वीवीआईपी का उड़नघोटाला

वीवीआईपी का उड़नघोटाला

क्या यह सरकार कोई भी काम सीधा नहीं कर सकती? ईंट उठाओं तो घोटाला, स्कैंडल, भ्रष्टाचार, रिश्वत! 2जी घोटाले, कोयला आबंटन घोटाले, राष्ट्रमंडल खेलों में महाघोटाले के बाद अब वीवीआईपी हैलीकाप्टर घोटाले का विस्फोट हुआ है। इटली से खरीदे जाने वाले इस 3600 करोड़ रुपए के सौदे में 362 करोड़ रुपए की भारत में रिश्वत दी गई है। भारत सरकार ने सीबीआई की जांच के आदेश तो दे दिए हैं लेकिन यह हैलीकाप्टर सौदा भी बोफोर्स की तरह बहुत धुआं छोड़ गया है।

यूपीए की दूसरी सरकार का गठन अशुभ घड़ी में हुआ लगता है। जब हालात कुछ बेहतर होने लगते हैं तो नया विस्फोट सब कुछ बिखेर देता है। वर्तमान हैलीकाप्टर घोटाले ने बड़े-बड़े लोगों की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं। चाहे एयर मार्शल एसपी त्यागी का नाम लिया जा रहा है पर सब मानते हैं कि किसी भी सेना प्रमुख के पास इतनी शक्तियां नहीं कि वह अकेले कोई रक्षा सौदा पारित करवा सकें। उनकी सहमति लाजमी है लेकिन मामला आखिर में रक्षा मंत्रालय के स्तर पर तय किया जाता है। लेकिन एक सेनाध्यक्ष भी बार-बार इतालवी दलालों को क्यों मिलते रहे हैं? बड़ा सवाल तो है कि घोटाले की जानकारी होने के बावजूद ग्यारह महीने सरकार खामोश क्यों रही? इसलिए कि एंटनी साहिब चुनाव निकल जाने की इंतजार में थे? ऐसे मामलों में सीबीआई का रिकार्ड भी शोचनीय है। 30 साल वह एक भी रक्षा घोटाले की तह तक नहीं पहुंच सके। वैसे भी बड़े लोगों के नाम सामने आने के बाद सीबीआई कुछ अधिक नहीं कर पाएगी। सीबीआई को सरकार के चंगुल से आजाद करने का यह एक और औचित्य है।

पिछले कुछ समय से कांग्रेस का नेतृत्व घोटालों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए सुशासन तथा निर्णायक नेतृत्व की तरफ ले जाने की कोशिश कर रहा है। हाल ही में कांग्रेस के जयपुर चिंतन शिविर में राहुल गांधी को बड़ी भूमिका सौंपने की घोषणा की गई लेकिन एक और भ्रष्टाचार के मामले के विस्फोट ने पार्टी को फिर पीछे धकेल दिया। रक्षामंत्री ए के एंटनी की ‘मिस्टर क्लीन’ की जायज छवि है लेकिन उनके पास भी कोई जवाब नहीं कि इतने महीने वे हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे रहे और सीबीआई की जांच की घोषणा इटली में मामले के उजागर होने के बाद क्यों की? यह प्रभाव मिलता है कि एंटनी की प्रतिष्ठा का गलत काम करने के लिए कवच के तौर पर इस्तेमाल किया गया। मनमोहन सिंह तथा एंटनी दोनों भले आदमी हैं पर क्या फायदा? आम चुनाव को एक वर्ष ही रह गया है इसलिए यूपीए ने महंगाई तथा भ्रष्टाचार के मामलों से बुरी तरह खफा आम आदमी को अपनी तरफ करने का प्रयास शुरू कर दिया था। जहां सीधे कैश ट्रांसफर की तैयारी की गई वहां अफजल गुरू को फांसी पर चढ़ा कर भाजपा से राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला छीनने का प्रयास किया गया। पर एक बार फिर ‘इटली-कनैक्शन’ ने सब कुछ गड़बड़ कर दिया। आज से संसद का अधिवेशन है। कांग्रेस के गम का प्याला छलक रहा है।

याद आ रहा है कि जब 2जी घोटाला हुआ या राष्ट्रमंडल घोटाला हुआ तो पहले इसी तरह सरकार ने मामला लटकाने का प्रयास किया था। आखिर में जब अदालत ने दखल दिया तो सरकार हरकत में आई। कांग्रेस के लिए सबसे अधिक कष्टदायक है कि एक बार फिर बोफोर्स का भूत जीवित हो उठा है। वहां भी इटली -कनैक्शन था यहां भी इटली-कनैक्शन हैं। तब सरकार की मिलीभगत से ओटावियो क्वाट्रोच्ची भागने में सफल रहा था। सरकार सच्चाई को दबाने में सफल रही पर लोग यह मामला भूले तो नहीं। कांग्रेस के अपने लोग भी आज कह रहे हैं कि ‘नहीं, नहीं, यह बोफोर्स नहीं है।’ अर्थात् वे भी स्वीकार करते हैं कि 1987 का वह घोटाला उच्चस्तरीय भ्रष्टाचार का कीर्तिमान रहेगा। अगर बोफोर्स में सच्चाई छिपाने का इतना उच्चस्तरीय प्रयास न होता तो शायद इस बार लोग सरकार की बात पर विश्वास कर लेते। बद से बदनाम बुरा! क्वाट्रोची को तो बचा लिया पर यह मामला राजीव गांधी सरकार के पतन का कारण बना था। क्या इतिहास फिर दोहराएगा क्योंकि एक और रक्षा सौदे में एक और प्रधानमंत्री का कार्यालय फंस गया है?  बोफोर्स की ही तरह यह सवाल उठ रहा है कि रिश्वत क्यों दी गई और किसे दी गई? इटली की कंपनी ने रिश्वत दी तो भारत में किसने ली? बोफोर्स की तोप बढ़िया थी जिस तरह यह हैलीकाप्टर भी बढ़िया है फिर बीच में रिश्वत क्यों आ गई? भारत के अंदर अपने प्रवेश को आसान बनाने के लिए रिश्वत देने के मामले की वॉलमार्ट भी जांच करवा रहा है। अब इटली में यह नई जांच शुरू हो रही है।

लेकिन इस मामले में एक और चिंता है जो कांग्रेस के हश्र से भी अधिक गंभीर है। हमारी अंतर्राष्ट्रीय छवि ऐसी बन गई है कि यहां कोई भी सौदा रिश्वत के बिना नहीं मिलता। इस 3600 करोड़ रुपए के सौदे में 362 करोड़ रुपया रिश्वत दी गई। अर्थात् 10 प्रतिशत, जबकि दुनिया भर में ऐसे सौदो पर 2-3 प्रतिशत कमिशन ही दी जाती है। भारत महान् में रिश्वत की दर भी सबसे अधिक है! चाहे राजग को घसीटने का प्रयास किया जा रहा है पर रिश्वत 2007-2011 के बीच दी गई जब वर्तमान सरकार थी। भारत दलालों का स्वर्ग बन गया लगता है। बहरहाल सरकार ने सौदा रद्द करने की धमकी दी हैं पर हम इस तरह कितने सौदे रद्द करते जाएंगे? बोफोर्स घोटाले के बाद वहां से तोप मंगवानी बंद कर दी जबकि सब मानते हैं कि यह बढ़िया तोप थी जिसने हमें कारगिल का युद्ध जीत कर दिया था। ये हैलीकाप्टर भी अच्छे हैं पर बुरी तरह से घिरी यह सरकार अपना पिंड छुड़वाने के लिए शायद इन्हें रद्द करने जा रही है। ऐसे माहौल में रक्षा खरीददारी को भारी धक्का पहुंचेगा क्योंकि अब कोई भी हथियार या सामान का आर्डर देने की हिम्मत नहीं करेगा। समस्या ऐसे सौदों की गुणवत्ता से नहीं है। समस्या बीच में टपक रहे दलालों की है, भ्रष्टाचार की है, रिश्वत की है। एक बात और। हम अपनी रक्षा जरूरतों के लिए अभी भी 70 प्रतिशत विदेशियों पर निर्भर हैं। हम अपने निजी क्षेत्र को इसके लिए प्रोत्साहित क्यों नहीं करते? हमारी रक्षा संबंधी आधुनिककरण की योजना 160 अरब डॉलर की है। हम दुनिया में चौथे सबसे अधिक खर्च करने वाले हैं। इस मामले पर गंभीरता से गौर करना चाहिए कि हमारा देसी रक्षा उत्पादन इतना सुस्त और पिछड़ा क्यों हैं और इसे चुस्त आधुनिक तथा कार्यशील बनाने के लिए क्या करना होगा?

इस सारे घोटाले के विवाद में एक सवाल दब गया कि क्या हमें इतने महंगे हैलीकाप्टरों की इतनी संख्या में जरूरत भी है? 300 करोड़ रुपए का एक हैलीकाप्टर हैं। हमारे वीवीआईपी इतने असुरक्षित क्यों महसूस करते हैं कि उन्हें इतने महंगे हैलीकाप्टर की जरूरत है? और अगर खरीदने भी थे तो भी आधे से गुजारा नहीं हो सकता था क्या? जरूरत राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा सोनिया गांधी के लिए है। सब एक साथ तो उड़ते नहीं। फिर क्या छ: हैलीकाप्टर पर्याप्त न होते? अगर चारों एक साथ भी उड़ान भरते तो भी दो स्पेयर रह जाते। हम चाहते हैं कि हमारे वीवीआईपी सुरक्षित रहें पर उन्हें भी तो ध्यान रखना चाहिए कि यह गरीब देश है जहां महंगाई लोगों पर लादी जा रही है। क्या वे खजाने के इस्तेमाल के प्रति कुछ कंजूसी नहीं दिखा सकते? इस 3600 करोड़ से कितने स्कूल/ डिसपैंसरी/ सड़कें बन जाती? अगर यह देखा जाए कि इस खरीद का विचार एनडीए के समय पर शुरू हुआ था तो नजर आता है कि वित्तीय लापरवाही में सब बराबर है। क्या इसलिए तो इतने हैलीकाप्टर की खरीद का विचार नहीं आया कि दलाली खानी थी? मजबूरी कुछ भी हो इन लोगों ने तो उड़नखटोले को उड़नघोटाला बना दिया!

-चन्द्रमोहन

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.