झटके खाती विदेश नीति

झटके खाती विदेश नीति

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है कि जम्मू क्षेत्र में दोहरे आतंकी हमलों के बावजूद न्यूयार्क में नवाज शरीफ के साथ उनकी वार्ता रद्द नहीं की जाएगी। नवाज शरीफ जब से प्रधानमंत्री बने हैं भारत के साथ संबंध बेहतर करने की बात कह रहे हैं इसलिए इस अति गंभीर परिस्थिति में भी वार्ता रद्द न कर प्रधानमंत्री ने गलत नहीं किया। अगर अब वार्ता रद्द की जाती तो इसका मतलब आतंकियों को भारत-पाक संबंधों पर वीटो का अधिकार देने के बराबर होता। वह हर बार बातचीत से पहले कोई न कोई बड़ी घटना कर देते जिसके बाद भारत गुस्से में वार्ता की मेज़से हट जाता। शीतयुद्ध के दौरान भी अमेरिका तथा सोवियत यूनियन आपस में बात करते रहे हैँ। जो वार्ता का विरोध कर रहे हैँ वे दो ताज़ा मिसाल देते हैँ। एक, स्नोडन को रूस में आश्रय देने से खफा अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने रूस के शहर सेंट पीटर्सबर्ग में रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन के साथ अपनी वार्ता रद्द कर दी थी। दूसरा, हाल ही में ब्राजील की राष्ट्रपति डिलमा रूसफ ने अमेरिका की अपनी राजकीय यात्रा रद्द कर दी क्योंकि यह जानकारी बाहर आई है कि अमेरिका उनकी जासूसी करता रहा यहां तक कि उनकी निजी ई-मेल पढ़ी जाती रही और उनके टैलिफोन टैप किए गए। भारत के साथ भी ऐसा किया गया पर सलमान खुर्शीद की लापरवाह टिप्पणी थी कि इसमें कोई असामान्य नहीं, सब करते हैं। भारत अमेरिका नहीं। हम तो ब्राजील भी नहीं। हमारे में मार खाने की अपार क्षमता है। केवल मनमोहन सिंह ही नहीं, उनसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने भी उधर से आतंकी कार्रवाईयों के बावजूद पाकिस्तान से संबंध बेहतर करने का प्रयास जारी रखा चाहे इसके कुछ खास नतीजे नहीं निकले। इसलिए अगर कथुआ के हीरानगर थाने तथा साम्बा के सेना कैंप पर हमले के बावजूद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पाकिस्तान के साथ बातचीत जारी रखना चाहते हैं तो इसमें असामान्य कुछ नहीं है।

एक बात और। पाकिस्तान से घुसपैठ तथा ऐसे हमले रोकने में हमारी सेना तथा दूसरे सुरक्षा बल नाकाम क्यों रह रहे हैं? सब को मालूम था कि मनमोहन सिंह-नवाज़ शरीफ की वार्ता से पहले माहौल खराब करने के लिए उधर से प्रयास हो सकते हैं? फिर हम बेतैयार क्यों निकले? पाकिस्तान को यह मौका भी क्यों दिया गया कि वह हमारे गश्ती दल पर हमला कर हमारे पांच जवानों को गोली मार सके? सीमा पर सुरक्षा अभेद्य क्यों नहीं बनाई जा सकती? पाक मिलिटैंट बार-बार हमारे रक्षा कवच की कमज़ोरी प्रदर्शित करने में सफल रहे हैं! सीमा पर नवीनतम इस्रायली यंत्र जैसे सैंसर लगे हैं फिर भी वह चुपचाप अंदर पहुंच गए। दूसरा, दोनों घटनास्थलों के बीच 25 किलोमीटर का फासला है। पहली हीरानगर पुलिस स्टेशन की  घटना सुबह 6.50 की है। साम्बा सेना कैंप पर हमला 7.35 का है। पौने घंटे के बाद हम सावधान क्यों नहीं थे? आतंकी बड़ी आसानी से नेशनल हाईवे के रास्ते एक लक्ष्य से दूसरे लक्ष्य तक पहुंचने में क्यों सफल रहे? इस सफर के दौरान उन्हें कोई रूकावट नहीं मिली। ऐसी लापरवाही क्यों?

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.