मोदी ही विकल्प हैं
हिंदी क्षेत्र में इन चार विधानसभाओं के परिणाम राजनीति को बदल डालेंगे। नए सहयोगी तो कहां मिलेंगे जो कांग्रेस के साथ हैं वे भी बिदक सकते हैं। मौसम के मुर्गे शरद पवार ने आने वाले तूफान का संकेत दे ही दिया। नेतृत्व के लिए यह भी बड़ा संकट है कि पार्टी के अंदर हाहाकार मच गया है। अलग तेलंगाना का विरोध कर रहे कांग्रेस के छ: सांसदों ने ही अपनी ही सरकार के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव का नोटिस दिया है। अगर मैं गलत नहीं तो देश के राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है। इस सबका परिणाम होगा कि सरकार के लिए काम करना और मुश्किल हो जाएगा। अंतिम समय में तो वैसे ही सरकार कमज़ोर तथा निष्क्रिय हो जाती है। अफसरशाही सहयोग बंद कर देती है। अब तो दिग्विजय सिंह भी मान रहे हैं कि सरकार Lame Duck अर्थात् लंगड़ी बत्तख बन जाएगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पहले ही बहुत कमजोर हो चुके हैं अब वह श्रीहीन हो जाएंगे। उनकी सत्ता पर ग्रहण लग जाएगा। जनता की गाढ़ी कमाई की बर्बादी इस सरकार तथा इस प्रधानमंत्री, इस कांग्रेस पार्टी तथा इसकी अध्यक्षा, को बहुत भारी पड़ेगी। केंद्र में मनमोहन सिंह का भी वही हश्र होगा जो दिल्ली में शीला दीक्षित का हुआ है। वास्तव में कांग्रेस के हित में है कि वह कुछ देर विपक्ष में बैठे तथा युवा नेतृत्व को हर स्तर पर आगे लाए। लेकिन यह भी नहीं होगा। अगर प्रभावी युवा नेताओं को आगे लाया गया तो राहुल गांधी फीके पड़ जाएंगे। इस बीच राजस्थान में बुरी तरह से कुचले गए अशोक गहलोत का कहना है कि ‘कम्यूनल फोर्सोस’ ताकत हासिल कर रही हैं। या रब्ब! ये लोग कब समझेंगे कि लोग बदल गए उन्हें भी अपनी घिसी पिटी शब्दावली बदलनी चाहिए? चापलूसी की हदें पार करते हुए सलमान खुर्शीद का कहना है कि सोनिया गांधी न केवल राहुल गांधी बल्कि सारे देश की मां हैं। अर्थात् कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता उस वक्त ‘इंदिरा अम्मा’ के बाद ‘सोनिया अम्मा’ का युग शुरू करना चाहते हैं जब देश इतिहास का बोझ उतार कर फैंक रहा है।
अरविंद केजरीवाल तथा उनकी ‘आप’ लोगों में कुशासन तथा भ्रष्टाचार के प्रति नाराजगी की भावना का दोहन करने में सफल रहे हैं। लेकिन आप के आगे भी बहुत चुनौतियां हैं। नेतृत्व तथा कार्यकर्ता अनुभवहीन हैं। प्रशासन चलाने या राजनीतिक पार्टी को संभालने का उन्हें तुजर्बा नहीं है। एक प्रकार से उन्हें छप्पड़ फाड़ कर मिल गया जिसके लिए वे खुद भी तैयार नहीं थे इसीलिए अभी सरकार बनाने के लिए तैयार नहीं हैं। वे जानते हैं कि एक दम सत्ता संभालनी पड़ी तो यह भ्रष्ट व्यवस्था उन्हें फेल कर देगी। केजरीवाल बार-बार कह रहे हैं कि मैं कुछ नहीं सब कुछ जनता है पर जनता ने तो सरकार नहीं चलानी। सरकार तो वही चलाएंगे जिनकी जिम्मेवारी है। यह जिम्मेवारी संभालने में हिचकिचाहट नज़र आती है। अरविंद केजरीवाल तो स्थाई बागी रहना चाहेंगे लेकिन अगर व्यवस्था को बदलना है तो सत्ता संभालनी पड़ेगी, हाथ गंदे करने पड़ेंगे। उनकी यह भी समस्या है कि लोगों को उनसे बहुत अधिक आशा है। वायदे पूरे करने हैं। बिजली तथा पानी के बिल आधा करना बहुत मुश्किल होगा। जो मापदंड अरविंद केजरीवाल ने दूसरे के लिए स्थापित किए हैं उन्हीं के अनुसार उन्हें भी परखा जाएगा। इस मामले में भाजपा की कोई समस्या नहीं। सब जानते हैं कि वह सामान्य राजनीतिक दल है। किसी भी राजनीतिक दल के गुण अवगुण सब उसमें मौजूद हैं लेकिन ‘आप’ की परख कठोर होंगी।
कुछ मीडिया वाले जो कांग्रेस के पतन से परेशान हैं और वे नरेंद्र मोदी के उत्थान को पचा नहीं पा रहे वे अरविंद केजरीवाल को नरेंद्र मोदी का विकल्प बता रहे हैं। मैं हैरान हूं इस मूर्खता से। जिस पार्टी के केवल दिल्ली में केवल 28 विधायक हैं उसका नेता राष्ट्रीय स्तर की चुनौती दे सकता है? अभी तो दिल्ली में भी पैर नहीं जमे और दिल्ली तो छोटी घनी जगह है। देश बहुत बड़ा। दुनिया भर की भिन्नता है। केवल केजरीवाल, योगेंद्र यादव तथा प्रशांत भूषण पर आधारित ‘आप’ राष्ट्रीय विकल्प कैसे बन जाएगी? अब शायद मुंबई में प्रयास किया जाएगा लेकिन याद रखना चाहिए दिल्ली के बाद अब अन्ना हज़ारे ने मुंबई में अपना आंदोलन शुरू किया तो वह फ्लाप सिद्ध हुआ था। प्रादेशिक पार्टियां भी सरकार बनाने के लिए भाजपा को पसंद करेंगी क्योंकि जैसा कहा गया कि जिस शैतान को आप जानते हो वह उस शैतान से बेहतर है जिसे आप नहीं जानते!
मीडिया के एक वर्ग के स्तुतिगान से बचते हुए आप के नेतृत्व को अपनी लक्ष्मण रेखा समझनी चाहिए। आप का भविष्य बहुत कुछ दिल्ली के घटनाक्रम पर निर्भर है। ‘आप’ यहां जिम्मेवारी से भागती नज़र आ रही है। नकरात्मक राजनीति की भी सीमा होती है। आप पुरानी व्यवस्था तबाह करना चाहते हैं पर नई कायम करने के लिए ज़रा भी जोख़िम उठाने को तैयार नहीं। उनकी मानसिकता तो यह प्रतीत होती है:
कई बार डूबे कई बार उभरे
कई बार साहिल से टकराई किश्ती,
तलाशे तलब में मिली है वह लज्जत
दुआ कर रहा हूं कि मंज़िल न आए!
इन चुनावों में सत्ता विरोधी भावना केवल कांग्रेस की सरकारों के खिलाफ ही चली है। कांग्रेस के नेतृत्व का ‘हम’ उन्हें तबाह कर गया। लोगों को एक साफ सुथरी प्रभावी सरकार चाहिए। जैसा मैं बहुत देर से लिखता आ रहा हूं सैक्यूलर-कम्यूनल बहस से लोगों का पेट नहीं भरता। रुका विकास तबाही को आमंत्रित करता है। जो केवल 10 जनपथ की परिक्रमा कर संतुष्ट रहे हैं उनके दिन अब लद गए क्योंकि राजनीति बदल गई है। जैसा लोकतंत्र में होना भी चाहिए राजनीति बिंदास, श्रद्धाहीन, अवज्ञाकारी और मूर्ति भंजक हो गई है। वह रूढिय़ों का तिरस्कार कर रही है। दिल्ली में ‘आप’ के उदय का यही अर्थ है। कांग्रेस के लिए 100 का आंकड़ा पार करना भी इन परिस्थितियों में मुश्किल होगा।
सवाल यह भी उठता है कि अगली सरकार कौन बनाएगा? देश में दो ही अखिल भारतीय पार्टियां हैं, कांग्रेस तथा भाजपा। कांग्रेस के पतन के बाद केवल भाजपा ही राष्ट्रीय विकल्प है। संभावना नहीं कि जनता प्रादेशिक पार्टियों को देश की चॉबी पकड़ाएगी क्योंकि लोग मज़बूत केंद्र चाहते हैं। अगर सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ जनभावना हो तो कुछ देर अनिश्चितता का माहौल रहता है फिर उस पार्टी और उस नेता की तरफ तरंग शुरू हो जाती है जो प्रभावी सरकार बनाने की स्थिति में हैं। कांग्रेस को दो पिछले चुनावों में ऐसी तरंग का फायदा हुआ था। इस बार भाजपा की बारी है, क्योंकि यह एक मात्र पार्टी है जो प्रभावी सरकार दे सकती है। नरेंद्र मोदी बनाम कौन? इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं। निश्चित तौर पर राहुल गांधी या अरविंद केजरीवाल वे व्यक्ति नहीं हो सकते। नरेंद्र मोदी की जिम्मेवारी है कि पार्टी की गति को जारी रखें। उन्हें अब 2014 के लिए प्रभावी विकल्प खड़ा करना है। परछाई मंत्रिमंडल तैयार करना चाहिए। खेल बदल गया है। राजनीति की शब्दावली बदल गई है। इस राष्ट्रीय भावना को समझते और पहचानते हुए नई रणनीति तैयार करनी होगी। देश उनकी तरफ देख रहा है। जो शून्य सामने नज़र आ रहा है उसे उन्हें भरना है। इस वक्त केवल वे ही भर सकते हैं। राजनीति का यथार्थ है कि मोदी ही एकमात्र विकल्प हैं।
मोदी ही विकल्प हैं ,
I have read your today’s article and really do agree with you that Modi is the only Choice for us.But i want to raise some apprehensions:
India is a very diverse country, one might hardly agree that Mr. Modi truly understands the problems faced by common people of India.
Mr. Modi has always attacked Gandhi’s, Mr. Manmohan Singh but he has never discussed border issues of China, foreign polices of India. He has not proposed any health program for Indian people. We are still waiting his plan to make India as a stronger economy………………..about education polices…….. reforms for villagers. ….
After, Gujrat elections he is always busy for his promotions as a PM candidate. He never showed any intention to hand over the CM ship to some other dedicated person in Gujrat. So as to provide a fulltime CM for the people of Gujrat.
So the question coming to my mind is
Is really Mr. Modi is the only choice we have?
If yes
Then , Our country has so many expectations from him. …