साख बचानी है या अध्यक्ष?

साख बचानी है या अध्यक्ष?

सलमान खुर्शीद को नया विदेश मंत्री बना दिया गया। मंत्रिमंडल में फेरबदल का यह सबसे बड़ा संदेश है कि आदमी कैसा भी हो, कैसी भी गल्तियां करें जब तक वह कांग्रेस के प्रथम परिवार के लिए मरने को तैयार है सब कुछ माफ है। सलमान खुर्शीद तथा उनकी पत्नी द्वारा चलाए जा रहे एनजीओ में भारी घपले की जानकारी सार्वजनिक हो चुकी हैं लेकिन इसके बावजूद उनकी पदोन्नति बताती है कि कांग्रेस के हाईकमान को लोकलाज की चिंता नहीं है। केजरीवाल तथा कंपनी को भी बता दिया गया कि आप ने जो बोलना है बोलते रहो, हमारी सेहत पर कोई असर नहीं है। कांग्रेस के प्रथम परिवार के प्रति वफादारी ही सब कुछ है। विपक्ष को भी बता दिया गया कि उनकी आलोचना की परवाह नहीं लेकिन जनता क्या सोचती है इसकी भी अब यूपीए को चिंता नहीं रही। सीधा संदेश यह है कि हमारी सरकार है हम अपने मुताबिक चलाएंगे। कई महीने झटके खाने के बाद ताकत का आभास दिया जा रहा है। यह बुरी बात भी नहीं। कमजोर केंद्रीय सरकार देश को नहीं चला सकती लेकिन लोकलाज को इस तरह तिलांजलि देना भी एक खतरनाक प्रवृत्‍ति का संकेत है। दूसरी तरफ अगर भारतीय जनता पार्टी ने दूसरों से अलग पार्टी की छवि बनानी है तो उन्हें अपने अध्यक्ष नितिन गडकरी को हटाना होगा। दोहरा मापदंड नहीं चलेगा। यह कहना पर्याप्त नहीं कि कांग्रेस राबर्ट वाड्रा के बारे कुछ नहीं कर रही। एक, वाड्रा कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं हैं और दूसरा, अपने नेताओं तथा उनके संबंधियों की गल्तियों तथा भ्रष्टाचार की कीमत कांग्रेस चुका ही रही है। भाजपा को भी इसीलिए बढ़त मिली थी क्योंकि वह कह सकते थे कि हम भ्रष्टाचार या घपले बर्दाश्त नहीं करते। आखिर जैन हवाला मामले में अपना नाम आने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी ने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था और उन्होंने तब तक चुनाव नहीं लड़ा जब तक वे आरोप मुक्त नहीं हो गए। पर यहां एक अध्यक्ष है जिन पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने किसानों की 100 एकड़ भूमि हड़प ली और उनकी कंपनी में उस ठेकेदार का करोड़ों रुपया लगा है जिसे महाराष्ट्र के लोकनिर्माण मंत्री रहते हुए उन्होंने कई बड़े ठेके दिए थे। उनकी कंपनी में निवेश करने वाली कुछ कंपनियां फर्जी निकली तो जिन्हें डॉयरेक्टर बताया गया उनमें से कई फर्जी हैं; जिन्हें मालूम ही नहीं कि वे इस कंपनी के डॉयरेक्टर हैं। आय के स्रोत संदिग्ध नजर आते हैं। फर्जी पते निकल रहे हैं। सलमान खुर्शीद के एनजीओ जैसी हालत है। अब गडकरी का कहना है कि वह किसी भी जांच का सामना करने के लिए तैयार हैं लेकिन यह ही पर्याप्त नहीं। भाजपा के अध्यक्ष शंका के घेरे में आ गए हैं। बेहतर तो यह होता कि पार्टी को इस धर्म संकट से बचाने के लिए गडकरी खुद हट जाते या कम से कम यह घोषणा कर देते कि वह दोबारा अध्यक्ष नहीं बनेंगे। अगर आरोप मुक्त हो जाते तो फिर अध्यक्ष बन सकते थे। आगे और भी रहस्योद्घाटन हो सकते हैं। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आएंगे अमेरिकी राजनीति की तरह यहां भी दोनों बड़ी पार्टियों के डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमैंट्स एक-दूसरे के खिलाफ गदंगी उछालने में लग जाएंगे। इसलिए क्या भाजपा एक दागी अध्यक्ष के साथ चुनाव के मैदान में उतरने का जोखिम उठा सकती हैॽ भाजपा के पास और भावनात्मक मुद्दे नहीं हैं। केवल भ्रष्टाचार और काले धन का मुद्दा था पर यह भी गडकरी के कारण हाथ से छिनता जा रहा है। उन्हें प्रचार के लिए हिमाचल प्रदेश अवश्य भेजा गया लेकिन गए वह रिकांगपिओ तथा नेरवा जैसी जगह जो मुख्य शहरों से दूर हैं और जहां मीडिया असुखद सवाल नहीं पूछ सकता। वह राबर्ट वाड्रा नहीं जिन्हें मीडिया से दूर रखा जा सकता है। गडकरी के कारण हिमाचल के चुनाव में भ्रष्टाचार का मुद्दा नहीं चल रहा। यह नुकसान हुआ है, रणनीति फट गई है।

गडकरी का बचाव करते हुए लाल कृष्ण आडवाणी का कहना था कि आरोप व्यापार के मानकों को लेकर है न कि सत्ता के दुरुपयोग या भ्रष्टाचार का मामला हैं। आडवाणी जी अनावश्यक शब्दों की हेराफेरी कर रहे हैं मामला एक जैसा ही है। अगर किसी व्यक्ति के ‘व्यापार के मानक  सही नहीं तो वह भाजपा का अध्यक्ष नहीं बनना चाहिए। राजनीति में व्यवसायियों को ऐसी ऊंची जगह नहीं देनी चाहिए; नहीं तो वह राजनीति को व्यवसाय बना देंगे। इस वक्त इस मामले का सार्वजनिक होना निश्चित तौर पर साजिश का परिणाम होगा। कांग्रेस सबको एक ही रंग में रंगे बताना चाहती है, पर अपना चोर है तो ही कांग्रेस का प्रयास सफल हो रहा है। भाजपा में और भी वरिष्ठ नेता हैं, उनके खिलाफ गदंगी क्यों नहीं मिल रही?

पार्टी के अंदर गडकरी के मामले को लेकर काफी बेचैनी नजर आती है। पहल हाथ से छिनती नजर आती है। जनता के सामने भाजपा कैसी मिसाल रखना चाहती है? ठीक है यह राष्ट्रमंडल खेलों, या 2जी या कोलगेट जैसा मामला तो नहीं है लेकिन व्यक्तिगत शुचिता का मामला तो है ही। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेतृत्व को भी सोचना चाहिए कि वह कैसे लोगों को शिखर तक पहुंचा रहे हैं? पहले बंगारू लक्ष्मण और अब नितिन गडकरी बता रहे हैं कि संघ के संस्कारों में कमजोरी आ गई है। जब गडकरी को अध्यक्ष बनाया गया तो उनकी केवल एक ही विशेषता थी उन्हें संघ का समर्थन प्राप्त था नहीं तो वह तो महाराष्ट्र स्तर के नेता थे जिन्हें बाहर कोई नहीं जानता था। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी कर नितिन गडकरी को पार्टी पर लाद दिया गया। उन्हीं के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन कमजोर रहा पर फिर भी संघ के आशीर्वाद के कारण उन्हें दोबारा अध्यक्ष बनाने का रास्ता साफ कर दिया गया। पर अब संघ का कहना है कि यह भाजपा का अंदरुनी मामला है। पहले आप दबाव डाल कर उन्हें अध्यक्ष बनवाओ, फिर दोबारा बनाने का रास्ता साफ करवाओ, पर जब वह फंस गए तो कह दिया कि तौबा! तौबा! यह हमारा मामला तो नहीं है, यह तो भाजपा का आतंरिक मामला है। भाजपा पर गडकरी को लादने तथा पार्टी की यह फजीहत करवाने की जिम्मेवारी तो संघ की भी बनती है। वह इससे पल्ला कैसे झाड़ सकते हैं?

भारतीय जनता पार्टी के लिए धर्म संकट है कि उस अध्यक्ष का क्या किया जाए जिसके दोबारा चुने जाने का वह रास्ता हाल ही में साफ कर हटे हैं पर जिसका और अध्यक्ष बना रहना महंगा साबित हो रहा है? इस वक्त भ्रष्टाचार का मामला लोगों के मानस पर छाया हुआ है। 2014 के चुनाव में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा होगा। अगर भाजपा ने विकल्प बनना है तो उपदेश देने बंद कर वास्तव में ऐसे कदम उठाने चाहिए जो सही संदेश पहुंचाए। गडकरी अब बोझ बन चुके हैं। अगर कुछ नहीं किया जाता तो आगे चल कर लोगों को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा पर अगर गडकरी को हटा दिया जाता है तो भाजपा यह तो संदेश दे सकेगी कि वह वास्तव में अलग पार्टी है और अनैतिक समझौते नहीं करती। वर्तमान संकट को पार्टी एक अच्छे अवसर में परिवर्तित कर सकती है। नरेंद्र मोदी का हौवा दिखा कर गडकरी को टिकाए रखना अब उलटा पड़ेगा। न ही इस मामले को भावी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के मामले से ही जोड़ना चाहिए। भाजपा के पास प्रधानमंत्री पद के लिए साफ-सुथरे बहुत लोग मौजूद हैं। पार्टी की इज्जत खतरे में है। चुनाव पार्टी की साख को बचाने या दागी अध्यक्ष को बचाने के बीच है।

क्या देश के कानूनमंत्री ‘शोले-II’ के लिए गब्बर सिंह की भूमिका की तैयारी कर रहे हैं?

-चन्द्रमोहन

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.