
जेतली क्यों हारे?
लोकसभा चुनावों में सबसे हैरान करने वाला परिणाम अमृतसर से था जहां मोदी लहर में भी भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के नेता अरुण जेतली बुरी तरह से हार गये। नरेन्द्र मोदी की अन्तिम रैली जेतली के पक्ष में थी जहां उन्होंने जेतली को बार बार अपना छोटा भाई बताया और यह संकेत दिया कि भावी सरकार में उनकी भूमिका होगी। लेकिन जेतली को बचा नहीं सके। जेतली क्यों हारे? इसका जवाब कुछ इस तरह है:-
कुछ लोग अपनी हिम्मत से,
तूफान की जद से बच निकले।
कुछ लोग मगर मल्लाहों की,
हिम्मत के भरोसे डूब गये!
अरुण जेतली के साथ भी यही हुआ, वे अकालियों के भरोसे डूब गये। हैरानी है कि दिल्ली में बैठे बड़े नेता इस तरह जमीनी हकीकत से कटे हुये थे कि उन्हें मालूम ही नहीं था कि पंजाब में कैसी शासन विरोधी आंधी चल रही है? 21 नवम्बर 2013 को मैंने पंजाब के हालत के बारे इस कालम में लिखा था, ‘जहां कमल मुरझा रहा है’ पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। शांता कुमार जो पंजाब भाजपा के प्रभारी हैं, ने कहा है कि तीन महीने पहले उन्होंने प्रकाश सिंह बादल तथा सुखबीर सिंह बादल को बताया था कि बेलगाम भ्रष्टाचार तथा ड्रग तथा शराब माफिया में अकाली नेताओं की संलिप्तता के कारण विपरीत माहौल है। उन्होंने विशेष तौर पर सुखबीर बादल को बताया था कि पंजाब में स्थिति अनुकूल नहीं है ‘क्योंकि सरकार का हर आदमी भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों में संलिप्त है।’
यह बहुत गम्भीर आरोप पत्र है। हैरानी है कि जो बात पंजाब में सबको मालूम थी और जो शांता को मालूम थी उससे जेतली अनजान थे! जब वे अमृतसर आए तो आटे दाल का भाव ही नहीं यह भी मालूम हो गया कि सरकार किस कद्र बदनाम है। विकास रुक चुका है और लोगों में गहरी नाराजगी है। छोटे छोटे मामलों में भी रिश्वत देनी पड़ रही है। नशे के कारण बड़ी संख्या में परिवार तबाह हो गये और इस धंधे में अकाली दल के बड़े-छोटे नेता संलिप्त हैं। अब कुछ सक्रियता दिखाई जा रही है और धंधा करने वालों को पकड़ा जा रहा है। एक मंत्री का इस्तीफा लिया गया लेकिन जो दूसरे बड़े नाम आ रहे हैं उनके बारे खामोशी क्यों? और सवाल यह भी है कि लोकसभा परिणाम के बाद ही क्यों कार्रवाई हो रही है इतने वर्ष यह धंधा बर्दाश्त क्यों किया गया? हज़ारों परिवार तबाह हो गए और बादल साहिब हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे? रेत-बजरी को भी ये लोग संभाल गये जिससे निर्माण इतना महंगा हो गया कि ठप्प होकर रह गया। सभी आर्थिक गतिविधि रुक गई हैं। 19,000 कारखाने बंद हैं। जो हुआ इसके लिये अकाली नेतृत्व के साथ-साथ भाजपा हाईकमान भी जिम्मेवार है। इन्होंने प्रदेश भाजपा को अकाली दल को आऊटसोर्स कर दिया। अकाली नेतृत्व के कहने पर उन लोगों को हटा दिया गया जो अकाली धौंस का विरोध कर रहे थे और सुखबीर बादल ने उसी तरह भाजपा को मसल दिया जैसे कभी ओम प्रकाश चौटाला ने हरियाणा में किया था। इस गलती का बहुत बड़ा खामियाजा चौटाला को उठाना पड़ा है और अपनी गलती का बहुत बड़ा खामियाजा सुखबीर बादल को चुकाना पड़ रहा है क्योंकि यह चुनाव उनकी पार्टी के ढांचे को लडख़ड़ाता छोड़ गये हैं। भ्रष्टाचार तथा सरकारी अहंकार का घातक मिश्रण तबाह कर गया और इसी का परिणाम है कि प्रदेश में भाजपा खत्म हो रही है। चाहे पार्टी दो सीटें जीत गई है पर भाजपा अमृतसर, लुधियाना, जालन्धर, बठिंडा तथा पटियाला के महानगरों में मोदी लहर में पराजित हो गई।
प्रकाश सिंह बादल के बार-बार कहने, जिसकी पुष्टि खुद हरसिमरत कौर बादल ने की थी, कि वह मंत्री पद नहीं चाहते, हरसिमरत कौर मंत्री बन गई हैं। इससे कोई बढिय़ा संदेश नहीं गया। बाकी देश की तरह पंजाब का जनादेश भी वंशवाद के खिलाफ था। बेहतर होता कि अकाली दल से किसी और को मंत्री बनाया जाता। अब यह प्रभाव और मज़बूत होगा कि अकाली दल पंजाब के लिए नहीं बल्कि बादल परिवार के लिए काम कर रहा है।
लोग तीन साल 2017 के विधानसभा चुनावों तक इंतज़ार करने को तैयार नहीं थे इसलिए लोकसभा चुनाव में ही गुस्सा निकाल दिया। जब स्वर्ण मंदिर में मिलिटैंटस की याद में स्मारक बन रहा था तो प्रकाश सिंह बादल ने आंखें बंद कर ली थी। कैसे सोच लिया कि इसका उन लोगों पर असर नहीं पड़ेगा जिन्होंने मिलिटैंटसी भुगती है? न ही बादल उन के लिए स्मारक बनाने के लिए तैयार थे जो बेकसूर आतंकवाद का शिकार हुए थे। भाजपा यहां भी लाचार निकली। समझ लिया गया कि वे चुनाव के माहिर हैं कोई भी चुनाव पैसे या सरकारी मशीनरी के बल पर जीत जाएंगे पर जब जनता पीछे पड़ जाए तो कुछ नहीं चलता। कहां शहर कहां गांव सब पलट गए। जिन पर सत्ता का नशा चढ़ गया था उनका नशा जनता ने उतार दिया।
जिस दौरान पंजाब में भ्रष्टाचार, नशे तथा कुशासन के रिकार्ड बनाए जा रहे थे भाजपा का हाईकमान न केवल मूकदर्शक बना रहा बल्कि उसने एक के बाद एक गलत निर्णय लिए। (1) कमल शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। (2) बलबीर पुंज को प्रभारी हटाया गया। (3) नवजोत सिंह सिद्धु को परेशान कर अमृतसर से निकाल दिया गया और (4) मनोरंजन कालिया को बहाना बना कर मंत्री पद से हटा दिया गया। जो तीन नेता अकाली मनमानी पर ब्रेक का काम करते थे, पुंज, सिद्धु तथा कालिया तीनों को एक -एक कर हटा दिया गया। बेधड़क अकाली गाड़ी उलट गई और भाजपा नीचे दब गई। उस कमल शर्मा को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया जो प्रकाश सिंह बादल के ओएसडी रहे हैं। वह व्यक्ति बादल की बराबरी नहीं कर सकता जो उनका सचिव रहा हो। अब कमल शर्मा अकाली कुशासन के खिलाफ बोल रहे हैं पर पहले इतने महीने क्यों चुप रहे? प्रापर्टी टैक्स के मामले में भी समर्पण कर दिया। जब यह लगाया गया उस वक्त भाजपा मंत्री मंत्रिमंडल से बाहर क्यों नहीं आ गए? वरिष्ठ नेता बलरामजी दास टंडन या सांसद अविनाश राय खन्ना, नवजोत सिंह सिद्धु जैसों को पार्टी अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए। तीनों की विश्वसनीयता है, तीनों की आवाज़ है। सिद्धु की अमृतसर से गैरहाजिरी से जेतली नाराज होंगे लेकिन उनके साथ सलूक भी कैसा किया गया? वह स्वाभिमानी आदमी है बर्दाश्त नहीं कर सका लेकिन पंजाब के लोग उन्हें पसंद करते हैं क्योंकि वह एक ईमानदार, मेहनती, समर्पित नेता है। उनका पुनर्वास होना चाहिए। इसी तरह मंत्रिमंडल का पुनर्गठन होना चाहिए। जो खण्डहर है उन्हें हटाना चाहिए और ऐसे लोगों को वापिस मंत्रिमंडल में लाना चाहिए जो अकाली दबाव के आगे कुमहलाते नहीं। मैं अकाली दल के साथ टकराव की बात नहीं कर रहा। मैं बता रहा हूं कि पासा पलट चुका है अब अकाली दल को भाजपा की अधिक जरूरत है।
नई सरकार के लिए पंजाब को अपने पांव पर खड़ा करना एक और चुनौती है। पंजाब में कारोबार फिर जीवित करना होगा जिसे इस सरकार की नीतियों ने तमाम कर दिया है। शहरों की हालत गुजरात के शहरों की तरफ बनानी होगी। लोगों की नाराज़गी का प्याला छलक रहा है। अगर अकाली नहीं मानते तो भाजपा को मंत्रिमंडल से बाहर आ जाना चाहिए यह समझते हुए कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो वैसे ही एक दिन लोग बाहर कर देंगे। पंजाब का जो बेड़ागर्क हुआ है उसके लिए मुख्यत: अकाली नेतृत्व जिम्मेवार है पर भाजपा हाईकमान का लापरवाह समर्पण भी बराबर जिम्मेवार है। अरुण जेतली को हरा कर पंजाब की जनता भाजपा नेतृत्व को यह संदेश भेज रही है:
होता है जिस जगह मेरी बर्बादियों का ज़िक्र
तेरा भी नाम लेती है दुनिया कभी-कभी!
जेतली क्यों हारे?,