
वाजपेयी को क्यों नहीं?
सचिन तेंदुलकर तथा वैज्ञानिक सीएनआर राव को ‘भारत रत्न’ दिए जाने का स्वागत है। दोनों ने ही अपने-अपने क्षेत्र में इतने कीर्तिमान स्थापित किए हैं कि इनकी बराबरी नहीं है। यह अफसोस की बात है कि राव ने भारत रत्न प्राप्त करते ही राजनीतिज्ञों को ‘इडीयटस’ कह दिया। उनकी शिकायत है कि विज्ञान तथा अनुंसधान को कम पैसे मिलते हैं। शिकायत सही है। शिक्षा के क्षेत्र को भी कम पैसे मिलते हैं लेकिन इतने बड़े वैज्ञानिक से आशा थी कि वह बेहतर शब्दों का चयन करेंगे। इन दोनों को भारत रत्न दिए जाने के साथ ही मांग उठी है कि हॉकी के जादूगर ध्यानचंद तथा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी भारत रत्न मिलना चाहिए। दोनों ही मामलों में सरकार खामोश है। उल्लेखनीय है कि खेल मंत्रालय ने सबसे पहले ध्यान चंद को भारत रत्न देने की सिफारिश की थी। दो बार ऐसी सिफारिश की गई लेकिन सम्मान सचिन तेंदुलकर को दिया गया। सम्मान देते समय सरकार ने सचिन तथा क्रिकेट की लोकप्रियता का ध्यान रखा है, लेकिन हॉकी हमारी राष्ट्रीय खेल है और ध्यान चंद का योगदान भी बराबर का है। आशा है कि अगली बार यह गलती नहीं दोहराई जाएगी।
जहां तक अटल बिहारी वाजपेयी का सवाल है, उनका नाम देश के तीन महान् प्रधानमंत्रियों में आता है, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी तथा अटल बिहारी वाजपेयी। उन्होंने देश को परमाणु शक्ति बनाया तथा विश्व मंच पर भारत को प्रमुख जगह दिलवाई। आर्थिक विकास को सही दिशा दी। अगर आज दुनिया में भारत को इतना महत्त्व दिया जा रहा है तो यह वाजपेयी की सोच का ही परिणाम है। फिर उन्हें भारत रत्न क्यों नहीं? लोकप्रियता में भी वे किसी से कम नहीं। आखिर अगर राजीव गांधी को भारत रत्न दिया जा सकता है तो वाजपेयी को क्यों नहीं? अब तो सरकार के अपने सहयोगी नीतीश कुमार तथा फारुख अब्दुल्ला भी इस मांग का समर्थन कर रहे हैं। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री पल्लमराजू ने भी समर्थन किया है। वैसे तो ऐसी मांग करने की जरूरत ही नहीं पड़नी चाहिए थी लेकिन अफसोस की बात है कि जब भी सरकार गांधी परिवार के प्रभाव में होती है तो प्रयास रहता है कि उन लोगों को नज़र अंदाज किया जाए जो गांधी परिवार के सदस्यों की बराबरी कर सकते हैं। यही कारण है कि बाबा साहिब अम्बेदकर को उनके देहांत के 34 वर्ष बाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल को उनके देहांत के 41 वर्ष बाद, अब्दुल कलाम आज़ाद को देहांत के 34 वर्ष बाद और जयप्रकाश नारायण को देहांत के 20 वर्ष बाद भारत रत्न से सम्मानित किया गया जबकि जवाहरलाल नेहरू तथा इंदिरा गांधी को उस वक्त भारत रत्न दिया गया जब वे जीवित थे तथा पद में बने हुए थे। नेहरूजी का देहांत 1964 में हुआ था उन्हें 1955 में भारत रत्न दिया गया। इंदिरा गांधी की हत्या 1984 में हुई थी उन्हें 1971 में बांग्लादेश के युद्ध के बाद सम्मानित किया गया जबकि अम्बेदकर, पटेल, आज़ाद तथा जेपी की बारी कई दशकों के बाद आई।
इस मामले में गांधी परिवार की जो मर्जी चलती रही वह अनुचित है। भारत रत्न जैसे उच्च सम्मान को व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों या परिवार की राजनीति या पसंद-नापसंद से ऊपर रखा जाना चाहिए। सरदार पटेल के देहांत के 41 साल बाद उन्हें सम्मानित किया जाना बताता है कि यह परिवार किसी और को अपने बराबर खड़ा नहीं देखना चाहता। इसी प्रवृत्ति के अंतर्गत वाजपेयी जैसे उच्च व्यक्तित्व को अनदेखा किया जा रहा है। तुच्छ सोच उन्हें उस सम्मान से वंचित रखे हुए है जिसके वे अधिकारी हैं जबकि कई ऐसे लोगों को भी भारत रत्न दिया जा चुका है जो इसके बिल्कुल अधिकारी नहीं थे। इसलिए या तो यह सम्मान ही बंद कर दिया जाए या इसे निजी पूर्वाग्रहों से ऊपर उठ कर उन लोगों को प्रदान किया जाए जिनकी देश के प्रति सेवा या योगदान इतना है कि कोई बराबरी नहीं कर सकता। उल्लेखनीय है कि अम्बेदकर, पटेल, आज़ाद को तब भारत रत्न से सम्मानित किया गया जब देश का प्रधानमंत्री नेहरू-गांधी परिवार का सदस्य नहीं था।
बहरहाल अब अटलजी के बारे जो बेरुखी दिखाई जा रही है उसे खत्म कर पहले मौके पर उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ सम्मान से सम्मानित किया जाना चाहिए। यह सम्मान तुच्छ राजनीति से ऊपर होना चाहिए। इस सरकार को समझ लेना चाहिए कि अगर वे अटल बिहारी वाजपेयी को सम्मानित नहीं करते तो अगली सरकार निश्चित तौर पर ऐसा कर देगी। अब तो यह कुछ ही महीनों की बात रह गई है। एक बात और। सचिन तेंदुलकर को सम्मान तो मिल गया पर आशा है कि भारत रत्न अब पेप्सी नहीं बेचेंगे!
वाजपेयी को क्यों नहीं?,