तीसरे मोर्चे की कवायद
चुनाव नजदीक है और एक बार फिर तीसरे-चौथे मोर्चे को लेकर कवायद शुरू हो गई है। कई प्रादेशिक नेता पंख फडफ़ड़ा रहे हैं। नीतीश कुमार तथा मुलायम सिंह यादव सक्रिय हैं तो अन्नाद्रमुक ने सीपीआई के साथ गठबंधन कर लिया है। पश्चिम बंगाल में अलग-अलग तृणमूल कांग्रेस तथा मार्कसी पार्टी दोनों सक्रिय हैं। 14 पार्टियों को मिला कर एक गठबंधन बनाने का प्रयास हो रहा है। दूसरी तरफ यूपीए के खेमे में बेचैनी है। धमकियां देने के बाद उमर अब्दुल्ला अब कुछ खामोश हो गए हैं पर शरद पवार की पार्टी बार बार कह रही है कि नरेंद्र मोदी के बारे न्यायपालिका के फैसले को स्वीकार करना चाहिए। पहले प्रफुल्ल पटेल और अब शरद पवार का कहना है कि अगर न्यायपालिका ने कोई फैसला दिया है तो इसका सम्मान होना चाहिए। अर्थात् शरद पवार तथा प्रफुल्ल पटेल दोनों राहुल गांधी से सहमत नहीं कि नरेंद्र मोदी गुजरात के दंगों के लिए जिम्मेवार हैं। वे अपना विकल्प खोज रहे हैं। वे अब गुजरात के दंगो के मामले को खत्म करना चाहते हैं जबकि सोनिया गांधी अभी भी मोदी पर ‘ज़हर की खेती’ करने का आरोप लगा रही हैं। अर्थात् राजनीति में भारी उथलपुथल होनी अब तय है। जहां तक तीसरे-चौथे मोर्चे की बात है इसके कई अवतार हम अतीत में देख चुके हैं। देवेगौडा तथा इंद्र कुमार गुजराल की सरकारें तीसरे मोर्चे की ही सरकारें थी जिन्हें बाहर से कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था लेकिन अस्थिर रहीं। कांग्रेस की जब अपनी सरकार नहीं बनती तो वह तीसरे मोर्चे का शगुफा छोड़ देती हैं। अब भी अगर तीसरे मोर्चे की सरकार बनती है तो बाहर से कांग्रेस समर्थन दे सकती हैं। नरेंद्र मोदी तथा भाजपा को दूर रखने के लिए कांग्रेस के पास भी यही एकमात्र विकल्प है जैसे दिल्ली में आप की सरकार के मामले में किया गया है।
देश में एक बहुत बड़ी राय है जो कांग्रेस तथा भाजपा से अलग है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु आदि में मजबूत प्रादेशिक पार्टियां हैं जिनकी सरकारें हैं और जो आगे चल कर तीसरा मोर्चा बना सकती है। अर्थात् तीसरे मोर्चे की सरकार की संभावना है लेकिन सवाल दूसरा है कि तीसरे मोर्चे की सरकार बननी भी चाहिए? न केवल अतीत का अनुभव कड़वा रहा है बल्कि वर्तमान में भी यह कथित मोर्चा बहुत आशा का संचार नहीं करता क्योंकि जहां इतने नेताओं का जमघट होगा वहां अहम् का टकराव सार्थक सरकार नहीं बनने देगा। देश को मजबूत सरकार तब ही मिली है जब इसके केंद्र में भाजपा या कांग्रेस हो। बाहर से इनके समर्थन से सरकार अधिक देर नहीं टिकेगी। कांग्रेस तो विशेष तौर पर इस ताक में होगी कि इसे कैसे गिराया जाए? ऐसी सरकार के स्थायित्व के अतिरिक्त और बहुत से सवाल उठते हैं। इसका नेता कौन होगा? मुलायम सिंह यादव, ममता बनर्जी तथा जयललिता तीनों खुद को भावी प्रधानमंत्री समझ रहे हैं। तीनों के समर्थक यह प्रभाव दे रहे हैं कि जैसे देश इनकी इंतज़ार कर रहा है। मुलायम सिंह का दावा है कि वे सबसे बड़े प्रदेश के नेता हैं, चाहे उनका समर्थन लगातार कम होता जा रहा है। जयललिता कह रही हैं कि दक्षिण भारत को मौका मिलना चाहिए तो ममता बनर्जी का मानना है कि वे देश भर में बहुत लोकप्रिय हैं। इसके अतिरिक्त इन पार्टियों में बहुत वैचारिक मतभेद है। शरद यादव ने भी स्वीकार किया है कि बहुत विरोधाभास है। पश्चिम बंगाल से ही तृणमूल कांग्रेस तथा वामदल एक घाट पर पानी नहीं पी सकते। यही हाल उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा का है। वैसे मायावती की अपनी भी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा है। वे पहली दलित प्रधानमंत्री बनना चाहती हैं।
लेकिन असली मुद्दा है कि इस मोर्चे का कार्यक्रम क्या होगा? विचारधारा क्या होगी? देश के आगे जो बड़ी समस्याएं हैं उनके बारे उनके पास क्या इलाज है? अर्थ व्यवस्था को कौन सही कर सकता है? क्या तीसरे मोर्चे की यह मेंडकों की पंसेरी सख्त आर्थिक निर्णय ले सकेगी? विदेश नीति के बारे क्या होगा क्योंकि तृणमूल कांग्रेस बांग्लादेश से संबंध सुधरने नहीं देगी तो अन्ना द्रमुक श्रीलंका से। क्या वामदल नक्सल समस्या से सख्ती से निबटने देंगे? ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनका तीसरे-चौथे मोर्चे के पास जवाब नहीं होगा। अगर आप हिसाब करें तो शायद इन सब रंग बिरंगों का जोड़ सरकार बनाने लायक हो जाए पर क्या यह सरकार स्थिर होगी? क्या यह कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा वह सरकार दे पाएंगे जिसकी देश को इंतज़ार और जरूरत है? देश इस वक्त उस सरकार के लिए तड़प रहा है जो मज़बूती से हमारी समस्याओं का समाधान निकाल सके। लोग ठंडे तर्क से फैसला करेंगे कि देश को कौन संभाल सकता है और कौन सही दिशा दे सकता है। मुलायम सिंह यादव-मायावती+नीतीश कुमार-लालू प्रसाद यादव+नवीन पटनायक+ममता बनर्जी-वामदल+जयललिता-द्रमुक+जगनमोहन रेड्डी कैसी सरकारें देंगे इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। कागज़ों पर ऐसी सरकार बन सकती हैं पर यह संभावना बहुत कम है कि कुएं से निकल कर भारत की जनता खाई में छलांग लगा देगी।
तीसरे मोर्चे की कवायद ,
आज हमारे देश की राजनीति किस तरफ़ जा रही है और हम अपनी भावी पीढ़ी के लिये क्या सिर्फ असमंजस और अराजकता ही छोड़ कर जायेंगे?