हंगामे से सूरत नहीं बदलेगी
हैदराबाद के एक ज्यूलरी शोरूम में सेंध लगाकर दो युवक लगभग करोड़ों रुपए के गहने निकालने में सफल रहे। इनमें से एक युवक ने समर्पण कर दिया पर समर्पण से पहले मुस्कराते हुए उसने एक टीवी चैनल को जो बताया वह दिलचस्प है। जी. किरण कुमार जो पायलेट बनना चाहता था पर राजमिस्त्री बन गया का कहना था कि ‘राजनेता चोर है जो दिन-रात पांच वर्ष लूटते रहते हैं। मैं तो केवल एक रात के लिए चोर बना ताकि दुनिया को इस देश में असमानता बता सकूं।’
अधिकतर लोग अपनी बदमाशी के लिए ऐसे तर्क घड़ लेते हैं लेकिन राजनीतिज्ञों के बारे किरण कुमार ने जो कहा वह प्रभाव है जो अब सारे देश में फैल गया है कि ‘वह दिन रात पांच वर्ष लूटते रहते हैं।’ इसी कारण कई बार थप्पड़ तो कई बार जूतियां पड़ चुकी हैं। निश्चित तौर पर ऐसे राजनेता हैं जिन्होंने अगली दस पीढिय़ों के लिए इंतज़ाम कर लिया है लेकिन बहुत से ऐसे भी हैं जो ईमानदारी से अपना दायित्व निभा रहे हैं। और जरूरी भी नहीं कि सार्वजनिक प्रभाव सही हो। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं सी बी गुप्ता। उन्हें तब ‘चोर बाजार गुप्ता’ कहा जाता था लेकिन जब मरे तो धेल्ला पास नहीं था। इसी तरह हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री वाई एस परमार परिवार के लिए कोई जयदाद नहीं छोड़ कर गए। लेकिन यह भी हकीकत है कि उन लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो भ्रष्ट हैं और जो राजनीति में सेवा के लिए नहीं बल्कि कमाने के लिए आते हैं। विदेशों में जिन भारतीयों का पैसा जमा है उनमें अधिकतर उद्योगपति तथा राजनीतिज्ञ हैं। और मेरा तो अनुभव है कि जो नेता अपनी ईमानदारी की बहुत बात करते हैं वे सबसे अधिक खतरनाक होते हैं। पता ही नहीं लगता कि कब हाथ साफ कर जाते हैं।
यह कड़वी सच्चाई है कि आम जनता में राजनेताओं की छवि बहुत बुरी बन रही है। उन्हें इस प्रभाव के बारे चिंतित होना चाहिए। सभी नहीं हैं पर एक ‘वर्ग’ के तौर पर यह परिभाषा शायद गलत भी नहीं। उन्हें एक अय्याश बिगड़ा हुआ भ्रष्ट वर्ग समझा जाता है। 162 सांसद हैं जिन पर आपराधिक मामले चल रहे हैं। 73 पर गंभीर जुर्म है, 4032 विधायकों में से 1258 ऐसे हैं जिन पर गंभीर मामले दर्ज हैं। इसलिए अब यह दाग राजनेताओं पर चिपक गया है जिसका इस्तेमाल अरविंद केजरीवाल तथा उनकी आम आदमी पार्टी कर रही है। उन्होंने अढ़ाई दर्जन राजनेताओं की सूची जारी की है जिन्हें वे बेईमान कहते हैं। लेकिन इसका कोई सबूत केजरीवाल ने नहीं दिया। केवल कुछ लोगों के सामने उन्होंने पूछा ‘ये बेईमान हैं?’ उधर से हां, आने के बाद केजरीवाल बोले कि इन्हें हराना है। हो सकता है कि जिन लोगों के नाम केजरीवाल ने पढ़े हैं उनमें से कई भ्रष्ट हों लेकिन सबूत कहां है? अखबारों की कटिंग सबूत नहीं हो सकती।
विनोद मेहता ने बताया है कि आप उनकी ‘आऊट लुक’ पत्रिका में जो प्रकाशित हुआ है उसके आधार पर आरोप पत्र बनाती रही हैं। अब कहना है कि उनकी सरकार गिराने का प्रयास हो रहा है। सबूत केवल यह है कि ‘किसी’ ने फोन किया था। उनका दावा है कि एक महीने में उनकी सरकार आने के बाद दिल्ली में भ्रष्टाचार बहुत कम हो गया है। यह मानना मुश्किल है। भ्रष्टाचार बहुत गहरा मामला है। भ्रष्टाचार कम करना है तो व्यवस्था में बहुत परिवर्तन करने की जरूरत है। जिस तरह चुनाव लड़े जाते हैं उससे शुरू होना चाहिए। राजनीतिक दलों को आरटीआई के नीचे लाना होगा। आपराधिक छवि वाले लोगों को टिकट नहीं दिया जाना चाहिए। अटल बिहारी वाजपेयी ने माना था कि निर्वाचित होने के बाद जन प्रतिनिधि का पहला काम झूठ बोलना है क्योंकि खर्चे के बारे वह झूठा शपथपत्र दाखिल करता है। खुद केजरीवाल पर भी यह आरोप लगा है कि चुनाव में उन्होंने सीमा से अधिक खर्च किया है लेकिन यह आरोप है। अदालत में यह प्रमाणित नहीं। ‘आप’ के पास अगर इन नेताओं के खिलाफ आरोप है तो उन्हें अदालत में जाना चाहिए और उन्हें सजा दिलवानी चाहिए। इस काम के लिए उनके पास प्रशांत भूषण जैसा बढिय़ा वकील भी है। अगर वह इनमें से एक को भी सज़ा दिलवाने में सफल हो जाएं तो यह देश की बहुत बड़ी सेवा होगी पर जिस तरह वे चल रहे हैं वह तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को तुच्छ बना रहे हैं और इसे सस्ते तमाशे में परिवर्तित कर रहे हैं। उन्हें दुष्यंत के ये शब्द याद रखने चाहिए:
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
नुक्कड़ सभाओं में बेईमान! बेईमान! कहने से सूरत नहीं बदलेगी। यह बहुत गंभीर मामला है।
मैं मानता हूं कि हमारे राजनेता वास्तव में बहुत बिगड़े हुए हैं। कुछ वर्ष पहले लेह एयरपोर्ट पर बड़ा बोर्ड देखा था जिनमें उन लोगों के नाम लिखे थे जिन्हें सुरक्षा जांच से मुक्त रखा गया है। राष्ट्रपति से शुरू होकर अंत में राबर्ट वाड्रा का नाम था। अभी भी वाड्रा उस सूची में है। राबर्ट वाड्रा को सामान्य सुरक्षा से मुक्त क्यों रखा गया? इतने वर्षों में कुछ नहीं बदला जो सांसदों को एयरपोर्ट पर तथा एयरलाईन्स द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं के बारे ताज़ा सरकारी निर्देश से पता चलता है। पहले ही ये सुविधाएं एयर इंडिया सांसदों को प्रदान करती हैं अब निजी एयर लाईन्स से भी कहा गया है कि वे सांसदों को ये सुविधाए प्रदान करे। इस वक्त हवाई अड्डों पर तथा एयर इंडिया में हमारे माननीय सांसदों को वीआईपी ट्रीटमैंट मिलता है। उन्हें बाकी जनता की तरह लाईन में से गुजरना नहीं पड़ता। इंतजार करने के लिए विशेष लाऊंज या कक्ष है जिसमें मुफ्त खाना पीना मिलता है। एयरपोर्ट पर उनका सामान उठाने के लिए विशेष व्यक्ति नियुक्त होता है। हवाई जहाज के अंदर पायलट तथा स्टाफ को आदेश दिए गए हैं कि वे सांसद साहिब का खुद अभिनन्दन करें। अपना परिचय उनसे करवाएं और उनका विशेष ध्यान रखें। अगर मंत्री है तो वे तो विशेष-विशेष हैं ही। सबको एक तरफ कर उन्हें पहले लांघने दिया जाता है। उल्लेखनीय है कि मंत्रीजी कभी इंतजार नहीं करते। चाहे वे सड़क पर हों या आकाश में वे सदा जल्दी में होते हैं। कई बार ऐसा हो चुका है कि मंत्री या सांसद के लिए जहाज और रेल को रोका गया है।
सवाल तो यही उठता है कि किसी को भी ऐसी विशेष सुविधा क्यों दी जाए? क्या एयरइंडिया आज़म खान की भैंस है जिसका ये लोग इस तरह दोहन कर रहे हैं? मायावती को यह सुविधा प्रदान है कि उनकी कार ठीक हवाई जहाज तक जा सकती है। और भी बहुत से कथित वीआईपी होंगे जिन्हें ऐसी सुविधा मिली हुई है पर स्विट्जरलैंड के राष्ट्रपति तो खुद एयरपोर्ट की लाइन में खड़े होते हैं। केन्द्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल जो नागरिक उड्डयन मंत्री भी रह चुके हैं, का सवाल है कि अगर सांसदों को कुछ खास सुविधाएं मिलती भी हैं तो इसमें गलत क्या है?
यही तो गलत है। यह मानसिकता ही गलत है कि सांसद या विधायक या मंत्री विशेष है और वह विशेष सुविधा के अधिकारी है। टी.वी.बहस में एक सांसद जो युवा लगते थे कह रहे थे कि अगर हवाई अड्डे पर कोई उनका ब्रीफकेस उठा लेता है तो इसमें बुरा क्या है? क्या सांसद अपना ब्रीफकेस नहीं उठा सकते? मैं वरिष्ठ नागरिक हूं। हवाई अड्डों पर मैंने तो सदा अपना सामान खुद उठाया है। अफसोस है कि ऐसे जन प्रतिनिधियों की संख्या बढ़ती जा रही है जो समझते हैं कि वे खास हैं। तर्क यह दिया जाता है कि इन विशेष सुविधाओं से उनके काम की एफिशैंसी बढ़ जाती है पर हमारी संसद में कितना काम होता है, यह जनता जानती ही है!
हंगामे से सूरत नहीं बदलेगी ,