पंचशील का शीलभंग
बीजिंग में पंचशील की 60वीं वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित शिखर सम्मेलन में जहां चीन तथा म्यांमार के राष्ट्रपति ने हिस्सा लिया वहां भारत ने अपने उपराष्ट्रपति को भेजा। भारत के राष्ट्रपति की अनुपस्थिति अपनी कहानी खुद कहती है कि भारत को भरोसा नहीं कि चीन पंचशील के मूल सिद्धांतों का पालन करेगा। 1962 से लेकर आज तक चीन पंचशील का शील भंग ही करता आ रहा है। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भी चीनी मेज़बानों को स्पष्ट शब्दों में कहा है कि शांति तथा सह अस्तित्व दोनों देशों के संबंधों के खिलने के लिए बहुत जरूरी है। भारत ने यह भी कहा कि हम यह अपेक्षा करते हैं कि सभी लंबित मामले तेज़ी से हल किए जाएंगे। सीधा इशारा सीमा विवाद की तरफ है जहां वार्ता के पंद्रह दौर के बाद भी कोई प्रगति नहीं हुई। उलटा लाईन ऑफ एकचुअल कंट्रोल में चीन की पीएलए सेना लगातार घुसपैंठ कर रही है। चीनी नेता बात अच्छी करते हैं। उनके प्रधानमंत्री ली कछयांग अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत आए थे। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने का भी वहां स्वागत किया गया। चायना डेली ने संपादकीय लिख कर असामान्य प्रशंसा करते हुए भारत के ‘सुधार-समर्थक’ प्रधानमंत्री को बधाई दी और आशा की है कि भारत में ‘आर्थिक चमत्कार’ हो जाएगा। लेकिन भारत-चीन रिश्ते की हकीकत और भी हैं। हमें देखना यह नहीं कि वे कहते क्या हैं, देखना है कि वे करते क्या हैं?
चीन की घुसपैंठ लगातार जारी है। नवीनतम समाचार लद्दाख की पैंगांग झील में घुसपैठ का है। 27 जून को चीनी सैनिकों ने वहां गश्ती मोटरबोट के द्वारा घुसपैंठ करने का प्रयास किया। उल्लेखनीय यह है कि यह घुसपैंठ उस वक्त हुई जब उपराष्ट्रपति अंसारी बीजिंग में थे और पंचशील की भावुक बातें हो रही थी। चीन इस झील पर अपने नियंत्रण का प्रयास करता रहता है। पिछले साल अप्रैल में भी चीन दौलत बेग ओल्डी क्षेत्र में वह राकी नाला तक 10 किलोमीटर अंदर आ गया था। भारत के साथ सीमा पर टकराव में कई सौ चीनी सैनिकों ने हिस्सा लिया था। वे लगातार अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बता रहे हैं। अरुणाचल प्रदेश के नागरिकों को स्टेपल वीज़ा दिया जाता है। उन नदियों पर डैम बनाए जा रहे हैं जो भारत की तरफ बहती हैं। चीन तथा पाक अधिकृत कश्मीर के बीच रेल लिंक कायम करने का सर्वेक्षण किया जा रहा है जो हमारी सुरक्षा को गंभीर खतरा है। भारत ने इन बाबत अपनी चिंता भी व्यक्त की है लेकिन इसका असर होने की कोई संभावना नहीं। पाकिस्तान को हमारे बराबर खड़ा करने तथा उसको परमाणु तथा मिसाईल ताकत बनाने में भी बीजिंग का बड़ा हाथ है। हमारे इर्द-गिर्द चीन नौसैनिक अड्डे बना रहा है ताकि हिन्द महासागर पर उसका प्रभुत्व हो सके। चीन वही कर रहा है जो अतीत में बड़ी ताकतें, पुर्तगाल, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका कर चुके हैं। वह भी यहां अपने सैनिक अड्डे बनाएगा। एयरक्राफ्ट कॅरियर विक्रमादित्य का निरीक्षण कर प्रधानमंत्री मोदी ने भी यह संदेश दे दिया है कि पानी में मिलने वाली चुनौती के प्रति भारत सजग है।
भारत तथा चीन के बीच बहुत असमानता है। चीन का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) हम से चार गुना है। चीन का रक्षा बजट हमसे चार गुना है। इस वक्त चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। भारत तीसरी अर्थव्यवस्था होगी लेकिन बहुत पीछे है। चीन की सैनिक ताकत भी अमेरिका के बाद दूसरी है चाहे वह उतनी प्रभावी नहीं हैं। इसी सैनिक ताकत के बल पर चीन अपने पड़ोसियों को धमका रहा है। रूस के साथ उसने अपना सीमा विवाद जरूर हल कर लिया है लेकिन बाकी पड़ोसियों, भारत, जापान, फिलिपींस, वियतनाम आदि सब के साथ खुले विवाद हैं। इस बीच भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार कायम हो गई है। प्रधानमंत्री का चीन के प्रति रवैया सहयोगपूर्ण है क्योंकि उनका फोक्स आर्थिक सहयोग पर है। चीन के राष्ट्रपति इस वर्ष भारत आ रहे हैं लेकिन इस वक्त अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा दिखाना, पाक अधिकृत कश्मीर तक रेललाईन का सर्वेक्षण करवाना या लेह में पैंगांग झील में अतिक्रमण करना क्या संदेश देते हैं? कि चीन की विस्तारवादी नीति नहीं बदलेगी। पंचशील या नो- पंचशील। चीन अपने मुताबिक एशिया का नक्शा बदलना चाहता है। जैसे-जैसे अमेरिका यहां से निकलेगा चीन उसकी जगह भरने की कोशिश करेगा। इस प्रयास को सैद्धांतिक लिबास पहनाया जा रहा है। जहां पहले अमेरिका लोकतंत्र तथा आज़ादी के नाम पर बहुत कहर ढहा चुका है, वैसे ही चीन अपने राष्ट्रीय हित को पंचशील का नाम देता रहेगा।
जहां चीन में पंचशील की 60वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है वहां भारत में इसका कोई नामलेवा भी नहीं। इसे केवल जवाहरलाल नेहरू की आदर्शवादी नादानी समझा जाता है। भारत का मानना है कि जब तक एक दूसरे के मामलों में दखल होती रहेगी तब तक पंचशील के कुछ मायने नहीं हैं। इसी पंचशील की भावना में हमारे नेतृत्व ने तिब्बत की कुर्बानी दे दी थी यह सोचते हुए कि इसके बाद चीन संतुष्ट हो जाएगा पर चीन तिब्बत के बाद अरुणाचल प्रदेश तक पहुंच गया है और उस पर अपना अधिकार जता रहा है। इस मामले में केवल प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ही दोषी नहीं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अपनी चीन यात्रा के दौरान चीन के तिब्बत पर दावे की पुष्टि की थी।
चीन के इर्दगिर्द के दक्षिण पूर्वी एशिया तथा पूर्वी एशिया के देश चाहते हैं कि भारत विकल्प तथा विश्वसनीय सुरक्षा सहयोगी के तौर पर अपनी भूमिका निभाएं। नई भारत सरकार के लिए भी यह चुनौती है कि एक तरफ चीन के साथ तथा दूसरी तरफ चीन से सताए देशों के साथ रिश्ता कैसा रखा जाए? हमारी सीमा के अंदर बार-बार घुसपैंठ कर चीन भी यह संदेश दे रहा है कि उसे भारत की अधिक सक्रियता पसंद नहीं आएगी। फ्रांसीसी लेखक फ्रासौंस गौतियर जो भारत पर अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ हैं का मानना है कि भारत का सबसे बड़ा दुश्मन चीन है, पाकिस्तान नहीं। ‘दुश्मन’ शब्द बहुत सख्त है लेकिन यह तो सही है कि चीन की हरकतें मैत्रीपूर्ण नहीं हैं। थलसेनाध्यक्ष बिक्रम सिंह चीन यात्रा पर हैं। भारत तथा चीन मिल कर सैनिक अभ्यास भी करने जा रहे हैं लेकिन चीन कब कांटा बदल ले कोई नहीं कह सकता। इस वक्त आर्थिक सहयोग पर जरूर बल दिया जा रहा है।
जहां नई सरकार चीन के साथ वार्ता शुरू कर रही है और प्रधानमंत्री मोदी इस महीने ब्राजील में चीन के राष्ट्रपति से मिलेंगे, वहां हमें अपनी सेना के आधुनिकरण तथा सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने की तरफ तत्काल ध्यान देना चाहिए। चीन हमारी तरह एक प्राचीन सभ्यता है। वे ताकत को समझते हैं तथा उसे मान्यता देते हैं। अगर हम कमज़ोर रहेंगे तो वह एक दिन फिर हमें रौंद देंगे। चीन नई सरकार की विदेश नीति के लिए बहुत बड़ी चुनौती है इसलिए भी क्योंकि यहां जनता में चीन के प्रति बहुत अविश्वास है। चीनियों को समझना सदैव ही मुश्किल रहा है। इस वक्त जो सीमित टकराव हो रहे हैं उन्हें संभाला जा सकता है पर भविष्य के बारे कौन क्या कह सकता है? भारत को एशिया में एक बड़ी ताकत बनाते हुए 60 साल पहले हुए पंचशील के समझौते के हश्र को सदा याद रखना चाहिए। हमें यहां पश्चिम का खेल नहीं खेलना लेकिन चीन के किसी भी अप्रत्याशित दखल के लिए सदा तैयार रहना होगा। वे उस दिशा पर चल रहे हैं जिसमें भारत के साथ बहुत घनिष्ठ रिश्ते नहीं लिखे।