क्या हम एक असभ्य देश हैं?
देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अत्याचार की घटनाओं से न केवल देश स्तब्ध है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हमारी घोर बदनामी हो रही है। यौन हमले देश की छवि पर कालिख पोत रहे हैं और बाहर यह सवाल किया जा रहा है कि क्या भारत एक असभ्य देश है? विशेष तौर पर जब से उत्तर प्रदेश में बंदायु में दो नाबालिग लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उनके शव पेड़ से लटका दिए गए, तब से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मामला सुर्खियों में हैं। जिन्होंने इन लड़कियों के साथ बलात्कार किया उन्होंने तो शव छिपाने की भी कोशिश नहीं की। साथ गंगा बहती है। पास जंगल है। वे वहां शव बहा या छिपा सकते थे पर उलटा सार्वजनिक तौर पर पेड़ पर लटका कर दुनिया को बता दिया कि उन्हें किसी का डर नहीं है। उसके बाद भी उत्तर प्रदेश से लगातार बलात्कार की घटनाओं के समाचार मिल रहे हैं। हम तो वैहशीपन का नंगा नाच देख रहे हैं कि जैसे अपराधी बिल्कुल दबंग हो गए हैं। मेघालय में उग्रवादियों ने एक महिला से बलात्कार के बाद उसके सर को गोलियों से उड़ा दिया। ऐसे समाचार देश भर से मिल रहे हैं लेकिन सबसे भयावह स्थिति उत्तर प्रदेश की है जहां अलीगढ़ में एक महिला जज से भी बलात्कार का असफल प्रयास किया गया। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार 2007 के बाद हर वर्ष महिलाओं के खिलाफ अपराध की एक लाख घटनाएं होती हैं। 20,000 बलात्कार की वार्षिक खबर है। ये वे घटनाएं हैं जिनकी शिकायत की जाती है। इनके अतिरिक्त बहुत घटनाएं होंगी जिनका लोकलाज के कारण ज़िक्र तक नहीं किया जाता।
अमेरिका की सरकार ने कहा है कि ये घटनाएं डरावनी हैं। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून का कहना है कि ‘खासतौर पर शौचालय न होने के कारण निकली दो लड़कियों के साथ भारत में हुई नृशंस घटना से मैं सहम गया हूं।’ बान की मून ने न केवल बलात्कार की घटना का ज़िक्र किया बल्कि दुनिया को यह भी बता दिया कि बलात्कार इसलिए हुआ क्योंकि घर में शौचालय न होने के कारण लड़कियां बाहर गई थी। 48 प्रतिशत घरों में यहां शौचालय नहीं है जिस कारण लड़कियों या महिलाओं को बाहर जाना पड़ता है जहां उनके साथ बदसलूकी की संभावना है। गांवों में हालात और भी खराब है। हम चाहे तरक्की के कितने भी दावे करें यह हकीकत है कि शौचालय बनाना हमारी प्राथमिकता में नहीं है। आशा है कि बदायूं की इस घटना के बाद मोदी सरकार इस तरफ विशेष ध्यान देगी। आखिर प्रधानमंत्री मोदी कह चुके हैं कि ‘देवालय से पहले शौचालय’। दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद आशा थी कि क्योंकि कानून सख्त हो गया है और समाज की मानसिकता भी बदली है इसलिए ऐसी घटनाएं रुक जाएंगी लेकिन बदायूं में 14-15 साल की लड़कियों के साथ हुई क्रूरता ने झटका दिया कि कुछ नहीं बदला। हम वहां के वहां फंसे हुए हैं। समाज का एक वर्ग न केवल हिंसक तथा क्रूर है बल्कि समझता है कि महिलाएं पुरुष के बराबर नहीं। कथित जातीय श्रेष्ठता के कारण भी ऐसी घटनाएं होती हैं। अनुसूचित जाति तथा जनजाति के खिलाफ जो ज्यादतियां हो रही हैं इसका यह प्रमुख कारण है। क्योंकि जिन्हें निचली जातियां समझा जाता है वे बराबर आ रही हैं इसलिए उन्हें दबाने और उनका मनोबल तोडऩे के लिए ऐसी घटनाएं हो रही हैं। दलितों के घर जलाए जाने का भी यही बड़ा कारण कि जो खुद को श्रेष्ठ समझते हैं वे उन्हें बराबर खड़े होते नहीं देख सकते। बदायूं मामले में शुरू में पुलिस भी निष्क्रिय रही क्योंकि अपराधी प्रभावशाली यादव जाति से हैं।
ऐसी घटनाएं केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश भर में हो रही हैं। मध्यप्रदेश तथा राजस्थान विशेष तौर पर देश को शर्मसार कर रहे हैं लेकिन एक अंतर है। बाकी प्रदेशों के नेता ऐसी घटनाओं के खिलाफ सख्ती प्रदर्शित करते हैं पर उत्तर प्रदेश का नेतृत्व इनका औचित्य बता रहा है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण मुलायम सिंह यादव की टिप्पणी है कि ‘लड़के लड़के होते हैं गलती हो जाती है। इसका अर्थ यह नहीं कि आप इन्हें फांसी दे दो।’ यह ऐसा बयान है जो मुलायम सिंह को सदा के लिए कलंकित कर गया है यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने इसे ‘विध्वंसकारी सोच’ वाला बताया है। लड़के चाहे लड़के हों, बलात्कार गलती नहीं घोर अपराध है। मैं उन लोगों में से हूं जो मानते हैं कि इसकी सज़ा फांसी होनी चाहिए। ऐसा बयान देकर मुलायम सिंह यादव ने केवल अपना घटियापन प्रदर्शित कर रहे हैं बल्कि ‘लड़कों’ को और ऐसे अपराध के लिए उकसा रहे हैं। हैरानी नहीं कि उत्तर प्रदेश में बलात्कार की बाढ़ सी आ गई है। उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ अफसर का कहना है कि वहां तो मात्र 10 बलात्कार रोज़ाना होते हैं जबकि जनसंख्या के हिसाब से तो 22 प्रति दिन होने चाहिए। जहां ऐसे अफसर और नेता हैं वहां बलात्कार तथा महिला अत्याचार की घटनाएं तो होती ही रहेगी। बहरहाल स्थिति चिंताजनक ही नहीं भयावह और शर्मसार करने वाली है। ऐसा आभास मिलता है कि हमारे समाज ने प्रगति नहीं की। हम अभी भी उस जगह फंसे हुए हैं जहां पुरुष अपनी श्रेष्ठता का जबरदस्ती प्रदर्शन करते हैं विशेष तौर पर अगर खुद को कथित उच्च जाति से समझते हों। बदलाव कैसे आएगा? यह बहुत चिंताजनक सवाल है क्योंकि जहां मुलायम सिंह यादव जैसे नेता हों वहां बदलाव की या मानसिकता बदलने की संभावना शून्य के बराबर लगती है।