आतंक पर राजनीति

आतंक पर राजनीति

19 सितम्बर 2008 को दिल्ली के जामिया नगर क्षेत्र के बटला हाऊस में हुई मुठभेड़ को अदालत ने सही ठहराया है। इस मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस के इंस्पैक्टर मोहन चंद शर्मा शहीद हो गए। आतंकी शहजाद अहमद ने मोहन चंद शर्मा की हत्या की थी जिसका दोषी अब निचली अदालत ने उसे करार दिया है। अब यह मामला साफ हो गया है, नहीं तो इस मुठभेड़ के बाद कई कांग्रेसी नेताओं ने इसे फर्जी बताया था। विशेषतौर पर महासचिव दिग्विजय सिंह बहुत मुखर और असंतुलित हो गए थे। दिग्विजय सिंह ने शहीद इंस्पैक्टर के परिवार के प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई पर आतंकियों के परिवारों के आंसू पौंछने पहुंच गए। मुलायम सिंह यादव को भी मुस्लिम वोटों की चिंता रहती है। उन्होंने भी इस मुठभेड़ को फर्जी करार दिया था। सलमान खुर्शीद भी पीछे नहीं रहे। उत्तर प्रदेश में एक चुनावी सभा में उन्होंने लोगों को बताया कि ‘जब इस मुठभेड़ की तस्वीरें मैंने सोनिया गांधी को दिखाई तो उनके आंसू फूट पड़े।’ विवाद खड़े होने के बाद सोनिया ने इस बात का प्रतिवाद किया कि उनके आंसू निकले थे लेकिन सलमान खुर्शीद के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। उलटा उन्हें विदेशमंत्री बना दिया गया।

यह कैसे लोग हैं जो आतंकवाद पर भी राजनीति कर रहे हैं सिर्फ इसलिए कि उन्हें मुस्लिम वोट की चिंता है?  उस वक्त इस मुठभेड़ पर सवाल उठाए गए जब दिल्ली पुलिस और केंद्रीय तथा दिल्ली सरकारें इस मुठभेड़ को सही करार दे रही थी। पी. चिदंबरम जो गृहमंत्री थे ने भी इसे सही करार दिया था। आज भी चिदम्बरम का कहना है कि तब उन्होंने सभी प्रमाण तथा दस्तावेज देखे थे और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि मुठभेड़ असली है। 2009 में ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस मुठभेड़ को सही करार दिया था। दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इसे सही कहा जिस बात का अनुमोदन सुप्रीम कोर्ट ने भी किया। पर नहीं, कांग्रेस को कुछ नेता जो अधिक जानते हैं यही प्रचार करते रहे कि यह सब फर्जी था। दिग्विजय सिंह का आज भी कहना है कि जो उन्होंने कहा वह गलत नहीं था। हैरानी है कि कांग्रेस पार्टी ने इन पर लगाम लगाने की कोशिश नहीं की।

बड़े खेद की बात है कि उस पार्टी जो देश में सरकार चला रही है, के वरिष्ठ  नेता ही अपनी ही पुलिस की कार्रवाई को झूठा कह रहे हैं। दिल्ली पुलिस तो गृह मंत्रालय के सीधे नीचे आती है पर फिर भी मुस्लिम वोट इकट्ठा करने की फिराक में ये लोग बहक गए और आज तक बहक रहे हैं। उन्होंने तो यह कहना भी शुरू कर दिया कि मोहन चंद शर्मा आतंकवादियों की गोली से नहीं मारे गए बल्कि पुलिस की गोली से मारे गए। अर्थात्  पुलिस ने अपने ही अधिकारी की हत्या कर दी। क्या पुलिस की कार्रवाई पर अनावश्यक सवाल कर वे एक तरफ लोगों में पुलिस के प्रति मुसलमानों में अविश्वास नहीं बढ़ा रहे और दूसरी तरफ पुलिस का मनोबल नहीं गिरा रहे? कौन पुलिस वाला आतंकवादियों से निबटने का प्रयास करेगा जब उसे पता है कि बाद में कांग्रेस के माननीय नेताओं ने उसे कटघरे में खड़ा कर देना है? इस राजनीति का एक और बुरा असर होगा। हर परिवार अपने बच्चे को बेकसूर समझता है चाहे वह इंडियन मुजाहिद्दीन का सदस्य क्यों न हो। उनकी यह भावना कि जानबूझ कर उनके बच्चों को निशाना बनाया जा रहा है और मजबूत होगी।

भारत बुद्ध का देश है। उनकी जन्मभूमि तो नहीं उनकी कर्मभूमि अवश्य है। यहां से उनका अहिंसा और शांति का संदेश दुनिया भर में फैलाया गया। वे हमारे महापुरुष हैं, हमारे पूजनीय हैं। उनके धर्म स्थानों को सुरक्षा देना हमारा धर्म है। जब बर्मा में बौद्ध और मुसलमानों में टकराव हुआ था तब ही हमें चौकस हो जाना चाहिए था। अफसोस है कि हमारी व्यवस्था एक बार फिर लच्चर और अक्षम निकली। हम कोई सबक सीखने को तैयार नहीं। महाबोधि मंदिर में 13 बम लगाए गए थे। इसे तो एक प्रकार से आतंकियों की मेहरबानी ही कहा जा सकता है कि जानी नुकसान नहीं हुआ क्योंकि जहां तक हमारी व्यवस्था का सवाल है वह तो ऐसी स्थिति के लिए बिल्कुल बेतैयार थी। बिहार सरकार को ऐसी ही किसी घटना के लिए बार-बार चेतावनी दी गई है। डेविड हैडली की एनआईए द्वारा अमेरिका में पूछताछ के दौरान उसने बताया था कि लश्करे तोयबा ने बोधगया मंदिर की वीडियो फिल्म बनाई है और वे वहां विस्फोट करना चाहते हैं। पकड़े गए इंडियन मुजाहिद्दीन के सदस्य सईद मकबूल ने भी पुलिस को बताया था कि बोधगया पर हमला करने की उनकी योजना है। दिल्ली पुलिस ने भी बिहार पुलिस को चेतावनी दी थी कि बोधगया पर हमला हो सकता है। आईबी ने विशेषतौर पर बताया था कि म्यांमार में मुसलमानों पर बौद्ध अत्याचार के बाद भारत में बौद्ध तीर्थस्थानों पर हमले हो सकते हैं लेकिन आदत के अनुसार हम लापरवाह रहे। मंदिर की सुरक्षा इतनी लच्चर थी कि 13 बम रखे गए किसी को पता नहीं चला।

यह अक्षमता केवल बिहार तक ही सीमित नहीं थी। केंद्र का भी वही हाल है। दिल्ली से पटना पहुंचने के लिए एनआईए की टीम को 13 घंटे लग गए। जिस पुराने एवरो विमान से दिल्ली से भेजा गया उसे रास्ते से लौटना पड़ा। फिर दूसरे विमान से भेजा गया। यह क्या नालायकी है? हम एमरजैंसी के समय सही विमान भी उपलब्ध नहीं करवा सकते? मुंबई पर 26/11 के समय भी यही अक्षमता नजर आई थी। एनएसजी की टीम को पहुंचने में घंटो लग गए क्योंकि पहले विमान मिला नहीं, जब मिला तो पुराना था। बहुमूल्य समय दिल्ली से मुंबई पहुंचने में गंवा दिया गया जिस प्रकार अब दिल्ली से पटना तक पहुंचने में गंवा दिया गया। तत्काल प्रतिक्रिया के लिए हमारे सुरक्षा बल आज भी तैयार क्यों नहीं हैं? एनआईए ने बिहार सरकार को चेतावनी दी थी कि बिहार भर्ती का नया केंद्र बन रहा है पर अल्पसंख्यक वोट की चिंता में कुछ नहीं किया गया। पहले बिहार आतंकियों का ट्रांसिट प्वाईंट था जो बिहार के रास्ते नेपाल से भारत में प्रवेश करते थे लेकिन अब यह बड़ा केंद्र बन गया है। पिछले कुछ वर्षों में इंडियन मुजाहिद्दीन के जो 14 आदमी पकड़े गए हैं उनमें से 13 बिहार से है। खुद गृहमंत्री शिंदे ने माना है कि चेतावनियों के बावजूद बिहार सरकार ने चौकसी नहीं दिखाई। क्या नीतीश कुमार ने समझ लिया था कि वे ‘सैक्यूलर’ हैं इसलिए जेहादी उनके बारे दयालु रहेंगे? अफसोस है कि  हम राजनीति करने में इतने व्यस्त रहते हैं कि शासन हाथ से फिसल जाता है। भारत बार-बार जेहादियों के निशाने पर है, फिर भी हम इस खतरे के लिए तैयार नहीं। हमें समझना चाहिए कि भारत पर सीमा पार से बार-बार हमला करवाया जाएगा। मनमोहन सिंह को नवाज शरीफ से  स्पष्ट  बात करनी चाहिए कि तब तक सामान्य रिश्ते नहीं हो सकते जब तक हाफिज सईद जैसों पर वे लगाम नहीं लगाते। हम उन्हें अंधेरे से निकालने के लिए बिजली दें और उनके लोग यहां, और अब जलालाबाद में, विस्फोट करते रहें। नियंत्रण रेखा पर हमारे गश्ती दल पर पाक सेना के हमले में 5 जवान शहीद हो गए। यह बिल्कुल स्वीकार नहीं है। माकूल जवाब देने की जरूरत है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.

1 Comment

  1. जिन्हेँ आतंकियों की जी हजूरी से फुरसत नहीं वे माकूल जवाब क्या देंगे ?

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