क्या कंजक-पूजन भी बंद होगा यहां?
16 दिसम्बर को दिल्ली में दामिनी के साथ गैंगरेप की घटना के बाद एक बार फिर राजधानी में एक बच्ची के साथ पड़ोसी द्वारा बलात्कार तथा उसे दो दिन बंधक बनाए रखने की घटना ने लोगों को आक्रोश से भर दिया है। राजनीतिक दल भी इन प्रदर्शनों में कूद पड़े हैं पर यह राजनीतिक मामला नहीं है। यह गंभीर सामाजिक समस्या है। ऐसी दरिंदगी बताती है कि समाज में बहुत गला सड़ा है, और यह बढ़ रहा है। 2001 से लेकर 2011 तक बच्चों से बलात्कार के मामलों में 300 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। जो मामले बताए नहीं गए उनकी संख्या बहुत बड़ी है। यह घटना उन दिनों की है जब नवरात्रों में खुशहाली के लिए कंजकों की पूजा की जाती है पर हिमाचल प्रदेश के चुवाड़ी से समाचार है कि अविश्वास की भावना इतनी है कि कन्या पूजन के लिए दूसरे के घर में लड़कियां भेजने से लोग गुरेज करने लगे हैं। और यह वही देश है जहां देवी की पूजा होती है।
प्रधानमंत्री का कहना है कि सबको मिलकर इस महामारी से निबटना चाहिए। वह एक प्रकार से इससे निबटने की जिम्मेदारी ‘सब’ पर डाल रहे हैं जबकि दामिनी के मामले में भी और इस बच्ची के मामले में भी पुलिस लापरवाह रही है। लचर प्रशासन सुरक्षा प्रदान नहीं कर रहा। बच्ची के पिता ने बताया है कि उसे बरामद करने के बाद भी पुलिस ने बलात्कार का मामला दर्ज करने से इन्कार कर दिया था फिर उन्हें खामोश रखने के लिए दो हजार रुपए देने की पेशकश की। जगह-जगह से पुलिस के हाथों महिलाओं की पिटाई के दृश्य हम देख रहे हैं। जिस बल ने रक्षा करनी है, उसकी सोच ही विकृत हो गई है। अब यह नए कानून की भी परीक्षा है कि जो पुलिसकर्मी ऐसे मामले दर्ज करने से इन्कार करते हैं उन्हें दो साल की सज़ा होगी। यह ऐसा पहला मामला होना चाहिए। भर्ती के बाद पुलिस जवान को खुला छोड़ दिया जाता है। बदलती परिस्थितियों तथा जरूरतों के प्रति उसे संवेदनशील नहीं बनाया जाता। जिस अफसर के कार्यक्षेत्र में ऐसी घटनाएं अधिक हों उसे उसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। भीलवाड़ा में बलात्कार के दोषी का नाक तथा कान काट भीड़ ने उसे मार डाला। ऐसी घटनाएं प्रशासन के प्रति अविश्वास प्रकट करती हैं कि लोग इतने परेशान हैं कि कानून हाथ में लेने लगे हैं।
पड़ोसी इतना बहशी हो सकता है? और वह भी विवाहित पुरुष? चाहे जावेद अख्तर माने या न माने, मैं बालीवुड को महिला की विकृत तस्वीर पेश करने के लिए भी जिम्मेदार ठहराता हूं। जो गलत भावनाएं दबी रहनी चाहिए उन्हें कई दृश्य उत्तेजित करते हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी टिप्पणी की है कि ‘आपको केवल अपने बिजनेस तथा पैसे बनाने की चिंता है। अब (टीवी के द्वारा) सब कुछ लोगों के बैठने वाले कमरे में पहुंचाया जा रहा है।’ हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि बालीवुड की फिल्में बहुत तेज़ हैं और अगर सख्त सैंसरशिप नहीं लगाई गई तो इस बात का खतरा है कि बच्चे और युवा भ्रष्ट हो जाएंगे। लेकिन इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा क्योंकि तब मीडिया का एक वर्ग दकियानूसी होने का आरोप लगा देगा। सरकारों से अधिक आशा नहीं रखनी चाहिए। उसे मुकेश अंबानी की सुरक्षा की अधिक चिंता है, आप और हमारी नहीं। इसके लिए धर्माचार्य, मीडिया तथा समाज शास्त्रियों को आगे आकर सही संदेश देना चाहिए। परिवारों को अपने युवा संभालने चाहिए।
बैडमिंटन स्टार सायना नेहवाल का कहना है कि दिल्ली में घूमने के वक्त उसे डर लगता हैं। यही स्थिति हर महिला की हैं। इसका एक दुष्परिणाम यह भी हुआ है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारी बदनामी हो रही है। हम लाख कहें ‘अतुल्य भारत’, विदेशी महिलाएं तो ‘अप्रिय भारत’ कहती नजर आ रही हैं। 16 दिसंबर के क्रूर गैंग रेप के बाद विदेशियों के आने में 25 प्रतिशत की गिरावट आई है। कई देशों ने अपने नागरिकों को सलाह दी है कि वे भारत जाने से परहेज करें। जब से ग्वालियर के पास एक स्विस महिला के साथ उसके पति को बंधक बना कर गांववासियों ने बलात्कार किया तब से विदेशी भारत में घूमने से घबराने लगे हैं। फिर आगरा में एक होटल मालिक ने ब्रिटिश महिला से बलात्कार का प्रयास किया। महिला ने पहली मंजिल से छलांग लगा खुद को बचाया। उसके बाद कोरिया से आई एक छात्रा के साथ कोलकाता में एक चलती बस में छेडख़ानी का प्रयास किया गया। इन तीनों मामलों में दोषी पकड़े तो गए लेकिन 10 दिन में हुई इन तीन घटनाओं से विदेशियों का विश्वास तो उड़ गया है। चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के अखबार ‘ग्लोबल टाईम्स’ ने लिखा है, ‘भारत में बलात्कार की महामारी से न केवल दुनिया स्तब्ध रह गई है बल्कि इससे वह देश शर्मसार हुआ है जो खुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहने में गर्व महसूस करता है।’ चीन का सरकारी मीडिया इसे भारत के लोकतंत्र की असफलता कह रहा है।
हम कह तो सकते हैं कि दुश्मन बात करें अनहोनी और यह भी नहीं कि चीन में या पश्चिम में बलात्कार नहीं होते। पश्चिम में तो चर्च को अपने अंदर हुए व्यापक यौन शोषण के लिए माफी मांगनी पड़ी। चर्च में शामिल होने वाली न केवल युवतियों बल्कि युवकों के साथ भी यौन बदसलूकी के हजारों उदाहरण बाहर आए हैं। कई पीडि़तों ने किताबें भी लिखी हैं लेकिन जिस तरह हमारे यहां अनैतिकता की बाढ़ सी आ गई है वैसा कहीं नहीं है। देश शर्मसार है। धर्मशाला में मैकलोड गंज में जहां दलाई लामा रहते हैं, विदेशी महिलाएं अब अंधेरे के बाद बाहर निकलने से घबराती हैं। पहाड़ों से तो पहले ऐसे समाचार सुनने को ही नहीं मिलते थे लेकिन मैदानों की हवा वहां भी पहुंच रही लगती है। विदेशी महिलाएं शिकायत करती हैं कि इस देश में लोगों की नजरें ही गंदी है। वे चाहे हाथ न भी लगाएं उनकी नजर से बलात्कार टपकता है। साऊदी अरब में बलात्कार नहीं होते हैं इसके लिए तो कहा जाएगा कि वहां पत्थर मार कर मार दिया जाता है लेकिन जापान में तो ऐसी सजा नहीं मिलती पर वहां से बलात्कार के समाचार नहीं मिलते। इसका कारण समाज का आचरण और शिष्टाचार है। यह ही यहां बिगड़ गया है। सही है हमें बेहतर पुलिसिंग चाहिए। तत्काल न्याय चाहिए। सख्त कानून चाहिए। लेकिन असली जरूरत तो समाज के बदलने की है। अगर पड़ोसी ही पांच वर्ष की लडक़ी को दो दिन बंधी रख बलात्कार करता रहा हो तो नीरज कुमार क्या कर लेंगे?
जावेद अख्तर ने एक टीवी बहस पर इन घटनाओं के लिए पुलिस की कमजोर प्रतिक्रिया को जिम्मेवार ठहराया है। यह बात आंशिक तौर पर सही है। सवाल बड़ा जो परेशान कर रहा है कि यह समाज धड़ाधड़ मनोज तथा प्रदीप जैसे दरिंदें क्यों पैदा कर रहा है जो पांच वर्ष की बच्ची के साथ बलात्कार करने को भी तैयार हैं? शुरूआत घर से होती है। घर में बच्ची को बराबर नहीं समझा जाता। किसी भी देश में इतनी भ्रूण हत्याएं नहीं होती जितनी भारत में। शादी के समय दहेज की लाहनत है। घर के अंदर महिला के साथ हिंसा होती है। यह भी कड़वा सत्य है कि बच्चे का यौन शोषण करने वाले बहुत लोग घर के अंदर उसके रिश्तेदार या परिचित होते हैं। और यह केवल दिल्ली में ही नहीं हो रहा यह सारे देश में हो रहा है, जो हमारे अभागे गृहमंत्री ने कहा भी है। अपराध को रोकने में परिवार और समाज की महत्त्वपूर्ण भूमिका है पर यहां लगाम ढीली छोड़ दी गई है। बच्ची/महिला को दूसरे दर्जे का सोचना कैसे बंद किया जाए? स्कूली शिक्षा से लेकर मनोरंजन उद्योग, मीडिया, राजनेताओं, सब को अपने अपने अंदर झांकना चाहिए। जिसे ‘पैपूलर कल्चर’ कहा जाता है, सिनेमा, टीवी, म्यूजिक चैनल, विज्ञापन जगत वह विशेष तौर पर अपरिपक्व दिमाग को गलत रास्ते में धकेलने के लिए दोषी हैं। समाज इतना अनैतिक बन रहा है कि कंजक पूजन के लिए हिमाचल जैसे शांत प्रदेश में भी लोग अपनी बच्चियों को दूसरों के घरों में भेजने से घबराने लगे हैं। कड़वी सच्चाई है कि यहां जंगल राज ही नहीं जंगल समाज भी बन रहा है।