संदेशवाहक को मत मारो
चुनाव नजदीक है, कांग्रेस की हालत बहुत अच्छी नहीं लगती इसलिए पार्टी के बड़े नेता बहक रहे हैं। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे जो कभी महाराष्ट्र में दरोगा रह चुके हैं ने बौखलाते हुए मीडिया को दरोगा वाली भाषा में धमकाना शुरू कर दिया है। उन्होंने एलैक्ट्रॉनिक मीडिया को कुचलने तक की धमकी दे दी। शिंदे की धमकी थी कि ‘खुफिया विभाग मेरे पास है और मैं जानता हूं कि यह सब कौन कर रहा है।’ आलोचना के बाद अवश्य शिंदे ने कुछ बदलने का प्रयास किया। अब उनका कहना है कि वे सोशल मीडिया के बारे बात कर रहे थे उनकी बात का संबंध एलैक्ट्रॉनिक मीडिया से बिल्कुल नहीं था जबकि शोलापुर में जो उन्होंने कहा वह बिल्कुल यही था कि उनकी पार्टी के खिलाफ तो प्रचार किया जा रहा है अगर यह बंद नहीं हुआ तो वह ऐसे मीडिया को ‘क्रश’ अर्थात् कुचल देंगे।
यह सब देश के गृहमंत्री फरमा रहे हैं कि वह मीडिया की आज़ादी को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं। वे अपने अधीन खुफिया विभाग के इस्तेमाल की भी धमकी दे रहे हैं। यह सही है कि मीडिया के एक हिस्से ने कांग्रेस की वर्तमान दुर्गत में योगदान डाला है। 2010 में बड़े घोटालों का पर्दाफाश भी मीडिया ने ही किया था। 2जी, राष्ट्रमंडल, कोयला घोटाला इत्यादि सब मीडिया ने सार्वजनिक किए थे। लेकिन यह करतूत तो यूपीए II की है मीडिया ने तो सिर्फ उजागर किया है। यह भी सही है कि मीडिया जो सर्वेक्षण प्रस्तुत कर रहा है वह सब कांग्रेस के खिलाफ जा रहे हैं। इनके मुताबिक तो भाजपा तथा राजग सरकार बनाने के नजदीक पहुंच रहे हैं जबकि कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे कम आंकड़े पर गिर रही है लेकिन क्या यह जमीनी सच्चाई नहीं कि केंद्र में घटिया सरकार के कारण लोग यूपीए तथा कांग्रेस से नाराज़ हैं? अगर मीडिया यही प्रस्तुत कर रहा है तो ‘क्रश’ करने की धमकी देने तक गिरने की क्या जरूरत है? शेक्सपियर से कहा था कि Dont shoot the messenger अर्थात् संदेशवाहक को गोली मत मारो। अगर संदेश बुरा है और आपको पसंद नहीं तो इसमें संदेशवाहक का कसूर नहीं है। बाद में शिंदे ने अपने बयान में संशोधन करते हुए सोशल मीडिया को कुचलने की बात कही पर आप सोशल मीडिया को भी कैसे कुचलेंगे? अतीत में इंटरनैट पर नियंत्रण करने का असफल प्रयास हो चुका है। ट्विटर, फेसबुक आदि पर आज के युग में नियंत्रण नहीं हो सकता। पाकिस्तान भी असफल रह चुका है। न ही मीडिया पर शिंदे या उनकी सरकार कोई नियंत्रण कर सकती है। मीडिया का बहुत विस्तार हो चुका है। यह बहुत ताकतवार भी बन गया है जिसका मुख्य कारण है कि केन्द्र सरकार कमजोर है। बैकफुट पर है। मीडिया तथा न्यायपालिका तब ही आक्रामक होते हैं जब कार्यपालिका कमज़ोर पड़ जाती है।
हमारे देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी की गारंटी संविधान ने दी है। इस पर किसी तरह का अंकुश न मीडिया और न ही जनता ही बर्दाश्त करेगी। मीडिया से यह नाराज़गी सभी दलों में है। अगर आप नरेंद्र मोदी की आलोचना करोगे तो सोशल मीडिया का एक हिस्सा आपके पीछे पड़ जाएगा। अरविंद केजरीवाल जिन्हें यहां तक पहुंचाने में मीडिया का बड़ा हाथ है नकारात्मक कवरेज के बाद मीडिया पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं। बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभानअल्लाह है! केजरीवाल का आरोप है कि मीडिया घराने खरीदे हुए हैं। कईयों को वे मुकेश अंबानी की जेब में होने का आरोप लगा रहे हैं। तब तक सब ठीक था जब तक मीडिया उनका गुणगान कर रहा था लेकिन उनकी पार्टी ने जब से दिल्ली में अराजक स्थिति पैदा करना शुरू कर दिया मीडिया भी पलट गया। वास्तव में हर राजनीतिक दल को मीडिया से शिकायत रही है जो इस बात का सबूत है कि मीडिया अपनी प्रहारी की जिम्मेवारी सही निभा रहा है।
यह नहीं कि मीडिया में कमजोरियां नहीं हैं लेकिन सारा दृश्य सकारात्मक है। मीडिया का काम है कि जनता की शिकायतों को उजागर करे। अतीत में भी मीडिया पर नियंत्रण करने का प्रयास किया गया जो असफल रहा। अफसोस है कि शिंदे के कई तमाशों के बावजूद उन्हें हटाने या बदलने का कोई प्रयास नहीं किया गया। कांग्रेस की यह बीमारी है कि अगर आप वफादारों की सूची में हैं तो सब कुछ माफ है, चाहे आप गृहमंत्रालय का लतीफा बना दो फिर भी आप सुरक्षित हैं। विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद ने घटियापन का नया रिकार्ड कायम किया है। उन्होंने नरेंद्र मोदी को नपुंसक कहा है। सलमान खुर्शीद देश के विदेशमंत्री हैं। विदेशमंत्री तो संतुलित भाषा प्रयोग करते हैं लेकिन वे औछापन दिखा रहे हैं। क्या उनके पास मोदी की आलोचना के लिए और कोई शब्द नहीं है? बाद में उनका कहना था कि उनका अभिप्राय अक्षम से था। ‘नपुंसक’ तथा ‘अक्षम’ में बहुत अंतर है। खुर्शीद जो कह रहे थे वह सब समझते हैं। इस वक्त हालात बहुत पक्ष में नहीं चल रहे लेकिन गालियां दे कर आप लहर को नहीं रोक सकते। न ही संदेशवाहक को मारने से संदेश ही बदलेगा।
संदेशवाहक को मत मारो,