
केवल मोदी
यह हमारा सबसे अधिक ‘प्रैसिडैंशल’ चुनाव रहा है। जिस तरह अमेरिका में राष्ट्रपति चुनने के लिए व्यक्ति पर आधारित चुनाव होता है उसी तरह इस बार हमारा चुनाव हुआ है अंतर केवल एक है कि एक तरफ नरेंद्र मोदी थे तो दूसरी तरफ कौन था? राहुल गांधी? अरविंद केजरीवाल? जयललिता? मुलायम सिंह यादव? नवीन पटनायक? या और कोई? इसी सवाल से पता चलता है कि सारा चुनाव नरेंद्र मोदी पर केंद्रित रहा। प्यार करो या नफरत करो, मुद्दा केवल मोदी थे। और कोई नेता प्रासंगिक नहीं रहा। न लाल कृष्ण आडवाणी, न सुषमा स्वराज, न अरुण जेतली, न राजनाथ सिंह, न नितिन गडकरी। इन नेताओं का महत्त्व कितना कम हो गया है यह इस बात से पता चलता है कि वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने देश के सबसे बड़े उत्तर प्रदेश में एक भी चुनाव सभा को संबोधित नहीं किया जबकि मोदी ने 79 रैलियां की। हर तरफ हर सीट पर केवल मोदी ही चुनाव लड़ रहे थे। उन्होंने पार्टी को उन जगहों पर बड़ा खिलाड़ी बना दिया जहां उसका पहले आधार कम था। ममता बनर्जी की बढ़ती बदतमीज़ी इसका प्रमाण है कि मोदी के चुनाव अभियान से कहीं गहरी चोट पहुंची है।
सुषमा स्वराज ने शुरू में नरेंद्र मोदी का नाम नहीं लिया केवल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के काम की चर्चा की लेकिन बात नहीं बन रही थी इसलिए बाद में भाषणों में मोदी का ज़िक्र करना पड़ा। ऐसा ही कानपुर में मुरली मनोहर जोशी को करना पड़ा। उनकी सभाओं में कार्यकर्ता ‘मोदी’ ‘मोदी’ के नारे लगा रहे थे। लाल कृष्ण आडवाणी जो मोदी के उत्थान को पचा नहीं पाए और जिन्होंने अपनी नाराजगी छिपाने का प्रयास भी नहीं किया, को भी समझौता करना पड़ा और आखिर में स्वीकार करना पड़ा कि मोदी बढिय़ा प्रधानमंत्री होंगे। जब अटल बिहारी वाजपेयी ने चुनाव जीता तो यह वाजपेयी+ भाजपा की जीत थी। इस बार लोगों ने भाजपा से अधिक मोदी के लिए वोट दिया है। भाषण शैली काफी अटलजी से मिलती है लेकिन नरेंद्र मोदी अटल बिहारी वाजपेयी नहीं। वे अगली आक्रामक पीढ़ी से हैं। उन्होंने जो संघर्ष किया और जो विरोध सहा है उसने उनके व्यक्तित्व को आकार दिया है। एक चायवाले से देश का सबसे बड़े नेता बनना कोई मामूली संघर्ष नहीं था।
2002 के बाद चारों तरफ से विरोध झेला। अब भी कहा गया कि मुसलमान ने उन्हें समर्थन नहीं दिया। यह बात शायद सही है चाहे विरोध पहले से कम हुआ है पर देश का प्रधानमंत्री कौन होगा, किस की सरकार होगी यह अल्पसंख्यक तय नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री और सरकार उसी की होगी जिसे बहुसंख्या चाहेगी। हां, सरकार की जिम्मेवारी है कि अल्पसंख्यकों को पूरी सुरक्षा दे और तरक्की का बराबर हिस्सा दिया जाए। यह वादा नरेंद्र मोदी बार-बार कर रहे हैं। मुसलमान भी रणनीति बना कर वोट देते हैं। वाराणसी में मुफ्ती बोर्ड ने मुसलमानों से केजरीवाल को समर्थन देने के लिए कहा है। शहर-ए-मुफ्ती मौलाना अब्दुल बतिन का कहना है कि मुसलमानों को निश्चित करना चाहिए कि उनके वोट नहीं बंटते और ‘फिरकाप्रस्त ताकतें’ पराजित हो जाएं। मौलाना खुद धर्म निरपेक्ष हो गए? जो हिन्दुओं की बात कहे वह ‘कंम्यूनल’ और जो मुसलमानों की बात कहे वह ‘सैक्यूलर’? कैसी राजनीति है जिसने हिन्दुओं को ‘फिरकाप्रस्त’ बना दिया? मुस्लिम वोट प्राप्त करने के लिए केजरीवाल भी सभी हदें पार कर गए हैं। इस प्रवृत्ति पर लार्ड मेघनाद देसाई ने मजेदार कटाक्ष किया है, ‘हम मस्जिद से अपील करते हैं क्योंकि हम सैक्यूलर हैं। तुम मंदिर को अपील करते हो क्योंकि तुम कम्यूनल हो।’ जब पहली बार अमित शाह अयोध्या गए तो मीडिया में भी बवाल मच गया कि वे अयोध्या क्यों गए हैं? क्या भाजपा ‘राम कार्ड’ फिर खेलने जा रही है? पर क्या कोई अयोध्या नहीं जा सकता? नरेंद्र मोदी को जो व्यापक समर्थन मिला है इसके लिए यूपीए से नाराजगी, विकास तथा मजबूत सरकार के लिए तड़प के इलावा इन कथित सैक्यूलर पार्टियों की तुष्टिकरण की नीति के खिलाफ प्रतिक्रिया भी है जो धर्मनिरपेक्षता की आड़ में फिरकाप्रस्त राजनीति करते हैं। और जब नरेंद्र मोदी कहते हैं कि सबका विकास होगा और किसी का तुष्टिकरण नहीं, तो उनका यह संदेश घर-घर में गूंजता है।
कांग्रेस ने अभी से राहुल गांधी को जवाबदेही से बचाने की तैयारी कर ली है। कहना शुरू कर दिया है कि जो भी होगा सामूहिक जिम्मेवारी होगी। अगर कांग्रेस की जीत की संभावना होती तो निश्चित तौर पर राहुल को इसका श्रेय दिया जाता। जैसे इंदिरा गांधी ने एक बार राजीव गांधी को कहा था, ‘यू हैव स्टोलन आवर थंडर’ अर्थात् आप हम पर भारी हो, कुछ वैसा ही सोनिया गांधी भी कह देती। या संभव है कि सोनिया गांधी जिम्मेवारी ले कर पुत्र को बचा लें लेकिन अगर देखा जाए तो जिम्मेवारी भी उन्हीं की बनती है। अगर यूपीए बदनाम हुआ और प्रधानमंत्री के पद को कमज़ोर कर देश का महा अहित किया गया तो इसके लिए सोनिया गांधी ही जिम्मेवार हैं। वे राहुल को ताज सौंपना चाहती थी लेकिन इस प्रक्रिया में प्रधानमंत्री को कमज़ोर कर गई। दबु मनमोहन सिंह ने भी समर्पण कर दिया। उन्हें तो उस वक्त कुर्सी छोड़ देनी चाहिए थी जब राहुल ने मंत्रिमंडल के अध्यादेश को बकवास कह रद्दी की टोकरी में फैंकने की बात कही थी लेकिन मनमोहन सिंह अपमान का घूंट पी गए। आखिर में इतने हाथ पैर फूल गए थे कि बहन प्रियंका ने ही भाई राहुल को कमज़ोर कर दिया कि इसमें मोदी से टकराने की क्षमता नहीं इसलिए मुझे आगे आना पड़ेगा। मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी का अवमूल्यन पूर्ण है।
कांग्रेस पार्टी तीहरे भ्रम का शिकार हो गई। पहला भ्रम था कि देश को ‘युवा’ राहुल गांधी का इंतज़ार है। कार के वाइपर की तरह ‘डायनेस्टी’ के सदस्य हाथ हिलाएंगे और ईवीएम में धड़ाधड़ हाथ पर बटन दबते जाएंगे! दूसरा भ्रम था कि वे नई दिल्ली से गरीब जनता के लिए खैरात भेजेंगे और वे कांग्रेस के शाही परिवार के समर्थन में मतदान केंद्रों पर कड़कती धूप में कतार लगा कर खड़े हो जाएंगे। तीसरा भ्रम था कि यह देश नरेंद्र मोदी को कभी स्वीकार नहीं करेगा। उन्हें केवल ‘2002’ कहने की जरूरत होगी और लोग एक दम भाग जाएंगे। इस भ्रम को फैलाने में अंग्रेजी मीडिया तथा विदेशी प्रैस ने भी बड़ी भूमिका निभाई। इन लोगों ने जमीनी स्थिति को नहीं समझा कि लोग 2002 से बहुत आगे बढ़ चुके हैं। जिस तरह की लिजलिज सरकार डा. मनमोहन सिंह ने यूपीए II में दी उससे लोग एक निर्णायक, दृढ़, विकासशील तथा ईमानदार नेतृत्व के लिए तड़प उठे थे। पर यह भ्रम केवल कांग्रेस के नेताओं ने ही नहीं पाला था। भाजपा में भी कई नेता इस गलतफहमी में थे कि देश नरेंद्र मोदी को कभी स्वीकार नहीं करेगा इसीलिए कभी प्लैन ‘बी’ की चर्चा रही तो कभी ‘क्लब-160’ की।
आज पार्टी के अंदर मोदी के सब विरोधी खामोश हैं। जनसमर्थन की सुनामी में उनका विरोध दब गया है। अगर अब कोई शरारत कर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने का प्रयास किया गया तो जनता विरोध करेगी और कार्यकर्ता बगावत कर देंगे। अव्वल तो यह स्थिति आएगी नहीं कि राजग को बहुमत नहीं मिलेगा पर अगर ऐसा होता भी है तब भी नेता नरेंद्र मोदी ही रहेंगे। हां, उन्हें इन तीन देवियों से दूरी बना कर रखनी चाहिए। इनका जिसने भी हाथ पकड़ा है उसके हाथ झुलस गए हैं। छोटी पार्टियों का सहयोग लेकर बेहतर सरकार चलाई जा सकती है। नरेंद्र मोदी ने भाजपा का अलगाव तोड़ कर इसे ताकतवार और भरोसेमंद सहयोगी, पर जरूरत पडऩे पर जबरदस्त विरोधी जो नुकसान भी कर सकता है; बना दिया है। कुछ लोगों का अलग प्लैन-B होगा पर यह A to Z नरेंद्र मोदी की जीत है। उन्होंने जोखिम उठा कर आगे आकर नेतृत्व दिया। अगर हार होती तो खामियाज़ा भुगतना पड़ता। पार्टी के बाहर तथा अंदर बहुत नेता हिसाब बराबर करने के लिए तैयार बैठे हैं लेकिन हार होगी नहीं। अब जीत का जश्न है। सरकार राजग की बनेगी जिसके केंद्र में भाजपा होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे। केवल मोदी!