विनाश की राजनीति

विनाश की राजनीति

गौरीकुंड के नजदीक हेलीकाप्टर दुर्घटना में वायुसेना, आईटीबीपी तथा एनडीआरएफ के 20 अफसर और जवान मारे गए। तंग वादियों और बादलों से घिरे ऊंचे पहाड़ों से लोगों को हेलीकाप्टरों से निकालने के लिए हमारे अफसर तथा जवान दिन-रात लगे रहे। एयर चीफ मार्शल एनएके बाऊन ने फंसे हुए लोगों से वायदा किया था कि वह एक-एक को वहां से निकालेंगे। यह वायदा लगभग पूरा हो गया है। हजारों निकाले गए। अभियान खत्म होने वाला था कि यह दर्दनाक हादसा हो गया। एयर चीफ मार्शल का फिर कहना है कि अभियान चलेगा जब तक हर व्यक्ति बाहर नहीं निकाला जाता। अपने सुरक्षा बलों के इस जज्बे को देश का सलाम! उनकी जवानी, उनकी बहादुरी, उनके संकल्प, उनकी देशभक्ति, उनकी सेवा भावना, उनके अनुशासन, उनकी कुर्बानी को सलाम! जब विपत्ति खत्म हो जाती है तो हम इन्हें भूल जाते हैं लेकिन उत्तराखंड की त्रासदी ने एक बार फिर बता दिया कि देश के सर्वश्रेष्ठ हमारे सुरक्षाबलों में हैं। अपनी जान की परवाह किए बिना इन्होंने हजारों को दुर्गम रास्तों से निकाल सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। हमने वह तस्वीर भी देखी है कि एक नाले को पार करवाने के लिए दोनों तरफ रस्सियां लगा लकड़ी के फट्टो की जगह जवान खुद लेटे हुए थे। एक तरफ पैर फंसाया तो दूसरी तरफ रस्सी पकड़ी और उनके ऊपर से लोगों ने यह नाला पार किया। ऐसी बहादुरी कहां मिलेगी? यह तस्वीर तो हर सरकारी दफ्तर, प्रधानमंत्री कार्यालय समेत, में लगनी चाहिए ताकि याद रहे कि देश के प्रति समर्पण क्या है? फंसे हुए लोगों के लिए तो वे देवदूत थे। आईटीबीपी की आठवीं बटालियन के कमांडिंग अफसर का कहना है कि कई जवानों ने छुट्टी पर जाने से मना कर दिया। जो छुट्टी पर थे वे इस हादसे का सुन लौट आए। कई जवान उत्तराखंड से तथा पहाड़ी क्षेत्रों से हैं इसलिए भी वह राहत कार्य का हिस्सा बनना चाहते हैं। कमांडिंग अफसर का कहना है कि ‘लडक़े कहते हैं, साहिब कागज़ पर छुट्टी दे दो पर रखो यहां ही।’ अर्थात् अपनी छुट्टियां गंवा कर वे राहत में लगे रहना चाहते हैं। आईटीबीपी के 15 जवान इस हेलीकाप्टर हादसे में शहीद हो गए।

ऐसा जज्बा कहां मिलेगा? इस घोर त्रासदी में यह सुनहरी किरण है कि देश के प्रति सेवा भावना अभी खत्म नहीं हुई। लेकिन जहां ये अफसर तथा जवान अपनी जान जोखिम में डाल कर लोगों को बचाने के लिए लगे हुए हैं वहीं हमारे नेता एक बार फिर शर्मनाक ढंग से राष्ट्रीय आपदा पर अपनी रोटियां सेंकने में लगे हैं। सब अपने- अपने को मसीहा साबित करने में लगे हैं। बाकी देशों में ऐसी विपदा के समय नेता दूर रहते हैं ताकि राहत में बाधा न पड़ जाए। अमेरिका में ऐसी विपदा के समय कोई राजनीति नहीं होती जब सब संभल जाता है तो राष्ट्रपति खुद जाकर पीड़ित परिवारों से मिलते हैं और उन्हें गले लगाते हैं। यहां प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी के साथ हवाई सर्वेक्षण कर संतुष्ट हो गए। किसी को गले लगाना तो दूर की बात है प्रधानमंत्री का चेहरा तो बताता है कि जैसे कोई मनोभाव नहीं है चेहरा मैडम टूसाड के मोम संग्रहालय से निकाला हो। वीआईपी रश से राहत कार्य में विघ्न पड़ता है। उनके हेलीकाप्टर का इस्तेमाल तो लोगों को निकालने के लिए किया जाना चाहिए था लेकिन 24&7 टीवी कवरेज के ज़माने में सब कैमरे के आगे चिंतित नज़र आना चाहते थे। गृहमंत्री बनने के बाद सुशील कुमार शिंदे ने पहला समझदार बयान दिया कि वीआईपी हेलीकाप्टर को नहीं आने दिया जाएगा। पर शाम को ही उनके आदेश की धज्जियां उड़ाते राहुल गांधी अपने काफिले के साथ वहां घुस गए। 16 तारीख को यह विपदा शुरू हुई आठ दिन राहुल कहीं गायब रहे जब आलोचना शुरू हो गई कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष कहां हैं तो वे लौट आए। फिर नाटकीय स्टाइल में मां-बेटे ने राहत के लिए 25 ट्रकों को झंडी दी। बाद में वह संख्या 125 बन गई। क्या चुपचाप ट्रक ऊपर भेजे नहीं जा सकते थे? हर चीज का बालीवुड स्टाइल तमाशा बनाना है? यह ट्रक भी ऋषिकेश जाकर रूक गए क्योंकि डीजल के लिए पैसा नहीं था और ड्राईवरों को मालूम नहीं था कि किधर जाना है? फिर राहुल हेलीकाप्टर में कहीं घूमते रहे। ‘फोटो ओप’ की जरूरत पूरी की गई। और गृहमंत्री के इस बयान की धज्जियां उड़ा दी गई, कि वीआईपी हैलीकाप्टर में वहां न जाएं? अर्थात् नियम भी गांधी परिवार की सुविधा के अनुसार बदले जा रहे हैं। वहां कांग्रेस द्वारा भेजे ट्रकों में राहत सामग्री से यूथ कांग्रेस के पैम्फलेट भी निकल रहे हैं जिनमें सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह तथा राहुल गांधी के चित्रों के इलावा कांग्रेस का चुनाव चिन्ह भी बना हुआ। निश्चित तौर पर ये तबाह हुए पीडि़त लोग इस चुनाव चिन्ह को याद रखेंगे! नम्बर बनाने के प्रयास में पंजाब सरकार ने भी अपना जलूस निकाला। बताया गया कि विदेश बैठे मुख्यमंत्री तथा उपमुख्यमंत्री के आदेश पर पहले दिन से लोगों को निकाला गया जबकि पहले तीन दिन हेलीकाप्टर ने एक भी सौरटी नहीं भरी।

2011 में भूकंप की सुनामी से जापान में 16,000 लोग मारे गए थे। चुपचाप मर्यादा के साथ उन्होंने त्रासदी का सामना किया। टीवी चैनलों ने भी संयम दिखाया। कोई रोना धोना नहीं, कोई लड़ाई झगड़ा नहीं। इसकी तुलना में हमारे राजनेताओं का आचरण शर्मनाक रहा। जिस दिन केदारनाथ क्षेत्र में अज्ञात शवों की पहली चिता जलाई गई उसी दिन देहरादून में कांग्रेस तथा तेलगू देशम पार्टी के सांसदों के बीच यात्रियों को निकालने का श्रेय लेने को लेकर हाथपाई हो गई। यह शर्मनाक दृश्य सारे देश ने अपने टीवी सैट पर देखा। हमारे लच्चर राजनीतिज्ञों की तुलना जब जवानों से की जाएं तो मालूम होता है कि वास्तव में देश प्रेम का जज़्बा कहां हैं? नेताओं को लोगों की चिंता नहीं केवल नम्बर बनाने की है। जहां नेता अपनी राजनीति कर रहें है वहां उत्तराखंड की त्रासदी इतनी विशाल और भयानक है कि अभी पूरा अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता है। जीवित को बचाने के बाद मृतकों की तलाश शुरू हो रही है। हजारों लोग अपने संबंधियों की तलाश कर रहे हैं। कई गांव है जहां केवल विधवाएं बची हैं, सब पुरुष बह गए हैं। पूरे पहाड़ के पहाड़ गिर गए हैं और कई टन मलबे के नीचे जो कुछ भी आया वह दब गया। हर दिन गुजरने के बाद और जीवित लोगों के मिलने की संभावनाएँ कम होती जा रही हैं। हजारों का रोजगार पानी में बह गया। बाकी तमाशा नेताओं ने खड़ा कर दिया। सुषमा स्वराज ने उत्तराखंड की बहुगुणा सरकार को बर्खास्त करने की मांग की है। यह सही है कि यह सरकार अक्षम और लापरवाह रही है। उत्तराखंड की सरकार वास्तव में एक स्कैंडल से कम नहीं। ISRO  तथा मौसम विभाग की समय रहते चेतावनी के बावजूद वह सोई रही, मुख्यमंत्री खुद दिल्ली में डटे रहे। हजारों लोग बचाए जा सकते थे। पर फिर भी इस नाजुक समय इस सरकार को बर्खास्त करने की मांग का समर्थन नहीं किया जा सकता। उत्तराखंड में प्रशासनिक शून्य पैदा नहीं होना चाहिए कुछ समय गुजर जाने के बाद किसी काबिल प्रशासक को वहां लगाना चाहिए क्योंकि प्रदेश का ही नहीं, लोगों की जिंदगियों का पुनर्निर्माण करना है। यह काम राजनीति से दूर रख होना चाहिए। पर अब फिर माननीय ट्विटर युद्ध में लगे हुए हैं। क्या कुछ दिन रुक नहीं सकते थे? अभी तो मृतकों की चिताएँ भी ठंडी नहीं हुई। हरिद्वार में राजनीतिक दलों ने बैनर लगा अपने-अपने राहत कैंप लगा लिए हैं। अर्थात् पहले हम विकास की राजनीति देखते थे, अब हम विनाश की राजनीति देख रहे हैं।

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About Chander Mohan 741 Articles
Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.

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  1. रियली व् nyc !!!

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