पहला झटका
यह तो सब जानते हैं कि देश की आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं है। चुनाव जीतने के लिए पिछली सरकार ने कई लोकलुभावनी योजनाएं शुरू की जिन पर लाखों करोड़ों रुपया खर्च किया गया पर साधन इकट्ठे करने की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। विकास की दर कम होने से भी समस्या आ गई है। इस स्थिति से निबटने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने पहले ही ‘कड़वे कदम’ उठाने की चेतावनी दे दी थी फिर भी जिस तरह रेल किराया 14.2 प्रतिशत तथा भाड़ा 6.5 प्रतिशत बढ़ाया गया है उसके लिए देश बिल्कुल तैयार नहीं था। और यह भारी वृद्घि भी रेल बजट पेश करने से एक महीने पहले की गई। यह उचित नहीं हैं। भाजपा खुद पिछली सरकार की आलोचना कर चुकी है कि साधन इकट्ठे करने के लिए बजट के बाहर भी प्रयास किए गए, अब यही वह खुद कर रहें हैं। आज रेलवे की आर्थिक स्थिति बहुत कमज़ोर है। जिन प्रादेशिक पार्टियों के हाथ यह विभाग दिया गया उन्होंने रेलवे की सेहत की तरफ नहीं अपने वोट की तरफ ही ध्यान दिया। 2012-13 में रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी ने रेल किराए में 30 पैसे प्रति किलोमीटर की वृद्घि की थी पर पार्टी की नेता ममता बनर्जी को यह स्वीकार नहीं था। उनके आदेश पर त्रिवेदी को हटा कर मुकुल रॉय को रेल मंत्री बना दिया और उन्होंने यह वृद्घि वापिस ले ली। और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यह तमाशा देखते रहे। वह चाहते थे कि रेलवे की आर्थिकता बेहतर की जाएं लेकिन ममता बनर्जी की धौंस के आगे बेबस तथा लाचार थे। अफसोस की बात है कि रेल किराया तथा भाड़ा बढ़ाना या न बढ़ाना आर्थिक तथा प्रशासनिक नहीं, राजनीतिक निर्णय बन चुका है। पिछली सरकार ने भी चुनाव परिणाम के दिन 16 मई को किराए तथा भाड़े में वृद्घि कर 10,000 करोड़ रुपए इकट्ठे करने का फैसला किया था लेकिन घोषणा कर रेलमंत्री मल्लिकार्जुन खडग़े ने इसे वापिस ले लिया। कांग्रेस चाहती थी कि यह अप्रिय फैसला नई सरकार ही लें।
इस वक्त रेल का घाटा 30,000 करोड़ वार्षिक के लगभग है। अगर यही हालत चलती रहती तो हमारा भी पाकिस्तान वाला हाल हो जाएगा जहां रेल चलाने के लिए पर्याप्त इंजन भी नहीं हैं। रेल में सुधार की बहुत गुंजायश है। सुविधाएं कम है। रेल पटरियां पुरानी है। डिब्बे पुराने है। लगातार हो रही रेल दुर्घटनाएं बताती है कि सुरक्षा के सही इंतजाम नहीं है। हाल ही में पंजाब में एक पूर्व खिलाड़ी इसलिए मारा गया कि जिस डिब्बे में वह सफर कर रहा था वहां इस भीषण गर्मी में पानी का इंतजाम नहीं था। निश्चित तौर पर इस वृद्घि से महंगाई बढ़ेगी। विशेष तौर पर भाड़ा बढऩे से चारों तरफ महंगाई बढ़ेगी। पहले से महंगाई से संघर्ष कर रही इस सरकार के लिए यह नई मुसीबत होगी। कोयला, स्टील, फल, सब्जी, आदि की ट्रांसपोर्ट के लिए रेल ही मुख्य साधन है। अब यह सब महंगा होगा। लेकिन रेलवे को आधुनिक बनाने तथा यात्रियों को अधिक सुविधाएं देने के लिए अतिरिक्त साधन चाहिए। इस सरकार की असली चुनौती तो यह है कि क्या वह रेल को आधुनिक, चुस्त तथा अधिक आरामदय बना सकते हैं या नहीं? नए रेलमंत्री ने साधन का प्रबंध तो कर लिया लेकिन देखना है कि इसका इस्तेमाल वह कैसे करतें हैं?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाई स्पीड ट्रेन तथा बुलेट ट्रेन शुरू करना चाहते हैं। यह भी चर्चा है कि सरकार 600 करोड़ रुपए से दो ट्रेन सैट खरीदने जा रही है जो 300-350 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकती है पर इन्हें वर्तमान ट्रैक पर 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलाया जाएगा। अगर बुलेट ट्रेन शुरू की जाती है तो उन पर 3000-4000 करोड़ रुपए की लागत आएंगी। सारा ट्रैक नया डालना पड़ेगा। निश्चित तौर पर ऐसी ट्रेन के आने से टैक्नालिजी में छलांग लगेगी। लेकिन सवाल तो यह है कि क्या यही हमारी प्राथमिकता है? क्या उस देश को बुलेट ट्रेन जैसे परीक्षण करने चाहिए जो सामान्य गाडिय़ां सही नहीं चला सकता? हमारे तो कई सौ पुल है जो बदलने वालें हैं। पटरियां बदलने वाली हो गई है। रेलवे स्टेशनों की गंदी हालत है। जयराम रमेश ने सही भारतीय रेल को दुनिया का सबसे बड़ा चलता फिरता शौचालय कहा है। क्या यह जरूरी नहीं कि पहले यह सब सही किया जाए फिर बुलेट ट्रेन जैसे खिलौनों की तरफ ध्यान दिया जाए? सबसे जरूरी तो यह है कि देश के दैनिक 2.3 करोड़ यात्रियों को सुविधाजनक, सुरक्षित तथा सस्ती यात्रा का प्रबंध किया जाए बाद में तेज़ गति की ट्रेने शुरू की जा सकती है। इस वक्त तो शताब्दी तथा राजधानी जैसी कथित वीआईपी ट्रेनों की हालत भी संतोषजनक नहीं है।
Respected Sir
Thanks for initiating common man problems. I think this is beginning by BJP. BJP has also realized that it is very difficult to run country. Iraq domestic war is another issue which is going to effect oil and gas. UGC-DU is another dispute initiated by them. BJP has hardly allowed any discussion in Parliament over the last five years where as Mr. Modi says we have to run parliament with the support of opposition. Mr. Advani is now silent on all these issues because he has to put his candidature for future President of India.
Common man requires free education and health for its kids but I don’t expect these issues would be touched upon by BJP in budget.
The only wise decision they have taken so far is perhaps of foreign policy but that too is earily to comment.