गांधी की टोपी के नीचे आज क्या है?
जिसकी बहुत देर से इंतज़ार थी, एक नया भारत उग रहा है। पहले रशीद मसूद को मिली चार साल की कैद और दो दिन बाद लालू प्रसाद यादव को मिली पांच साल की कैद से यह आशा जगी है कि आखिर हमारी राजनीति का शुद्धिकरण शुरु हो रहा है। लालू प्रसाद यादव को सजा देते हुए माननीय जज ने कहा है कि पहले भगवान को सर्वशक्तिमान माना जाता था ‘अब भ्रष्टाचार सर्वशक्तिमान हो गया है।’ चारा घोटाले का जिक्र करते माननीय जज ने कहा है ‘यह मामला इसका उदाहरण है कि किस प्रकार बड़े राजनेता, नौकरशाह तथा बिजनैसमैन ने साजिश के तहत सरकारी खजाने को लूटा है।’ आज के हिसाब से तो चारा घोटाला मूंगफली के बराबर है, पर अगर आजकल के सभी महा घोटालों को देखे तो सब इसी त्रिकोण, बड़े राजनेता-नौकरशाह-बिजनेसमैन की नापाक सांठगांठ का परिणाम है। इन्हीं ने अपने हित में सारी व्यवस्था को खोखला कर दिया। कांग्रेस के सांसद बीरेन्द्र सिंह का सही कहना है कि जो राजनीति में आ जाता है वह अरबों रुपए कमा लेता है। उनका कहना है कि यह चोखा धंधा है। धीरे-धीरे सच्चाई स्वीकार की जा रही है। उत्तर प्रदेश में 47 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। बिहार में यह आंकड़ा 58 प्रतिशत है। सभी राजनीतिक दल इस हमाम में नंगे है। लोग भी मजहब, जात आदि देख कर वोट देते हैं। अपना काम होना चाहिए चाहे डकैत जनप्रतिनिधि बन जाए। यहां फूलन देवी भी माननीय सांसद रह चुकी हैं। ऊपर से सैक्यूलर-नॉन सैक्यूलर की बहस से बहुत कुछ छिप जाता है। आखिर अगर लगभग दो दशक लालू यादव शिखर पर बने रहे तो इसीलिए कि वे बहुत बड़े ‘सैक्यूलर’ नेता हैं। अगर आपने सैक्यूलर चादर ओढ़ ली है चाहे वह कितनी भी मैली हो, आपके सब गुनाह माफ हैं। हमारी राजनीति के इस पाखंड का भी अंत शुरू हो रहा है। 1793 में फ्रांस में जब बेकसूर मैडम रोलांड को मौत की सजा दी गई तो आजादी की प्रतिमा देख कर उसका कहना था, ‘ए आजादी! तेरे नाम पर क्या क्या अपराध हुए!’ भारत के संदर्भ में कहा जा सकता है, ए सैक्यूलरवाद तेरे नाम पर क्या-क्या गुनाह किए गए!
गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सभी मुख्यमंत्रियों से कहा है कि किसी भी बेकसूर मुसलमान युवक को आतंक के नाम पर गलत तरीके से हिरासत में न रखा जाए। अब शिंदे साहिब भी एक सैक्युलर देश के गृहमंत्री है। उन्हें केवल मुस्लिम युवकों की ही चिंता क्यों है? उन्होंने क्यों नहीं कहा कि किसी भी बेकसूर युवक को हिरासत में नहीं लिया जाए? अगर ऐसी ही बात भाजपा या संघ का कोई नेता हिन्दुओं के बारे कहता तो तूफान खड़ा हो जाता। कर्नाटक के कांग्रेसी अध्यक्ष ने कहा है कि अगर मुसलमान अपने कर्जे वापिस नहीं करते तो चिंता की बात नहीं, इससे विकास हो रहा है! क्या खूब बात कही। फिर तो सबके कर्जे माफ कर दो भारत अमेरिका बन जाएगा! पर इन्हें भी केवल मुसलमानों की चिंता है, आखिर वे एक ‘सैक्यूलर’ पार्टी के नेता जो हैं। लेकिन हमारे देश में अपराधियों को बचाने के लिए केवल सैक्यूलर चादर का ही इस्तेमाल नहीं किया जाता गांधी टोपी के नीचे भी बहुत लोग अपने कारनामें छिपाने में सफल रहते हैं।
जिस दिन रशीद मसूद को कैद की सजा मिली उस दिन सारे टीवी चैनल उनके क्लिप दिखा रहे थे। चमकते सफेद कपड़े जैसे किसी डिटरजेंट का विज्ञापन हो। पिछले साल बैंगलोर में विधानसभा परिसर के नजदीक गुजरते वक्त अंदर से लाल बत्ती वाली तीन चार सफेद एम्बैसेडर गाड़ियाँ निकल आई तो टैक्सीवाला बोल उठा ‘इनकी कारें भी सफेद, इनके कपड़े भी सफेद केवल अंदर सब काला है!’ रशीद मसूद को लीजिए। स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए 1990-91 में एमबीबीएस की सीटें बेचते रहे और इतने वर्ष सफेद कपड़े डाल लोगों की आंखों में धूल झौंकते रहे। रशीद मसूद के मामले में उल्लेखनीय है कि सर पर सफेद गांधी टोपी भी है। यह वही टोपी है जिसे गांधीजी ने हमारी आजादी की लड़ाई का प्रतीक बनाया था। यह साधारण लगने वाली टोपी अहिंसात्मक क्रांति का सशक्त हथियार थी। इसके द्वारा गांधीजी अपनी संस्कृति में गर्व तथा ग्रामीण लोगों के साथ एकता का संदेश भी दे रहे थे। आजादी के बाद भी जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री तथा मोरारजी देसाई जैसे नेताओं का यह विशेष निशान था। गांधी टोपी डाल कर मुंबई के चमत्कारी डिब्बेवाले सारे शहर की भूख शांत करते हैं। 2011 में फिर अन्ना हजारे के आंदोलन के समय दिल्ली के जंतर-मंतर तथा रामलीला ग्राऊंड में हजारों लोग गांधी टोपी डाल कर सरकार का विरोध करने के लिए पहुंच गए थे।
लोग इस टोपी को डाल कर अपनी तरफ से उस वक्त के साथ जुडऩे का प्रयास भी कर रहे थे जब हम आदर्शवादी थे। जब जनता के आगे केवल एक ही लक्ष्य था, अपना देश। युवा क्योंकि अधिक आदर्शवादी होते हैं और उन्होंने समझौता नहीं किया होता, इसलिए गांधी टोपी डाल वे उस समय से जुडऩे का प्रयास कर रहे थे जब समझौते नहीं हुए थे। इसी तरह भगत सिंह के शहीदी दिन कई युवा केसरी पगड़ी डाल कर जलूस निकालते हैं। कोशिश वही है कि वह उस युग से जुड़ना चाहते हैं जब सब खालस था। पर अब रशीद मसूद जैसों का युग आ गया। सचमुच वक्त ने किया क्या हसीन सितम! आज सफेद गांधी टोपी के नीचे क्या काले कारनामे छिपे हैं? ऐसे कितने और रशीद मसूद हैं जो गांधी टोपी डाल अपनी नापाक हरकतों को छिपाने का प्रयास कर रहे हैं? जिन्होंने करोड़ों/अरबों रुपए कमा लिए वे गांधी टोपी डालने के हकदार कैसे हो गए?
गांधीजी चाहते थे कि आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी को भंग कर दिया जाए। उस वक्त कांग्रेस का भंग होना विनाश को आमंत्रित करने के बराबर होता क्योंकि जवाहरलाल नेहरू तथा सरदार पटेल के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने ही देश को संभाला, विभाजन की त्रासदी से उभारा तथा भविष्य के नवनिर्माण की नींव रखी। पर तब की कांग्रेस और आज की कांग्रेस में जमीन आसमान का फर्क है। गुजरात यात्रा के दौरान राहुल गांधी का कहना था कि वह गांधी का अनुयायी है। आज की परिस्थिति में एसपीजी के घेरे में मुफ्त सरकारी कोठियों में जनता के पैसे पर रहने वाला कोई भी नेता ‘गांधीवादी’ हो सकता है? क्या किसी भी नेता का जीवन आज गांधीजी से प्रेरणा लेकर चल रहा है? सुंदरलाल बहुगुणा या अन्ना हजारे जैसे कुछ सज्जन अवश्य हैं जो हमें उन आदर्शों तथा मूल्यों की याद दिलवाते हैं जो हमने खो ही नहीं दिए बल्कि दफना दिए हैं। सुंदरलाल बहुगुणा जब एक कार्यक्रम के लिए जालन्धर आए तो मेजबान ने उनके रहने का इंतजाम एक फाईव स्टार होटल में कर दिया। अगले ही दिन वे बाहर आ गए कि ‘मैं वापिस जा रहा हूं। मैं इतनी महंगी जगह में ठहरने को तैयार नहीं जहां चाय का कप 100 रुपए का है।’ कितने ऐसे शरीफ लोग हमारे पास रह गए हैं? किसी भी स्कूल अध्यापक से बात कर लो तो जवाब होगा कि उनके आगे सबसे बड़ी समस्या है कि कोई आदर्श नहीं रहा। बच्चों को क्या समझाए कि आज किस की जिन्दगी का अनुसरण करें?
गांधीजी के सहायक प्यारेलाल ने लिखा है, ‘जब कोई विदेशी भारत आता है तो सबसे पहले वह राजघाट जाता है लेकिन लौटने से पहले वह अमूनन यह पूछता है कि आज के भारत में गांधी कहाँ है?’ वास्तव में आज के भारत में गांधी है कहां? साल में दो बार गांधी को याद कर खानापूर्ति कर ली जाती है बाकी समय गांधी टोपी डाल रशीद मसूद जैसे दोनों हाथों से लोगों को लूटते रहते है।
गांधी की टोपी के नीचे आज क्या है?,