क्यों नहीं? क्यों नहीं?

क्यों नहीं? क्यों नहीं?

जम्मू कश्मीर के कांग्रेसी मंत्री शाम लाल शर्मा ने कश्मीर में यह कह कर खलबली मचा दी कि जम्मू कश्मीर का अगला मुख्यमंत्री हिन्दू होना चाहिए। उन्होंने महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल के उदाहरण दिए हैं जहां मुसलमान अल्पसंख्यक हैं पर वहां मुस्लिम मुख्यमंत्री रह चुके हैं। डा. मनमोहन सिंह की मिसाल भी है जो 10 वर्ष देश के प्रधानमंत्री रहे जबकि सिखों की संख्या दो प्रतिशत से कम है। ज़ाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद और एपीजे अब्दुल कलाम देश के राष्ट्रपति रह चुकें हैं। इसलिए सवाल है कि हिन्दू जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सकता? इस सवाल पर सीधी प्रतिक्रिया है कि क्यों नहीं? एक लोकतंत्र में हिन्दू वहां मुख्यमंत्री क्यों नहीं बन सकता? किस संविधान में लिखा है कि कोई हिन्दू जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री नहीं बन सकता? अभी तक वहां के मुस्लिम मुख्यमंत्रियों ने देश तथा प्रदेश का भारी अहित किया है। वहां अलगाव की भावना को पाला गया जिससे प्रदेश तरक्की नहीं कर सका क्योंकि वहां सही निवेश नहीं हो रहा है। यह भी शिकायत है कि जम्मू के लोगों के साथ सरकारी नौकरियों में भेदभाव किया जाता है। शर्मा का कहना है कि सचिवालय में 7000 कर्मचारी हैं जिनमें केवल 200 हिन्दू हैं। अगर यह सच है तो उनसे भी पूछा जा सकता है कि उनकी कांग्रेस पार्टी किस मर्ज की दवा है? कांग्रेस वहां गठबंधन में है, उसने कश्मीरी मुस्लिम नेताओं की ब्लैकमेल के आगे समर्पण क्यों कर दिया था?
लेकिन अब पीछे की तरफ नहीं बल्कि आगे की तरफ देखने का समय है। क्या कश्मीर की जमीनी स्थिति और यह अघोषित स्वीकृति कि केवल कश्मीरी मुसलमान ही मुख्यमंत्री होगा, बदली जा सकती? अभी से वहां कट्टर मुसलमान तथा मुस्लिम राजनीतिज्ञ तड़प रहे हैं। कहा जा रहा है कि प्रदेश की ‘मुस्लिम संस्कृति’ बदलने का प्रयास हो रहा है। पीडीपी के सांसद मुजफ्फर हुसैन बेग का कहना है कि शर्मा एक मुस्लिम बहुमत वाले प्रदेश में हिन्दू मुख्यमंत्री की वकालत कर क्या मकसद पूरा कर रहे हैं? कोई नहीं चाहता कि सत्ता उनके हाथ से निकल जाए लेकिन एक लोकतंत्र में ‘मुस्लिम संस्कृति’ का क्या मतलब है? सरकार का किसी मजहब से रिश्ता नहीं होना चाहिए और यह वह लोग हैं जो कश्मीर से हिन्दुओं को निकाल चुके हैं। अब तक की केन्द्रीय सरकारें उनकी ब्लैकमेल के आगे घुटने टेकती रही हैं। इस वक्त तो हालत है कि देश से पूरी मदद ली जाती है लेकिन श्रीनगर तथा वादी के दूसरे शहरों में सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंके जाते हैं। देश के खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी की जाती है। यह वहां एक बिजनेस बन चुका है क्योंकि मुख्यमंत्री मुसलमान रहे हैं इसलिए उन्होंने रोकने का सही प्रयास नहीं किया गया नहीं तो यह मानना मुश्किल है कि उन्हें मालूम नहीं कि पत्थर कौन सप्लाई करते हैं और कौन फेंकते हैं?
कश्मीर वादी ही जम्मू कश्मीर नहीं लेकिन वादी को जम्मू कश्मीर की आवाज समझ लिया गया क्योंकि वहां शरारत करने की क्षमता है। पाकिस्तान की एजेंसियों का दखल बहुत है जो चैन नहीं लेने देतीं। हुर्रियत के नेताओं का प्रभाव भी श्रीनगर के कुछ मुहल्लों तक सीमित है, उन्हें घास डालने की और जरूरत नहीं।
भाजपा वहां अपनी सरकार बनाने की कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी तीन महीने में दो बार वहां की यात्रा कर आए हैं। बहुत जरूरी है कि यह संदेश जाए कि जहां कश्मीर वादी के लोगों की भावना का आदर किया जाएगा वहां वह सदा तय नहीं करेंगे कि जम्मू कश्मीर में क्या होना है। उनके पास वीटो नहीं है। भाजपा 44+ के मिशन पर चली हुई है अर्थात पूर्ण बहुमत का प्रयास कर रही है वह इसमें सफल होते हैं या नहीं, कहा नहीं जा सकता लेकिन इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को वहां सबसे अधिक समर्थन मिला है। जम्मू, लद्दाख तथा कश्मीर के कुछ चुनाव क्षेत्रों को मिला कर यह असंभव भी नज़र नहीं आता। कश्मीरी मुस्लिम नेता तथा देश की कथित उदारवादी लॉबी जरूर दुखी होगी लेकिन सोचिए तो सही कि अगर वहां राष्ट्रवादी सरकार तथा भाजपा का हिन्दू मुख्यमंत्री बन जाता है तो क्या सही संदेश दुनिया तथा देश को जाएगा? कश्मीर समस्या के समाधान तथा अलगाववादियों की शरारत को खत्म करने की तरफ यह पहला बड़ा कदम होगा। अपनी वर्तमान जर्जर हालत में कांग्रेस यह काम नहीं कर सकती यह काम केवल भाजपा कर सकती है। भाजपा का यह राष्ट्रीय दायित्व भी है। और अगर भाजपा जम्मू कश्मीर में अपनी सरकार बनाने में सफल हो जाती है तो यह देश की इतनी बड़ी सेवा होगी कि अगर बाकी अवधि में वह और कुछ नहीं भी करते तब भी इस सरकार का नाम इतिहास में लिखा जाएगा।
यह संतोष की बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपिन्द्र सिंह हुड्डा को चाय पर बुला कर 19 अगस्त को कैथल में प्रधानमंत्री की मौजूदगी में भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा हूटिंग के प्रकरण से पैदा हुई कड़वाहट को खत्म करने का प्रयास किया है। पांच दिन में विपक्ष के तीन मुख्यमंत्रियों को निशाना बनाया गया जिस पर हेमंत सोरेन का कहना है कि मुख्यमंत्री के खिलाफ नारेबाजी संघीय ढांचे से रेप जैसा है जबकि कांग्रेस का कहना है कि हम भी प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में अपने लोग भेज कर नारेबाजी करवा सकते हैं। अर्थात् मामला बदसूरत बनता जा रहा है।
प्रधानमंत्री बार-बार कह रहे हैं कि वह सभी को साथ लेकर चलना चाहते हैं। प्रधानमंत्री वैसे भी सारे देश के हैं, एक पार्टी के नहीं। देश की प्रगति का उनका जो नक्शा है उसमें प्रदेशों की बड़ी भूमिका है लेकिन अगर उनके कार्यक्रमों में विपक्षी मुख्यमंत्रियों की हूटिंग होती रही तो सहयोग नहीं मिलेगा। भूपिन्द्र सिंह हुड्डा को यह कहने का मौका दे दिया गया कि हरियाणा का अपमान किया गया। यह देश एक संघ है जहां प्रदेशों की विशेष जगह है। भाजपा के उतावले नेताओं तथा कार्यकर्ताओं ने अपना भी अहित किया है क्योंकि देश को यह संदेश गया है कि वह विपक्ष को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं। इस देश की अपने लोकतंत्र जिसमें विपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका है, में बहुत आस्था है। जो इस संतुलन को बिगाडऩे की कोशिश करेगा जनता उसका विरोध करेगी। जनता ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को बहुमत दिया है पर जनता विपक्ष की जरूरत को समझती है जो उत्तराखंड, बिहार, कर्नाटक, मध्यप्रदेश तथा पंजाब के उपचुनाव नतीजों से भी पता चलता है।

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Chander Mohan is the grandson of the legendary editor of Pratap, Mahashya Krishan. He is the son of the famous freedom fighter and editor, Virendra. He is the Chief Editor of ‘Vir Pratap’ which is the oldest hindi newspaper of north west india. His editorial inputs on national, international, regional and local issues are widely read.