मानवता शर्मसार हुई
वह 14 महीने की थी। अभी वह अपनी बेरोजगार मां का दूध ही पी रही थी कि सरकारी क्रूरता के कारण उसकी मौत हो गई। डॉक्टर कहते हैं कि वह कुपोषण से मारी गई। अगर यह भी सही है तो भी शर्म की बात है कि आज के पंजाब में एक बच्ची कुपोषण की शिकार हो गई।
लेकिन नहीं, वह कुपोषण से नहीं मारी गई। वह सरकारी क्रूरता के कारण मारी गई। 2009 से बेरोजगार चल रही उसकी मां बाकी ईजीएस अध्यापकों के साथ बठिंडा की एक टंकी पर प्रदर्शन कर रही थी। मां की मजबूरी थी कि वह बेरोजगार थी और मजबूरी थी कि दूध पीती बच्ची को वह घर नहीं छोड़ सकती थी इसलिए इन सर्द रातों में वह 14 महीने की बच्ची के साथ टंकी पर चढ़ी हुई थी।
तब वहां प्रशासनिक क्रूरता का एक नया अध्याय लिखा गया। सरकारी आदेश पर टैंट हाऊस वालों को कहा गया कि इन्हें रज़ाईयाँ न दी जाएँ। इन्हें टैंट न दिए जाएँ। जो रजाईयाँ स्वयं सेवी संगठनों द्वारा दी गई थी वे भी उठा ली गई और इस कड़क सर्दी में टंकी के ऊपर इन बेरोजगारों को खुले आकाश के नीचे बिना किसी बचाव के छोड़ दिया गया।
इनमें 14 महीने की इकनूर कौर रूथ भी थी जो यह ठंड बर्दाश्त नहीं कर सकी। जब उसे अस्पताल ले जाया गया वह कांप रही थी। अब डॉक्टर अपना बचाव कर रहे हैं कि वह कुपोषण से मारी गई लेकिन उसकी मौत तो उस वक्त लिख दी गई थी जब प्रशासन ने जबरन ऊपर से कपड़ा उठा लिया था।
होशियारपुर से समाचार है कि एक महिला इसलिए मारी गई क्योंकि सरकारी हस्पताल के डॉक्टर केंद्रीय मंत्री के समारोह में व्यस्त थे। जब उसकी हालत बिगड़ी तो रिश्तेदार समारोह में व्यस्त डाक्टरों की तरफ भागे। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। केंद्रीय राज्यमंत्री संतोष चौधरी का कहना है कि सरकारी हस्पतालों में अक्सर ऐसी मौत होती हैं।
हो सकता है कि इस महिला को बहुत खराब हालत में वहां लाया गया हो लेकिन अपना काम छोड़ कर डॉक्टर मंत्री के समारोह में क्या कर रहे थे? यह प्रशासनिक चमचागिरी तथा उदासीनता कब खत्म होगी?
लेकिन इकनूर कौर रूथ तो बीमार नहीं थी। वह बच्ची मारी गई क्योंकि इस निर्दयी प्रशासन ने बेरोजगार अध्यापकों को खुले आकाश के नीचे अपना धरना जारी रखने के लिए मजबूर कर दिया। बठिंडा के टैंट हाऊस वालों को सख्त हिदायत दी गई कि इन्हें टैंट न दिए जाएँ, रज़ाईयाँ न दी जाएँ। मीडिया से कहा गया कि इन्हें करवरेज न दें ताकि प्रदर्शन खुद खत्म हो जाएँ। यह सरकारी रवैया 14 वर्ष की नन्हीं रूथ की जिंदगी खत्म कर गया।
और अफसोस कि यह सब उस सांसद के चुनावक्षेत्र में हुआ जिसने बच्चियों की हिफाज़त के लिए ‘नन्हीं छांव’ कार्यक्रम शुरू किया हुआ है।
इस देश में बेरोजगारी बहुत है। सभी को नौकरियां नहीं दी जा सकती। जो ईजीएस अध्यापक प्रदर्शन कर रहे हैं अधिकतर ने योग्यता की वह परीक्षा पास नहीं कि जिससे उन्हें पक्की नौकरी मिल जाए। जिन्होंने कर लिया उन्हें भी नौकरी नहीं दी जा रही। अध्यापकों की हज़ारों असामियां खाली पड़ी हैं। सरकार उन्हें भरने की कोशिश भी नहीं कर रही क्योंकि साधन नहीं हैं। इसलिए एक तरफ शिक्षा का स्तर गिर रहा है तो दूसरी तरफ बेरोजगार अध्यापक आंदोलन कर रहे हैं।
पर इस लोकतंत्र में प्रदर्शन करने का हक है। मैं स्वीकार करता हूं कि कई बार हताशा में बेरोजगार अपनी सीमा लांघ जाते हैं। बार-बार मंत्रियों का घेराव करने का अनुचित प्रयास किया जाता है। सरकार की तरफ से उन्हें लाठियां मिलती हैं। यह बादल सरकार के समय ही नहीं हो रहा। यह अमरेंद्र सिंह सरकार के समय भी हुआ था। दोनों तरफ से कुछ मर्यादा दिखाने की जरूरत हैं।
लेकिन यह सब नन्हीं इकनूर रूथ के लिए कोई मायने नहीं रखता। उसे मालूम नहीं था कि उसकी मां की क्या मजबूरी है। उसे मालूम नहीं था कि रोज़ाना संगत दर्शन करने वाले प्रकाश सिंह बादल की सरकार ने उसे, उसकी मां तथा बाकी बेरोजगारों को इस भीषण सर्दी में टंकी के ऊपर खुले आकाश के नीचे बेसहारा छोड़ दिया था।
अब इकनूर कौर की मौत को लेकर राजनीति हो रही है। जब मैं लिख रहा हूं तब तक उसके शव को लेकर सड़क पर रख अध्यापक डटे हुए थे। परिवार को मुआवज़ा तथा बेरोजगारों को नौकरी देने की मांग हो रही थी।
सरकार क्या फैसला करती है मालूम नहीं। बेरोजगार अध्यापकों का मामला अब रफा-दफा नहीं किया जा सकता लेकिन भर्ती तो नियमों के अनुसार ही हो सकती है। सरकार इसलिए कटघरे में है क्योंकि इन्हें खुले आकाश में असुरक्षित छोड़ दिया गया।
इकनूर कौर रूथ तो इस सब विवाद, इस बहस से बहुत दूर जा चुकी है। वह अब वापिस नहीं आ सकती। अभी उसने दुनिया अच्छी तरह से देखी भी नहीं थी कि वह दुनिया से चल बसी। सरकार शर्मसार हो या न हो, मानवता निश्चित तौर पर शर्मसार हुई है।
मानवता शर्मसार हुई,