हिन्दी-जापानी भाई-भाई!!

हिन्दी-जापानी भाई-भाई!!

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सफल जापान यात्रा से चीन असामान्य तौर पर उत्तेजित और अप्रसन्न हैं। हमें तो बताया गया कि चीनी प्रधानमंत्री ली कुचियांग की भारत यात्रा एक चमत्कार थी और ऐसे और चमत्कार भविष्य में भी होंगे पर जापान के नेताओं को ‘मामूली सेंधमार’ कहा जा रहा है जो भारत-चीन संबंधों में खलल डाल रहे हैं। चीन के प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले लद्दाख में दोनों देशों की सेना के आमने-सामने आने पर चाइना डेली का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने इसे बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया पर दोनों देशों ने बहुत कम समय में इसका समाधान ढूंढ लिया। लेकिन यह ही तो मुद्दा है। ली ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना है पर यह भी हकीकत है कि ली के प्रधानमंत्री बनने के बाद चीनी सेना का पहला अतिक्रमण भी भारत के खिलाफ था। यह माना नहीं जा सकता कि चीनी सरकार को मालूम नहीं था कि उनकी सेना क्या कर रही है? अपने ही प्रधानमंत्री की यात्रा को खतरे में डाल कर चीन हमें क्या संदेश दे रहा था? चीन के साथ पुराना सीमा विवाद है जिसे चीन अपनी जरूरत के अनुसार बिजली के बटन की तरह ऑन-ऑफ करता रहता है। जब हमें दबाना हो तो चला दिया और जब सुलह करनी हो तो बंद कर दिया। यही हमारे लिए संदेश है। यह भी उल्लेखनीय है कि चीन का अब नया शगुफा है कि भारत-चीन सीमा 2000 किलोमीटर लम्बी है जबकि हम इसे 3500 किलोमीटर कहते हैं। बाकी 1500 किलोमीटर किधर गए? इसका स्पष्टीकरण तो यह है कि चीन ने जम्मू कश्मीर को बाहर निकाल दिया हैं। अर्थात् जम्मू कश्मीर को विवादित माना जा रहा है जैसे अरुणाचल प्रदेश को विवादित माना जा रहा हैं। ली कुचियांग का चार्म उनके भावी इरादों को छिपा नहीं सकता।

जम्मू-कश्मीर में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ सीमा पर चीन अपना भारी इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर रहा है पर जब हम यही प्रयास करते हैं तो चीन आपत्ति करता है। वे लगातार अपने ‘लोह-भाई’ पाकिस्तान को हमारे बराबर खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। पाकिस्तान का परमाणु तथा मिसाईल कार्यक्रम चीन की मदद से खड़ा किया गया है। अब तो दोनों देश पाक अधिकृत कश्मीर में मिल कर काम कर रहे हैं। यह अलग बात है कि पाकिस्तान के कबाईली क्षेत्र में जहां चीनी वर्कर उन्हें मिल जाते है वहां कट्टरवादी उन्हें गाजर, मूली की तरह काट रहे हैं। चीन-पाकिस्तान आर्थिक सहयोग भी नहीं बढ़ रहा इसीलिए नवाज शरीफ की नजरें इधर हैं। ठीक है भारत-चीन के बीच निकट भविष्य में युद्ध की स्थिति नहीं आएगी। दोनों के बीच 70 अरब डॉलर का व्यापार है पर यहां भी संतुलन चीन की तरफ झुका हुआ है। चीन के साथ तिब्बत का मसला भी है जहां हमने खुद अपने हाथ काट कर दे दिए हैं। दो बड़े प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू, तथा अटल बिहारी वाजपेयी की उदारता की कीमत हम चुका रहे हैं। तिब्बत के साथ हमारी केवल भावनात्मक सांझ ही नहीं है वह हमारी सुरक्षा के लिए भी जरूरी है।

भारत की नजरें भी पूर्व की तरफ हो रही हैं जहां चीन के अपने हर पड़ोसी, जापान, वियतनाम, फिलिपींस, मलेशिया, हालांकि छोटे ब्रूनाई के साथ भी झगड़े हैं। चीन एक विस्तारवादी ताकत है जिसे संभालने के लिए पड़ोसी देश इकट्ठा हो रहे हैं। भारत और जापान दोनों चीन के सताऐ हुए हैं इसलिए चीन की आपत्ति के बावजूद हम दोनों देशों के बीच गर्मजोशी का नया माहौल देख रहे हैं। ठीक वैसा जैसा कभी ‘भारत-चीनी भाई-भाई’ के समय था। असली ‘चमत्कार’ इधर हो रहा है। और यह वह चमत्कार है जिसे भारत की जनता का भरपूर समर्थन है।

चीन खुद श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार आदि से हमारे खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहा है लेकिन अगर हम आस्ट्रेलिया तथा जापान से सम्बन्ध बेहतर करते हैं तो वह उत्तेजित हो जाता है। लद्दाख में घुसपैठ के बाद भारत की हिन्द महासागर-प्रशांत महासागर क्षेत्र में सक्रियता बढ़ेगी। जापान का टापुओं को लेकर चीन के साथ गहरा विवाद है जो कभी युद्ध की शकल भी ले सकता है। अमेरिका की इधर ताकत और रूचि धीरे-धीरे कम हो रही है। यह स्पष्ट नहीं कि एशिया की सुरक्षा को लेकर वह किस हद तक जाने को तैयार है? भारत तथा अमेरिका का रिश्ता भी दिशाहीन सा हो गया है। जिस तरह अमेरिका ने तालिबान से अपनी वार्ता से हमें बाहर रखा है, और अफगानिस्तान को तालिबान को सौंपने की तैयारी हो रही है यह हमारी सुरक्षा के लिए भारी चुनौती है। दोहा में तालिबान को दफ्तर खोलने की इजाजत दी गई है। हमारी आपत्तियों की परवाह नहीं की गई। उनके विदेशमंत्री जॉन कैरी की भारत यात्रा से शायद कुछ अविश्वास कम हो। हमें अपनी बात सख्ती से कहनी चाहिए। यह सौदेबाजी हमें अमान्य है। इसके हमारी सुरक्षा के लिए दुष्परिणाम निकलेंगे। वाशिंगटन के साथ नई दिल्ली का रिश्ता मुरझाया सा लग रहा है। शायद इसलिए कि यह सरकार अपने अंतिम चरण में दाखिल हो गई है। उधर कई मतभेदों के बावजूद वाशिंगटन तथा बीजिंग एक बार फिर आपसी जोश दिखा रहे हैं। बहुत दशक जापान ने हमारी उपेक्षा की है लेकिन अब स्थिति बदल रही है। इस साल हमारी कमज़ोर आर्थिक प्रगति के बावजूद हमारी अर्थव्यवस्था जापान को पछाड़ कर अमेरिका तथा चीन के बाद विश्व में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाली है। हमारी सैनिक ताकत भी बढ़ रही है। चाहे चीन हर क्षेत्र में हमसे बहुत आगे है लेकिन अगर एशिया में ताकत का संतुलन कोई देश कायम कर सकता है तो वह भारत ही है।

प्रधानमंत्री ने जापान को ‘स्वाभाविक तथा भरोसेमंद’ भागीदार करार दिया है। जापान के साथ हमारा कोई झगड़ा नहीं इसीलिए दोनों का नजदीक आना दोनों के लिए ‘विन-विन’ स्थिति है। पहले भारत हाथ मिलाने से हिचकचाता था पर लद्दाख में चीन की घुसपैठ ने जहां एक बार फिर उस देश के साथ रिश्तों की नाज़ुकता को स्पष्ट कर दिया वहां जापान के साथ रिश्तों को घनिष्ठ करने की जरूरत भी स्पष्ट कर दी। यह चीन को चुभ रहा है जो खुद दशकों से पाकिस्तान के साथ ‘हर मौसम की दोस्ती’ का खुला बयान करता आ रहा है। भारत और जापान एक दूसरे की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का प्रयास करेंगे। धीरे-धीरे अपनी हिचकिचाहट छोड़ जापान सशक्तिकरण की तरफ बढ़ रहा है जहां भारत मददगार हो सकता है। परमाणु सहयोग को लेकर अभी मतभेद हैं लेकिन जैसा माहौल है ये भी हल कर लिए जाएंगे।

चीन एशिया में सबसे बड़ी ताकत है उसकी उपेक्षा नहीं हो सकती है लेकिन बहुत जरूरी है कि उसे भी समझा दिया जाए कि हम उसके मिज़ाज़ की मेहरबानी पर ही निर्भर नहीं हैं। भारत तथा जापान के बीच रिश्तों की जो क्षमता है उसका अभी पूरा दोहन होना बाकी है। मनमोहन सिंह तथा शिंजो अबे ने सही तौर पर अब इधर ध्यान दिया है। अपनी बढ़ी हुई आयु के बावजूद जापान के सम्राट तथा सम्राज्ञी वर्षांत तक भारत की यात्रा करेंगे। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा श्रीमती गुरशरण कौर को लंच पर भी बुलाया जबकि जापानी परम्परा है कि ऐसा सम्मान केवल राष्ट्राध्यक्षों को दिया जाता है। ऐसी सद्भावना से निश्चित तौर पर बीजिंग का ज़ायका खराब हुआ है लेकिन इसके लिए खुद चीन तथा उसकी धक्केशाही जिम्मेदार है। उसने सारे दक्षिण तथा पूर्वी एशिया में उद्दंड मचाकर बाकियों को इकट्ठा आने के लिए मजबूर कर दिया है। हिन्दी-जापानी भाई-भाई? रिश्ते अभी उस जगह तक तो नहीं पहुंचे लेकिन दोनों देश चल उसी दिशा की तरफ रहे हैं।

-चन्द्रमोहन

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.

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