जिंदगी और मौत के बीच

जिन्दगी और मौत के बीच

इराक के हालात भयावह ही नहीं खूनी बनते जा रहे हैं। मध्य पूर्व का नक्शा ही बदल जाएगा। दो हिस्से हो जाएंगे सुन्नी और शिया, जो आपस में भिड़ते रहेंगे। 2003 में सद्दाम हुसैन को हटा कर अमेरिका ने जबरदस्ती जो समाधान थोपा था, वह उधड़ रहा है। इराक में चल रहे टकराव का दुनिया पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। इस्लामिक स्टेट आफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) के लड़ाकू क्रूर तथा खूंखार हैं। वह केन्द्रीय तथा उत्तर पश्चिमी इराक पर कब्ज़ा कर चुके हैं तिकरित तथा मोसुल शहर उनके आगे गिर चुके हैं। यह क्षेत्र क्योंकि प्रमुख तेल उत्पादक क्षेत्र है इसलिए इस टकराव का असर दुनिया भर की आर्थिकता पर पड़ेगा। हमारा अपना 10 प्रतिशत तेल आयात इराक से होता है। सुन्नी-शिया टकराव का सारे मुस्लिम जगत पर भी असर पड़ेगा। पाकिस्तान में पहले ही अल्पसंख्यक शिया पर हमले हो रहे हैं। यह बढ़ सकते हैं। हमारी सरकार को भी चौकस रहना होगा लखनऊ में दोनों सम्प्रदायों में टकराव की नौबत आ चुकी है। लेकिन इस वक्त सारे देश का ध्यान उस युद्ध क्षेत्र में फंसे भारतीयों की तरफ है। हमारी त्रासदी यह है कि हमें यह भी नहीं मालूम कि इनकी पूरी संख्या क्या है? सबसे ज्यादा उन 39 पंजाबियों की चिंता है जिनका आईएसआईएस के मिलिटैंट्स ने अपहरण कर लिया है। इस संदर्भ में मुझे तीन बातें कहनी हैं :

एक, सरकार इन्हें वहां से निकालने का पूरा प्रयास कर रही है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज खुद सारे मामले की मानीटरिंग कर रहीं हैं लेकिन सरकार की अपनी सीमाएं हैं। ऐसे आतंकवादियों से निबटना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि इनका कोई केन्द्रीय कमान नहीं है जिसके साथ बात की जा सके। जो भी विदेशी सरकार मदद कर सकती है उससे मदद ली जा रही है। विशेष तौर पर सऊदी अरब जिसका सुन्नी मिलिटैंट्स पर असर है, से सम्पर्क किया गया है। हम वहां जहाज़ या हैलीकाप्टर भेज कर उन्हें निकाल नहीं सकते। इस क्षेत्र के धार्मिक नेताओं से भी सरकार सम्पर्क में है।

विभिन्न प्रदेश सरकारें भी इस मामले में सक्रिय हैं। कई वह फंसे हैं जिनके पास अपने पासपोर्ट भी नहीं हैं क्योंकि कम्पनी ने पासपोर्ट अपने पास रख लिए हैं। कइयों के वीजा की अवधि पूरी हो चुकी है। तिकरित में 46 नर्सें फंसी हुई हैं। जिनके प्रियजन वहां फंसे हैं वह निश्चित तौर पर परेशान हैं। जहां चारों तरफ गोलियां चल रही हों या बम फट रहे हों, वहां फंसे लोगों को निकालना बहुत मुश्किल काम है। वह वहां से भाग भी नहीं सकते। लेकिन सरकार के दखल की भी सीमा है। वह ऐसा कुछ नहीं कर सकती जिससे इन लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ जाए क्योंकि ऐसे धर्मान्ध लड़ाकू झट भड़क उठते हैं। प्रभावित परिवारों के साथ क्या बीत रही है इसका मुझे एहसास है। कइयों का एकमात्र कमाने वाला वहां है। दुख की बात तो यह है कि ऐसा हमारे लोगों के साथ बार-बार हो रहा है।

माल्टा बोट त्रासदी में कितने डूब गए थे? अभी तक पूरी जानकारी नहीं है। कभी समाचार मिलता है कि अवैध तौर पर किसी देश की सीमा पार करते हुए मारे गए तो कभी समाचार मिलता है कि किसी देश की जेल में कैद हैं हमारे युवा नागरिक। यह शिकायत अकसर है कि एजेंट वायदा किसी जगह ले जाने का करते हैं पहुंच वह कहीं और जाते हैं। इस संदर्भ में दूसरा मुद्दा परिवारों की अज्ञानता का है जो बिना पूरी छानबीन या जानकारी प्राप्त किए लड़कों को लालची तथा बदमाश एजेंटों के हवाले कर देते हैं। जो सबज़बाग दिखाया जाता है उस पर झट भरोसा कर लिया जाता है। कई जमीन बेचकर तो कई पैसा मोटे ब्याज पर लेकर अपने लोगों को बाहर भेजते हैं उसके बाद उनकी लाचारी उनके दुर्भाग्य का कारण बन जाती है। इराक में केरल की जो नर्सें फंसी हुई हैं वह इस हालात के बावजूद वापिस आने को तैयार नहीं क्योंकि वह ब्याज पर पैसा लेकर वहां गई थीं। यह पैसा वापिस करना है। उन्होंने बता दिया है कि जब तक उन्हें उनका सही वेतन मिलता रहेगा, वह वहां ही रहेंगी। हमारे लोगों की यह मजबूरी कब खत्म होगी? उनके लिए यह लाचारी जीवन मरण का सवाल बन जाती है।

तीसरी बात है कि इस मामले में प्रादेशिक सरकारों, विशेषतौर पर पंजाब सरकार की असफलता पूर्ण है। बेईमान एजेंट भोले-भाले लोगों का शोषण कर जाते हैं पर पंजाब सरकार दशकों से चल रहे इस धंधे पर रोक नहीं लगा सकी। कई बार तो यह एहसास मिलता है कि यह सरकार नाखुश नहीं कि इस तरह यह लड़के बाहर चले जाते हैं क्योंकि उतने ही लोगों के रोजगार का उन्हें कम इंतजाम करना पड़ता है। जब वह फंस जाते हैं तो उनको निकालने के लिए हाथ पैर अवश्य मारे जाते हैं पर उन्हें इस तरह फंसने से बचाने का कोई सार्थक प्रयास नहीं किया जाता। यह धंधा वार्षिक 500-1000 करोड़ रुपए का है पर इस पर पंजाब सरकार का कोई नियंत्रण नहीं। एजेंटों का तो सही पंजीकरण भी नहीं किया जाता। पंजाब के दोआबा क्षेत्र, जहां से सबसे अधिक लोग विदेश जाते हैं, में अनुमानित 6000 एजेंट हैं पर केवल 48 ने कानून के अनुसार लाइसैंस के लिए आवेदन दिया है। क्योंकि सरकार गंभीर नहीं इसलिए लाइसैंस लेने में किसी की रुचि नहीं है। मैं यह मानने को तैयार नहीं कि पुलिस को ऐसे अवांछनीय एजेंटों के बारे में जानकारी नहीं लेकिन ऊपर से इशारा नहीं इसलिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती। जालन्धर पुलिस को ट्रैवल एजेंटों के बारे एक साल में 2000 शिकायतें मिल चुकी हैं।

इन एजेंटों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? इसका जवाब तो वही लगता है कि ड्रग्स के खिलाफ यहां इतने वर्ष कार्रवाई क्यों नहीं हुई? जो 39 युवक अपहृत हैं उनके घर वालों का कहना है कि उन्हें दुबई भेजने का वायदा किया गया था पर वह इराक पहुंच गए। अभी तक तो यही अनुभव है कि जब ऐसा कोई हादसा होता है तो एजेंट गायब हो जाते हैं और जब मामला ठंडा हो जाता है तो फिर उसी धंधे में लग जाते हैं। केन्द्रीय सरकार को दखल दे पंजाब सरकार को कार्रवाई करने के लिए मजबूर करना चाहिए। पंजाब सरकार की जिम्मेदारी और भी बनती है, क्योंकि यह लड़के विदेश में इसलिए धक्के खा रहे हैं क्योंकि यहां रोजगार नहीं है। अगर यहां रोजगार होता तो वतन छोडऩे की जरूरत ही नहीं पड़ती। पंजाब में रोजगार लगातार घटता जा रहा है। कारखाने बंद हो रहे हैं। साइकिल उद्योग भी अपने नए कारखाने पंजाब से बाहर लगा रहा है। इस मामले को केन्द्र सरकार तथा पंजाब सरकार दोनों को उसी तरह से गंभीरता से लेना चाहिए जिस तरह से ड्रग्स का मामला आखिर में लिया गया क्योंकि जिसे कबूतरबाजी कहा जाता है, वह भी घर बार उजाड़ रही है। इसे इसलिए भी गंभीरता से लेना चाहिए क्योंकि अगर अब इसे नियंत्रण में नहीं लिया गया तो यह हादसा किसी और जगह, किसी और शक्ल में फिर दोहराया जाएगा।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.