राजतिलक
26 मई को नया इतिहास रचा गया। नरेंद्र दामोदर मोदी भारत के नए प्रधानमंत्री बन गए। नेहरूवाद तथा नेहरू खानदान से देश अब पूरा रिश्ता तोड़ रहा है और नया परीक्षण करना चाहता है। देश की आज़ादी के समय नेहरू की नीतियां सही थी। उन्होंने देश को स्थायित्व दिया तथा विकास करवाया पर नेहरू से जुड़ी कांग्रेस पार्टी ने समय के साथ खुद को बदला नहीं जिसका परिणाम है कि पार्टी आज की पीढ़ी की आकांक्षाओं से कट गई। लोग खैरात नहीं चाहते अच्छी सरकार चाहते हैं पर कांग्रेस पार्टी माई-बाप सरकार चलाने का प्रयास करती रही। मनरेगा तथा आधार जैसी योजनाओं के बाद अगर कांग्रेस पार्टी पिट गई तो इसलिए कि उसे मालूम नहीं था कि ज़मीनी हकीकत क्या है और ज़मीनी जरूरत क्या है जो बात कुछ-कुछ सोनिया गांधी ने भी स्वीकार की है। नेहरू केवल अपनी नीतियां ही नहीं अपना वंश भी छोड़ गए। इससे देश का अहित हुआ। मां-बेटे की सरकार का ज़माना लद गया आज हम सच्चे लोकतंत्र की वापिसी देख रहे हैं। मोदी का कहना कि मिनिमम गॉरमैंट मैक्सिमम गवर्नेंस अर्थात् कम से कम सरकार पर अधिक से अधिक शासन। हमें नेहरू मॉडल से खुद को अलग करना है।
नरेंद्र मोदी पहले दिन से काम करने के लिए तैयार होकर आए हैं। सरकार के गठन से पहले नौकरशाहों से कहा गया कि वे अपने अपने विभाग के काम काज की रिपोर्ट तैयार करें और बताएं कि क्या नहीं हो सकता और क्यों नहीं हो सका? उनसे यह भी पूछा गया है कि अगर आपको खुला हाथ दे दिया जाए तो आप क्या परिवर्तन लाना चाहेंगे? मनमोहन सिंह की सरकार ने इसीलिए काम करना बंद कर दिया था क्योंकि विभिन्न घोटालों में अफसरशाहों को जिम्मेवार बनाने के कारण अफसरशाही सुरक्षात्मक हो गई थी। उन्होंने निर्णय लेने बंद कर दिए थे। नई दिल्ली में ‘सब चोर है’ वाला माहौल बन गया था। जो महत्त्वपूर्ण आर्थिक मंत्रालय है उनसे अब कहा गया कि वहां बताएं कि उनके रास्ते में रूकावटें क्या हैं? योजनाएं लंबित क्यों हैं? उल्लेखनीय है कि 20 लाख करोड़ रुपए की 440 योजनाएं फाईलों में दबी हुई हैं। उन्हें शुरू करना और अर्थव्यवस्था को गति देना नए प्रधानमंत्री तथा उनकी सरकार की प्राथमिकता होगी। नीति बनाना तथा उसका बचाव करना राजनेताओं का काम है अफसरों का नहीं। अफसरशाही को अपने मुताबिक चलाना भी राजनेताओं का ही काम है। जब राजनेता कमजोर हो जाएं जैसे पिछली सरकार के समय हुआ, तो सरकार काम करना बंद कर देती है।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ऐसी किसी कमजोरी की कोई गुंजायश नहीं। उन्होंने गुजरात का प्रशासन बहुत दृढ़ता से चलाया था और उन्हें सफलता भी मिली पर देश गुजरात नहीं है लेकिन उनकी दृढ़ निर्णय लेने की क्षमता निश्चित तौर पर देश का विकास करेगी। उनकी सरकार बनने की संभावना से ही अप्रैल के बाद हमारे विदेशी मुद्रा के भंडार में 11 अरब डॉलर का इज़ाफा हुआ है। विदेशी निवेशक को भरोसा है कि मोदी की सरकार स्थिर होगी इसलिए जो पैसा बाहर निकाल रहे थे वे उसे वापिस भेज रहे थे। पहला काम महंगाई पर नियंत्रण करना होना चाहिए जिस बारे मनमोहन सिंह की सरकार नाकाम रही थी। अगर सरकार गैस या डीज़ल की सबसिडी कम करती है या मनरेगा जैसी योजना को सीमित करती है तो विरोध होगा इसलिए जरूरत है कि सरकार अपना मोटापा कम करे। रुपए का कमजोर होना भी चिंता का क्षेत्र है चाहे पिछले कुछ दिनों से कुछ मज़बूती आई है। अगले 10 वर्ष में 24 करोड़ अतिरिक्त रोजगार का प्रबंध करना पड़ेगा। अर्थात् हर साल अतिरिक्त अढ़ाई करोड़ रोजगार तैयार करने पड़ेगे। अगर इनका प्रबंध नहीं किया गया तो सामाजिक विस्फोट हो सकता है। मोदी सरकार को पहले दिन से भागना पड़ेगा। उनका सौभाग्य भी है कि अर्थ व्यवस्था में तेज़ी लाई जा सकती है। 2028 तक भारत जापान को पछाड़ कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बन जाएगा। पीवी नरसिंहा राव के समय से अर्थ व्यवस्था को खोलने के जो कदम उठाए थे उन्होंने मज़बूती दे दी है। अगर मनमोहन सिंह की सरकार ने पिछले पांच वर्षों में काम करना रोक न दिया होता तो हम बहुत आगे निकल गए होते लेकिन इस गतिहीनता के बावजूद देश की अर्थव्यवस्था में वह दम है जिस पर निर्माण किया जा सकता है। देश की उर्जा को नेहरूवादी नीतियों की जकडऩ से आज़ाद करने की जरूरत है ताकि यह देश दुनिया में अपनी उच्च जगह प्राप्त कर सके और ताकि एक नए भारत का उदय हो सके।
भारत का सौभाग्य है कि इस निर्णायक मोड़ में उन्हें नरेंद्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री मिला है। उनका भी सौभाग्य है कि उनकी भारतीय जनता पार्टी प्रतिभा से भरपूर है। अर्थात् हमें एक ऐसी सरकार मिल रही है जो अपने वायदे पूरे कर सकती है, आर्थिक तरक्की ला सकती है और देश में जो हताशा का वातावरण है उसे समाप्त कर सकती है। देश के आर्थिक इंजन को फिर से तेज़ करना है, भ्रष्टाचार तथा महंगाई पर लगाम लगानी है और रोज़गार तथा निवेश के लिए नया माहौल बनाना है। चुनौतियां बहुत हैं। प्रधानमंत्री नरसिंहा राव की भाषा में पहाड़ जैसी चुनौतियां हैं, लेकिन इन पर पार पाना असंभव नहीं। और अगर कोई कर सकता है तो पूर्ण जनसमर्थन प्राप्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं। अग्निपथ पर निकले अपने प्रधानमंत्री को उनके राजतिलक पर बधाई तथा सफलता की शुभकामनाएं देते हुए मुझे कहना है:
नया चश्मा है पत्थर के शिगाफो पर उबलने को
ज़माना किस कदर बेताब है करवट बदलने को!