साईकिल क्यों पंक्चर हुई?
समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव बेहद नाराज़ हैं। वे तो तीसरे मोर्चे के प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे थे पर लोगों ने ऐसी पिटाई की कि उत्तर प्रदेश में 80 में से केवल 5 सीटें सपा के निशान साईकिल पर जीत पाए। लोगों ने मुलायम सिंह यादव के परिवार का भी वही हाल किया जो दिल्ली में गांधी परिवार का किया या पंजाब में बादल परिवार का किया गया। सबके नीचे से ज़मीन खिसक गई है। इसलिए मुलायम सिंह यादव बेहद खफा हैं और गुस्सा अपने बेटे अखिलेश यादव पर निकल रहा है जो मुख्यमंत्री हैं। मुलायम सिंह इसलिए और भी दु:खी हैं कि उनके बराबर के विपक्षी नेता जयललिता, ममता बनर्जी या नवीन पटनायक अपना-अपना घर अच्छी तरह से संभाल गए हैं जबकि उनका सब चौपट हो गया। संतोष केवल यह होगा कि धुर विरोधी मायावती की भी दुर्गत पूरी है, उन्हें एक भी सीट नहीं मिली। कभी वह भी प्रधानमंत्री के पद की दावेदार थी। लेकिन क्या इस हार का जिम्मा केवल अखिलेश का है इसके लिए खुद मुलायम सिंह जिम्मेवार नहीं?
अगर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में वही हो रहा था जो नेताजी चाहते थे। अखिलेश को उस तरह काम करने की छूट नहीं मिली जैसे पंजाब में सुखबीर बादल या जम्मू कश्मीर में उमर अब्दुल्ला को मिली हुई है। उन पर उनके ‘अंकल’ अर्थात् रिश्तेदार हावी थे। खुली छूट न मिलने के कारण अखिलेश प्रभावी नहीं हो सके। यह पराजय का पहला कारण है। दूसरा कारण इस यादव परिवार का शासन है। जहां जहां एक परिवार का शासन था वहां वहां लोगों ने उन्हें रद्द कर दिया। नई दिल्ली में गांधी परिवार, पंजाब में बादल परिवार, हरियाणा में हुड्डा परिवार, महाराष्ट्र में पवार परिवार, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह परिवार, जम्मू कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार सबको धूल चाटनी पड़ी। लोगों का रूझान वंशवाद के खिलाफ है। तीसरा कारण खुद मुलायम सिंह यादव की कांग्रेसप्रस्ती थी। उत्तर प्रदेश में वे कांग्रेस को गालियां निकालते थे पर नई दिल्ली में उन्हें समर्थन देते थे। सीबीआई से बचने की मजबूरी थी। एक समय यह भी आया था जब ममता बनर्जी के साथ पत्रकार सम्मेलन में एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन देने के 24 घंटों के अंदर मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को समर्थन की घोषणा कर दी थी। ममता देखती रह गई। क्या सौदा हुआ था? जिस नेता की विश्वसनीयता इतनी कम हो उसे लोग एक दिन नकार ही देंगे। चौथा कारण खोखली मुस्लिमप्रस्ती थी। खुद को बार-बार मुसलमान हितैषी प्रस्तुत किया गया पर उन्हें दिया कुछ नहीं। मुजफ्फरनगर के दंगे बताते हैं कि अखिलेश की सरकार मुसलमानों को पहले सुरक्षा और दंगों के बाद राहत देने में किस कदर नाकाम। केवल लीपापोती की गई। आईएएस अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को केवल इसलिए निलंबित कर दिया गया क्योंकि उन्होंने एक मस्जिद के बाहर अवैध दीवार को गिरा दिया था। मुसलमानों को रोजगार चाहिए, बराबरी चाहिए, सुरक्षा चाहिए पर समझ लिया कि इफ्तार पार्टी में मुस्लिम टोपी डाल कर पहुंचने से मुसलमान संतुष्ट हो जाएंगे। मुसलमान मुजफ्फरनगर के दंगों के कारण नाराज हो गए और हिन्दू इसलिए खफा हो गए कि हर घोषणा मुसलमानों के बारे ही की जाती रही। जोर शोर से मुस्लिम कल्याण के कार्यक्रमों का प्रचार किया गया। अब मुलायम सिंह शिकायत कर रहे है कि ‘यादव भी हिन्दू हो गए!’ अर्थात् सपा ने यादवों को हिन्दू मुख्यधारा से अलग रखने का भरसक प्रयास किया लेकिन इस बार सफल नहीं हुए। सपा की पराजय का पांचवा बड़ा कारण है कि अब जात पात की राजनीति खत्म हो रही है। मंडल से जो शक्तियां उभरी थी वे अब शांत हो गई। लोग अब जात पात के मतभेदों से ऊपर उठ कर विकास तथा बेहतर भविष्य के लिए वोट दे रहे हैं। यही कारण है कि सपा के समर्थक यादव, लोध, पासी क्षेत्रों में भी सपा पराजित हो गई। यह एक सुखद परिवर्तन है कि लोग अब संकीर्ण डिब्बों में बंद होने को तैयार नहीं। मुलायम सिंह यादव जैसे नेता तथा उनकी राजनीति अप्रांसगिक हो रही है।
एक और नेता जो अप्रासंगिक हो रही हैं वे मायावती है जिनकी बसपा को उत्तर प्रदेश में एक भी सीट नहीं मिली। मायावती का पतन भी पूर्ण है। 2009 के चुनाव से पहले प्रकाश करात ने उन्हें भावी प्रधानमंत्री पेश किया था। इस चुनाव में न करात की इज्जत बची न मायावती की। मायावती की भी वही गलती है जो मुलायम सिंह यादव की। उन्होंने भी अपने हित में जात-पात की राजनीति खेली। खुद देश के सबसे अमीर लोगों में शामिल हो गई पर दलित नेता ही प्रस्तुत करती रही। क्यों सोच लिया कि दलित यह देख नहीं रहे? अपने लिए तीन बंगले बना कर नई दिल्ली में एक विशाल बंगला बना लिया। एक आम दलित की जिंदगी से मायावती की जिंदगी का क्या मेल रह गया? मायावती ने इसके बारे सोचा नहीं और सत्ता के नशे में मस्त हो गई। मुलायम की ही तरह जनता ने उनका नशा भी उतार दिया।