
इतिहास दोहराया जा रहा है
स्वर्ण मंदिर परिसर में बनाया गया ‘यादगार शहीदां’ गुरूद्वारा जरनैल सिंह भिंडरावाला को समर्पित है। इसका निर्माण कार्य भिंडरावाला की दमदमी टकसाल को देते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल तथा शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रमुख अवतार सिंह मक्कड़ ने वायदा किया था कि यह केवल ब्लूस्टार आप्रेशन में मारे गए बेकसूर लोगों की यादगार होगी। उस वक्त भी सवाल उठा था कि ब्लूस्टार के 29 वर्ष के बाद ऐसी किसी यादगार की जरूरत क्यों है? बादल साहिब ने तब विधानसभा में वायदा किया था कि यह एक धार्मिक स्मारक होगा जो किसी व्यक्ति विशेष को समर्पित नहीं होगा। अवतार सिंह मक्कड़ और श्री अकालतख्त के जत्थेदार साहिब ने भी यही बात दोहराई थी। लेकिन जब 27 अप्रैल को यह गुरूद्वारा तैयार हो गया तो इसके ऊपर लिखा था, ‘शहीद संत ज्ञानी जरनैल सिंह जी खालसा भिंडरावाले अते जून 1984 दे साके दे समूह शहीदां दी यादगार।’
अर्थात् यह गुरूद्वारा भिंडरावाला को समर्पित है। दूसरे लोग जो मारे गए उनका वर्णन बाद में है। बादल साहिब तथा अवतार सिंह मक्कड़ के सारे वायदे गलत निकले। अब बताया जा रहा है कि एसजीपीसी जांच कर रही है लेकिन दल खालसा का कहना है कि मई 3, 2012 को शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी ने यह प्रस्ताव पारित किया था कि ‘अकाल तख्त के नजदीक संत भिंडरावाला तथा दूसरों की याद में स्मारक बनाया जाएगा।’ अब अकाली दल शिरोमणि कमेटी से जवाब मांग रहा है, ऐसा बताया गया। मुख्यमंत्री बादल दुखी बताए जाते हैं। इन सब नकली प्रयासों के बारे तो मेरा कहना है,
वह कत्ल कर मुझे हर किसी से पूछते हैं,
यह काम किसने किया, यह काम किसका था?
जब शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी ने इस गुरूद्वारा की कारसेवा की जिम्मेवारी जरनैल सिंह भिंडरावाला के दमदमी टकसाल के मुखी हरनाम सिंह धुम्मा को सौंपी थी तब ही सब को मालूम था कि अंत यही होना है। खुद शिरोमणि कमेटी साधन सम्पन्न है ऐसी यादगार वह खुद बना सकती थी। अब भिंडरावाला का नाम वहां से हटाने का नाटक किया जा रहा है। क्या आपकी खुफिया एजंसियों ने आपको यह नहीं बताया कि ऐसा होने वाला है? कोई मान सकता है कि पंजाब सरकार या शिरोमणि कमेटी या अकाली दल को मालूम नहीं था कि अंदर क्या हो रहा है?
इस मामले में मुझे मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की भूमिका पर अत्यंत दुख है। एक बार फिर विवाद के बीज बो दिए गए। वे सारे पंजाब के मुख्यमंत्री हैं केवल सिखों के नहीं। मेरा मानना है कि वे खुद एक सैक्यूलर नेता हैं पर उनकी राजनीति बिल्कुल सैक्यूलर नहीं है। चाहे बलवंत सिंह राजुआना या दविन्द्रपाल सिंह भुल्लर की फांसी का मामला हो या अब यह ‘यादगार शहीदां’ का मामला हो बादल साहिब ने कट्टर धार्मिक एजंडे को बढ़ाया ही है। अफसोस है कि केंद्र अत्यंत कमजोर है कि वह रोक नहीं सकता। वह देख नहीं रहा कि पंजाब के वातावरण में अकाली नेतृत्व एक बार फिर जहर घोल रहा है। कांग्रेस पार्टी तो वैसे भी 1984 के दंगों के बारे उनकी आपराधिक निष्क्रियता के कारण अपराध बोध से ग्रस्त है। आतंकवाद का दौर तथा आप्रेशन ब्लूस्टार पंजाब के लिए बहुत कष्टदायक दौर था। दरबार साहिब के अंदर सेना की कार्रवाई नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन उन लोगों की याद में स्मारक बनाना जिन्होंने ऐसी परिस्थिति बना दी थी कि केंद्र को दखल देना पड़ा, भी कितना जायज है? जिन लोगों को घरों में मारा गया, जिन्हें बसों या रेलों से निकाल कर मारा गया, क्या उनके लिए कोई यादगार नहीं बनेगी? अकाली नेतृत्व की नजरों में वे पंजाबी नहीं हैं? उस दौरान बहुत गलत हुआ। पर जिन्होंने बेकसूर लोगों की मौत के फरमान जारी किए थे, खालिस्तान की घोषणा करने वाले थे उन्हें कैसे माफ कर दिया गया? उन्हीं के नाम पर गुरूद्वारा बना कर क्या पंजाब में एक बार फिर सांप्रदायिक विभाजन की नींव नहीं रखी जा रही? आतंकवाद के दौर में जिन्हें नरम अकाली नेतृत्व कहा जाता है उनकी क्या भूमिका रही, यह मैं दोहराना नहीं चाहता केवल इतना कहना है कि,
होता है जिस जगह मेरी बरबादियों का जिक्र,
तेरा भी नाम लेती है दुनिया कभी-कभी!
बॉस्टन में मैराथान के दौरान विस्फोट करने वाले दो भाईयों में से एक को एफबीआई ने गोली से उड़ा दिया और दूसरे की ऐसी हालत बनाई कि वह बोल तक नहीं सकता। उल्लेखनीय है कि इस कार्रवाई पर वहां किसी ने सवाल खड़े नहीं किए। किसी पार्टी के महासचिव ने नहीं कहा कि मुठभेड़ फर्जी है। किसी मुख्यमंत्री ने धमकी नहीं दी कि अगर इन्हें सजा दी गई तो हालत खराब हो जाएंगे और कोई मुख्यमंत्री उनके लिए दया मांगने के लिए राष्ट्रपति से मिलने नहीं पहुंचा। राजोआना वह व्यक्ति है जिसने पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह तथा 17 और की हत्या करवाई थी। उसने खुद दया की अपील करने से इंकार कर दिया। अकाल तख्त जिस पर अकाली दल का बहुत प्रभाव है, राजोआना को ‘जिंदा शहीद’ घोषित कर चुका है। क्या एक निर्वाचित मुख्यमंत्री तथा 17 और की हत्या का दोषी ‘जिंदा शहीद’है? ऐसी घोषणा कर देश को क्या संदेश दिया जा रहा है? इसी प्रकार दविन्द्रपाल सिंह भुल्लर को फांसी से बचाने के लिए दोनों बादल सक्रिय हैं। क्या बादल साहिब की उन 9 लोगों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं जो 1993 में हुए विस्फोट में मारे गए? 2011 में खुद इसी बादल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दाखिल किया था जिसमें भुल्लर को ‘हार्ड कोर’ और अनुभवी अपराधी कहा था आज उसे ही बचाने के लिए वह हाथ पैर मार रहे हैं। कौन से प्रकाश सिंह बादल सही हैं?
मुझे सरदार प्रकाश सिंह बादल के एक और कथन पर आपत्ति है। उनका कहना है कि भुल्लर की फांसी से पंजाब में सांप्रदायिक सद्भाव खतरे में पड़ जाएगा। अगर भुल्लर को फांसी लगती है तो कुछ समय के लिए कानून और व्यवस्था दबाव में जरूर रहेगी, यह बात तो समझ आ जाती है पर इसका ‘सांप्रदायिक सद्भाव’ पर क्यों असर होगा? यह सांप्रदायिक मामला तो है नहीं। वास्तव में जब भुल्लर की दया याचिका राष्ट्रपति ने अस्वीकार कर दी तो सबसे पहले अकाली दल तथा शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी ने मामला उछाल कर कहना शुरू कर दिया कि तनाव खड़ा हो जाएगा, शांति भंग हो जाएगी, गड़बड़ हो जाएगी। मामले को शांत करने की जगह खुद भड़का दिया और जब भड़क गया तो सांप्रदायिक सद्भाव के खतरे का शोर मचाना शुरू कर दिया।
अकाली दल फिर पंथक एजंडे पर लौट रहा है। शायद वे भूले नहीं कि कैप्टन अमरेंद्र सिंह के समय कांग्रेस मालवा क्षेत्र में सिख समर्थन ले भागी थी। अमरेंद्र सिंह तो अकालियों से भी अधिक कट्टर थे इसीलिए कांग्रेस दूसरी बार पंजाब में सत्ता से बाहर है लेकिन इस पंथक एजंडे को फिर अपनाते हुए बादल साहिब खुद को गैर सिख राय से बिल्कुल अलग कर रहे हैं। ऐसा पहले भी हो चुका है। वे बता रहे हैं कि उन्हें गैर सिखों, विशेष तौर पर हिन्दू राय की बिल्कुल चिंता नहीं। भुल्लर को फांसी लगाने पर वे ‘सांप्रदायिक सद्भाव के खतरे’ की चेतावनी देंगे, पर जब भिंडरावाला के नाम का स्वर्ण मंदिर में गुरूद्वारा बनाया जाएगा तो वे खामोश हो जाएंगे। उनकी तथा उनकी संस्थाओं की दिशा को लेकर लोग बेचैन हैं, परेशान हैं। अफसोस है कि इस सारे घटनाक्रम पर भाजपा निष्क्रिय है। प्रदेश भाजपा तो चरणों में गिरी हुई है और दिल्ली में भाजपा का ‘राष्ट्रवादी’ नेतृत्व बादल की बांटने वाली राजनीति पर एक शब्द बोलने को तैयार नहीं। अगर यही काम उमर अब्दुल्ला ने किया होता तो क्या भाजपा नेतृत्व इसी तरह उदार होता?