सभी के वास्ते पत्थर कहां से लाओगे?

सभी के वास्ते पत्थर कहां से लाओगे?

कांग्रेस के नेता भारी असुरक्षा की भावना प्रकट कर रहे हैं। जब से नरेंद्र मोदी को भाजपा का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया है कांग्रेस के कई बड़े नेता आपा खो रहे हैं। शुरूआत तो सोनिया गांधी ने उन्हें ‘मौत का सौदागर’ कह कर की थी। उसके बाद से सिलसिला बढ़ता जा रहा है। उन्हें मदांध, मनोरोगी, दंगाई, हिटलर, कचरा, कहा जा चुका है। अब सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने उन्हें दानव तक कह दिया है। राहुल को शहजादा कहने पर जनार्दन द्विवेदी ने तो बाकायदा धमकी दे दी। और अभी तो सैमीफाईनल चल रहा है। निश्चित तौर पर आम चुनाव तक पहुंचते-पहुंचते कांग्रेस के बड़े नेता मोदी के लिए और गालियां तैयार कर लेंगे। लेकिन इससे पार्टी को फायदा क्या हो रहा है इसके सिवाए कि नेतागण अपनी भड़ास निकाल रहे हैं, अपनी हताशा प्रकट कर रहे हैं और दरबार में अपनी हाजरी लगा रहे हैं कि वे कितने आज्ञाकारी हैं? उन्हें यमराज, भस्मासुर,  कसाब तक कहा जा चुका है। कांग्रेस के इन नेताओं को राजनीतिक मतभेदों को नफरत तथा दुश्मनी की हद तक ले जाकर लाभ क्या हो रहा है?

अगर लोग पार्टी की बात सुनते होते तो मोदी की रैलियों में इतनी भीड़ न होती। इस वक्त तो कांग्रेस यह प्रभाव दे रही है कि जैसे पार्टी आतंकित है, उत्तेजित है, घबराहट में है। मोदी का नाम सुन कर नेतागण भड़क उठते हैं। ये लोग तो लता मंगेशकर को भी नरेंद्र मोदी के समर्थन के लिए माफ करने को तैयार नहीं। जब अमिताभ बच्चन गुजरात के ब्रांड एम्बैसेडर बने तब भी इन्हें आपत्ति थी हालांकि वे गुजरात के ब्रैंड एम्बैसेडर थे, नरेंद्र मोदी के नहीं। ऐसी ही असहिष्णुता बाबा रामदेव और अन्ना हज़ारे के बारे भी दिखाई गई। लेकिन यह लोकतंत्र है, अभिव्यक्ति की आज़ादी है। जावेद अख्तर जैसे लोग भी हैं जो अपना मोदी विरोध नहीं छिपाते। ज्ञानपीठ सम्मान विजेता अमितव घोष ने मोदी का विरोध किया है। लेखक यू आर कृष्णामूर्ति का तो कहना है कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो वे भारत में रहना नहीं चाहेंगे। किसी को आपत्ति नहीं क्योंकि यह उनका अधिकार है।  उनका यह भी अधिकार है कि वह कहाँ रहना चाहें कहाँ नहीं। ऐसी असहिष्णुता उन मुस्लिम नेताओं के प्रति भी दिखाई जाती है जो मोदी के प्रति नरमी दिखाते हैं। अब कांग्रेस चुनाव से पहले सर्वेक्षण पर उबल रही है। इन पर बहस के लिए पार्टी अपने प्रतिनिधि नहीं भेज रही। कहा जा रहा है कि यह वैज्ञानिक तथा सही नहीं है। बात गलत भी नहीं। 2004 के सब बड़े सर्वेक्षण गलत निकले थे। वे एनडीए की सरकार बना रहे थे जबकि सरकार यूपीए की बन गई। पैसे के चलन की भी शिकायत है। लेकिन इसके बावजूद यह अभिव्यक्ति की आज़ादी का मामला है इन पर पाबंदी नहीं लगानी चाहिए। यह भी शिकायत है कि 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के लाल किले के भाषण की मोदी के भाषण से तुलना की गई। टीवी चैनलों को धमकी भरे पत्र लिखे जा रहे हैं।

यह रवैया तो अब बचकाना बनता जा रहा है जो अमरीकी निवेश बैंकर गोल्डमैन साक्स की एक रिपोर्ट पर सरकार की असंतुलित प्रतिक्रिया से पता चलता है। आखिर गोल्डमैन साक्स का अपराध क्या है? उन्होंने केवल यह कहा है कि बाज़ार का रुख मोदी के पक्ष में हैं। ऐसा आंकलन कई और वित्तीय संस्थाएं भी कर चुकी हैं जिनका कहना है कि परिवर्तन से अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा। बेहतर होता कि इसे एक विदेशी वित्तीय संस्थान की रिपोर्ट समझ कर इसकी उपेक्षा कर दी जाती पर कांग्रेसी क्या जो तीखी प्रतिक्रिया न करें? वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा का गोल्डमैन साक्स की रिपोर्ट पर तीखा कहना है कि ‘हमें रोज़ाना इस तरह से प्रमाणपत्र या आश्वासन नहीं चाहिए। हम एक आत्मविश्वस्त देश हैं।’ यह बात तो सही है। मैं भी मानता हूं कि गोल्डमैन साक्स जैसे संगठनों के आंकलन का देश के अंदर कोई प्रभाव नहीं होगा लेकिन आपा खो कर एक वरिष्ठ मंत्री क्या यह प्रभाव नहीं दे रहे कि वे खुद बहुत आत्म विश्वस्त नहीं हैं? क्या देश के वाणिज्य मंत्री को ऐसी रिपोर्ट पर भड़कना चाहिए था? आनंद शर्मा का कहना है कि दूसरे देशों को हमारे मामलों में दखल नहीं देना चाहिए लेकिन अमेरिका द्वारा नरेंद्र मोदी को वीज़ा न दिए जाने पर वे जरूर प्रसन्न है।

ऐसी प्रतिक्रियाएं ऊंचे दर्जों की घबराहट जो दहशत की सीमा तक पहुंच चुकी हैं, प्रकट करती हैं। जो भी मोदी या भाजपा या एनडीए के पक्ष में कुछ कहेगा उसके खिलाफ कांग्रेस के नेता हथौड़ा लेकर पहुंच पीछे पड़ जाएंगे?  चाहे जनमत सर्वेक्षण हो या गोल्डमैन साक्स की रिपोर्ट हो यह हकीकत नहीं बदल सकते। आखिर में फैसला तो जनता ने करना है। अधिकतर भारतीयों ने तो गोल्डमैन साक्स का नाम भी नहीं सुना होगा। आनंद शर्मा ने ही नादानी में उनकी रिपोर्ट को इतना प्रचार दे दिया है। कांग्रेस की असली समस्या है कि उसके संगठन का भट्ठा बैठ चुका है, केंद्रीय सरकार को तीव्र शासन विरोधी भावना का सामना करना पड़ रहा है, और राहुल गांधी का नेतृत्व लोगों को उत्साहित नहीं कर रहा। बाकी कसर महंगाई पूरी कर रही है। इनकी तरफ ध्यान देने की जगह हवा में तलवारें लहराई जा रही हैं। चुनाव में जीत हार होती रहती है। जो बात महत्त्व रखती है वह है कि आप में वापिस आने की कितनी क्षमता है? सौ प्रकार की बाधाओं के बावजूद नरेंद्र मोदी इस वक्त देश के सबसे लोकप्रिय नेता बन गए हैं। कांग्रेस के पास वीरभद्र सिंह की मिसाल है जिन्होंने कांग्रेस के लिए विपरीत परिस्थितियों में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनवा दी। शीला दीक्षित दिल्ली में लगातार पंद्रह साल शासन देने में सफल रही हैं। भूपिन्द्र सिंह हुड्डा ने अभी गोहाना में विशाल रैली की है। ऐसे और कितने नेता हैं कांग्रेस के पास? दो दशक से कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर है जबकि गुजरात में लगभग तीन दशक से है। बिहार में कांग्रेस लगभग खत्म है।  नीतीश कुमार भी सोच रहे हैं कि कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने का क्या फायदा होगा इसीलिए तीसरे मोर्चे के मंच पर नज़र आए। तमिलनाडु, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल सब कांग्रेस के हाथ से निकल चुके हैं। अगर अब ये चार राज्य भी हाथ से निकल जाते हैं तो फिर कांग्रेस का क्या बचेगा? कुछ सियाने हकीकत स्वीकार कर रहे हैं। चिंदबरम का मानना है कि मोदी एक चुनौती है। पहले भी वे यह स्वीकार कर चुके हैं। जयराम रमेश का कहना है कि अगर मोदी अगला चुनाव हार गए तो लोग उन्हें भूल जाएंगे जबकि चुनाव हारने के बावजूद राहुल गांधी कांग्रेस के नेता बने रहेंगे। रमेश अपनी चिर वफादारी प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहे थे पर उनका ‘अगर’ इशारा किधर कर रहा है?

संगठन को सही करने की जगह यैसमैन को प्रदेशों को संभालना तथा एक परिवार के फीके पड़ रहे जादू पर ही आश्रित रहने का खमियाज़ा अब कांग्रेस भुगतने वाली है। बेहतर होगा कि कांग्रेस अभद्र बनने की जगह इन विपरीत परिस्थितियों का गरिमा तथा मर्यादा के साथ सामना करे और आगे के लिए पार्टी के संगठन को नीचे से खड़ा करने का प्रयास करे। इस वक्त तो उनकी बौखलाहट के बारे कहा जा सकता है,

तमाम शहर गुनहगार है मगर ए मौज

सभी के वास्ते पत्थर कहाँ से लाओगे!

 

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.