अंदर गीदड़ बाहर शेर
पंजाब में ई-ट्रिप था। कालोनाईजर के मामले में कुछ रियायतें दी गई हैं। जिस पर पंजाब भाजपा के अध्यक्ष कमल शर्मा का दावा है कि भाजपा के दबाव में सरकार को ये रियायतें देनी पड़ी हैं पर उल्लेखनीय है कि दोनों कदमों को वापिस नहीं लिया गया। मामूली संशोधन करवा मामला खत्म किया जा रहा है। इसी तरह जब शहरी आबादी पर जायदाद टैक्स लगाया गया तो लोगों के शोर मचाने के बाद कुछ रियायतें दे दी गई लेकिन कदम वापिस नहीं लिया गया। पंजाब सरकार की वित्तीय हालत कमजोर है। सरकार खर्चे घटाने की कोशिश नहीं कर रही इसलिए टैक्स लगाए जा रहे हैं। क्योंकि बादल परिवार ग्रामीण क्षेत्र को छेड़ना नहीं चाहता इसलिए जो भी कदम उठाए जाते हैं, चाहे बिजली की दरें बढ़ाना हो, या ई-ट्रिप हो या कालोनाईजर का मामला हो, ये शहरी वर्ग के खिलाफ ही उठाए जाते हैं। इसलिए शहरों में इस वक्त इस सरकार का उग्र विरोध हो रहा है और तीखी सरकार विरोधी भावना है। बादल के दूसरे शासन काल की हालत भी मनमोहन सिंह के दूसरे शासन काल जैसी ही है। मनमोहन सिंह II की तरह बादल II का भी ग्राफ गिर रहा है। प्रशासन में वह चुस्ती नजर नहीं आती जो पहले कार्यकाल में थी। वित्तीय स्थिति अत्यंत नाजुक है। इसलिए नए-नए टैक्स लगाए जा रहे हैं। उत्तर में पैट्रोल सबसे अधिक पंजाब में महंगा है, लेकिन लोग बेबस हैं क्योंकि सुखबीर बादल एक बार जो कदम उठा लेते हैं वापिस नहीं लेते और दूसरा, प्रदेश भाजपा न केवल कमजोर है बल्कि उसने अकाली नेतृत्व के आगे घुटने भी टेक दिए हैं। पंजाब भाजपा अब पूरी तरह से नंगी हो गई है क्योंकि सुखबीर बादल ने खुला कहा है कि मंत्रिमंडल में जो भी निर्णय लिए जाते हैं जिनका विरोध भाजपाई बाहर करते हैं, वे भाजपा के मंत्रियों की सहमति से लिए जाते हैं।
इसका अर्थ है कि भाजपा पंजाब के लोगों को धोखे में रख रही है। खुद को शहरियों और विशेषतौर पर व्यापारियों का हितैषी बताने वाली भाजपा मंत्रिमंडल की बैठक में उनके हित में खामोश रहती है। प्रकाश सिंह बादल और विशेष तौर पर सुखबीर सिंह बादल के सामने वे मुंह तक नहीं खोलते। अंदर गीदड़ बने रहते हैं बाहर आकर जरूर शेर बन जाते हैं। भाजपा दोहरी नीति पर चलती है। ऊपर से व्यापारियों और शहरियों की हितैषी बनती है पर जब इनके खिलाफ कदम उठाए जाते हैं तो मंत्रिमंडल में, जहां असली विरोध होना चाहिए, इन्हें चुपचाप स्वीकार कर लेती है। मेरी सूचना है कि किसी के मुंह से विरोध तक का स्वर नहीं निकलता। उनकी नीति अंग्रेजी के मुहावरे की तरह है कि वह खरगोश के साथ दौड़ते भी हैं और शिकारी कुत्तों के साथ शिकार भी करते हैं। अभी तक यह नीति सफल भी रही लेकिन अब जब कि उपमुख्यमंत्री ने खुद भाजपा के मंत्रियों की नपुंसकता सार्वजनिक कर दी हैं, पार्टी के लिए बचाव करना मुश्किल हो रहा है। अब वे बेनकाब हो गए हैं।
पंजाब में भाजपा की कभी भी इतनी फजीहत नहीं हुई थी जितनी अब हो रही है। जब तक प्रकाश सिंह बादल के हाथ में सत्ता थी वे फिर भी भाजपा का कुछ, अधिक नहीं, ध्यान रखते थे। सुखबीर बादल भाजपा की बिल्कुल परवाह नहीं करते। सुखबीर का हर फरमान उन्हें मानना पड़ता है। सुखबीर को परवाह करने की अधिक जरूरत भी नहीं क्योंकि उनके पास अपना बहुमत है और वे भाजपा पर निर्भर नहीं हैं। यह वह ही नीति है जो कभी हरियाणा में ओम प्रकाश चौटाला ने अपनाई थी जिसका चौटाला को भी भारी नुकसान हुआ था। अगर भाजपा से संबंध विच्छेद न होता तो आज हरियाणा में चौटाला के नेतृत्व में इनैलों की सरकार होती और शायद वे जेल में भी न होते। पर यह अलग बात है। इस वक्त तो सुखबीर बादल भाजपा के प्रति बेपरवाह है। यह नीति बहुत समझदारी नहीं दिखाती क्योंकि अगर भाजपा कमजोर होगी तो कांग्रेस को ही बल मिलेगा, और मिल रहा है। हर बार सरकार शहरी ही बनाता है। जिस तरफ उसका झुकाव होता है उसकी ही सरकार बनती है। अगर सरकार का शहरी की तरफ यही सौतेला रवैया रहा तो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को फायदा होगा। इसलिए आजकल कांग्रेस का नेतृत्व भी इतना मुखर हो रहा है। अगर अरुण जेतली अमृतसर से चुनाव लड़ने के बारे सोच रहे हैं तो उन्हें विचार त्याग देना चाहिए। पंजाब भाजपा की समस्या उनका हाईकमान भी है जिसने उन्हें अकालियों के हवाले कर दिया है। भाजपा के पास केवल दो सहयोगी, अकाली दल तथा शिवसेना रह गए हैं। अकाली दल को इस वक्त वे नाराज नहीं कर सकते, चाहे अकाली नेतृत्व भाजपा को यहां रौंद रहा है।
लोकसभा के चुनाव में अभी कुछ महीने हैं। अगर भाजपा अपना घर सही कर ले और अपनी दब्बु छवि बदल ले तो कुछ बचाव हो सकता है पर पंजाब भाजपा को चलाने वाली त्रिमूर्ति, भगत चूनी लाल, मदन मोहन मित्तल तथा कमल शर्मा में इतना दम नहीं कि वे बादलों का सामना कर सकें। भगत चूनी लाल, जो भाजपा विधायक दल के नेता भी हैं, की दुर्गति तो तब देखने वाली थी जब उनके शहर जालन्धर पीएपी में सुखबीर बादल के कार्यक्रम में उन्हें कोई अहमियत नहीं दी गई। वास्तव में वहां केवल चूनी लाल की ही नहीं बल्कि सभी मौजूद भाजपाई नेताओं की फजीहत हुई। इस कार्यक्रम में भाजपा विधायक दल के नेता की मौजूदगी के बावजूद उनका नाम तक नहीं लिया गया। इसी से सारे पंजाब को यह संदेश मिल गया कि पंजाब के उपमुख्यमंत्री के मन में भाजपा नेताओं की कितनी कीमत है। लगभग यही हालत मदन मोहन मित्तल की है। दोनों चूनीलाल तथा मदन मोहन मित्तल की आयु तथा सेहत उन्हें सक्रिय नहीं बनाते। यही स्थिति प्रदेश प्रभारी शांताकुमार की भी है जिन्होंने हिमाचल में तो धूमल सरकार की नाक में दम कर दिया था पर पंजाब में बिल्कुल खामोश है। जब तक बलबीर पुंज प्रभारी रहे भाजपा सक्रिय रही अब लावारिस है। कमल शर्मा युवा हैं उत्साही हैं पर वह स्तर नहीं कि बादल पिता-पुत्र का सामना कर सकें। वे पंजाब में भाजपा के पतन की अध्यक्षता कर रहे हैं।
पंजाब भाजपा में स्थिति शोचनीय है। क्या कुछ परिवर्तन आ सकता है? मैं समझता हूं कि जब तक इस त्रिमूर्ति को बदला नहीं जाता कोई सुधार नहीं होगा। भाजपा के नेता गरजते रहेंगे, बरसेंगे नहीं। बरसेगी पंजाब की जनता लोकसभा चुनाव में जिनके साथ पंजाब भाजपा के वर्तमान नेतृत्व ने धक्का किया है जिसके बारे यही कहा जा सकता है,
आशियां की खैर मांगी थी कि बिजली गिर पड़ी
अब दुआएं कोई करता हैं तो लरज़ जाता हूं मैं!?
अंदर गीदड़ बाहर शेर,
बहुत जानदार समीक्षा है …बादलों के सामने अगर कोई कदावर नेता आ जाये तो ही बात बनेगी .