राजनीति या रियालिटी शो?
46 वर्ष के बाद देश को लोकपाल मिलने वाला है। पहली बार प्रधानमंत्री, मंत्रीगण, सांसद बड़े अफसर अब जांच तथा निगरानी के दायरे में आ जाएंगे। आशा है कि इससे भ्रष्टाचार में कुछ कमी आएगी। अन्ना हज़ारे का भी मानना है कि इससे पचास प्रतिशत भ्रष्टाचार कम होगा। जिन्होंने पैसे बनाने हैं वे निश्चित तौर पर नए रास्ते ढूंढ निकालेंगे लेकिन अब उन पर कुछ अंकुश लगेगा। अफसरशाही भी इसके शिकंजे में आ जाएंगी जिसका अपना सकरात्मक असर होगा क्योंकि इस वक्त अफसरशाही पीछे से तारें खींचती है। अरविंद केजरीवाल इस लोकपाल से संतुष्ट नहीं। वह इसे ‘जोकपाल’ अर्थात् मज़ाक का मामला कहते हैं लेकिन निश्चित तौर पर यह बड़ा कदम है। जो कमियां रह गई हैं उन्हें आने वाले वर्षों में दूर किया जा सकेगा। कांग्रेस इसके लिए राहुल गांधी को श्रेय दे रही है जबकि अगर किसी को श्रेय जाता है तो यह अन्ना हजारे-अरविंद केजरीवाल की जोड़ी को जाता है। गुरू और चेला अब अलग हो गए हैं लेकिन अगर अब देश को लोकपाल मिल रहा है तो यह अन्ना हज़ारे के आंदोलन तथा दिल्ली में आप को मिली सफलता का ही परिणाम है। 2011 में राहुल गांधी ने लोकपाल के समर्थन में भाषण दिया था उसके बाद वे दो साल खामोश रहे। 2011 और 2013 के बीच क्या बदल गया? देश की राजनीति में बदलाव इन चार विधानसभा के चुनाव परिणाम रहे हैं जिन्होंने बता दिया कि लोगों की बर्दाश्त खत्म हो रही है और वह और भ्रष्टाचार स्वीकार करने को तैयार नहीं। इस संदेश को कांग्रेस के नेताओं ने अच्छी तरह से समझ लिया है नहीं तो जो मंत्री आज लोकपाल के गुण गा रहे हैं वे ही लोग पहले इसके रास्ते में रुकावटें खड़ी करने में व्यस्त थे।
जहां मैं लोकपाल के लिए केवल अन्ना-अरविंद केजरीवाल की जोड़ी को श्रेय देता हूं वहां मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं कि केजरीवाल तथा आप की राजनीति मेरी समझ से बाहर हैं। अरविंद केजरीवाल का कहना है कि आप दिल्ली में सरकार बनाए या न बनाए इसके बारे जनता की राय ली जाएगी। 25 लाख चिट्ठियां निकाली जा रही हैं और लोगों से कहा जा रहा है कि वह एसएमएस कर जवाब दें कि आप को सरकार बनानी चाहिए या नहीं? यह क्या तमाशा है? क्या सरकार बनाना भी कोई रियेलटी शो है जहां ‘इंडियन आइडल’ या ‘झलक दिखला जा’ की तरह जनता से वोट मांगे जाएंगे? क्या हर बात पर इसी तरह जनता की राय ली जाएगी? कल को अगर आप की केंद्र में सरकार बनती है और पाकिस्तान या चीन से झगड़ा हो जाता है तो कार्रवाई करने से पहले लोगों से पूछा जाएगा कि वे बताएं कि कार्रवाई के बारे वे ‘यैस’ हैं या ‘नो’? और एसएमएस से कैसे पता चलेगा कि दिल्ली की राय क्या है? अधिकतर लोग तो एसएमएस करते ही नहीं।
स्विटज़रलैंड में अवश्य यह प्रथा है कि हर महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर लोगों से राय प्राप्त की जाती है, पर वह चप्पे जितना देश है। भारत में तो अराजक स्थिति पैदा हो जाएगी। अरविंद केजरीवाल फंस गए हैं। वे जानते हैं कि दोनों भाजपा तथा कांग्रेस शातिर पार्टियां हैं और उनके पैर नहीं जमने देंगी इसलिए जिम्मेवारी से भाग रहे हैं। उन्हें खुद तय करना चाहिए कि वे सरकार बनाएंगे या नहीं बनाएंगे। एसएमएस से तो केवल मोबाईल कंपनियों को ही लाभ होगा। आप की समस्या यह है कि मीडिया ने उन्हें बहुत बढ़ा-चढ़ा दिया है। मीडिया का एक वर्ग तो यह प्रभाव दे रहा है कि जैसे आप एक क्रांति ले आया है लेकिन देखा जाए तो दिल्ली में भी आप को केवल 28 सीटें तथा 27 प्रतिशत मत ही मिले हैं। इतने कम समर्थन से वे देश की राजनीति नहीं बदल सकते। वे देश की राजनीति तब ही बदल सकेंगे अगर वे सत्ता में आकर प्रशासन में गुणात्मक परिवर्तन लाते हैं। लेकिन इसके लिए सरकार बनानी पड़ेगी जिसको लेकर आप धर्मसंकट में है। एसएमएस से यह धर्म संकट दूर नहीं होगा।