उमर को चानन हो रहा है!

उमर को चानन हो रहा है!

‘हम नियंत्रण रेखा तथा अंतर्राष्ट्रीय सीमा के नज़दीक रह रहे नागरिकों के व्यापक हित को देखते हुए बुलेट से बदला नहीं लेना चाहते पर इसका यह अर्थ नहीं कि बुलेट का जवाब बुलेट नहीं हैं।’ यह शब्द जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के हैं। यह वही उमर अब्दुल्ला है जो पाकिस्तान के साथ वार्ता के बहुत समर्थक रहे हैं और जिनका मानना था कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों को विशेष अधिकार देने वाले कानून (एएफएसपीए) की अब जरूरत नहीं। लेकिन पाकिस्तान की तरफ से न केवल नियंत्रण रेखा बल्कि अब अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर भी गोलाबारी जिसके कारण जम्मू-कश्मीर में सीमा से लगते क्षेत्रों से लोगों को पलायन करना पड़ रहा है, से परेशान उमर का सुर बदल रहा है। उनका कहना है कि क्योंकि पाकिस्तान की सेना लगातार भारतीय गांवों पर गोलाबारी कर रही है इसलिए नई दिल्ली को इस्लामाबाद के साथ वार्ता के अतिरिक्त दूसरे विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए। यह ‘दूसरे विकल्प’ क्या हैं यह सब समझते हैं।

पाकिस्तान की सेना ने पिछले कुछ दिनों में अपनी रणनीति बदल ली है। अब नियंत्रण रेखा से ध्यान हटा कर वह सीधे अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर गोलाबारी कर रहे हैं। पाकिस्तान की सेना का फोकस अब अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर है जहां जम्मू, कठुआ तथा साम्बा में 194 किलोमीटर सीमा पर लगातार जबरदस्त फायरिंग हो रही है। इस साल नियंत्रण रेखा तथा अंतर्राष्ट्रीय सीमा का 200 बार उल्लंघन हो चुका है। पाकिस्तान की सेना घुसपैंठ करवाने के लिए सामान्य से अधिक उतावली नज़र आती है। आतंक की नई लहर की तैयारी हो रही है। जम्मू-कश्मीर में सर्दियां गर्म रहेंगी इसलिए मुख्यमंत्री इतने चिंतित तथा आक्रामक नज़र आ रहे हैं। कोई भी मुख्यमंत्री यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि दुश्मन की सेना उसके लोगों को निशाना बनाए इसीलिए उनका कहना है कि हम हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते। यह वही मुख्यमंत्री है जिन्होंने तीन साल पहले कहा था कि एएफएसपीए कुछ ही दिनों में हटा दिया जाएगा। उस समय अगर सेना न अड़ती तो उमर इस कानून को हटवाने में सफल रहते। लेकिन अब असंख्य सीमा तथा नियंत्रण रेखा उल्लंघन के बाद उनकी भी आंखें खुल रही हैं। हम तो 2003 से पहले की स्थिति में आ रहे हैं जब उनकी सेना गोलाबारी कर रही थी और राजनीतिक नेतृत्व अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठा रहा है। जो हिंसा हो रही है वह सीधे तौर पर कश्मीर की जनता, सरकार तथा मुख्यमंत्री को प्रभावित करती है। जम्मू-कश्मीर के लोग उनके लोग हैं। एक सरकार का धर्म है कि वह अपने लोगों को सुरक्षा दे इसलिए उमर का सुर बदल रहा है। वे समझ गए हैं कि नवाज शरीफ ने मनमोहन सिंह के साथ न्यूयार्क में जो वायदा किया था उसे पूरा करने का उनका इरादा नहीं है। या वह कर नहीं सकते।

जम्मू कश्मीर की सरकार चाहती है कि प्रदेश में शांति रहे ताकि पर्यंटक भी आएं तथा निवेश भी हो। जब तक गोलाबारी होती रहेगी या सांबा या हीरानगर जैसी घटनाएं होती रहेगी यह सब नहीं हो सकेगा। पाकिस्तान फिर पुरानी शरारत पर लौट आया है ताकि जम्मू-कश्मीर के अंदर शांति न हो। इससे पहले उमर को पाकिस्तान के नेक इरादों पर इतना भरोसा था कि एएफएसपीए को लेकर उन्होंने सेना के साथ भी अपने रिश्ते खराब कर लिए थे। उनका मानना था कि सेना बेवजह इस कानून को वापिस लेने का विरोध कर रही है जबकि हालात बेहतर हो गए है। अब समझ आ गई है कि पाकिस्तान नहीं बदलेगा और वह एक बार फिर माहौल खराब करने का प्रयास कर रहा है। ऐसी स्थिति में जब उधर से अधिक घुसपैंठ हो रही है एएफएसपीए जैसे कानून की तो और भी जरूरत होगी। सेना अपने हाथ पीछे बांध कर आतंकवादियों से मुकाबला नहीं कर सकती। यही अहसास जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री को हो रहा है। वह कह चुके है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री का जॉब देश में सबसे मुश्किल है। आने वाले दिनों में यह ‘जॉब’ और मुश्किल होने वाला है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.