सर इतना मत झुकाओ…

सर इतना मत झुकाओ…

राहुल गांधी को इतनी देर से क्यों पता लगा कि ‘नॉनसैंस’ क्या है? आखिर सोनिया गांधी की अध्यक्षता में कांग्रेस के कोर ग्रुप ने बाकायदा अध्यादेश लाने को हरी झंडी दी थी। कैबिनेट ने दो बार इसे अपनी सहमति दी थी। कांग्रेस के प्रवक्ता अजय माकन का कहना था कि इस अध्यादेश का श्रेय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी के सामूहिक विवेक को जाता है। इसे पारित करवाने के असफल प्रयास में संसद का अधिवेशन एक दिन के लिये बढ़ाया गया। इस दौरान राहुल गांधी खामोश रहे। और अब अचानक यह विस्फोट कर दिया उस समय जब प्रधानमंत्री विदेशी भूमि में अपने बचे-खुचे रूतबे को कायम रखने का प्रयास कर रहे थे। इसका कारण क्या है? इसका कारण है कि पब्लिक मूड इस अध्यादेश के खिलाफ था और कांग्रेस के कर्णधारों को अहसास हो गया था कि अगर यह लागू हो गया तो सरकार की पहले से कलंकित छवि और काली हो जाएगी। इसलिए जरूरत को उन्होंने सिद्धान्त बना लिया। वास्तव में यह लोकराय की जीत है। भाजपा का दबाव भी काम आया। राहुल का अशोभनीय दखल भाजपा के नेताओं की राष्ट्रपति के साथ मुलाकात के एक दिन बाद आया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी तीन मंत्रियों को बुला कर स्पष्ट कर दिया था कि वह इस अध्यादेश के संवैधानिक तथा नैतिक दोनों पक्ष को संदिग्ध समझते हैं। कांग्रेस ने समझ लिया कि अगर राष्ट्रपति इसे वापिस भेज देते हैं तो और फजीहत होगी इसलिये योजनाबद्ध तरीके से राहुल गांधी को आगे कर विरोध प्रकट कर दिया। लेकिन जिस तरह उन्होंने किया उससे सरकार की मुसीबतें और बढ़ गई हैं।

राहुल गांधी के दखल का एक और कारण भी नजर आता है। कांग्रेस के प्रथम परिवार ने कभी भी गलतियों को नहीं अपनाया। उनका अधिकार केवल ‘कुर्बानियों’ पर है, लोक कल्याण की योजनाओं पर है। अगर कहीं कोई गलती हुई है तो इसके लिये दूसरे जिम्मेवार हैँ। श्रेय अपना बदनामी दूसरों की। राहुल गांधी भी इस कुख्यात अध्यादेश से दूरी बना रहे हैं लेकिन समस्या यह है कि इसे तो मम्मी सोनिया गांधी की स्वीकृति भी मिली हुई है।  नीति वही पुरानी है कि प्रथम परिवार हर गलती, हर चूक, हर कलंक, हर बदनामी से ऊपर है पर क्या वह यूपीए सरकार से खुद को अलग कर सकते हैं? क्या रसोइया कह सकता है कि खाना स्वाद नहीं? राहुल गांधी खामोश रहे जब दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेलों का घोटाला हुआ। वह चुप रहे जब 2जी का महाघोटाला हुआ, जब कोयला ब्लाक आबंटन घपला हुआ, जब रेलगेट तथा अनगिनत ऐसे भ्रष्टाचार के मामले बाहर आए जिनमें लाखों करोड़ों रुपये नेताओं के जेबों में निकल गये। अब अचानक वह  नैतिक जमीन हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं और खुद को उस प्रधानमंत्री, उस कांग्रेस अध्यक्षा तथा उस सरकार से अलग कर रहे हैं जिन्होंने उस अध्यादेश को तैयार किया था जो ‘माननीय’ दागियों की रक्षा करता है। आखिर राहुल कह ही चुके हैं कि वह अपनी मम्मी की तरह नरम नहीं बल्कि अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह ‘स्ट्रांग’ हैं!

क्या कांग्रेस के प्रथम परिवार ने अपना बलि का बकरा ढूंढ लिया? सीताराम केसरी, पी.वी. नरसिंहा राव के बाद मनमोहन सिंह? शायद नहीं, क्योंकि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जबरदस्त बचाव कर रही है। पर उनका कहना है कि ‘वह’ प्रधानमंत्री का मजाक बना रहे हैं पर सारी पार्टी उनके पीछे है। मानना पड़ेगा कि सोनिया गांधी में मर्यादा है पर भाजपा (वह)  को दोषी ठहराने की जगह वह यह क्यों मानने को तैयार नहीं कि प्रधानमंत्री तथा उनकी सरकार का मजाक तो उनके पुत्रश्री ने बना दिया है। और सारी पार्टी उनके पीछे तो कहां, एक भी मंत्री प्रधानमंत्री के बचाव के लिए आगे नहीं आया। विदेश में ऐसी संवेदनशील वार्ताओं के दौरान तो विपक्ष भी सरकार की आलोचना से परहेज करता है क्योंकि विदेश में प्रधानमंत्री तो सारे देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन उन राहुल गांधी जिनके अधीन काम करने की दुर्भाग्यपूर्ण इच्छा प्रधानमंत्री कुछ दिन पहले व्यक्त कर चुके हैं, ने उनके पद तथा उनका अपना अवमूल्यन कर दिया। जनता मजाक में उन्हें एक दब्बू ताबेदार समझने लगी है। न केवल प्रधानमंत्री बल्कि इस पूरे केंद्रीय मंत्रिमंडल की स्थिति ही ‘नॉनसैंस’ बन गई है।

मनमोहन सिंह-नवाज शरीफ मुलाकात असफल रही। नवाज शरीफ सेना तथा आईएसआई के आगे असहाय है दूसरी तरफ डा. मनमोहन सिंह भी अपने कार्यकाल के अंतिम महीनों में प्रवेश कर गए हैं। ऊपर से नवाज शरीफ की ‘देहाती औरत’ वाली टिप्पणी ने माहौल और खराब कर दिया। जियो टीवी के हमीद मीर ने कहा है कि नवाज शरीफ ने मनमोहन सिंह की ओबामा को पाक आतंकवाद की शिकायत की तुलना उस देहाती औरत से की जो अपने झगड़े की शिकायत तीसरे व्यक्ति से करती है। बाद में मौजूद पत्रकारों ने मामला गोल करने का प्रयास जरूर किया। बरखा दत का कहना था कि नवाज शरीफ ने ऐसा कुछ नहीं कहा जबकि हमीद मीर का कहना था कि जिस वक्त यह कहा गया उस वक्त बरखा अपना कैमरा लेने बाहर गई थी। हमीद मीर ने भी केवल इतना कहा कि नवाज शरीफ ने मनमोहन सिंह की शान में गुस्ताखी नहीं की पर हमीद मीर ने यह नहीं कहा कि नवाज शरीफ ने ‘देहाती औरत’ वाला किस्सा मनमोहन-ओबामा संदर्भ में इस्तेमाल नहीं किया था। लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण है हमीर मीर ने और क्या कहा। उन्होंने टीवी चैनल को बताया कि ‘राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह के साथ जो किया है उससे वे कमजोर हो गए हैं। हिन्दोस्तान में उनकी विश्वसनीयता खत्म हो गई है।’ यह राय पाकिस्तान कैंप की भी लगती है। वह भी अब अगली सरकार के इंतजार में है।

प्रधानमंत्री के बचे खुचे सत्ताधिकार को भी तमाम कर गए। उन अवसरवादी मंत्रियों की विश्वसनीयता का भी क्या बचा? सबसे अधिक दुर्गत इस प्रधानमंत्री की है जिन्हें विदेशी भूमि पर महत्वपूर्ण मुलाकातों से पहले राहुल की झाड़ सुननी पड़ी। राहुल यही बात अधिक सभ्य तरीके से कह सकते थे लेकिन वह खुद को ‘स्ट्रांग’ बताना चाहते थे जिसका शिकार मनमोहन सिंह हो गये। लेकिन इसके लिये राहुल को ही दोषी क्यों ठहराया जाये? प्रधानमंत्री ने अपनी हालत यह बना ली है कि उनके मंत्री ही उनसे नहीं बल्कि 10-जनपथ से आदेश प्राप्त करते हैं। उन्होंने सत्ता में रहने के लिए बार-बार अपनी इज्जत और स्वाभिमान से समझौता किया। एक समय उन्हें उनकी ईमानदारी के लिये जाना जाता था पर डा. मनमोहन सिंह देश के इतिहास के सबसे भ्रष्ट सरकार के प्रधानमंत्री रहे हैं। कुछ समय पहले तक उन्हें एक सियाना अर्थ शास्त्री समझा जाता था। आज महंगाई बढ़ रही है, रुपया संभल नहीं रहा और विकास की दर आधी रह गई है। अपने मंत्रिमंडल में भी वह-अलग थलग रह गये हैं। पहले मंत्री सोनिया गांधी की तरफ भाग रहे थे अब राहुल गांधी की तरफ भागेंगे। अब जितनी देर मनमोहन सिंह पद पर बने रहेंगे उनकी हालत उस मेहमान जैसी होगी जो जरूरत से अधिक देर ठहरा हुआ है। वह कुर्सी पर तो होंगे लेकिन न इज्जत होगी, न ताकत ही बची है। फैसला मनमोहन सिंह ने ही करना है कि उन्होंने यह कब तक सहना है? माननीय प्रधानमंत्री को मुझे तो यही कहना है:-

                झुक कर अरज करने में क्या हरज है मगर,

                सर इतना मत झुकाओ कि दस्तार गिर पड़े!

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.

1 Comment

  1. Lallu enjoys good political relation with Ms. Sonia Gandhi and probably Congress being aware of todays’s CBI Court’s verdict in advance was in trying to save him by this ordinance.Congress showed so much hurry in brining this ordinance even they have not waited for standing committee and parliament debate as it was the case with “Lokpal”
    But thanks to President and opposition they have compelled congress to withdraw this ordinance.
    This ordinance cannot be approved in cabinet without Ms. Gandhi’s support. In order to save her they have strategically put Mr. Rahul Gandhi in press conference to cover Ms Sonia Gandhi.

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