एक बीमार समाज के लक्षण
तहलका का पूर्व संपादक तरुण तेजपाल इस वक्त गोवा की उस पंखे के बिना कोठरी में रह रहा है जहां उसके साथी कुछ वे भी हैं जिन पर हत्या के मामले चल रहे हैं। यह कोठरी तेजपाल को जरूर उस चमचमाते ग्रैंड हयात होटल से बहुत अलग लगी होगी जहां उसने एक लड़की पर यौन हमला किया था। यह वह शख्स है जिसे एक प्रतिभाशाली और कुशाग्रबुद्धि वाला प्रतिष्ठित संपादक समझ जाता था जो विशेष तौर पर महिलाओं के मामलों में मुखर रहता था। पर पीड़िता द्वारा उसे लिखे ये शब्द की वह ‘मेरे पिता का पूर्व साथी तथा दोस्त है, मेरी सहेली का पिता है और वह व्यक्ति है जिसका मैं दिल से कई वर्षों से सम्मान करती थी’ एक ऐसा आरोपपत्र है जो केवल तरुण तेजपाल को ही नहीं इस समाज को भी परेशान करता रहेगा कि हमारा समाज कैसा बनता जा रहा है कि बेटियां सुरक्षित नहीं हैं? उल्लेखनीय है कि खुद तेजपाल बेटियों का बाप है। आमतौर पर बेटियों का बाप इन मामलों में अधिक संवेदनशील होता है। उसे मालूम है कि हमारे समाज में उसकी बेटी को किस तरह की समस्याओं से निबटना पड़ता है। कैसी घटिया कई पुरुषों की निगाह तथा इरादे हो सकते हैं। इसलिए उससे तो अपेक्षा है कि वह दूसरों की बेटियों के मामले में भी वही संवेदनशीलता तथा गंभीरता दिखाएगा पर यहां तो बेटियों का बाप बेटी की सहेली पर अत्याचार कर रहा था। आज तरुण तेजपाल उस कोठरी में हत्यारों की संगत में बैठा जरूर खुद से कह रहा होगा:
एक ज़माने में ख्वाहिश थी कि जाने हज़ारों लोग
अब यह रोना है कि क्यों इस कदर जाने गए!
लेकिन मामला तेजपाल की दुष्टता से भी बड़ा है। मामला इस समाज की दिशा और दशा का है जहां पढ़े-लिखे तरुण तेजपाल या राजेश तथा नुपूर तलवार जैसे लोग अपने पर नियंत्रण खो बैठते हैं और समाज के सामने ऐसी घटिया मिसाल कायम कर देते हैं जो वर्षों भूली नहीं जाएगी।
क्या कारण है कि एक पढ़ा लिखा जिंदगी में सफल तरुण तेजपाल जैसा हाईप्रोफाईल व्यक्ति ऐसा दुराचार कर बैठा? इसका कारण यही प्रतीत होता है कि कई पुरुष खुद को इतने ताकतवार समझ बैठते हैं कि अंधे हो जाते हैं। उनकी हवस के आगे उनके नीचे काम कर रही लड़की तो मामूली है, खेलने की चीज़ है। आसाराम का उदाहरण भी हमारे सामने है। दिल्ली विशेष तौर पर बहुत लोगों का दिमाग खराब करती है क्योंकि यह बड़े और ताकतवार लोगों का शहर है। राजनेता, अफसर, बिजनेसमैन और यहां तक मीडियाकर्मी भी मिलकर एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं। इसी माहौल की पैदावार तेजपाल जैसे लोग हैं। आखिर वह स्टिंग आप्रेशन का बादशाह रहा है। बंगारू लक्ष्मण तथा जार्ज फर्नाडीस का जायंट किल्लर था। उसे कौन हाथ लगा सकता है? तेजपाल इतना बेशर्म तथा लापरवाह इसलिए हो गया था वह दिल्ली के ‘इलीट-क्लब’ अर्थात् सभ्रांत वर्ग का हिस्सा था। बड़े-बड़े नेता उसके मित्र है। अफसर उसकी इज्जत करते हैं। कई लोग उससे डरते भी थे कि कहीं उन्हें फंसा न दे। यही अहंकार और बेपरवाही उसके पतन का कारण बनी।
अफसोस है कि इस पुरुष वर्चस्व वाले समाज में अभी भी वे लोग मौजूद हैं जो समझते हैं कि महिला को चुपचाप ज्यादती बर्दाश्त कर लेनी चाहिए। घर के अंदर हिंसा से लेकर बलात्कार के बारे उसे शिकायत नहीं करनी चाहिए। कार्यस्थल में महिलाओं की सुरक्षा बारे कानून का ज़िक्र करते हुए समाजवादी पार्टी के सांसद नरेश अग्रवाल का कहना है कि इसके कारण महिलाओं को काम नहीं मिल रहा। लोग महिलाओं को पीए नहीं बना रहे कि कहीं किसी तरह का आरोप न लग जाए। इस टिप्पणी में यह झलकता है कि जैसे उस लड़की ने झूठी शिकायत की है। यह भी उल्लेखनीय है कि जिस पुरुष तरुण तेजपाल ने ज्यादती की उसके खिलाफ कुछ नहीं कहा गया। यह वही मानसिकता है जो कुछ इस्लामी देशों में बलात्कार के बाद इसका दोष बलात्कारी पर लगाने की जगह पीडि़ता पर लगा देते हैं। इसमें यह मानसिकता झलकती है कि महिला पुरुष के बराबर नहीं और उसे शिकायत करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। पुरुष कोई गलती नहीं कर सकता और अगर करता है तो कोई बड़ी बात नहीं।
नई दिल्ली में 16 दिसंबर की सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद काफी परिवर्तन आया है लेकिन जैसे तरुण तेजपाल की करतूत या नरेश अग्रवाल या जावेद अख्तर की प्रतिक्रिया से पता चलता है महिला के प्रति नज़रिए में अभी बहुत परिवर्तन नहीं आया। जावेद अख्तर ने भी पहले तरुण तेजपाल की सराहना की थी कि उसने पुरुष की तरह अपनी गलती स्वीकार की है। गलती? क्या एक महिला का यौन उत्पीड़न करना मात्र एक गलती है? जावेद अख्तर उस जमात का हिस्सा है जो खुद को बहुत उदार तथा आधुनिक प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं लेकिन इस एक टिप्पणी से पता चलता है कि सारी उदारता सैक्यूलर-नॉन सैक्यूलर तक ही सीमित है। अंदर से वह नरेश अग्रवाल का सुफस्टीकेटेड अवतार ही है। तरुण तेजपाल इस कथित बुद्धिजीवी वर्ग का हिस्सा रहा है जो अपनी सुविधा के मुताबिक उदार है। दुनिया को दिखाने के लिए बाल लम्बे कर साहित्यिक गोष्ठियों में बहुत कुछ पढ़ा जाता है पर अंदर से खोखले हैं। लेकिन समाज बदल रहा है महिलाएं अब अधिक जागरुक हो चुकी हैं। अधिक हिम्मत दिखा रही हैं। कानून भी सख्त बन गया है। पहले ऐसी ज्यादती के बारे शिकायत नहीं की जाती थी अब इस लड़की ने पहले ई-मेल के जरिए तथा बाद में मैजिस्ट्रेट के सामने सारी आपबीती बयान कर दी है। उसने दबने से इंकार कर दिया। तेजपाल जैसे भेडिय़ों को समझ लेना चाहिए इस बदले माहौल में अब वह सुरक्षित नहीं रहे!
याद करिए जैसिका लाल हत्याकांड। लड़की को केवल इसलिए गोली मार दी गई क्योंकि उसने एक ताकतवार राजनेता के बिगड़े बेटे को और शराब पिलाने से इंकार कर दिया था क्योंकि बार बंद हो चुकी थी। उस लड़के की भी यही प्रतिक्रिया थी कि इस मामूली लड़की की यह जुर्रत कि मुझे इंकार कर रही है? उसे बचाने का राजनीतिक वर्ग ने बहुत प्रयास किया पर न्यायपालिका अड़ गई। ऐसे बहुत से मामले हैं जहां ताकत चाहे वह राजनीति की हो, या पैसे की या मीडिया की, इंसान को इतना बिगाड़ देती है कि वह हैवान बन जाता है। तरुण तेजपाल का मामला देश के मीडिया को अपने अंदर झांकने के लिए भी मजबूर करता है। राडिया टेप इसका सबूत है जहां प्रसिद्ध मीडिया व्यक्तित्व खुशी से राजनीति की शतरंज के मोहरे बन गए थे। जिस तरह मीडिया दूसरों पर उंगली उठाता था उसी तरह आज उसकी तरफ भी उंगली उठ रही है। राजेश और नुपूर तलवार दोनो डैन्टिस्ट हैं। सफल प्रैक्टिस है। फिर क्या कर बैठे? एक बेटी को भी सही संभाल नहीं सके? यह कैसा लाईफ स्टाईल है जो बच्चों को पैसे और सुविधाएं तो देता है पर जिसकी सबसे अधिक जरूरत होती है, प्यार तथा सही देखभाल, के मामले में लापरवाह हो जाता है। और ये जो दो मामले हैं किसी गांव में नहीं हुए। करने वाले अनपढ़ गंवार लोग नहीं थे। ये सभी जिंदगी में सफल लोग हैं। पर समाज के जिस वर्ग को हम आधुनिक, उदार तथा खुली सोच वाला समझते हैं उसी का एक हिस्सा बीमार है। केवल लम्बे बाल रख या पीछे चोटी बना या दाड़ी रख कोई वास्तव में उदार नहीं बनता।
एक बीमार समाज के लक्षण,