
इस नीति की कोई बुनियाद नहीं है!
थलसेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह का कहना है कि पाकिस्तान द्वारा एक भारतीय जवान का सर काटने की घटना का भारत बदला लेगा, कब और कहां यह हम तय करेंगे। जनरल साहिब की यह घोषणा उस घटना के एक सप्ताह के बाद आई जिसने सारे देश को तड़पा कर रख दिया है। उनका यह भी कहना था कि इस घटना को पाकिस्तान की सेना के स्पैशल सर्विस ग्रुप के कमांडो ने अंजाम दिया है और ऐसे आप्रेशन के लिए कम से कम 15 दिन की तैयारी चाहिए। लेकिन जनरल साहिब ने एक और बात भी कहीं जो चौंकाने वाली है। उनका कहना था कि ऐसी घटना पहले भी एक बार हो चुकी है। राजपूत रैजिमैंट के दो जवानों के सर इसी तरह काट दिए गए थे। घटना जुलाई 2011 की बताई जाती है जब हवलदार जयपाल सिंह अधिकारी तथा लांस नायक दवेन्द्र सिंह के सर इसी तरह कलम कर पाकिस्तानी ले गए थे। सवाल उठता है कि सरकार ने उस घटना के बारे लोगों को अंधेरे में क्यों रखा? पाकिस्तानी हमारे जवानों के सर काट कर ले गए और हम ‘अमन की आशा’ करते रहें? हम पाकिस्तान के साथ संबंध सामान्य करने के एक के बाद एक कदम उठाते रहे यहां तक कि जब देश 8 जनवरी की घटना को लेकर बेहद आक्रोश में है हमने पाकिस्तान के साथ उदारवादी वीजा प्रबंध शुरू कर लिया। सीमा और नियंत्रण रेखा के आरपार बिल्कुल चैन और शांति नहीं है। 2012 में हर तीसरे दिन गोलाबारी हो रही है। न बंदूकें शांत हुई हैं और न ही छुरियों का इस्तेमाल रुका है। इंडिया टूडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, सैनिकों की हत्या और उनके सर को साथ वापिस ले जाना पाकिस्तान का सामान्य खेल है। कारगिल युद्ध के बाद से ही हमले शुरू हो गए और सर इकट्ठे करने का खेल शुरू हो गया। कारगिल युद्ध के 7 महीने के बाद सात भारतीय जवानों की हत्या कर दी गई। सेना तब एक ऐसे शव को पाकर स्तब्ध रह गई जिसका सर नहीं था। बाद में पकड़े गए एक मिलिटैंट ने बताया कि पाकिस्तान के अंदर इस जवान के सर को ‘ट्रॉफी’ की तरह प्रदर्शित किया गया। उस मिलिटैंट, जो हमलावर दल का सदस्य था, का कहना था कि उन्होंने जवान के सर के साथ फुटबाल खेला था।
ऐसी और कितनी घटनाएं थी जो भारत के लोगों से छिपा कर रखी गई? वे हमारे जवान के सर के साथ फुटबाल खेलते रहे और हमें बताया तक नहीं गया? न ही भारत सरकार ने कप्तान सौरभ कालिया तथा उनके जवानों के साथ घोर यातनाओं का मामला उठाने में ही दिलचस्पी दिखाई। आखिर में इस परिवार को अंतर्राष्ट्रीय अदालत में जाना पड़ा। जहां इस प्रकार टकराव की स्थिति हो, कुछ जानी नुकसान की संभावना तो हर वक्त बनी रहती है। हमारा भी नुकसान हुआ है उनका भी बराबर हुआ होगा पर सर कलम कर ले जाना तो चुनौती से कम नहीं है। अब कहा जा रहा है कि अगर हमें उकसाया गया तो हम बदले की कार्रवाई करेंगे पर इससे बड़ी उकसाहट क्या हो सकती है कि वे आपके जवान का सर ले गए और उसके साथ फुटबाल खेलते रहे, और आपने इस बारे कुछ नहीं किया? यह सरकार इस कमजोरी के बारे देश को जवाबदेह है। यह फैसला क्यों कर लिया गया कि पाकिस्तान जो भी करता रहे हम एकतरफा ‘पीस प्रौसेस’ पर लगे रहेंगे? क्या अटल बिहारी वाजपेयी के असफल ऐसे प्रयासों से इस सरकार ने कुछ सबक नहीं सीखा? ठीक है पाकिस्तान की सरकार में कुछ लोग हैं जो हमारे साथ बेहतर संबंध चाहते हैं। चाहे नवाज शरीफ रहे हों, या अब आसिफ जरदारी हैं, दोनों दोस्ताना संबंध चाहते हैं, पर उनकी भारत नीति की चॉबी तो जनरल कियानी के पास है। हमें बताया गया कि कियानी भी हमारे साथ बेहतर संबंध चाहते हैं ‘ही इज ऑन द सेम पेज’। पर लगातार हो रही ऐसी पाशविक घटनाएं बताती हैं कि कियानी की उस नीति में कोई परिवर्तन नहीं आया जो भारत दुश्मनी पर केंद्रित है। पाकिस्तान ने भारत को चुनौती देने की अपनी ग्रस्तता छोड़ी नहीं। पाकिस्तान दुनिया में सबसे तेजी से परमाणु शस्त्रागार इकट्ठा कर रहा है अगर इसका कभी इस्तेमाल हुआ तो किसके खिलाफ होगा?
यह भी महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान की नवीनतम उत्तेजना उस वक्त आई है जब वह खुद मुसीबतों में डूबा हुआ है। चार विस्फोटों में वहां 100 से अधिक हजारा शिया मारे गए हैं। क्वेटा में हुए विस्फोटों के बाद पाकिस्तान की सरकार ने ब्लूचिस्तान में गवर्नर का शासन लगा दिया है। इसी के साथ लाहौर से शुरू हुआ मौलवी मुहम्मद तहीर उल कादरी का ‘लौंग मार्च’ इस्लामाबाद पहुंचने वाला है। वे पाकिस्तान की व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन चाहते हैं। यह भी चर्चा है कि उन्हें पाकिस्तान की सैनिक व्यवस्था का समर्थन प्राप्त है। पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति जर्जर है। अमेरिका के ड्रोन हमले तेज हो गए हैं क्योंकि वे अफगानिस्तान से अब निकलना चाहते हैं पर अमेरिका स्पष्टï संकेत दे रहा है कि उनके सैनिकों के हटने के बाद भी ड्रोन हमले जारी रहेंगे। ऐसी हालत में जब उसे चारों तरफ से चुनौतियां मिल रही हैं पाकिस्तान ने उस भारत के साथ यह पंगा क्यों शुरू कर लिया जो आकार में उससे छ: गुना बड़ा है?
इस सवाल का जवाब है कि पाकिस्तान की सेना अपना रवैया बदलने को तैयार नहीं। इसके कई कारण नजर आते हैं। देश को गरीब और पिछड़ा रख कर सेना बजट का बड़ा हिस्सा हड़प रही है। उनकी सेना तो एक प्रकार से एक कारपोरेशन है जिसका लाभ-हानि भारत विरोध पर टिका हुआ है। इसलिए वह इस विरोध को छोड़ने को तैयार नहीं पाकिस्तान की आतंरिक स्थिति कितनी भी आशाहीन हो। पाकिस्तान का सामाजिक ढांचा बिखर रहा है पर फिर भी नियंत्रण रेखा को हिंसक रखा जा रहा है। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि पाकिस्तान की सेना जो चाहती थी उसे वार्ता के द्वारा हासिल नहीं हुआ। जनरल कियानी खुद सियाचिन से अपने सैनिक वापिस लाने की पेशकश कर चुके हैं पर भारतीय कमांडर इसे नहीं माने। अमेरिका के अगले साल अफगानिस्तान से प्रस्थान की संभावना से भी वह उत्साहित है कि उन पर दबाव कम हो जाएगा और वह इस क्षेत्र के दादा बने रहेंगे इसीलिए भारतीय सेना को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। लेकिन असली बात और है। असली बात है कि हमारी सरकार कमजोर है और हम एक सॉफ्ट स्टेट हैं। केवल एक बार इंदिरा गांधी ने उन्हें 1971 में तारे दिखाए थे नहीं तो हम हर अपमान को निगलते जा रहे हैं। चाहे कारगिल हो या हमारी संसद पर हमला हो या मुंबई में 163 लोग मारे जाएँ, कुछ देर के बाद हमारी सरकारें सामान्य संबंध बनाने के लिए उतावली हो जाती हैं। मई 2002 में कालूचक्क में सैनिक परिवारों पर हमले का भी हमने बदला नहीं लिया। ऐसी स्थिति में अगर पाकिस्तान सोचने लग पड़े कि ‘न खंजर उठेंगे न तलवार उनसे यह बाजू मेरे आजमाए हुए हैं’, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। हम खुद को भावी सुपर पावर समझते हैं लेकिन बर्ताव एक थर्ड रेट पावर की तरह करते हैं। अब भी विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद का कहना है कि जो कुछ हुआ उसे और बढ़ाना नहीं चाहिए।
हमारा नेतृत्व कभी भी इतना कम$जोर नहीं था जितना आज है। अफसोस है कि प्रधानमंत्री ने खुद राष्ट्रीय रक्षा की जिम्मेवारी छोड़ दी लगती है। जहां रक्षामंत्री ए.के. एंटोनी हो उस देश से कौन डरेगा? रक्षामंत्रालय अत्यंत कमजोर हाथों में है जैसे गृहमंत्रालय भी है। वफादारियां देख कर लोगों को महत्त्वपूर्ण विभाग दिए जा रहे हैं जिनका नुकसान हो रहा है। यह कथित शांति प्रक्रिया कहीं पहुंचने वाली नहीं क्योंकि इसकी कोई बुनियाद नहीं है। इस पर अडिग रह हम अपने साथ दुर्व्यवहार को प्रोत्साहित कर रहे हैं। प्रधानमंत्री शायद अपनी विरासत एक शांतिप्रिय नेता की छोड़ना चाहते हैं लेकिन इन अस्वीकार्य परिस्थितियों में देश को यह एकतरफा प्रयास स्वीकार नहीं है। एक स्वाभिमानी राष्ट्र अपने सैनिकों के सर कलम करने को माफ करने को तैयार नहीं है।
-चन्द्रमोहन