रहे हैं?
-चन्द्रमोहन