इक़बाल कायम होना चाहिए

इकबाल कायम होना चाहिए

प्रधानमंत्री के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब ‘एक्सीडैंटल प्रधानमंत्री’, केवल उस बात की पुष्टि करती है जो नई दिल्ली का सबसे खुला रहस्य था कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथ की कठपुतली थे। संजय बारू की किताब पर प्रधानमंत्री के कार्यालय की प्रतिक्रिया है कि पीठ में छुरा मारा गया। पर असली बात यह नहीं। असली बात तो यह है कि देश की पीठ में छुरा घोंपा गया। अगर सोनिया गांधी इतनी हावी न होती और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस तरह समर्पण न करते तो देश इतनी दयनीय स्थिति में न होता। देश के अंदर इस वक्त जो कुछ गलत है, कमज़ोर आर्थिक स्थिति से लेकर भ्रष्टाचार तक, सब की जड़ सोनिया -मनमोहन सिंह का अनैतिक गठबंधन था जिसने प्रधानमंत्री के पद को अंदर से खोखला कर उसकी गरिमा खत्म कर दी थी। सत्ता सोनिया के पास थी जबकि जवाबदेह गरीब मनमोहन सिंह थे। सोनिया गांधी तो इंदिरा गांधी से भी अधिक ताकतवर बन गई थी क्योंकि वह किसी के प्रति जवाबदेह नहीं थी। बारू लिखते हैं, ‘थोड़ा -थोड़ा कर कुछ सप्ताह की अवधि के भीतर उनकी शक्तियां छीन ली गई। उन्होंने (प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह) सोचा कि वह अपनी टीम में जिन लोगों को चाहते हैं उन लोगों को मंत्री के तौर पर शामिल कर सकते हैं। सोनिया ने उनसे सलाह मश्विरा किए बिना प्रणब मुखर्जी को वित्तमंत्रालय की जिम्मेवारी की पेशकश कर इस उम्मीद को शुरूआत में ही समाप्त कर दिया।’
उसके बाद सब कुछ डाऊन हिल अर्थात् गिरता गया। देश का प्रधानमंत्री बेबस लाचार कमज़ोर हो कर रह गया। निर्णय वे ले रही थी जिन्हें इसका अधिकार नहीं था। प्रधानमंत्री एक उत्तम ब्यौरोक्रैट बन कर रह गए जिनके पास न मंत्री बनाने न उन्हें हटाने का ही विशेषाधिकार था। देवेगौड़ा तथा इंद्र कुमार गुजराल की भी यह गत नहीं बनी थी। योग्यता को एक तरफ फैंक वफादारी को प्राथमिकता दी थी। 2009 में यूपीए की जीत का श्रेय मनमोहन सिंह को दिए जाने से गांधी परिवार हिल गया था इसलिए धीरे-धीरे प्रधानमंत्री का रुतबा खत्म कर दिया गया। इस परिवार का इतिहास है कि उसने अपनी सत्ता को चुनौती को कभी बर्दाश्त नहीं किया। मनमोहन सिंह इस प्रवृत्ति के ताज़ा शिकार हैं।
यह महत्व नहीं रखता कि फाईले सोनिया को दिखाई जाती थी या नहीं। अगर प्रधानमंत्री का कार्यालय कह रहा है कि यह फाईले नहीं दिखाई गई तो इस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं। असली बात तो यह है कि फाईल दिखाने की जरूरत ही नहीं, मौखिक आदेश प्राप्त किए जा सकते हैं। वह पीएमओ पर नज़र रख रही है। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी छ: साल शासन किया था लेकिन पार्टी पर उनकी मलकीयत कभी भी ऐसी मज़बूत नहीं थी जैसी सोनिया गांधी की थी। सोनिया गांधी की महत्त्वाकांक्षा ने देश का कबाड़ा कर दिया। मनमोहन सिंह को इस बात का जवाब देना चाहिए कि उन्होंने देश का ऐसा अहित क्यों किया कि प्रधानमंत्री के पद की गरिमा खत्म करते हुए अधिकार संविधानोत्तर केंद्र को सौंप दिए? संजय बारू ने लिखा है कि जब उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा कि उन्हें भी मनरेगा की सफलता का श्रेय लेना चाहिए तो मनमोहन सिंह का जवाब था, ‘मुझे इससे समझौता करना है। दो सत्ता के केंद्र नहीं हो सकते, उससे उलझन पैदा होगी। मुझे यह स्वीकार करना है कि कांग्रेस अध्यक्षा सत्ता का केंद्र हैं।’ शेम! शेम! अगर प्रधानमंत्री को सत्ता के दो केंद्रो पर आपत्ति थी तो उन्हें सोनिया वाले ‘केंद्र’ को हटा देना चाहिए था। लेकिन वह तो खुद मिटने को तैयार थे।
अपनी किताब में पूर्व कोयला सचिव पीसी पारेख लिखते हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इतने कमज़ोर हो गए थे कि चाहते हुए भी कोयला ब्लाक की नीलामी नहीं करवा सके। पार्टी तथा सरकार में निहित स्वार्थों ने कोयला ब्लाक की नीलामी नहीं होने दी। यह ही कोयला ब्लाक घोटाले की जड़ है। ये ‘स्वार्थ’ कौन थे? सोनिया की दखल देश, सरकार, कांग्रेस पार्टी तथा खुद उनके परिवार का नुकसान कर गई। दो बड़े घोटाले, 2जी तथा कोयला ब्लाक इसलिए हुए क्योंकि प्रधानमंत्री पार्टी तथा अपने साथियों का दबाव नहीं झेल सके। विशुद्ध ईमानदार मनमोहन सिंह ने बेईमानी को बर्दाश्त किया जिससे सब कुछ तबाह हो गया। वे ए. राजा तथा टी आर बालू को संवेदनशील आर्थिक मंत्रालय नहीं देना चाहते थे लेकिन दबाव में उन्हें देने पड़े। 2009 में उनकी सरकार की शुरूआत ही गलत हुई। परिणाम 2जी घोटाला थी। जिम्मेवारी प्रधानमंत्री की है लेकिन उनकी यह हालत बनाने के लिए क्या सोनिया गांधी दोषमुक्त हो सकती हैं? सब कुछ इसलिए किया गया ताकि राहुल का रास्ता साफ रहे पर विडंबना है कि आज ये महाघोटाले राहुल गांधी के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा हैं। लोगों ने सोनिया गांधी को अपनी आंखों पर बैठा कर रखा था लेकिन पुत्र मोह तथा परिवार के हाथ में सत्ता रखने की लालसा के कारण ऐसे समझौते करवाए गए कि जनता सज़ा देने के मूड में है। सही कहा गया,
हो जाता है जिन पे अंदाज़े खुदाई पैदा
हमने देखा है वह बुत्त तोड़ दिए जाते हैं।
वे जवाबदेह हैं कि प्रधानमंत्री के पद को इस तरह उन्होंने क्यों कमज़ोर करवा दिया? शासन को विकलांग बना दिया गया। इसकी सज़ा परिवार सत्ता से बाहर जा कर भुगतेगा पर देश का तो नुकसान हुआ। सबसे अधिक जिम्मेवारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बनती है क्योंकि यह सरकार उनके नाम पर चलती थी। ऐसा अहसास मिलता है कि उन्होंने नेतृत्व तथा सत्ता को ही आऊटसोर्स कर दिया था। वे कुर्सी में अवश्य थे लेकिन सत्ता में नहीं थे। 3 मोतीलाल नेहरू मार्ग में शिफ्ट होना तो मात्र औपचारिकता है सब कुछ तो पहले ही वे परिवार को संभाल चुके थे। सत्ता को अवैध तरीके से कांग्रेस अध्यक्ष के साथ सांझा किया गया। वे उस सरकार के मुखिया अंतिम दिन तक बने रहेंगे जिस में उनके पास राजनीतिक प्राधिकार नहीं था। मनमोहन सिंह ने तो यहां तक कह दिया था कि वे राहुल के नीचे काम करने को तैयार हैं। यह बयान ज्ञानी जैल सिंह के उस बयान की बराबरी करता है कि ‘अगर इंदिरा गांधी कहे तो मैं झाड़ू लगाने को भी तैयार हूं।’ क्या बिल्कुल स्वाभिमान खत्म हो गया था? ज़लालत की ज़िन्दगी सहने से बेहतर मनमोहन सिंह के पास इस्तीफा देने का विकल्प भी तो था। उन्हें तो उस वक्त छोड़ जाना चाहिए था जब राहुल ने सरकारी अध्यादेश को फाड़ कर फैंक दिया था। देश के प्रति अपने धर्म को गांधी परिवार के प्रति अपनी वफादारी से कम क्यों समझा गया? आज देश अपनी इस दुर्गति के लिए प्रधानमंत्री से पूछ रहा है:
तूं इधर उधर की न बात कर, यह बता कि काफिला क्यों लुटा?
हमें राहज़नों से गर्ज़ नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है!
संतोष है कि यह कष्टदायक समय अब खत्म होने जा रहा है। अब जरूरत यह है कि (1) जिन्होंने देश के साथ यह भारी धक्का किया उन्हें इसकी राजनीतिक सज़ा दी जाए तथा (2) देश को ऐसा प्रधानमंत्री मिले जो हल्का फुल्का तिनकों का बना हुआ न हो। पूर्ण सत्ताधिकार भी हो तथा जिम्मेवारी भी। एक करिश्माई नेतृत्व की अब देश को इंतज़ार है जो मजबूत, नैतिक, संवेदनशील, पारदर्शी तथा जवाबदेह सरकार दे सके। विश्वास का जो संकट है इसे खत्म करना है। फिर से इकबाल कायम होना चाहिए। देश का भी, प्रधानमंत्री के पद का भी।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.

1 Comment

  1. मनमोहन सिंह खुद तो मिटे ही पर उन्होंने प्रधान मंत्री की गरिमा को भी मिटा दिया, यह हम भारतीयों का दुर्भाग्य है। देश से बढ़कर गांधी परिवार के प्रति वफ़ादारी ………हाय री कुर्सी !!!

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