हैल्थ विभाग किस मर्ज़ की दवा है?
पहले कहा जाता था कि मच्छर रहेगा, मलेरिया नहीं। पर आज हालत है कि न केवल मच्छर है, मलेरिया है, बल्कि मलेरिया का बाप डेंगू भी देश भर में लोगों को तड़पा रहा है। हर जगह से समाचार आ रहे हैं कि हस्पताल डेंगू के मरीज़ों से भरे जा रहे हैं और कई हस्पताल ऐसे भी है जहां डेंगू के मरीज़ों के लिए जगह नहीं है। और अगर जगह है तो उन्हें देने के लिए खून के प्लेटलेटस नहीं हैं। दिल्ली में डेंगू की मार पिछले दस वर्ष में सबसे अधिक है। और दिल्ली केवल राजधानी ही नहीं, यहां अगले महीने चुनाव होने वाले हैं फिर भी सरकार सावधान नहीं हुई। पिछले 3/4 दिन में ही वहां 500 के करीब डेंगू के केस हुए हैं। जिस तरह 2010 के संकट में खून के प्लेटलैटस की भारी मांग थी वैसी हालत अब हो रही है।
डेंगू का मच्छर बरसात के बाद खड़े साफ पानी में पैदा होता है। अधिकतर जुलाई-नवम्बर के बीच इसका प्रकोप रहता है पर इस साल क्योंकि बरसात लम्बी रही है इसलिए खतरा और बढ़ गया है। इन वर्षों में धीरे-धीरे डेंगू एक महामारी का रूप धारण करता जा रहा है। 2010 में मैं खुद इसका शिकार हो चुका हूं इसलिए जानता हूं कि यह कितनी परेशान करने वाली बीमारी है। मेरे प्लेटलेटस तो इतने नहीं गिरे थे कि हस्पताल पहुंचने की नौबत आ जाएं पर हालत बुरी थी क्योंकि हस्पतालों में जगह नहीं थी। कई हस्पतालों में तो मरीज़ ज़मीन पर पड़े थे क्योंकि बिस्तर खाली नहीं थे। कई जगह एक-एक बिस्तर पर दो-दो मरीज़ थे। यह बीमारी बहुत खतरनाक है क्योंकि इसका कोई इलाज नहीं है। कोई गोली नहीं कोई टीका नहीं। कुत्ते के काटने पर रेबीज़ का टीका है पर मामूली मच्छर के काटने का कोई इलाज़ नहीं। अब कहा जा रहा है कि 2015 तक शायद मलेरिया का टीका मिल जाए। डेंगू में केवल बुखार कम रखा जाता है और प्लेटलैटस पर ध्यान रखा जाता है। एक स्वस्थ इंसान के प्लेटलैटस 150,000 के करीब होते हैं पर डेंगू के मरीज़ के 10,000 तक गिर सकते हैं। किसी तरह एक सप्ताह गुज़ारना पड़ता है फिर हालत सुधरनी शुरू हो जाती है। बहुत कुछ मरीज़ की रोग से लडऩे की शक्ति तथा डॉक्टर की निगरानी पर निर्भर करता है। एक बार बुखार हट जाए तब भी बहुत ऐहतियात की जरूरत होती है क्योंकि यह बीमारी अंदर से आपको चूस लेती है। उसके बाद भी महीना दो महीने सावधान रहना पड़ता है।
अगर इससे बचना है तो दो स्तर पर प्रयास की जरूरत है। पहला प्रयास घर में होना चाहिए ताकि मच्छर न रहे। इसके लिए घर तथा आसपास को साफ-सुथरा रखना बहुत जरूरी है। कूलर इत्यादि का पानी निकाल दिया जाना चाहिए। अफसोस यह भी है कि शहरों में कूड़ा कर्कट उठाने का कोई प्रबंध नहीं। गंदगी मच्छर की पैदायश को खुला निमंत्रण देती है। नरेंद्र मोदी के कथन को लेकर बहुत बहस हो रही है पर शौचालय की जरूरत पर पहले जयराम रमेश और अब नरेंद्र मोदी ने जो बल दिया है वह गलत नहीं। जयराम रमेश का सही कहना था कि यह देश खुला शौचालय है। न जाने हमारे लोग शौचालय को प्राथमिकता क्यों नहीं देते? जब तक यह इंतज़ाम नहीं होगा और खुला शौच बंद नहीं होगा इस देश में बीमारियों का फैलना बंद नहीं होगा। लेकिन दूसरी, और असली जिम्मेवारी सरकार की है। इतना भारी भरकम स्वास्थ्य मंत्रालय किस मर्ज़ की दवा है अगर वह लोगों को ऐसी घातक बीमारियों से बचा नहीं सकता? सबको पता है कि हर साल बरसात आती है जिसके बाद बीमारी का सीज़न शुरू होता है फिर भी सरकार की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया जाता यहां तक कि लोगों को डेंगू जैसी बीमारी से निबटने के लिए जागरुक भी नहीं किया जाता। मच्छर मारने का स्प्रे किया जाना चाहिए लेकिन केवल अफसरों के आवासीय क्षेत्रों में फागिंग कर संतुष्ट हो जाते हैं। स्थानीय प्रशासन भी कुछ विशेष प्रयास नहीं करते। असली बात तो यह है कि जहां मच्छर पैदा होता है वहां मारने वाली दवाई का छिड़काव किया जाना चाहिए। जब तक यह नहीं होता मच्छर पैदा होते रहेंगे और लोगों को डसते रहेंगे।
डेंगू लगभग दो दशक से लोगों को तड़पा रहा है लेकिन इसका कोई इलाज नहीं ढूंढा गया। धीरे-धीरे यह महामारी का रूप धारण कर रहा है। व्यवस्था यहां भी लापरवाह और कमज़ोर साबित हो रही है इसलिए समाजसेवी संगठनों तथा मुहल्ला कमेटियों तथा गांव पंचायतों को आगे आना चाहिए। समय रहते इससे निबटने की तैयारी करनी चाहिए। विशेषतौर पर जहां कमज़ोर वर्ग के लोग रहते हैं वहां मच्छर मारने वाली दवाई का लगातार छिड़काव होना चाहिए। वैसे मच्छर भी डैमोक्रैटिक है, वह गरीब अमीर का अंतर नहीं देखता। नई दिल्ली में एक सर्वेक्षण के दौरान कई रईस लोगों के घरों में डेंगू के मच्छर का लार्वा पाया गया। यह भी याद रखना चाहिए कि प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक यश चोपड़ा की मौत भी डेंगू से हुई थी। ï
हैल्थ विभाग किस मर्ज़ की दवा है ,