खाक हो जाएंगे हम उनको खबर होने तक
मैं अर्थशास्त्री नहीं हूं। बीए में साधारण इकनामिक्स किया था। वह भी लगभग 40 वर्ष पहले। इसलिए देश के आगे जो गंभीर आर्थिक संकट है इसका कोई समाधान मेरे पास नहीं हैं। मैं नहीं बता सकता कि रूपया कैसे मजबूत हो, घाटा कैसे कम हो या आर्थिक दर में फिर से गति कैसे आए? लेकिन मैं स्पष्ट हूं कि यह मेरा काम भी नहीं है। आंकड़ों के खेल से मुझे कुछ लेना-देना नहीं। मैं भारत का नागरिक हूं। ईमानदारी से टैक्स देता हूं। चुनाव में वोट डालता हूं। कानून में मेरा विश्वास है। अर्थात् मैं अपने संवैधानिक दायित्व के प्रति गंभीर हूं। इसलिए मैं समझता हूं कि मेरा अधिकार बनता है कि मुझे सही शासन मिले। भ्रष्टाचार कम हो, महंगाई कम हो और अच्छी साफ-सुथरी जिंन्दगी मिले। पर यहीं नहीं हो रहा है। इसलिए बाकी देश की जनता (शासक वर्ग को छोड़ कर) के साथ मैं भी उत्तेजित हूं कि यह हो क्या रहा है? क्या हम मात्र वोटर ही हैं, हमें अच्छा शासन प्राप्त करने का अधिकार नहीं है? देश में निराशा का माहौल बढ़ रहा है। कुछ ही वर्ष पहले तक विदेशों में रह रहे भारतीय प्रोफैशनल्स वापिस लौट रहे थे क्योंकि भारत को उभरती आर्थिक ताकत समझा जाता था। अब फिर पलायन शुरू हो रहा है। केवल पढ़े-लिखे भारतीय ही बाहर नहीं जा रहे बल्कि पैसा भी धड़ाधड़ बाहर निकल रहा है। और निकालने वाले केवल विदेशी ही नहीं, भारतीय भी हैं। इन पिछले कुछ महीनों में अरबों डॉलर बाहर निकल गया है। प्रधानमंत्री का संसद में भाषण सुना। वह तो अपने सिवाए बाकी सबको इस हालत के लिए दोषी ठहरा रहे थे। हम चारों वर्षों में सबसे कम 4.4 प्रतिशत की विकास दर पर गिर गए हैं पर प्रधानमंत्री किसी भी बात की जिम्मेवारी अपने पर लेने के लिए तैयार नहीं चाहे वह महाभ्रष्टाचार हो या अर्थव्यवस्था का कुप्रबंध हो। पहले कोयला ब्लाक आबंटन में घपला हुआ। अब इससे संबंधित फाईलो में घपला हो गया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है कि वह इन फाईलों के ‘कस्टोडियन’ अर्थात् रखवाले नहीं है। एक आम नागरिक के तौर पर मुझे पूछने का हक है कि माननीय, अगर आप रखवाले नहीं तो कौन हैं? हमने तो देश आपको सौंप रखा है। डा. मनमोहन सिंह का कहना है कि वह राहुल गांधी के अधीन काम करने को तैयार है। प्रधानमंत्री ने अपने पद का और अवमूल्यन कर दिया। देश का 80 वर्षीय प्रधानमंत्री जिनकी, उनके अपने अनुसार भी, विदेशों में बड़ी प्रतिष्ठा है उस राहुल गांधी के मातहत काम करने के लिए तैयार हैं जिनकी एक ही योग्यता है कि उनका इस परिवार में जन्म हुआ है?
सवाल है कि अगर प्रधानमंत्री स्थिति के लिए जिम्मेवार नहीं तो फिर जिम्मेवार कौन है? भाजपा तो सरकार में है नहीं। तमाशा यह है कि रिसर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव खुला वित्तमंत्री पी. चिदंबरम को रगड़ा लगा चुके हैं तो वित्तमंत्री पी. चिदंबरम का कहना है कि अर्थव्यवस्था की खराब हालत 2009-2011 की नीतियों के कारण है। और 2009-2011 में वित्तमंत्री कौन थे? वे ही जिन्हें उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए इसी सरकार के नेतृत्व ने राष्ट्रपति भवन भेजा था और जो अपने पर हमले का जवाब नहीं दे सकते। प्रणब मुखर्जी वे व्यक्ति हैं जिन्होंने आठ वर्ष इस सरकार को हर संकट से निकालने का प्रयास किया। आज उन्हें यह ईनाम मिल रहा है कि उन पर पी. चिदंबरम के हमले पर प्रधानमंत्री खामोश रहे। आभास मिलता है कि ‘ब्लेम गेम’ शुरू है। यह मौका तब आता है जब सब कुछ बिगड़ जाता है। हमें सरकार तथा भाजपा के टकराव में भी कोई दिलचस्पी नहीं। हमारी तो यह चिंता है कि देश की हालत यह क्यों बन रही है?
आज देश का सबसे बड़ा सवाल प्रधानमंत्री की रहबरी का है। अर्थ व्यवस्था का इतना खस्ता हाल क्यों है कि भारतीय मूल के एक अंतर्राष्ट्रीय अर्थ विशेषज्ञ कह रहे हैं कि ‘भारत एशिया का बीमार आदमी है।’ न्यूयार्क टाईम्स में एक लेख में लिखा है कि ‘भारत की तस्वीर उस देश की उभर रही है जो अपनी अक्कड़ की चाल खो रहा है।’ हां, कुछ समय पहले तो अवश्य हमारी ‘अक्कड़ की चाल थी।’ आखिर एक वर्ष में चार बड़े देशों के नेताओं ने हमारे यहां दस्तक दी थी। आज वह समय इतना दूर क्यों लग रहा है? ब्रैंड इंडिया का अवमूल्यन हो रहा है। गिरती अर्थव्यवस्था का असर दूसरे क्षेत्रों में भी पड़ रहा है। चीन तथा पाकिस्तान अधिक दबंग हो रहे हैं और अमेरिका हमारी परवाह नहीं कर रहा। चीन और हमारे बीच फासला बढ़ रहा है और अमेरिका अफगानिस्तान के बारे हमारी चिंताओं को खातिर में नहीं ला रहा। हम फिर तीसरी दुनिया के देश बन गए हैं। इसीलिए मैं, एक आम मामूली व्याकुल नागरिक प्रश्न कर रहा हूं कि इस पतन के लिए कौन जिम्मेवार है? और यह कब तक चलता जाएगा?
प्रधानमंत्री का कहना है कि अर्थव्यवस्था के मूल्य तत्व (फंडामैंटल्स) मजबूत हैं। कौन उनसे सहमत होगा? जब विकास गिर रहा हो, मुद्रास्फीति बढ़ रही हो, घाटा बढ़ रहा हो, और रुपया गिर रहा हो तो मूल तत्व तो कमजोर हो ही गए है। अगर इन्हें सही करना है तो सरकार को खुद को चुस्त करना होगा और अनुत्पादक खर्चे कम करने होंगे। सरकार कहती है कि तेल की खपत कम करो। सरकार ने एक मिनट के लिए भी अपनी तेल खपत कम करने का विचार नहीं किया। सरकार खुद देश के आगे मिसाल कायम करे लेकिन जनता को तो कहा जा रहा है कि वह अपनी पेटी कसे लेकिन सरकार खुद ऐसा कोई कदम उठाने के लिए तैयार नहीं।
अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए जरूरी है कि खनन, औद्योगिक उत्पादन तथा बिजली उत्पादन के क्षेत्रों को चुस्त किया जाना चाहिए। कई मैगाप्रोजेक्ट अटके हुए हैं क्योंकि पर्यावरण मंत्रालय अनुमति नहीं देता। सभी मंत्री एक ही मंत्री परिषद के सदस्य हैं। वह इकट्ठे बैठ कर फैसले क्यों नहीं करते? अगर वे नहीं कर सकते तो प्रधानमंत्री को दखल देकर निर्णय करवाने चाहिए। सरकार की इस सामूहिक असफलता, लापरवाही तथा सुस्ती के कारण हमारी अर्थव्यवस्था तार-तार हो गई। नजर केवल वोट पर हैं। अब तो रत्न टाटा जिन्होंने कभी सरकार के खिलाफ कुछ नहीं कहा भी कह रहे हैं कि दुनिया का भरोसा डोल रहा है। हालत तो यह बन गई है कि देश के पास कोयले का दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा भंडार है लेकिन फिर भी हम कोयला आयात कर रहे हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि जिन्हें कोयले के ब्लाक बांटे गए उनमें से अधिकतर ने एक किलो कोयला बाहर नहीं निकाला। उधर उत्तर प्रदेश में हालात बेकाबू हो रहे है। गुजरात में 2002 के बाद कोई दंगा नहीं हुआ जबकि टॉप सैक्यूलरिस्ट मुलायम सिंह यादव की सरकार के इन 18 महीने में 40 बड़े छोटे दंगे हो चुके है। यादव पिता-पुत्र को समझना चाहिए कि सरकार को सही चलाने के लिए इफतार पार्टी में सफेद टोपी डालना ही पर्याप्त नहीं है। प्रशासन की लगाम कसने की जरूरत है। उधर वित्तमंत्री कह रहे हैं हमें यह करना चाहिए वह करना चाहिए। श्रीमानजी, करना तो आपने है मेरे जैसा आम नागरिक तो घबराहट में यही कह सकता हैं कि ‘खाक हो जाएंगे उनको खबर होने तक!’
अब तो एक ही रास्ता बचा है कि भगवान से प्रार्थना की जाए कि जल्द चुनाव हों और मुक्ति मिले और ऐसा नेतृत्व आगे आए जो निर्णायक हो, तुलनात्मक ईमानदार हो, जो विकास पर केंद्रित हो और जो देश को इस खाई से निकालने में सक्षम हो।
chander_m@ hotmail.com
खाक हो जाएंगे हम उनको खबर होने तक,
देश की इस बदहाली के लिए प्रधानमन्त्री ही जिम्मेवार हैं,राजगद्दी पर बैठे नीचे से लेकर शीर्ष नेता तक सब के सब इस में एक ही थैली के सिक्के हैं. सत्ता में बदलाव ही इसका इलाज है.
बहुत ही सही लेख है देश की इस बदहाली के लिए प्रधानमन्त्री ही जिम्मेवार हैं राजगद्दी की लालसा ही सुब कुछ है कई लोगो के लिए !