जापान के सम्राट की यात्रा
जापान के सम्राट अखीटो पांच दशकों के बाद भारत की यात्रा पर आ रहे हैं। जापान के राजकुमार की हैसीयत से वे पहले दो बार भारत की यात्रा कर चुके हैं लेकिन तब से लेकर अब तक बहुत कुछ बदल गया है। उस वक्त भी दोनों देशों के बीच सद्भावना थी। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का स्पष्ट मानना था कि एशिया में एक सुरक्षित तथा स्थाई व्यवस्था का जापान महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए लेकिन फिर दोनों देश अलग-अलग रास्ते पर चल दिए। जापान ने अपनी आर्थिक तरक्की से दुनिया को चकाचौंध कर दिया जबकि हम अपनी समस्याओं में डूब गए। अब संतुलन बदल रहा है। भारत एक उभरती ताकत है जबकि जापान की अर्थव्यवस्था कुछ थक और ठहर गई लगती है। उसकी जनसंख्या बूढ़ी हो रही है और उसे घबराहट है कि एशिया में वह हाशिए में न रह जाए। वह एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी नहीं रहे चीन आगे निकल गया है। इसीलिए जापान अब नए रिश्तों की तलाश में है। भारत के इलावा रूस, वियतनाम, इंडोनेशिया तथा ऑस्ट्रेलिया से वह अपने सामरिक रिश्ते बढ़ा रहा है। ऑस्ट्रेलिया को छोड़ कर बाकी सभी देशों के चीन के साथ विवाद रहे हैं या अभी भी हैं। भारत तथा जापान में यह सांझ है कि दोनों चीन के सताए हुए हैं। हमारा पुराना सीमा विवाद है जबकि सेनकाकू टापू को लेकर चीन के साथ जापान का उग्र झगड़ा है जो हाथ से निकल सकता है। भारत का कभी भी जापान के साथ कोई झगड़ा नहीं रहा। अब पूर्व एशिया के दो कोनों में स्थित ये दोनों देश अपने सामरिक तथा आर्थिक हितों में समरूपता देख रहे हैं। इसलिए जापान के सम्राट तथा सम्राज्ञी की भारत यात्रा हो रही है, और प्रोटोकॉल को तोड़ कर उनके स्वागत के लिए खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हवाई अड्डे पर मौजूद रहेंगे।
जापान के सम्राट बहुत कम विदेश जाते हैं। उनकी विदेश यात्रा मंत्रिमंडल की सिफारिश पर होती है। यह यात्रा खुद एक संदेश समझी जाती है। जब से शिंजो ऐब वहां प्रधानमंत्री बने हैं उनका प्रयास है कि भारत के साथ घनिष्ठ राजनीतिक, आर्थिक तथा सामरिक रिश्ते बनाए जाएं। ऐब समझते हैं कि एशिया में संतुलन कायम करने के लिए भारत का ताकतवार बनना जरूरी है क्योंकि केवल यह ही देश चीन का मुकाबला कर सकता है। वह तो भारत, अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ मिल कर चार देशों का गठबंधन बनाना चाहते हैं पर भारत ऐसे किसी गठबंधन में शामिल नहीं होगा। भारत यह प्रभाव नहीं देना चाहता कि वह चीन के खिलाफ किसी गठबंधन में रूचि रखता है क्योंकि चीन के साथ भी हमारे रिश्ते सुधर रहे हैं चाहे काफी धीमी रफ्तार से। लेकिन भारत जरूर जापान के साथ अपने रिश्ते को नई शिखर तक पहुंचाना चाहता है। जापान ने चीन की आर्थिक तरक्की में बहुत सहयोग डाला था लेकिन अब टापू के झगड़े के बाद जापान सावधान हो गया है। उसकी कंपनियां निवेश के लिए नये आकर्षक क्षेत्र ढूंढ रही है। भारत की जनसंख्या युवा है जबकि जापान की वृद्ध इसलिए भी जापान के लिए भारत आकर्षक है।
दिल्ली-मुंबई कॉरिडर जैसी योजनाएं दोनों के लिए लाभकारी रहेगी, दोनों संयुक्त सैनिक अभ्यास भी कर चुके हैं। दिल्ली की मैट्रो जापान के सहयोग का बढ़िया प्रमाण है। अपनी आर्थिक तरक्की को और बढ़ावा देने के लिए भारत को जापानी निवेश और टैक्नालॉजी की बहुत जरूरत है। चीन के निवेश के प्रति अभी भी शंकाएं तथा हिचकिचाहट हैं पर जापान के मामले में ऐसा कुछ नहीं है। असली मामला चीन से संबंधित है जिसके साथ दोनों देशों के क्षेत्रीय विवाद हैं। चीन के तो फिलिपींस तथा वियतनाम के साथ भी विवाद हैं। चीन अहंकार तथा दूसरे देशों के प्रति असंवेदनशीलता प्रकट कर रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुई तबाही के बाद जापान सुरक्षात्मक बन गया था और अब भी वह अमेरिका की छतरी के नीचे है लेकिन प्रधानमंत्री शिनज़ो ऐब इसे भी बदलना चाहते हैं। वह एक सामान्य देश बनना चाहते हैं जो अपनी रक्षा खुद करने में सक्षम हो इसलिए अमेरिका की गारंटी से वह धीरे-धीरे निकलना चाहते हैं। उन्हें यह भी घबराहट है कि अमेरिका जापान में दिलचस्पी खो सकता है क्योंकि उसका ध्यान चीन के साथ अपने रिश्तों पर केंद्रित है। इसीलिए जापान भारत जैसे देशों को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहा है ताकि एशिया में केवल चीन ही महाशक्ति न रह जाए। उनके प्रधानमंत्री ऐब बहुत समय से कह रहे हैं कि एशिया के उनके अवलोकन में भारत की विशेष जगह है लेकिन उन्हें भी मालूम है कि जैसा सामरिक रिश्ता वे चाहते हैं उसमें भारत की दिलचस्पी नहीं है। अतीत में जापान ने हमारी उपेक्षा भी काफी की है। विशेष तौर पर जब हमने परमाणु विस्फोट किए थे तो जापान का रवैया बहुत गुस्सैला था लेकिन अब सब कुछ बदल रहा है। भारत एक उभरती ताकत है चीन सबसे शरारत कर रहा है और जापान में शिनजो ऐब से अधिक भारत का शुभचिंतक नहीं है इसीलिए सम्राट तथा सम्राज्ञी की यात्रा करवा वह रिश्तों को नया आयाम दे रहे हैं। चाहे जापान के सम्राट के पास वास्तविक अधिकार नहीं हैं पर जापान की राष्ट्रीय चेतना में उनका सर्वोच्च सम्माननीय स्थान है। वे जापान के प्रतीक हैं जैसा कोई और नहीं है। उनकी भारत की यात्रा इस बात का स्पष्ट संकेत है कि वह देश अब भारत के साथ रिश्तों को गंभीरता से ले रहा है, और इन्हें उच्च स्तर तक पहुंचाना चाहता है।
जापान के सम्राट की यात्रा,
सटीक विश्लेषण