Punjab ka vibhajan sahi shiromani committee ka nahin

पंजाब का विभाजन सही, शिरोमणि कमेटी का नहीं?

हरियाणा ने अपनी अलग गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी बना ली है। अकाल तख्त तथा शिरोमणि गुरूद्वारा कमेटी के तीखे विरोध के बावजूद कैथल की सिख महासभा में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिन्द्र सिंह हुड्डा ने हरियाणा के लिए अलग गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी बनाने का ऐलान किया था। गृहमंत्री राजनाथ सिंह को अकाली नेता इसे रोकने का अनुरोध कर आए है लेकिन इसे रोकना संभव नहीं होगा। न ही रोकने का प्रयास ही  होना चाहिए। मामला प्रादेशिक है जिसमें केंद्र की कोई दखल नहीं बनती। हां, मामला अदालत में जरूर जाएगा जहां लम्बी लड़ाई लड़ी जा सकती है। इस सारे मामले में शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी का नैतिक पक्ष कमज़ोर है। इसके पांच कारण है:
एक, पंजाब का विभाजन 1966 में हुआ था। उसके बाद राजधानी चंडीगढ़ तथा हाई कोर्ट को छोड़ कर बाकी सब कुछ अलग हो गया। आज हरियाणा का अपना राज्यपाल है, प्रशासन है, अदालतें हैं, विश्वविद्यालय है फिर अगर वहां के सिख चाहे तो हरियाणा की अलग गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी क्यों नहीं हो सकती? पंजाब का विभाजन करवाने में प्रकाश सिंह बादल जैसे नेता सबसे आगे थे क्योंकि उन्हें राजनीतिक ताकत नज़र आती थी। आज बादल साहिब कहते नज़र आ रहे हैं कि पंजाब का विभाजन तो सही था, पर नहीं! नहीं! शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी का विभाजन नहीं होना चाहिए। यह बात कितनी उचित है?
दो, चाहे प्रकाश सिंह बादल हो या एसजीपीसी के अध्यक्ष अवतार सिंह मक्कड़, सब शिकायत कर रहें है कि कांग्रेस सिखों के मामले में दखल दे रही है और उन्हें बांटने का प्रयास कर रही हैं। पर पहले ही दिल्ली, हज़ूर साहिब तथा पटना साहिब की अपनी अलग गुरूद्वारा कमेटियां है। अगर उन से सिख नहीं बंटे तो हरियाणा की अलग कमेटी बनने से क्या बिगड़ जाएगा?
तीन, सिख धर्म सबसे लोकतांत्रिक धर्म है। फिर हरियाणा के सिखों की मांग की उपेक्षा कैसे की जा सकती है सिर्फ  इसलिए कि यह पंजाब के सिख नेताओं के कब्ज़े से हरियाणा के गुरूद्वारे निकालती है? हरियाणा के सिखों की शिकायत हैं कि वहां सिखों की शिक्षा संस्थाओं में उन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता। जो गुरूद्वारों का चढ़ावा है उसे हरियाणा में बहुत कम खर्च किया जाता है। इसके अतिरिक्त गुरूद्वारों के कुप्रबंध तथा उनमें हरियाणा के सिख युवाओं को कम रोजगार का मामला भी है। चट्ठा कमेटी के अनुसार इन गुरूद्वारों की 200 करोड़ रुपए की आमदन है। आरोप है कि इसका अधिकतर इस्तेमाल हरियाणा में नहीं होता। अकाली दल आल इंडिया गुरूद्वारा कानून चाहता है ताकि सभी गुरूद्वारों पर उनका कब्ज़ा हो जाएं पर पंजाब के बाहर हर जगह इसका विरोध होगा क्योंकि सब अपना आज़ाद नियंत्रण चाहते हैं। हरियाणा में सिखों की गिनती 20 लाख के करीब बताई जाती है। वह 22 विधानसभा क्षेत्रों में अहम् भूमिका निभाते हैं। अब वह अपने गुरूद्वारों का प्रबंध खुद देखना चाहते हैं जिसमें आपत्ति नहीं होनी चाहिए। महान् गुरू साहिबान ने संगत की जो अवधारणा समझाई थी उसके अनुसार किसी बाहरी व्यक्ति को यह अधिकार नहीं होना चाहिए कि वह हरियाणा के सिखों को बताएं कि उनके हित में क्या है, क्या नहीं। हरियाणा की संगत को तय करना है कि उनके गुरूद्वारों का प्रबंध कौन चलाए और कैसे चलाए। इस कदम का हरियाणा में तनिक भी विरोध न होना बताता है कि वहां के सिख क्या चाहते हैं? पंजाब के सिख नेताओं को सोचना चाहिए कि वहां बड़ा विरोध क्यों नहीं हुआ?
चार, पंजाब के सिख नेता शिकायत कर रहे हैं कि हरियाणा में कांग्रेस राजनीति कर रही है। चुनाव कुछ ही महीने बाद होने है इसलिए उनसे पहले यह पत्ता चल दिया गया है। यह शिकायत सही है। चुनाव में हरियाणा के सिखों को यह कदम प्रभावित कर सकता हैं पर सवाल है कि किसने राजनीति नहीं खेली? क्या अकाली दल वर्षों से पंजाब में एसजीपीसी का राजनीतिक लाभ नहीं उठाता आ रहा है? क्या एसजीपीसी अकाली दल की बांह की तरह काम नहीं करती? इसके दुरुपयोग की आम शिकायतें हैं। अकाली दल तो खुद को ‘पंथक’ कहता रहा है। हरियाणा में भी शिकायत हैं कि अकाली दल गुरूद्वारों का इस्तेमाल इंडियन नैशनल लोकदल की मदद के लिए करता है। यही कारण है कि हरियाणा भाजपा भी इस मामले में अधिक मुखर नहीं हैं। अकालियों ने सदैव गुरूद्वारों के द्वारा अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाया है पंजाब को इसका बुरा खामियाज़ा भुगतना पड़ा है। अवतार सिंह मक्कड़ का कहना है कि ‘हुड्डा सिखों के मामले में पंगा न ले, नाक से धुआं निकाल देंगे।’ यह सर्वथा दुर्भाग्यपूर्ण बयान हैं। वह हरियाणा सरकार से टक्कर नहीं ले सकते और ऐसे बयान देकर वह हरियाणा में कांग्रेस को मजबूत कर रहे हैं। इस मामले में कोई भी टकराव हुड्डा के पक्ष में जाएगा क्योंकि तब यह चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकता हैं।
पांच, अकाली नेतृत्व तथा एसजीपीसी ने खुद ऐसी मिसाल कायम की है कि दूसरे उनसे दूर जा रहे हैं। एक समय प्रकाश सिंह बादल सिखों के बड़े लीडर बन कर उभरे थे लेकिन पंजाब में जिस तरह का शासन दिया गया और जिस तरह वह अपने परिवार को बढ़ावा दे रहें हैं उससे बादल साहिब की लीडरी की चमक कमजोर पड़ गई है।  उन्होंने गांधी परिवार के हश्र से कुछ नहीं सीखा। आज का भारत वंशवाद के खिलाफ है। और नशे में डूबा पंजाब देश के लिए मिसाल नहीं है जबकि कभी पिछड़ा हरियाणा बहुत तरक्की कर गया है और पंजाब को पछाड़ गया है। वहां प्रति व्यक्ति आय गुजरात से भी अधिक है। ऐसे में पंजाब के नेतृत्व की बात हरियाणा के सिख क्यों सुनेगे? अब पंजाब के बाहर के सिख अकाली दल बादल के नेतृत्व को नहीं कबूलते। उन्हें पंजाब से रिमोट कंट्रोल स्वीकार नहीं। जहां तक शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी का सवाल है यह लगातार कमजोर होती जा रही है और बादल परिवार की जेबी संस्था बन गई है। न यह कमेटी स्वर्ण मंदिर को किले में परिवर्तित होने से रोक सकी, न ही यह वहां आतंकवादियों की याद में स्मारक के निर्माण को रोक सकी और न ही 6 जून को श्री अकाल तख्त साहिब पर किरपाणें चलने से रोक सकी। यह कष्टदायक दृश्य सारी दुनिया ने देख लिया। अलग कमेटी बनने का असली कारण एसजीपीसी की नाकामी तथा उसका राजनीतिककरण है। अब वह लकीर पीट रहे हैं लेकिन वह हरियाणा को खो बैठे है। यह सोनिया गांधी की साजिश नहीं जैसी सुखबीर बादल कह रहे हैं, यह अकाली दल तथा एसजीपीसी की नाकामी है। अकालियों को अपना राजनीतिक व्याकरण अब बदलना चाहिए। बदलते ज़माने में यह आरोप अर्थहीन हो गया है। असली समस्या है कि वर्तमान अकाली नेतृत्व अपने मिशन से भटक गया है। लोकसभा के चुनाव परिणाम यह स्पष्ट संदेश दे गए है। अब मुख्यमंत्री बादल का कहना है कि भ्रष्ठ अफसरशाही बदनाम कर रही है। हैरानी है कि सात वर्ष शासन करने के बाद बादल साहिब ने यह बहाना ढूंढ निकाला है।
आखिर में मामला हरियाणा के सिखों पर छोड़ दिया जाना चाहिए। अकाली नेतृत्व को भी बदली परिस्थिति को समझते हुए सिख राजनीति छोड़ कर गवर्नेस पर ध्यान देना चाहिए। यहां कई दिन से मिड डे मील में कीड़े और सूंडियां निकलने की शिकायत मिल रही हैं। पर कोई परवाह नहीं कर रहा। पंजाब को इस वक्त अच्छे शासन की बहुत जरूरत है। यह जीवन मरण का सवाल बनता जा रहा है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.