संसद स्पष्ट संदेश दे
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री तथा तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी अपनी पार्टी के सांसद तापास पाल जिसने धमकी दी थी कि अगर मार्कसी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने तृणमूल कांग्रेस के किसी बच्चे को भी छुआ तो अपने लड़कों को भेज कर उनकी महिलाओं का रेप करवा दूंगा, के माफीनामें से संतुष्ट है। पत्रकारों को जवाब देते हुए ममता का कहना था कि क्या मैं तापास की हत्या करवा दूं? आखिर आप लोग चाहते क्या है? ममताजी, देश यह नहीं चाहता कि आप अपने सांसद की हत्या करवा दे लेकिन आप उसके खिलाफ कार्रवाई तो कर सकतीं है? ममता की शिकायत है कि जब उनके अपने बारे इस तरह की बातें कहीं गई तो मीडिया ने इस तरह विरोध नहीं किया। मैं नहीं मानता कि मीडिया ने तब विरोध नहीं किया था। अगर ममता बनर्जी आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री है तो इसलिए कि जिस तरह मार्कसी पार्टी ने उनका उत्पीढऩ किया था उससे उनके प्रति सहानुभूति की लहर थी। इस लहर को बनाने तथा अंजाम तक पहुंचाने में मीडिया का बड़ा हाथ था। अगर ममता मीडिया को श्रेय नहीं भी देना चाहती तब भी दो गलतियां मिल कर एक सही कैसे बनता है? ममता बनर्जी जो ऐसी बदतमीज़ी खुद भुगत चुकी है को तो महिला होने के नाते और भी अधिक संवेदनशील होना चाहिए था।
और यह पहला मामला नहीं जब ममता बनर्जी ने इस तरह रेप के मामले को डिसमिस किया हो। वह तो बलात्कार की शिकायतों को उनकी सरकार के खिलाफ साजिश मानती है। कोलकाता के पार्क स्ट्रीट बलात्कार के समय भी उन्होंने मामला रफा-दफा कर दिया था तथा एक और शिकार महिला की गवाही को इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि वह मार्कसी पार्टी के सदस्य की पत्नी थी। महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले में सबसे आगे आंध्रप्रदेश है, फिर उत्तर प्रदेश, फिर पश्चिम बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश है। सबसे घटिया उत्तर प्रदेश के नेताओं का रवैया रहा है जहां मुलायम सिंह यादव ने बलात्कार के मामलों को यह कहते रफा-दफा कर दिया कि ‘लड़के-लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाती है। क्या रेप केस में फांसी दी जाएंगी?’ मुलायमसिंह जी, क्या रेप मात्र ‘गलती’ है? एक महिला की सारी जिंदगी तबाह करना मात्र ‘गलती’ है? अपराधी को फांसी क्यों न मिले? असली समस्या है कि लगभग हर पार्टी के पास अपने तापास पाल हैं। भाजपा शासित मध्यप्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौड़ कह चुके हैं कि ‘कई बार रेप सही होता है।’ भाजपा ने इस टिप्पणी से खुद को दूर करते हुए कह दिया कि उन्हें समस्या की गंभीरता समझ नहीं, लेकिन कार्रवाई भाजपा ने भी नहीं की।
देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे अत्याचार की घटनाओं से न केवल देश स्तब्ध हैं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हमारी घोर बदनामी हो रही हैं। यौन हमले देश की छवि पर कालिख पोत रहे हैं और बाहर यह सवाल किया जा रहा है कि क्या भारत एक असभ्य देश है? विशेष तौर पर जब से उत्तर प्रदेश में बंदायु में दो नाबालिग लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद उनके शव पेड़ से लटका दिए गए, तब से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मामला सुर्खियों में हैं। जिन्होंने इन लड़कियों के साथ बलात्कार किया उन्होंने तो शव छिपाने की भी कोशिश नहीं की। साथ गंगा बहती है। पास जंगल है। वे वहां शव बहा या छिपा सकते थे पर उलटा सार्वजनिक तौर पर पेड़ पर लटका कर दुनिया को बता दिया कि हमें किसी का डर नहीं हैं। अपराधी बिल्कुल दबंग हो गए हैं। मेघालय में उग्रवादियों ने एक महिला से बलात्कार के बाद उसके सर को गोलियों से उड़ा दिया। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरों के आंकड़ों के अनुसार 2007 के बाद हर वर्ष महिलाओं के खिलाफ अपराध की एक लाख घटनाएं होती हैं। 20,000 बलात्कार की वार्षिक खबर है। यह वह घटनाएं है जिनकी शिकायत की जाती है इनके अतिरिक्त बहुत घटनाएं होंगी जिनका लोकलाज के कारण ज़िक्र तक नहीं किया जाता। उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ अफसर का कहना है कि वहां तो मात्र 10 बलात्कार रोज़ाना होते हैं जबकि जनसंख्या के हिसाब से तो 22 प्रति दिन होने चाहिए। जहां ऐसे अफसर और नेता हैं वहां बलात्कार तथा महिला अत्याचार की घटनाएं तो होती ही रहेंगी।
हैरानी नहीं कि हमारे समाज में वैहशीपन पर दुनिया स्तब्ध है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून का कहना है कि ‘खासतौर पर शौचालय न होने के कारण निकली दो लड़कियों के साथ भारत में हुई नृशंस घटना से मैं सहम गया हूं।’ बान की मून ने न केवल बलात्कार की घटना का ज़िक्र किया बल्कि दुनिया को यह भी बता दिया कि बलात्कार इसलिए हुआ क्योंकि घर में शौचालय न होने के कारण लड़कियां बाहर गई थी। 48 प्रतिशत घरों में यहां शौचालय नहीं है जिस कारण लड़कियों या महिलाओं को बाहर जाना पड़ता है जहां उनके साथ बदसलूकी की संभावना है। हम चाहे तरक्की के कितने भी दावे करें यह हकीकत है कि शौचालय बनाना हमारी प्राथमिकता में नहीं हैं। आशा है कि बदायूं की इस घटना के बाद मोदी सरकार इस तरफ विशेष ध्यान देगी। प्रधानमंत्री मोदी कह चुकें हैं कि ‘देवालय से पहले शौचालय’। लेकिन असली मामला तो बलात्कार की बढ़ती घटनाओं का हैं। समाज का एक वर्ग न केवल हिंसक तथा क्रूर है बल्कि समझता है कि महिलाएं पुरुष के बराबर नहीं। कथित जातीय श्रेष्ठता के कारण भी ऐसी घटनाएं होती हैं। अनुसूचित जाति तथा जनजाति के खिलाफ जो ज्यादतियां हो रही है इसका यह प्रमुख कारण है। क्योंकि जिन्हें निचली जातियां समझा जाता है वह बराबर आ रही है इसलिए उन्हें दबाने और उनका मनोबल तोडऩेे के लिए ऐसी घटनाएं हो रही हैं। दलितों के घर जलाएं जाने का भी यही बड़ा कारण कि जो खुद को श्रेष्ठ समझते हैं वह उन्हें बराबर खड़े होते ही नहीं देख सकते। बदायूं मामले में शुरू में पुलिस भी निष्क्रिय रही क्योंकि अपराधी प्रभावशाली यादव जाति से हैं।
उत्तर प्रदेश की ही तरह पश्चिम बंगाल कभी देश की संस्कृति का केंद्र रहा था। दोनों का पतन देश को बहुत महंगा पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश के तो चार हिस्से कर देने चाहिए वर्तमान स्थिति में इस पर शासन करना संभव नहीं। एक पूर्व मुख्यमंत्री कह चुकें है कि इतने ज़िले है कि कलैक्टर के नाम भी याद नहीं रहते। मशहूर मुहावरा है कि जो बंगाल आज सोचता है बाकी देश कल सोचेगा। वह बंगाल कहां गया? वहां तापास पाल जैसे लोग क्यों दनदना रहे हैं? कामरेडो ने वहां हिंसा की राजनीति शुरू की थी। आशा थी कि ममता बनर्जी प्रदेश को अपने पुराने वैभव की तरफ लौटाएंगी लेकिन ईमानदार और दिलेरी पर चीखती चिल्लाती असंतुलित दीदी भी उसी रास्ते पर चल रही हैं जिस पर कामरेड प्रदेश को लडख़ड़ाता छोड़ गए थे! यह मौका था कि वह सिद्घ कर सकती थी कि वह कामरेडो का चर्बा मात्र नहीं हैं। इसलिए अब मामला संसद में उठना चाहिए। संसद को यह स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि किसी भी हालत में रेप स्वीकार नहीं हैं। एक सांसद महिलाओं से बलात्कार की धमकी दे कर बचना नहीं चाहिए। अगर उसे निकाला नहीं जाता तो आशा है कि कम से कम लोकसभा उसकी धमकी के खिलाफ निंदा प्रस्ताव जरूर पारित करेगी ताकि ऐसी गुस्ताखी कोई जनप्रतिनिधि फिर न दोहराएं। अगर कोई महिला शिकार हुई है तो उसे न्याय उसकी राजनीतिक वफादारी को देख कर नहीं दिया जाएगा, यह स्पष्ट संदेश देश की संसद की तरफ से जाना चाहिए।