
यह सरकार उधड़ रही है
ए खाक नशीनो उठ बैठो
वह वक्त करीब है आ पहुंचा
जब तख्त गिराए जाएंगे
जब ताज उछाले जाएंगे!
ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। बदनामी में रेलमंत्री तथा कानून मंत्री का एक साथ स्कैंडलों के बीच हटना कोई मामूली बात नहीं है। इसका श्रेय सोनिया गांधी को देने की कोशिश की गई। मानना भी पड़ेगा कि सोनिया गांधी का राजनीतिक एंटीना बाकी सबसे अधिक चुस्त और ऊंचा है। वह भांप गई थी कि इन दोनों मंत्रियों को बचाने की कीमत बहुत अधिक होगी। अब अवश्य कहा जा रहा है कि यह निर्णय सोनिया गांधी तथा प्रधानमंत्री दोनों का संयुक्त था पर पहले तो सोनिया की भजनमंडली ने बदनामी सहने के लिए डॉक्टर साहिब को अकेले छोड़ दिया था। सवाल है कि अगर इन्हें हटाना ही था तो पहले क्यों नहीं हटाया गया? संसद अधिवेशन की कुर्बानी क्यों दी गई? विपक्ष भी रोजाना स्तर पर संसद को रोक कर देश की सेवा नहीं कर रहा। लोग संसद में बहस देखना चाहते हैं। सुषमा स्वराज, अरुण जेतली, मुलायम सिंह यादव, सीताराम येचूरी आदि की बात सुनना चाहते हैं और सरकार का जवाब सुनना चाहते हैं। विपक्ष को कोई अधिकार नहीं कि वह जनता का यह अधिकार छीन ले। और संसद केवल बहस का सदन ही नहीं यह कानून बनाने वाली संस्था भी है। विपक्ष लोककल्याण के विधेयक क्यों रोक के रखे? सरकार कितनी भी बदनाम हो कितनी भी दोषपूर्ण हो संसद को ठप्प रखना जायज नहीं। अपने लोगों के घोटाले के कारण कर्नाटक का कांग्रेस का जश्न फीका पड़ गया है। जिस भावना से प्रेरित हो कर कर्नाटक के वोटर ने भाजपा को रद्द किया, कांग्रेस के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। वोट प्रतिशत में 14 प्रतिशत की गिरावट तथा 70 सीटों की हानि अप्रत्याशित है। सोनिया गांधी की ही तरह लालकृष्ण आडवाणी भी दूसरों की ‘अवसरवादिता’ को इसके लिए जिम्मेवार ठहरा रहे हैं जबकि इस फजीहत के लिए भाजपा का पूरा दिल्ली दरबार जिम्मेवार है। प्रधानमंत्री का कहना है कि परिणाम भाजपा की विचारधारा के विरुद्ध जनादेश है। वे गलतफहमी में हैं। अगर भाजपा की विचारधारा के खिलाफ जनादेश होता तो गुजरात में तीसरी बार भाजपा सत्ता में नहीं आती। कर्नाटक का जनादेश भ्रष्टाचार तथा कुशासन के खिलाफ जबरदस्त चांटा है। यूपीए के प्रभुओं को चिंतित होना चाहिए क्योंकि आम चुनाव में भी जनता का यही मापदंड होगा। जो संस्थाओं का आदर नहीं करते, राजधर्म का पालन नहीं करते, सत्ता के अहंकार में हर मर्यादा को कुचल देते हैं उनका वही हश्र होना चाहिए जो कर्नाटक में भाजपा का हुआ है। दो मंत्रियों का इस्तीफा वास्तव में लोगों की जीत है जो ऐसी राजनीतिक ढिठाई को और बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं। इसका जवाब नहीं कि जो अक्षम्य है उसका बचाव क्यों किया गया? पार्टी और सरकार ने क्यों समझ लिया कि कोई भी घोटाला हो, राष्ट्रमंडल का हो, 2जी का हो, हैलिकाप्टर सौदे का हो, या कोयला ब्लाक आबंटन का हो, वे दबंग होकर निकल जाएंगे? इसी बेपरवाह रवैये के कारण इस सरकार की उलटी गिनती शुरू हो गई है। सरकार अब अपनी अवधि पूरी नहीं करेगी। दीवार पर लिखा साफ है, अंत की शुरूआत हो रही है। मध्यावधि चुनाव की आहट है।
पवन बंसल का मामला व्यक्तिगत बेईमानी का है। इस सरकार के लिए अधिक गंभीर अश्विनी कुमार का हटना है। जब सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि कोयला आबंटन मामले में सीबीआई की रिपोर्ट की आत्मा ही बदल दी गई तब ही मालूम था कि बदलाव करने और करवाने वाले को सजा भुगतनी पड़ेगी। मूल प्रश्न कि अश्विनी कुमार ने किसके कहने पर या किसके लिए रिपोर्ट में बदलाव करवाए थे? जवाब तो साफ है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को बचाने के लिए यह कवायद की गई जो उलटी पड़ी इसीलिए यूपीए के लिए यह अत्यंत नाजुक घड़ी है क्योंकि अब निशाने पर खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हैं। जब यह 1 लाख 86 हजार करोड़ रुपए का महा घोटाला हुआ तो कोयला विभाग उनके पास था। 194 में से 134 कोयला ब्लॉक मनमोहन सिंह के समय 2006-2009 में अलॉट हुए। इन पर उनके हस्ताक्षर हैं। सरकार तो यह भी बता नहीं सकती कि ‘क’ को क्यों अलॉट किए गए और ‘ख’ को क्यों नहीं? सारी अलाटमैंट राजनीति से प्रेरित और मनमानी थी। इसीलिए अब पिटारा खुल रहा है। मामला सुप्रीम कोर्ट में है और सीबीआई अपनी आजादी का लुत्फ उठा रही है और अपनी प्रतिष्ठा बहाल करने में लगी हैं। सरकार के लिए संकट की घड़ी हैं।
यूपीए सरकार उस जांच में दखल दे रही जिसमें वह खुद मुख्य आरोपी है और न्याय के रास्ते में रूकावट डाल रही थी। अगर कल को बड़ी अदालत यह आबंटन भी उसी तरह रद्द कर देता है जैसे 2जी के मामले में किया गया तो प्रधानमंत्री को भी इस्तीफा देना पड़ेगा। अतीत में 2जी घोटाले पर पर्दा डालने का प्रयास किया गया। ए राजा में बलि का बकरा उपलब्ध था। यहां तो कोई प्रतिरोधक नहीं है मामला खुद उनके कार्यालय तथा उन तक पहुंच रहा है। सोनिया गांधी यह भांप गई है इसलिए कांग्रेस पार्टी को इस घोटाला सरकार से दूर करने का प्रयास कर रही है जबकि यह सरकार उनकी भी उतनी है जितनी मनमोहन सिंह की। कांग्रेस अध्यक्ष तथा प्रधानमंत्री के बीच अविश्वास अब बढ़ेगा। कर्नाटक की जीत का श्रेय राहुल गांधी को और इन घोटालों का दोष मनमोहन सिंह को दे यह परिवार फिर अपनी छवि बचाने में लगा है। उनकी पुरानी कला है। अच्छा अपना, बुरा दूसरों का।
कोयला घोटाले में और बड़े नाम निकल सकते हैं।लेकिन कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी समस्या है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि जिसने 2009 में जीत दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, अब एक बोझ बन गई है। जब जुलाई में सुप्रीम कोर्ट इस कोयला घोटाले की परतें खोलने लगेगा तो सरकार की परतें भी खुलने लगेंगी। जिन्होंने सत्ता में रहने के लिए सत्यता और मर्यादा के हर सिद्धांत को तिलांजलि दे दी थी उनके लिए कीमत अदा करने का समय आ रहा है। कांग्रेस पार्टी में भी भारी उथल-पुथल होगा क्योंकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की स्थिति धीरे-धीरे असमर्थनीय बनती जा रही है। उनकी छवि एक ऐसे अवसरवादी नेता की बन गई है जो न केवल भ्रष्टाचार से समझौते करता रहा है बल्कि सार्वजनिक राय की भी परवाह नहीं करता। रवैया फिल्मी डायलॉग की तरह है कि ‘मेरे पास सरकार है।’ इसीलिए सरकारी अहंकार में सुप्रीम कोर्ट की तलख टिप्पणियों के बावजूद शुरू में किसी ने इस्तीफा नहीं दिया। वे भूल गए कि लोगों का न्यायपालिका में बहुत विश्वास है वे उसकी तौहीन बर्दाश्त नहीं करते। जनता की राय पर सरकारी बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता। उनके कार्यकाल में जिस तरह इस गरीबों से भरे देश को लूटा गया वह अपराधिक है। इसके बारे तो कहा जा सकता है:
राहजन को भी यहां तो रहबरों ने लूटा है,
किसको राहजन कहिए किसको रहनुमा कहिए!
हिसाब देने का समय तेजी से नजदीक आ रहा है। यह सरकार उधड़ रही है। नई शुरूआत की जरूरत है।