संभल कर
यह समाचार बहुत चिंताजनक है कि सेना ने पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह के समय एक विशेष खुफिया युनिट के गलत इस्तेमाल की सीबीआई द्वारा जांच की सिफारिश की है। मार्च में रक्षामंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी गई थी जिसमें जनरल वी के सिंह के समय टैक्निकल सुपोर्ट डिवीजन (टीएसडी) के गलत इस्तेमाल के बारे जानकारी दी गई थी। अब सरकार का कहना है कि क्योंकि मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है इसलिए इस पर कार्रवाई पूरी जांच के बाद होगी। अभी तक इस मामले में जो जानकारी बाहर आई है वह है,
1. टीएसडी अपने यंत्रों का दुरुपयोग करते हुए राजनीतिक नेतृत्व, जिसमें रक्षामंत्री तथा जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री भी शामिल थे, की जासूसी करती रही है।
2. सेना ने जम्मू-कश्मीर सरकार का तख्ता पलटने के लिए एक मंत्री गुलाम हसन मीर को 1.9 करोड़ रुपए दिए थे।
3. थलसेनाध्यक्ष बिक्रम जीत सिंह को चीफ बनने से रोकने के लिए फर्जी मुठभेड़ के मामले में उनके खिलाफ कश्मीर से पीआईएल करवाई गई। इसके लिए भी टीएसडी के खुफिया साधनों का इस्तेमाल किया गया।
जनरल वी के सिंह तथा इस सरकार के संबंध अच्छे नहीं रहे। अपनी आयु में परिवर्तन करवाने के लिए उन्होंने अशोभनीय सक्रियता दिखाई यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी गए। एक जनरल को अपने वरिष्ठ राजनीतिक नेतृत्व की बात मान लेनी चाहिए थी लेकिन उन्होंने अपना पद लड़ते-झगड़ते ही छोड़ा। सेना में परंपरा है कि अपने से वरिष्ठ की बात मानी जाती है। इस परंपरा का खुद सेनाध्यक्ष ने उल्लंघन किया था। वह जरूरत से अधिक सक्रिय रहे जिस कारण अंतिम महीनों में सेना की सुध लेने की जगह उनका ध्यान अपने व्यक्तिगत मामले पर केंद्रित हो गया। हमारे देश में राजनीतिक नेतृत्व सर्वोच्च है। राजनेता सेना के बॉस हैं। जनरल सिंह के कारण सेना तथा राजनीतिक नेतृत्व में अविश्वास बढ़ा था। उसके बाद भी जनरल सिंह ने अपने पद की गरिमा का ध्यान नहीं रखा। पहले वह अन्ना हजारे के आंदोलन में शामिल हो गए और फिर भटकते हुए रिवाड़ी में नरेंद्र मोदी की भूतपूर्वक सैनिकों की रैली में उन्हें देखा गया। ऐसा आभास मिलता है कि जनरल साहिब जिस उच्च पद से वे हटे हैं का राजनीतिक दोहन करना चाहते हैं। संविधान में इसकी पाबंदी तो नहीं है लेकिन इतने उच्च पद पर रह चुके व्यक्ति को उस पद की गरिमा के अनुसार आचरण करना चाहिए। वे वह सक्रियता दिखा रहे हैं जो आजकल किसी सेनाध्यक्ष ने नहीं दिखाई। मानकशाह भी इंदिरा गांधी को कुछ तेवर दिखाने के बाद शांत हो गए थे पर सरकार के खिलाफ अपनी रंजिश जनरल सिंह अभी तक पाले हुए लगते हैं।
लेकिन यह सब कहने के बाद उनके खिलाफ जो आरोप लगाए जा रहे हैं वे भी बहुत सवाल छोड़ते हैं:
(1) पहला सवाल टाईमिंग का है। रिवाड़ी में नरेंद्र मोदी की रैली में शामिल होने के कुछ ही दिन बाद यह मामला क्यों उछाला गया?
(2) अगर मामला ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ से जुड़ा है तो मार्च से लेकर सितंबर तक सरकार हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रही? अब भी कुछ करने की जगह इसे इंडियन एक्सप्रैस को लीक करवा दिया गया। इसी अखबार ने बताया था कि जनवरी 16-17 में सेना के दो युनिट दिल्ली की तरफ ‘कूच’ कर गए थे। इस खबर का सरकार ने प्रतिवाद किया था।
(3) अगर मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है तो क्या सरकार उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करेगी जिन्होंने इसे अखबार में लीक किया है?
(4) कहा गया कि 1.9 करोड़ रुपए से उमर अब्दुल्ला की सरकार को अस्थिर करने का प्रयास किया गया क्योंकि सेना को उमर अब्दुल्ला का एएफएसपीए के खिलाफ अभियान पसंद नहीं था। सवाल उठता है कि क्या 1.9 करोड़ रुपए में एक प्रादेशिक सरकार अस्थिर हो सकती है? इतनी छोटी रकम से तो आजकल नगर निगम में तख्ता पलटा नहीं जा सकता।
(5) अगर यह आरोप सच है तो जिस मंत्री को यह पैसा दिया गया वह अभी तक उमर की सरकार में मंत्री कैसे है?
(6) अगर कोई ऐसा खुफिया युनिट था तो वह अब कहां है? अफसर और जवान कहां हैं? हमारी सेना पाक सेना की तरह आजाद नहीं है। ऐसे किसी युनिट को खड़ा करने के लिए पूरी अनुमति चाहिए। पैसे का प्रबंध चाहिए। यहां कोई आईएसआई नहीं जिसके पास असीमित गुप्त फंड हैं।
मामला बहुत संवेदनशील है। सरकार की विश्वसनीयता संदिग्ध है क्योंकि इस रिपोर्ट को रिवाड़ी की रैली के तत्काल बाद लीक किया गया। कई पूर्व वरिष्ठ अफसर इन आरोपों को रद्द कर चुके हैं इसलिए सरकार को बहुत सावधानी से मामले से निबटना चाहिए। सेना की देश में बहुत इज्जत है। बहुत कम संस्थाएं रह गई हैं जिन पर देश को नाज है। सेना ऐसी एक संस्था है। इसमें बिगाड़ पैदा नहीं करना चाहिए। इस सरकार पर पहले ही आरोप है कि इसने कई संस्थाओं से अपने राजनीतिक हित के लिए खिलवाड़ किया है। सीएजी, आईबी, सीबीआई आदि सब कभी न कभी इस सरकार की राजनीति का शिकार हो चुके हैं। संसद खुद लोगों का विश्वास खो रही है। न्यायपालिका पर हमले हो रहें हैं। इसलिए सेना का अहित केवल इसलिए ही नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि आपको जनरल वी के सिंह की शक्ल पसंद नहीं है। जो भी जांच/कार्रवाई हो वह बिल्कुल निष्पक्ष होनी चाहिए। साथ ही जनरल सिंह को सच्चाई बतानी चाहिए। उनका कहना है कि उपयुक्त समय में वे अपनी बात रखेंगे। मैं नहीं समझता कि ऐसे किसी ‘समय’ के इंतजार का विकल्प उनके पास है।
संभल कर,