किस्सा दो दामादों का
समाचार है कि सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा तीन साल से अपनी कम्पनियों का हिसाब किताब नहीं दे रहे। मार्च 2011 के बाद उसने अपनी 13 कम्पनियों की वार्षिक रिटर्न भी जमा नहीं करवाई। यह कानून का उल्लंघन तो है ही पर यह गांधी परिवार के दामाद की एक और काली तस्वीर भी प्रस्तुत करता है कि वह अपनी कम्पनियों तथा अपने धंधों के बारे जानकारी सार्वजनिक होने से रोकना चाहता है। अब इस ताज़ा रहस्योद्घाटन के बाद उनकी तथा गांधी परिवार की समस्या बढ़ जाएगी क्योंकि एक तरफ उनकी पत्नी प्रियंका ज़ोर-शोर से प्रचार कर रही है कि उनके पति को निशाना बनाया जा रहा है तो दूसरी तरफ पतिदेव अपने अरबों रुपए के धंधे के बारे जानकारी छिपाने में व्यस्त हैं। निश्चित तौर पर गांधी परिवार तथा विशेष तौर पर प्रियंका जवाबदेह है क्योंकि उन्होंने खुद राबर्ट को बड़ा मुद्दा बना दिया है। आगे गांधी परिवार की मुसीबतें बढ़ेंगी क्योंकि 16 मई के बाद सरकारी संरक्षण भी हट जाएगा। केन्द्र से मदद नहीं मिलेगी। राजस्थान सरकार पहले ही उनके भूमि सौदों की जांच कर रही है और कोई नहीं कह सकता कि विधानसभा के अगले चुनाव के बाद हरियाणा में किसकी सरकार होगी? क्योंकि प्रियंका ने सीधी चुनौती दी है इसलिए नई सरकार भी मेहरबान नहीं रहेगी नहीं तो अब तक यह अघोषित समझौता रहा है कि भाजपा तथा कांग्रेस के नेता एक दूसरे के परिवारजनों के घपलों के बारे निष्क्रिय ही रहते हैं।
यह किस्सा गांधी परिवार के एक दामाद का है जो देश में सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का पर्यायवाची बन चुका है लेकिन इसी परिवार के एक और दामाद भी रहे हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया और अपने ससुर जवाहरलाल नेहरू की सरकार को झुकने के लिए मजबूर किया था। राहुल तथा प्रियंका वाड्रा के दादा फिरोज़ जहांगीर गांधी को परिवार याद नहीं करता। खुद को ब्राह्मण परिवार बताया जाता है जबकि दादा फिरोज़ पारसी थे। केवल उनसे गांधी कुलनाम अवश्य ले लिया गया क्योंकि इससे यह प्रभाव मिलता है कि परिवार का गांधीजी से रिश्ता है जबकि ऐसी कोई बात नहीं। फिरोज़ भी खुद को GHANDI लिखते थे GANDHI नहीं। गांधी उपनाम परिवार के माफिक बैठा है। फिरोज़ गांधी को बिलुकल भुलाकर तथा खुद को नाना जवाहर लाल नेहरू की परम्परा से जोड़ लिया गया है जबकि फिरोज़ गांधी सबसे पहले रायबरेली से निर्वाचित हुए थे। यह वही चुनाव क्षेत्र है जहां से इंदिरा गांधी और अब सोनिया गांधी चुनाव लड़ रही हैं। संसद में अपनी दूसरी अवधि के दौरान फिरोज़ भ्रष्टाचार को लेकर बहुत मुखर थे जो बात उनके ससुर जवाहरलाल नेहरू तथा पत्नी इंदिरा को बिलकुल पसंद नहीं थी। आखिर में फिरोज़ अकेले सांसदों के फ्लैट में रह गए थे और इंदिरा गांधी उन्हें छोड़कर प्रधानमंत्री निवास में चली गई थी। पर भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके जबरदस्त अभियान के कारण नेहरू सरकार को कई असुखद क्षण झेलने पड़े थे। न केवल नेहरू की छवि पर असर पड़ा था बल्कि दामाद के अभियान के कारण नेहरू को अपने विश्वासपात्र वित्तमंत्री टीटी कृष्णाचारी को भी हटाना पड़ा था। हरिदास मुंध्रा स्कैंडल जो फिरोज़ गांधी ने उठाया था, नेहरू सरकार के लिए कलंक बन गया था।
दुख की बात है कि फिरोज़ गांधी की विरासत को कोई याद नहीं करता। क्योंकि इंदिरा गांधी उनसे अलग हो गई थी इसलिए परिवार ही अलग हो गया। दोनों पुत्रों, राजीव तथा संजय गांधी ने पिता का जिक्र तक नहीं किया जबकि एक ईमानदार सांसद के तौर पर फिरोज़ गांधी परिवार के लिए प्रेरणास्रोत हो सकते हैं। कांग्रेस पार्टी ने भी कभी फिरोज़ गांधी का उल्लेख नहीं किया पर यही कांग्रेस पार्टी घपलों में फंसे दूसरे दामाद राबर्ट वाड्रा के बचाव में उतर चुकी है। परिवार के दोनों दामादों में जमीन आसमान का अंतर है। फिरोज़ अपने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के कारण नेहरू सरकार के लिए मुसीबत बन गए थे वहीं राबर्ट वाड्रा अपने भूमि सौदों के कारण परिवार तथा पार्टी के लिए राजनीतिक बोझ बन गए हैं। जिस तरह आज प्रियंका अपनी मां के लिए प्रचार कर रही हैं इसी तरह 1952 तथा 1957 के चुनावों में इंदिरा गांधी ने अपने पति के लिए प्रचार किया था। लेकिन इंदिरा गांधी तथा प्रियंका वाड्रा की स्थिति में अंतर बहुत है। जिस पति के लिए इंदिरा ने प्रचार किया उसकी इज्जत बहुत थी। जिस पति का प्रियंका आज बचाव कर रही हैं वह बदनाम है और सरकारी मिलीभगत से पांच साल में एक लाख रुपए से 300 करोड़ रुपए बनाने का आरोप झेल रहा है। इसके अतिरिक्त और भी घोटाले हैं जो आने वाले दिनों में सुर्खियों में रहेंगे। इंदिरा गांधी 1967 तथा 1971 में रायबरेली से जीती थी पर 1977 में राज नारायण से हार गई थी। सोनिया गांधी के हारने का तो सवाल नहीं पर परिवार को यह एहसास होगा कि दामादजी के कारण बदनामी बहुत हो रही है और गांधी परिवार की छवि धूमिल हो रही है। इन दो दामादों की कहानी यह भी बताती है कि गांधी परिवार का किस तरह पतन हुआ है। एक दामाद ने भ्रष्टाचार को बेनकाब कर प्रसिद्धि पाई थी तो एक दामाद इसलिए कुख्यात है क्योंकि उसका भ्रष्टाचार बेनकाब हो गया है।
आदरनिये चंद्रमोहन जी,
आपके द्वारा लिखित आलेख को क्या मैं अपने वेब पोर्टल पर प्रकाशित कर सकता हूँ I