pradhan mantri modi and kashmir

प्रधानमंत्री मोदी तथा कश्मीर

अपनी पहली कश्मीर यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि ‘जो यात्रा अटल बिहारी वाजपेयी ने शुरू की थी वह जारी रहेगी… हमारी प्राथमिकता विकास के द्वारा जम्मू कश्मीर के हर नागरिक का दिल जीतना है।’ उन्होंने तीन बातें कहीं हैं, वह वाजपेयी की नीति जारी रखेंगे, प्रदेश के नागरिकों का दिल जीतने का प्रयास रहेगा और विकास को प्राथमिकता दी जाएगी। कोई और प्रदेश या उसके नेता होते तो प्रधानमंत्री के संकल्प पर तालियां बजाते पर कश्मीरी नेता क्या जो केंद्र के किसी प्रयास से खुश हो जाएं? प्रधानमंत्री की यात्रा को ‘अपूर्ण’ तथा ‘सामान्य’ बताया गया कि उन्होंने कश्मीरी लोगों को कुछ ठोस पेश नहीं किया। सत्तारूढ़ नैशनल कांफ्रैंस जिसका शासन अत्यन्त घटिया रहा है का कहना है कि कुछ विशेष नहीं दिया गया। क्या विकास का वायदा ‘विशेष’ नहीं हैं? शिकायत है कि प्रधानमंत्री ने न पाकिस्तान से वार्ता की पेशकश की, न अलगाववादियों को वार्ता के लिए ही बुलाया। पीडीपी की शिकायत है कि ‘हमें आशा थी कि वह वाजपेयी की विरासत को बढ़ाएंगे और कश्मीर को स्पष्ट संदेश भेजेंगे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।’ ‘स्पष्ट संदेश’ का क्या मतलब है? प्रधानमंत्री और क्या कह देते कि कश्मीरी संतुष्ट हो जाते? अटलजी का ज़िक्र किया जाता है कि उन्होंने प्रयास किया पर उसका भी फल क्या मिला? क्या उसके बाद कश्मीरी नेताओं ने देश को ब्लैकमेल करना बंद कर दिया था? क्या उसके बाद वादी शांत हो गई? कश्मीरी नेताओं की तो नीति है कि आप कुछ भी कर लो हम बेचैन रहेंगे। अगर आप विकास करोगे तो हम कहेंगे कि विकास कोई मुद्दा नहीं हैं। अगर नहीं करोंगे तो शिकायत होगी कि हमारी परवाह नहीं हैं। इनमें से सबसे शरारती मीरवायज उमर फारुख है जिसे न जाने क्यों ‘मॉडरेट’ कहा जाता है और जिसने हर प्रयास में बाधा डाला है, का अब कहना है कि ‘कश्मीरियों का रेल तथा सड़क लिंक से भारतीयकरण नहीं किया जा सकता।’ लोग प्रसन्न है कि वहां रेल पहुंच रही है लेकिन मीरवायज़ साहिब रेल चलाने को भी ‘इंडियनाईज़’ करने का प्रयास बता रहें है।
अतीत में अधिकतर बार जब वार्ता के लिए नई दिल्ली बुलाया गया तो हुर्रियत वाले नहीं आए पर अगर पाकिस्तान का तीसरे दर्जे का कोई नेता भी आ जाए तो नई टोपी डाल और नई शेरवानी सिलवा भागे पाक दूतावास पहुंच जाते हैं। इस बार अवश्य नवाज़ शरीफ ने इन्हें न बुला कर शीशा दिखा दिया। समय आ गया है कि इन मिडलमैन के नखरों को बर्दाश्त करना बंद किया जाए और सीधा कश्मीर की जनता, विशेष तौर पर युवाओं के साथ समर्पक स्थापित किया जाए। इन कश्मीरी नेताओं को रोजगार या आर्थिक तरक्की की जरूरत नहीं क्योंकि दोनों तरफ से बहुत कुछ मिलता है पर लोगों को तो रोजगार चाहिए। वहां 10 लाख से अधिक युवा बेरोजगार है। अगर युवाओं को सही रास्ता मिल गया तो कश्मीर की समस्या का काफी समाधान हो जाएंगा। मीरवायज़ तो ‘युनाईटेड स्टेटस ऑफ जम्मू एंड कश्मीर’ के उपासक है। उमर अब्दुल्ला अब जम्मू कश्मीर के भारत में विलय पर बार-बार सवाल उठा रहे हैं। आप कुछ भी इन्हें दे दो यह और मांग उठा लेंगे। अंग्रेजी के मुहावरे के अनुसार गोल पोस्ट बदलते रहेंगे।
नई सरकार जम्मू कश्मीर के बारे बिल्कुल सही नीति पर चल रहें हैं। विकास करना तथा 1990 में वहां से जबरदस्ती निकाले गए पंडितों की वापिसी तथा उनका पुनर्वास इसका मुख्य हिस्सा है। संसद में अपने अभिभाषण में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी कहा है कि ‘इस बात के विशेष प्रयास किए जाएंगे कि कश्मीरी पंडित अपने पूर्वजों की ज़मीन पर पूरी मान-मर्यादा, सुरक्षा तथा सुनिश्चित रोजगार के साथ लौट जाए।’ गृहमंत्रालय भी वादी में उनके घरों के पुनर्निर्माण के लिए प्रति परिवार 20 लाख रुपए का पैकेज देने जा रहा है। पिछली सरकार ने यह पैकेज 7.5 लाख रुपए रखा था जिसे आज के युग में अपर्याप्त समझा गया। लगभग 150,000 ऐसे शरणार्थी जो विभाजन के बाद पाकिस्तान से जम्मू तथा सांबा के सीमावर्ती इलाके में बस गए थे को नागरिकता का अधिकार प्राप्त नहीं हैं। इन्हें अब नागरिकता मिलेगी। इसके साथ यह भी जरूरी है कि जम्मू कश्मीर के चुनाव क्षेत्रों में फिर से गिनती हो तथा इनका जनसंख्या के आधार पर पुनर्गठन किया जाए। अभी तक कश्मीरी मुसलमान नेताओं को सत्ता दिए रखने के लिए इनका पुनर्गठन नहीं किया गया। इसकी अब जरूरत है। जिसका बहुमत है उसके हाथ सत्ता हो। पुनर्वास के लिए सबसे बड़ी समस्या सुरक्षा की है। यह संभव नहीं कि वह अपने पुराने मुहल्लों में लौट जाएं जहां 19 तथा 20 जनवरी की रात को लाऊड स्पीकरों के द्वारा बार-बार यह घोषणा की गई थी कि ‘काफिरों भाग जाओ’ और उनके मुस्लिम पड़ोसियों ने उनकी मदद नहीं की थी। उनके सबसे बड़े नेता टिक्कालाल टपलू की हत्या कर दी गई और डीएन चौधरी की आंखें निकाल दी गई थी। अभी तक आवास के पैकेज का फायदा उठा कर केवल एक परिवार ही लौटा है।
दुनिया में जहां भी ऐसी नसली सफाई का प्रयास किया गया है वहां बाद में आयोग ने मामले की जांच की है। ऐसा जम्मू कश्मीर में भी होना चाहिए। वह केवल इसलिए बचे नहीं रहने चाहिए क्योंकि उनमें शरारत करने की क्षमता है। जो पंडित वापिस आना चाहते है वह भी वहां फैले उग्रवादी तथा कट्टरवादी माहौल की शिकायत करते हैं। पंडित की संस्था पनून कश्मीर प्रदेश के अंदर अपने लिए विशेष होमलैंड की मांग कर रही है जिसे संघीय क्षेत्र का दर्जा मिला हो। पंडित चाहते हैं वादी में उनके तीन शहर बसाएं जाए। संसदीय कमेटी भी इसकी वकालत कर चुकी है कि इससे उनमें सुरक्षा की भावना बढ़ेगी और वह वापिस लौटने को तैयार हो जाएंगे। केंद्रीय सरकार भी इसी तरफ सोच रही है। दिलचस्प है कि कश्मीर के मुस्लिम नेता पंडितों के लिए अलग आवासीय प्रबंध का तीखा विरोध कर रहें हैं।
शताब्दियों पुराने भाईचारा! शर्म नहीं आती इन्हें? कथित भाईचारा उस वक्त कहा था जब पंडितों को वहां से निकाला गया? इनकी कश्मीरियत किस काम की अगर वह इतना बड़ा अत्याचार रोक नहीं सकी? उस वक्त एक कश्मीरी मुस्लिम नेता ने मुंह नहीं खोला था। आज क्योंकि उनकी वापिसी का गंभीरता से प्रयास हो रहा है और वह नहीं चाहते कि पंडितों की आज़ाद हस्ती हो इसलिए यह कथित भाईचारा याद आ रहा है। साथ ही जरूरी है कि वादी का बढ़ता इस्लामीकरण रोका जाए। हिन्दू नामों को बदलने का प्रयास हो रहा है। वहां तो शंकराचार्य मंदिर का नाम बदल कर तख्त-ए-सुलेमान रखने का प्रयास किया जा रहा। हरी पर्बत को कोह-ए-मरन कहा जा रहा है। इनका बस चले तो श्रीनगर का नाम बदल कर शहर-ए-खास रख दें। कश्मीर को एक सुन्नी गढ़ में बदलने का प्रयास भी चल रहा है। अब मामला नई सरकार के पाले में हैं। इन्हें पंडितों की वापिसी करवानी है, चुनाव आयोग से चुनाव क्षेत्रों का पुर्नगठन करवाना है, तथा धारा 370 को हटवाना है। यह धारा अस्थाई प्रावधान थी कश्मीरी मुस्लिम नेता अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए इसे स्थाई रखना चाहते हैं। इस धारा के कारण प्रदेश तथा देश का भारी अहित हुआ है। लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहुत आशा है कि वह अपने संकल्प के पक्के हैं। नरेंद्र मोदी ही स्थिति को दुरुस्त कर सकते हैं।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.