
मनमोहन सिंह के बाद कौन?
अफसोस की बात है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नेता जनता द्वारा सीधा चुना हुआ नहीं है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फिर राज्यसभा के लिए असम से नामांकन भरे हैं। किसी भी लोकतांत्रिक देश में ऐसा स्वीकार नहीं होगा। अब तो पाकिस्तान में भी प्रधानमंत्री सीधा जनता के द्वारा चुना गया है। हमारे देश में सभी बड़े नेता जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी सीधे जनता द्वारा निर्वाचित थे। जब पी वी नरसिंहा राव प्रधानमंत्री बने तो वे किसी सदन के सदस्य नहीं थे। वह तो सामान बांध कर अपने हैदराबाद लौट रहे थे कि उनके सर पर ताज रख दिया गया। वे भी छ: महीने के अंदर-अंदर लोकसभा के सदस्य बन गए। 2004 में जब अचानक सोनिया गांधी ने उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया तो उस वक्त मनमोहन सिंह राज्यसभा के सदस्य थे लेकिन उसके बाद भी उन्होंने लोकसभा का सदस्य बनने का कोई प्रयास नहीं किया। 2009 के आम चुनाव में उन्हें सीधा चुनाव लडऩा चाहिए था लेकिन वे असम के ‘अस्थाई पते’ के द्वारा संसद में आते रहे, और अब फिर आने की तैयारी कर रहे हैं। जनता का सामना करने से घबराना क्यों? जब पहली बार लाल कृष्ण आडवाणी ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था तो अटल बिहारी वाजपेयी की टिप्पणी थी कि ‘अच्छी बात है अब आडवाणी जी को आटे दाल का भाव मालूम हो जाएगा।’ आडवाणीजी तो तब से लगातार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं पर अफसोस है कि देश के नेता ने इस आटे दाल का भाव मालूम करने का प्रयास नहीं किया।
यूपीए की नौंवी साल गिरह के जश्न के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना था कि उन्हें 2004 में खाली गिलास मिला था इसे भरने में समय लगेगा। यह ‘खाली गिलास’ की जो मिसाल उन्होंने दी है वह ही इस सरकार की दुर्दशा प्रदर्शित करती है। अगर 9 साल के बाद भी आप अच्छी सरकार के प्यासे देशवासियों को बता रहे हो कि आप गिलास भर नहीं सके तो लोग आपको फिर मौका क्यों दें? असली बात है कि गिलास भरने की कोशिश की गई लेकिन इन नौ वर्षों में गिलास में इतने छिद्र हो गए है कि जितना पानी भरते गए उससे अधिक बाहर निकल रहा है और प्राईवेट गिलासों में जा रहा है। अब तो जो दस्तावेज सामने आ रहे हैं जिनसे पता चलता है कि प्रधानमंत्री ने केवल इस निकासी को रोकने का प्रयास नहीं किया बल्कि यह प्रयास भी किया कि लोगों को नजर न आए कि गिलास से पानी निकाला जा रहा है। इसी कोशिश में सरकार को सुप्रीम कोर्ट की झाड़ भी सुननी पड़ी। ठीक है विकास भी हुआ है लेकिन यूपीए की ढांचागत कमजोरी तथा भ्रष्टाचार सब कुछ तमाम कर गए हैं। अब अवश्य प्रधानमंत्री ने सोनिया गांधी को प्रेरणा स्रोत बताया तो सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री की तारीफ की लेकिन प्रधानमंत्री की हालत यह है कि साल गिरह वाले दिन कमलनाथ का कहना था कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनना चाहिए। डा. मनमोहन सिंह तथा सोनिया गांधी का मकसद अब अलग-अलग है। प्रधानमंत्री को इतिहास में अपनी जगह की चिंता है। सोनिया गांधी का एक सूत्रीय कार्यक्रम अपने पुत्र को अगला प्रधानमंत्री बनाना है। उनके लिए यह मछली की आंख है और कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। यह विचित्र गठबंधन किसी तरह नौ वर्ष निकाल गया है जो कांग्रेस के मैनेजरों की राजनीतिक कौशल बताता है पर अब इतनी दरारें नजर आ रही हैं कि आगे बहुत देर चलना मुश्किल होगा। लाखों करोड़ों के घोटाले इस सरकार को लडख़ड़ाते छोड़ गए हैं इसीलिए मैंने यह सवाल किया है कि मनमोहन सिंह के बाद कौन? इंडिया टूडे ने एक लेख में मनमोहन सिंह की कुर्सी के छ: दावेदार प्रस्तुत किए हैं: राहुल गांधी, पी. चिदंबरम, मीरा कुमार, ए के एंटनी, सुशील कुमार शिंदे तथा दिग्विजय सिंह।
1963 में वैल्स हैंगन ने किताब लिखी थी, After Nehru, Who? नेहरू के बाद कौन? नेहरूजी जीवित थे जब यह सवाल इस लेखक ने उठाया था। उनके उत्तराधिकारी के जो सम्भावित नाम उन्होंने लिए वे क्रम अनुसार थे; मोरारजी देसाई, वी के कृष्णा मेनन, लाल बहादुर शास्त्री, वाई बी चव्हाण, इंदिरा गांधी, जय प्रकाश नारायण, एस के पाटिल तथा पूर्व सेनाध्यक्ष बृज मोहन कौल। दिलचस्प है कि इनमें से लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी तथा मोरारजी देसाई बाद में प्रधानमंत्री बने लेकिन उस क्रम के अनुसार नहीं जैसे वैल्स हैगन ने बताया था। उस समय की कांग्रेस के पास प्रतिभा का भंडार था। आज अगर अचानक मनमोहन सिंह को छोडऩा पड़े तो बहुत मुश्किल खड़ी हो जाए। उनकी जगह कौन ले सकता है?
राहुल गांधी: स्वाभाविक उत्तराधिकारी। अगर वे प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो सोनिया गांधी की हसरत पूरी हो जाएगी। राहुल ने कहा भी है कि वह बड़ी जिम्मेवारी के लिए तैयार है पर इस जिम्मेवारी को संभालने के लिए अजब हिचकिचाहट है। राजनीति में अभी तक रिकार्ड अच्छा नहीं है। लेकिन आगे से अधिक सक्रिय है।
पी. चिदंबरम: यूपीए के सबसे सफल मंत्री हैं। जिस विभाग में भी गए वहां छाप छोड़ी लेकिन 2जी में इनका भी नाम आया है। कहना है कि वे इच्छुक नहीं हैं। ‘अगर आप इसे महत्वकांक्षा की कमी कहते हो तो मैं प्रसन्न हूं।’ लेकिन यह कोई मानने को तैयार नहीं कि महत्वकांक्षी नहीं हैं। समस्या है कि अधिक समर्थन नहीं है, पार्टी में लोकप्रिय नहीं हैं। पिछली बार बहुत मुश्किल से जीते थे। अगर सोनिया गांधी किसी टैक्रोक्रैट को चाहेंगी तो चिदंबरम पहली पसंद हो सकते हैं।
मीरा कुमार: लोकसभा अध्यक्ष है। दलित और महिला हैं। इन्हें प्रधानमंत्री बना कर मायावती के साम्राज्य को चुनौती दी जा सकती है। जगजीवन राम की पुत्री हैं। यह इनके खिलाफ जाएगा क्योंकि जगजीवन राम बुरे समय में इंदिरा गांधी का साथ छोड़ गए थे। ‘परिवार’ ऐसा पलायन कभी माफ नहीं करता। प्रणब मुखर्जी भी अपने बलबूते पर राष्ट्रपति बने हैं सोनिया गांधी उन्हें कभी प्रधानमंत्री न बनाती।
ए के एंटनी: पहली पसंद हो सकते हैं। सादे और ईमानदार हैं और परिवार के वफादार हैं। राहुल गांधी उन्हें अपना गुरू कहते हैं। लेकिन आधार नहीं है। हिन्दी नहीं जानते। इस देश में ईसाई प्रधानमंत्री बनाना अभी संभव नहीं होगा। इन्हें भी औगस्ता वैस्टलैंड हैलिकाप्टर घोटाले का बोझ उठाना पड़ रहा है।
सुशील कुमार शिंदे: गृहमंत्री की दो योग्यताएं हैं। वे दलित हैं और वफादार हैं, लेकिन अक्षम हैं और नाजुक समय में उलटी बाते कह जाते हैं। मंत्रालय संभालना ही मुश्किल हो रहा है। नवीनतम नक्सली हमला प्रमाण है। गृहमंत्री ने इस तरफ तवज्जो ही नहीं दी। 10 महीनों में केवल एक बैठक में उपस्थित रहे।
दिग्विजय सिंह: प्रशासनिक अनुभव है। अल्पसंख्यकों में लोकप्रिय हैं। राहुल का मार्गदर्शन करते हैं लेकिन कई बार जरूरत से अधिक स्पष्ट बात कह देते हैं। बाटला हाऊस मुठभेड़ पर सवाल उठाए तो सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर टिप्पणी की। उनके बयान सरकार तथा पार्टी को मुश्किल में डाल चुके हैं। इन छ: नामों के अतिरिक्त एक और नाम है जिसे मैं डार्क होर्स समझता हूं। ये हैं शीला दीक्षित। शीला दीक्षित के लिए पिछले कुछ वर्ष बहुत अच्छे नहीं रहे। अन्ना आंदोलन से लेकर राष्ट्रमंडल घोटाले तथा दिल्ली में बलात्कार की घटनाओं तथा महिला असुरक्षा के कारण दिल्ली सरकार की बदनामी हुई है चाहे शीलाजी का कहना है कि पुलिस गृहमंत्रालय के नीचे है मेरे नहीं। पर वे 1998 से लगातार मुख्यमंत्री हैं अर्थात् उनका रिकार्ड नरेंद्र मोदी से भी बेहतर है। और परिवार की पसंद हैं। उनके प्रति परिवार में वह स्नेह है जो किसी दूसरे कांग्रेसी नेता के प्रति नहीं।
यह परिवर्तन होता है या नहीं कहा नहीं जा सकता। राहुल गांधी ने तो कह दिया है कि 2014 तक मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहेंगे लेकिन इस एक साल में झटका भी लग सकता है। विशेष तौर पर कोयले का मामला प्रधानमंत्री को परेशान करेगा। मनमोहन सिंह का विकल्प वह ही बन सकता है जो परिवार की वफादारी की परीक्षा पास कर चुका हो। अगर राहुल तैयार नहीं तो इस परीक्षा में दो ही उत्तीर्ण होते नजर आते है, ए.के. एंटनी और शीला दीक्षित। शीलाजी राहुल गांधी की मनमोहन सिंह हो सकती हैं।
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