
इस देश को कड़वी डोज़ की बहुत जरूरत है, प्रधानमंत्रीजी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि अर्थ व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कड़े फैसले लेने पड़ेंगे। व्यापक देश हित में यह अनुशासन जरूरी है। यह अच्छी बात है। अगर इरादा नेक हो तथा लोगों को बात समझाई जाए तो लोग पूर्ण सहयोग देते हैं। पिछली सरकार तो मारी ही इसलिए गई क्योंकि लोगों के साथ संवाद नहीं था। अब यह बदलेगा लेकिन मैं अपने प्रधानमंत्री से कहना चाहूंगा कि हमें अनुशासन केवल आर्थिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में चाहिए। भारत की जनता को अनुशासन की डोज़ की बहुत जरूरत है। दुनिया में सबसे अनुशासनहीन लोग हम हैं। हम तो सिनेमा का टिकट खरीदने के लिए भी लाईन में लगने को तैयार नहीं। बड़े शहरों को अगर छोड़ दें तो छोटे शहरों में कोई ट्रैफिक नियम का पालन नहीं करता, पुलिस वाले भी नहीं। एम्बुलैंस के लिए रास्ता नहीं छोड़ा जाता। उलटा जब ज़रा भी झगड़ा होता है तो हम सार्वजनिक जायदाद को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार रहते हैं। बसें जला दी जाती हैं। मुहल्ले में लड़ाई होगी और मुख्य सड़क पर धरना हो जाएगा। दक्षिण में एक फिल्म स्टार की प्राकृतिक मौत पर अराजकता के नज़ारे देखने को मिले। एक समाज के तौर पर हम कब परिपक्व होंगे? सार्वजनिक हित के प्रति हम इतने बेदर्द क्यों हैं?
मेरा मानना है कि इस देश में जरूरत से अधिक लोकतंत्र है। लोग अपने अधिकारों के प्रति सतर्क हैं अपनी जिम्मेवारी के प्रति संवेदनशील नहीं। विदेशों में भारतीयों को अनुशासित तथा सभ्य समुदायों में समझा जाता है। यहां हमें क्या हो जाता है? इसका उत्तर है कि यहां अनुशासन का पालन नहीं करवाया जाता। गवर्नेंस इतनी कमज़ोर है कि ऊपर से संदेश है कि यहां सब चलता है। इस सरकार को बने एक महीने से कम समय ही हुआ है पर अभी से चर्चा है कि ट्रेनें समय पर दौड़ेंगी तथा सरकारी कर्मचारी समय पर पहुंचेंगे। क्योंकि प्रधानमंत्री की छवि कठोर प्रशासक की है इसलिए मंत्री भी बदल रहे हैं और अफसर भी। लेट लतीफी खत्म हो रही है। अब ऐसी स्थिति नहीं आएगी कि प्रधानमंत्री चाहेंगे कि प्राकृतिक संसाधन की नीलामी हो और मंत्री उनकी बात नहीं सुनेगा। उत्तराखंड की त्रासदी को एक साल हो गया। यह त्रासदी प्रशासनिक लच्चरपन की प्रमुख मिसाल है। बिना आपदा प्रबंध के इतने लोगों को ऊपर जाने की इज़ाजत क्यों दे दी गई? चाहे उत्तराखंड के तीर्थ स्थल हों या हिमाचल का रोहतांग दर्रा हो, केवल उतने लोगों को ही ऊपर जाने की इज़ाजत होनी चाहिए जितना हम संभाल सकें और जिससे नाज़ुक पर्यावरण को धक्का न पहुंचे। लेकिन हम बेधड़क लोगों को ऊपर भेज रहे हैं। हमारे तीर्थ स्थलों पर अक्सर भगदड़ में लोग मारे जाते हैं। इसका भी यही कारण है कि हम अनुशासन में नहीं रह सकते। भगवान के घर पहुंचने के लिए भी हम एक दूसरे के ऊपर से कूद कर जाने को तैयार हैं। दूसरा, प्रबंध घटिया हैं जिससे दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती हैं जैसा लारजी परियोजना में घोर लापरवाही से हुआ है।
गंगा को साफ करने का बीड़ा सबसे पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1986 में उठाया था। तब से लेकर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं पर गंगा की हालत उससे बदतर है जैसी 28 वर्ष पहले थी। न जनता ने सहयोग दिया न सरकार ने संकल्प दिखाया। गंगा की शोचनीय हालत उस सबका प्रतीक है जो हमारे देश में गलत हैं। अब नए प्रधानमंत्री ने गंगा को साफ करने का वायदा किया है। अगर हम चाहें तो हम कुशल प्रबंध भी कर सकते हैं। हमारे एयरपोर्ट दुनिया में सबसे कुशल हैं। माता वैष्णोदेवी का कुशल प्रबंध हमारे सामने है। नीचे पंजीकरण कर लोगों को ऊपर जाने दिया जाता है ताकि भीड़ पर नियंत्रण रहे। मैंने अहमदाबाद में साबरमती का किनारा नहीं देखा लेकिन तस्वीरें जरूर देखी हैं। ऐसा लगता है कि जैसे हम लंदन में टेम्स या पेरिस में सेएन नदी का किनारा देख रहे हों। अगर साबरमती का किनारा खूबसूरत और प्रदूषण रहित बनाया जा सकता है तो ऐसा दूसरी नदियों के साथ क्यों नहीं हो सकता? इसका जवाब यही है कि ऐसे परिवर्तन के लिए सोच, कार्यकुशलता तथा अनुशासन सभी चाहिए। कार्यसंस्कृति वैसी बनानी होगी जैसी नरेंद्र मोदी ने गुजरात में कायम की थी। गृहमंत्रालय से 94,000 फाईलें तथा 50 अल्मारियां हटा दी गई हैं जिनकी जरूरत नहीं थी। कई फाईलों पर जाले लगे थे तो कुछ पर पान के दाग। ऐसी सफाई पहले क्यों नहीं हुई? नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही क्यों शुरू हुई? यही हालत सभी सरकारी दफ्तरों की है। ये गंदे हैं। दीवारों पर पान की पीक के निशान लगे रहते हैं। सफाई नहीं होती। अब जरूर सरकारी दफ्तरों का नज़ारा बदलना शुरू हुआ है। शिखर पर एक आदमी के आने से देश बदलना शुरू हो गया है। इस वक्त तो सरकारी बाबू की छवि उस व्यक्ति की है जो काम को आगे बढ़ाने की जगह उसमें रूकावटे डालने की कोशिश करता हैं।
इस मामले में शिक्षा विभाग की भी बहुत जिम्मेवारी बनती है। स्कूल में पाठ्यक्रम ऐसे बनाए जाने चाहिए जिससे शुरू से ही बच्चों में अनुशासन आए तथा मेहनत करने की आदत पड़े। ठीक है परीक्षा एक बच्चे को तनाव देती है लेकिन परीक्षा जिंदगी का सामना करने के लिए उसे तैयार भी करती है। कपिल सिब्बल तो यह प्रभाव दे गए कि जैसे मेहनत से बच्चे घिस जाएंगे। कुछ नहीं होगा। हम सब इस दौर से गुजरे हैं किसी ने आत्महत्या नहीं की। परीक्षा से वे बच्चे भागते हैं जिन्हें आराम की जिंदगी की आदत पड़ गई हो। अमेरिका में ‘स्पैलिंग बी’ जैसी प्रतियोगिताओं में पिछले 17 में से 13 वर्षों में भारतीय मूल के बच्चों का प्रथम आना क्या बताता है? यही कि हमारे बच्चे दुनिया में श्रेष्ठ हैं। वे मेहनत कर सकते हैं। उनका दिमाग सबसे अच्छा है। केवल सही मौका मिलना चाहिए। स्कूलों में अनुशासन की आदत, बच्चों में कर्त्तव्य की भावना तथा परीक्षा व्यवस्था का सम्मान कायम होना चाहिए। स्मृति ईरानी को स्कूलों का वातावरण ऐसा बनाना चाहिए कि बच्चे का हुनर छिपा या बंद न रह जाए और बच्चे देश के प्रति अपना कर्त्तव्य सही तरह से समझें।
अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री अपनी मिसाल कायम कर रहें है क्योंकि अगर परिवर्तन आना है तो ऊपर से शुरू होना चाहिए। वे 18 घंटे काम करते हैं। अभी से कई मंत्री हांप रहे हैं! ऐसे मंत्रियों के लिए योग की क्लास लगनी चाहिए! यह भी खुशी की बात है कि रिश्तेदारों को दूर रखा गया है। पवन बंसल की मिसाल है कि अधिकतर बीमारी यहां से शुरू होती हैं। यह केवल राजनीति या सरकार में ही नहीं न्यायपालिका में भी है। इसके खिलाफ नियम है पर सख्ती से पालन नहीं किया जाता। मुझे विश्वास है कि एक बार गवर्नेंस सुधर गई तो नीचे तक बेहतरी होगी। शुरूआत हो चुकी है।
अंत में एक कड़वी डोज़ की इस सरकार को भी जरूरत है। राज्य मंत्री नेहाल चंद मेघवाल को हटा देना चाहिए। एक महिला ने आरोप लगाया है कि उसके पति तथा 17 अन्य ने मिल कर जगह-जगह उसका यौन शोषण किया था। इनमें नेहाल चंद मेघवाल भी शामिल है। मैजिस्ट्रेट ने उन्हें बरी कर दिया था पर अब फिर उस महिला की शिकायत पर अतिरिक्त जिला अदालत ने मंत्री को सम्मन निकाल दिए हैं। यह मामला उस वक्त उठ रहा है जब देश भर में बलात्कार के बढ़ते मामलों को लेकर हाहाकार मची है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारी बदनामी हो रही है। ऐसी स्थिति में केंद्रीय मंत्रिमंडल में ऐसे व्यक्ति की मौजूदगी जिस पर एक विवाहित महिला के सामूहिक यौन शोषण का दोष लगा हो बिल्कुल स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। अगर महिलाओं पर अत्याचार रूकने हैं तो यह भी ऊपर से शुरू होना चाहिए। अगर मेघवाल अदालत से बरी हो जाते तो उन्हें फिर मंत्री बनाया जा सकता है लेकिन इस वक्त तो मर्यादा यही कहती है कि उन्हें तत्काल हट जाना चाहिए, या हटाया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में किसी भी दागी मंत्री की गुंजायश नहीं होनी चाहिए।
इस देश को कड़वी डोज़ की बहुत जरूरत है, प्रधानमंत्रीजी,