ब्रह्मास्त्र?

ब्रह्मास्त्र?

वैसे तो कांग्रेस में यह मांग यदाकदा उठती रही है कि प्रियंका गांधी वाड्रा को राजनीति में लाया जाए। समझा जाता है कि लोगों के बीच वह अपने से एक साल बड़े भाई राहुल से अधिक सहज है। इस चर्चा को अब जबरदस्त बल मिला है क्योंकि इसे खुद कांग्रेस के प्रमुख महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने छेड़ दिया है। उन्होंने बताया है कि 1990 में राजीव गांधी ने उनसे कहा था कि उनकी बेटी की राजनीति में रूचि है और वह पुत्र राहुल से राजनीतिक मामलों में अधिक समझदार है। पुराने लोग याद करते हैं कि एक इंटरव्यू में भी राजीव गांधी ने कहा था कि उनकी बेटी की राजनीति में बेटे से अधिक दिलचस्पी है। तो क्या राजीव चाहते थे कि बेटी उनकी वारिस बने? इस सवाल का जवाब केवल सोनिया गांधी जानती हैं और वे बताएंगी नहीं। जहां तक उनका सवाल है वे तय कर चुकी हैं कि बेटा ही वारिस होगा लेकिन बेटा सफल नहीं हो रहा। सब सर्वेक्षण यही बताते हैं कि कांग्रेस अपने इतिहास के न्यूनतम आंकड़े पर सिमटती जा रही है इसलिए पार्टी में नेतृत्व के प्रति हताशा है। राहुल गांधी पहले उत्तर प्रदेश तथा बिहार में भी प्रचार कर चुके हैं कांग्रेस का वहां लगभग सफाया हो गया है। अर्थात् कांग्रेस के लिए निराशाजनक स्थिति है लेकिन नरेंद्र मोदी को रोकना या उन्हें सीमित करना न केवल कांग्रेस पार्टी बल्कि गांधी परिवार के लिए भी बेहद जरूरी है। प्रियंका के बारे जनार्दन द्विवेदी ने जो कहा उसे इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए नहीं तो इस वक्त 24 साल के बाद 1990 के राजीव गांधी के कथन को उठाने की कोई जरूरत नहीं थी।

यह नहीं कि प्रियंका गांधी राजनीति से दूर है। वह अपने भाई के चुनाव क्षेत्र अमेठी तथा मां के चुनाव क्षेत्र रायबरेली का कामकाज देखती हैं लेकिन बहुत सफल भी नहीं रही। पिछले विधानसभा चुनावों में प्रियंका के प्रबंधन के बावजूद इन दो लोकसभा चुनाव क्षेत्रों के 9 विधानसभा क्षेत्रों में से कांग्रेस केवल दो अमेठी में ही जीत सकी थी। रायबरेली से एक भी सीट पर पार्टी विजयी नहीं हुई थी। अर्थात् जरूरी नहीं कि अगर प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति में कदम रखती है तो इससे कांग्रेस को बहुत फायदा मिलेगा। लेकिन राहुल के नेतृत्व के प्रति इतना कम उत्साह है कि लगभग हर प्रदेश कांग्रेस इकाई प्रियंका की मांग कर रही है। राहुल गांधी मेहनत बहुत कर रहे हैं लेकिन लोगों के साथ रिश्ता जोडऩे में सफल नहीं हुए। यही कारण है कि अचानक सोनिया गांधी इतनी सक्रिय हो गई हैं और मोदी पर ताबड़तोड़ हमले कर रही हैं। जो लड़ाई पहले मोदी बनाम राहुल थी अब मोदी बनाम सोनिया बनती जा रही है। क्या इस लड़ाई में प्रियंका भी कूद पड़ेंगी ताकि मोदी को कुछ सीमित किया जा सके? सोनिया गांधी को व्यक्तिगत तौर पर यूपीए II  की असफलता का बोझ उठाना पड़ रहा है। जो घोटाले हुए हैं या जो गलतियां हुई हैं उनसे वह दूर नहीं हो सकती क्योंकि यूपीए II  केवल मनमोहन सिंह की ही सरकार नहीं थी बल्कि बराबर सोनिया की सरकार थी। कई प्रशासनिक तथा राजनीतिक कदम सोनिया के आदेश पर उठाए गए। इस सरकार की बदनामी में सोनिया बराबर हिस्सेदार है। दूसरी तरफ राहुल का नेतृत्व फीका है। पार्टी के लोग भी सर पीट रहे हैं। ऐसे में क्या प्रियंका गांधी के ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल करेंगी सोनिया गांधी?

मुझे नहीं लगता। इस वक्त वह अपने भाई की राजनीति में व्यस्त है। जिसे ब्रैंड राहुल कहा जा रहा है, उसे चमकाने में प्रियंका पूरा ध्यान दे रही है। वह राहुल के निवास पर बने कार्यालय में नियमित जा रही है। चुनाव का प्रबंधन वह ही देख रही है, लेकिन इससे आगे वह नहीं जाएगी। जब सोनिया गांधी रायबरेली से नामांकन भरने गई थी तो भी प्रियंका साथ नहीं थी। इसे भी मैं यह संकेत समझता हूं कि वह सक्रिय राजनीति में कूदने को तैयार नहीं। वह संगठन के कामकाज को देखेंगी लेकिन बीच में नहीं कूदेंगी। इसके दो कारण नज़र आते हैं। उसका सक्रिय राजनीति में प्रवेश करना इस बात को स्वीकार करेगा कि राहुल गांधी असफल हो गए हैं। प्रियंका यह प्रभाव देने के लिए कभी भी तैयार नहीं होगी। दोनों भाई-बहन बहुत नजदीक हैं और इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती कि प्रियंका अपने भाई से आगे निकलने की कोशिश करेगी। दूसरा कारण है उनके पति राबर्ट वाड्रा के भूमि स्कैंडल। पहले ही राजस्थान की सरकार इन्हें खोदने में लगी हुई है। प्रियंका भी जानती है कि अगर उन्होंने सीधी चुनौती दी तो भाजपा वाड्रा के भूमि स्कैंडलों को बड़ा मुद्दा बना देगी। इसलिए मेरा अपना मानना है कि प्रियंका पृष्ठभूमि में ही रहेगी। परिवार उनकी झलक दिखलाता रहेगा लेकिन कमान राहुल के हाथ में ही रहेगी। अगर शुरू में राहुल की जगह प्रियंका को मैदान में उतारने का फैसला किया जाता, जैसा शायद राजीव गांधी चाहते थे, तो तस्वीर और होती। अब बहुत कुछ बिगड़ चुका है। अगर राहुल की जगह प्रियंका को कमान दिया भी गया तो भी अंतर नहीं पड़ेगा क्योंकि लोग अपना मन बना चुके हैं। लेकिन भविष्य में प्रियंका नेतृत्व दे सकती है। अगर पार्टी समझ बैठे कि राहुल के बस का रोग नहीं तो प्रियंका के लिए मांगें और तेज़ स्वर में उठ सकती हैं। आखिर राजीव गांधी के कथन का ज़िक्र करते हुए जनार्दन द्विवेदी का कहना था कि ‘अभी बस इतना ही।’ अर्थात् ‘अभी’ आगे और दबाव बढ़ सकता है।

एक बार लाल कृष्ण आडवाणी ने मुझे बताया था कि ‘प्रियंका एक चुनाव जीत सकती है।’ 2014 वह चुनाव नहीं होगा; लेकिन जो आडवाणी ने कहा वह कांग्रेस के नेता भी महसूस करते हैं। इसलिए भविष्य में उनके राजनीति में उतरने को लेकर हताश कांग्रेसियों की मांग और ऊंची उठ सकती है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.